हैप्पीनेस क्लास


दिल्ली के सरकारी स्कूलों में चलाया जा रहा हैप्पीनेस पाठ्यक्रम शायद दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग है जो पॉजिटिव लर्निंग, क्रिटिकल थिंकिंग, वेल बीइंग और इमोशनल लर्निंग को औपचारिक स्कूल शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल करके चलाया जा रहा है. इसके अंतर्गत दिल्ली के एक हजार से ज्यादा स्कूलों में नर्सरी से आठवीं क्लास तक के करीब बच्चों के लिए स्कूल का पहला पीरियड 45 मिनट की हैप्पीनेस क्लास होती है.

इतने बड़े पैमाने पर हैप्पीनेस क्लास चलाने का मकसद है हर इंसान औपचारिक स्कूली शिक्षा के शुरुआती दौर में ही अपने मनोभावों की व्यवस्था को समझ सके, परिवार, समाज, देश और प्रकृति की व्यवस्था को समझ सके उसे समझ कर जीने की योग्यता हासिल कर सकें. इसीलिए हमने अपने स्कूलों में पढ़ने वाले हर बच्चे को नर्सरी से ही शुरू करके लगातार 10 साल तक रोजाना एक पीरियड हैप्पीनेस क्लास के जरिए समझदार बनाने का यह पाठ्यक्रम शुरू किया है.

अभी इस पाठ्यक्रम को शुरू हुए महज 2 वर्ष हुए हैं लेकिन बच्चों के व्यवहार और आचरण में इसकी वजह से जबरदस्त बदलाव देखने को मिले हैं. बच्चों का खुद मानना है कि हैप्पीनेस क्लास की वजह से अब वह पढ़ाई पर पहले के मुकाबले अच्छे ध्यान दे पाते हैं और उनके अंदर अलग-अलग विषयों को पढ़ने समझने की योग्यता नए सिरे से विकसित हुई है. अध्यापकों का मानना है कि हैप्पीनेस क्लास की वजह से वह अब बच्चों के आपसी व्यवहार में भी परिवर्तन देख पा रहे हैं. वहीं बहुत से अभिभावक भी अध्यापकों से आकर इस बारे में बताते हैं कि जब से हैप्पीनेस क्लास शुरू हुई है उनका बच्चा परिवार और रिश्तों के प्रति अधिक संवेदनशील हुआ है. हैप्पीनेस क्लास की वजह से दिल्ली के अध्यापकों की सोच में भी एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है. शुरुआती सफलताओं का ही नतीजा है कि आज देश के लगभग सभी राज्यों में सरकारें अपने-अपने स्तर पर इस तरह का पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रयास कर रही है. और सिर्फ भारत में ही नहीं अफगानिस्तान बांग्लादेश श्रीलंका नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में भी इसके प्रति जिज्ञासा बनी है. अफगानिस्तान और बांग्लादेश के शिक्षा मंत्रियों ने स्वयं आकर हैप्पीनेस क्लास का जायजा लिया है. यूरोप और अमेरिका के शिक्षा से जुड़े कई अधिकारी जनप्रतिनिधि और शिक्षाविद हैप्पीनेस क्लास के इस प्रयोग को बेहद दिलचस्पी से देख रहे हैं. फरवरी 2020 मैं जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत यात्रा पर आए तो उनकी पत्नी अमेरिका की प्रथम महिला मिलेनिया ट्रंप भी हैप्पीनेस क्लास के इस अभिनव प्रयोग को समझने के लिए दिल्ली के स्कूल में गई और वहां उन्होंने करीब डेढ़ घंटा बच्चों और शिक्षकों के साथ बिताया.

अभी कहना शायद जल्दबाजी होगा लेकिन हमारा मानना है कि अगर हमें दुनिया में नफरत हिंसा आतंकवाद जैसी बुराइयों का स्थाई समाधान निकालना है तो शिक्षा से ही निकलेगा और शिक्षा में हैप्पीनेस पाठ्यक्रम इसका आधार बनेगा.

हैप्पीनेस : 
हैप्‍पीनेस यानी ख़ुशी मन की एक अवस्‍था है। एक ऐसी अवस्था जिसमें हमारे भाव और विचार सकारात्मक या पॉज़िटिव होते हैं। ख़ुशी मन की ऐसी अवस्‍था है जिसे हम हमेशा बनाए रखना चाहते हैं। हम ख़ुद के लिए कुछ काम करें, किसी दूसरे के साथ कोई व्‍यवहार करें अथवा दूसरे हमारे लिए कोई काम करें या व्‍यवहार करें, उसमें हम ख़ुशी ही ढूँढना चाहते हैं। अगर पढ़ा हुआ हमें समझ में आ जाए तो हमें ख़ुशी मिलती है। कभी किसी से आगे निकलने में ख़ुशी मिलती है तो कभी ऐसा भी होता है कि किसी के पीछे रहने में भी ख़ुशी मिलती है। जो कुछ भी हम समझे हैं उसे कर सकें तो हमें ख़ुशी मिलती है। परीक्षा में सफलता पर हमें ख़ुशी मिलती है। किसी से कुछ लेकर ख़ुशी मिलती है तो किसी को कुछ देकर ख़ुशी मिलती है। कोई हमारी परेशानियाँ दूर करे तो ख़ुशी मिलती है और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि दूसरों के लिए ख़ुद को परेशानी में रख कर भी हमें ख़ुशी मिलती है। इन सभी स्थितियों में हमारे भाव और विचार कुछ अच्छा या सही करने की प्रेरणा के साथ हैं.

हैप्‍पीनेस की क्‍लास में हम मन की इन्‍हीं अवस्‍थाओं को अलग-अलग तरीके से समझने और समझ कर जीने का अभ्यास करते हैं. नर्सरी से लेकर आठवीं तक लगातार बच्चों को अध्ययन कराया जाता है कि हमारा मन कब ख़ुशी महसूस करता है। किन परिस्थितियों में हम ज़्यादा ख़ुश होते हैं और किन परिस्थितियों में कम। किन परिस्थितियों में हमारी ख़ुशी क्षणिक होती है और किन परिस्थितियों में लंबी। बच्चों के अंदर यह भी धारणा विकसित की जाती है कि “ख़ुश होने के लिए कुछ करना है या ख़ुश होकर कुछ करना है.