Stories of Change


इस कार्यक्रम को शुरू हुए महज 2 साल ही हुआ है लेकिन इतने कम समय में इसके जिस तरह के परिणाम सामने आ रहे हैं वह भी इतनी ही दिलचस्प हैं जितने यह सवाल। आज अपने स्कूलों में जाकर जब मैं नर्सरी से आठवीं क्लास तक के अध्यापकों से, या प्रधानाचार्य उसे हैप्पीनेस करिकुलम के बारे में चर्चा करता हूं तो लगभग हर स्कूल से मुझे यह सुनने को मिलता है कि केवल 2 साल में ही बच्चों के व्यवहार में बदलाव आया है. विशेषकर छठी सातवीं आठवीं के बच्चों के बारे में सुनने को मिलता है कि उनके अंदर की उग्रता कम हुई है, अपेक्षाकृत रूप से पहले से शांत रहने लगे हैं, कुछ अध्यापक यही बताते हैं कि छठी सातवीं आठवीं के बच्चों में पढ़ाई पर ध्यान देने की प्रवृत्ति पहले की तुलना में ज्यादा दिखने लगी है. आदि आदि.. लेकिन सबसे ज्यादा दिलचस्प और भरोसा जगाने वाले उदाहरण अभिभावकों की तरफ से आते हैं जो अध्यापकों से होते हुए मुझ तक पहुंचे हैं.
  • हमारी एक शिक्षिका साथी को एक बच्चे की मां ने बताया कि उनका बच्चा घर में रिश्तो को लेकर बेहद संवेदनशील हो गया है. वह घर आता है तो अब खाना खाने से पहले मां से पूछ लेता है कि मां के लिए बचा है या नहीं, इतना ही नहीं कभी-कभी तो वह रसोई में जाकर भी देखता है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि मां के लिए खाना ना बचा हो और बच्चे को खिलाने के लिए झूठ बोल रही हो. 
  • इसी तरह एक दादी ने आकर बताया कि पिछले 1 साल से उनके बच्चे के व्यवहार में आश्चर्यजनक परिवर्तन को देख रही हैं. उनके मुताबिक जो बच्चा मोहल्ले में दूसरे बच्चों के साथ झगड़ा रहता था बदल गया है और उसके व्यवहार में प्यार और सम्मान ज्यादा दिखने लगा है. 
  • हाल ही में हिंदुस्तान टाइम्स अखबार का एक पत्रकार हैप्पीनेस कार्यक्रम पर स्टोरी करने स्कूल में गया सुबह उसने बच्चों से पूछा कि क्या वह घर पर भी इसके बारे में जिक्र करते हैं. तो उन्हें एक बच्चे ने बताया कि एक शाम उसके पिता जब बहुत तनाव में घर लौटे तो उसने अपने पिता को ही हैप्पीनेस का एक पीरियड करा दिया, इस दावे के साथ की स्कूल में जब हैप्पीनेस का पीरियड होता है तो उसे भी शांति मिलती है. 
  • मेरे लिए अभी तक की सबसे अविस्मरणीय फीडबैक रही जब एक छात्रा ने मुझे बताया कि किस तरह हैप्पीनेस करिकुलम की वजह से उसे लड़की होने के कारण अपने ही घर से मिलने वाले रोजाना के तनाव से मुक्ति मिली है. छात्रा ने बताया कि उसके घर पर भाई के लिए प्राइवेट स्कूल में अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की गई है जबकि लड़की होने के नाते उसे सरकारी स्कूल में भेजा गया है. इतना ही नहीं, रोजाना सुबह जब वो स्कूल आती है तो नाश्ते से लेकर कपड़ों तक में भाई को मिलने वाली प्राथमिकता के कारण, परिवार से लड़की होने के कारण मिल रही उपेक्षा के कारण स्कूल में पूरा दिन उसका इन्हीं कुंठाओं से जूझने में बीतता था, लेकिन जबसे हैप्पीनेस की क्लास शुरू हुई है तब से वह पहले ही पीरियड से घर की सारी कुंठाओं से ऊपर उठ जाती है और स्कूल में अपना पूरा समय पढ़ाई पर फोकस कर पाती है. देश की राजधानी में भी ऐसा हो रहा है यह जानना मेरे लिए दुखद था लेकिन हैप्पीनेस पाठ्यक्रम से उसका समाधान निकल रहा है यह भी जानना मेरे लिए सुखद था.

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मुझे प्रदूषण फैलाने वाले लोग अच्छे नहीं लगते थे । मुझे हमेशा लगता था कि मैं उन्हें प्रदूषण फैलाने से रोकूं पर डर भी लगता था । हैप्पीनेस क्लास से मुझे हिम्मत मिली । एक बार एक अंकल अपनी गाड़ी का इंजन ऑन कर उसे साफ कर रहे थे । मैंने उनसे पूछा कि आप इंजन ऑन करके ये क्यों कर रहे हैं । वो बोले कि मुझे जल्दी निकलना है। मैंने उन्हें समझाया कि सफ़ाई तो वो इंजन ऑफ करके भी कर सकते हैं क्योंकि इससे हमारे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुँचता है। मेरी बात सुनकर उन्होंने मुझे शाबाशी दी और आईसक्रीम भी खिलाई ।

-चांदनी, कक्षा 7 


हमारे स्कूल में रोज़ाना हैप्पीनेस की क्लास होती है। इस क्लास में हम लोग माइंडफुल-मेडिटेशन सीखते हैं। इससे मुझे कई फ़ायदे हुए हैं । पहले मैं कुछ भी बोलने में हिचकिचाती थी । मेरे अंदर हमेशा एक डर सा रहता था लेकिन रोज़ माइंडफुल-मेडिटेशन करने के बाद मैं अब अपनी बातें सबके सामने रख पाती हूँ और अब मेरे अन्दर कॉन्फिडेंस आ गया है। अब मैं अपनी बात टीचर को और पेरेन्ट्स को खुलकर कह पाती हूँ ।

-रितिका, आठवीं कक्षा



जब से मेरी बेटियों ने हैप्पीनेस क्लास में भाग लेना शुरू किया है तब से उनमें ही नहीं बल्कि घर के माहौल में भी बदलाव आ गया है। मेरी छोटी बेटी अब मुझसे सारी बातें शेयर करती है और मेरी बड़ी बेटी का लगाव मेरे प्रति और बढ़ गया है। अब वो मेरा काम ख़त्म होने के बाद मेरे लिए पानी लाती है, रात को जब तक मैं सोने नहीं जाती तब तक वो मेरी राह देखती है। मैं जब उन से इस बदलाव के बारे में पूछती हूँ तो वो बताती हैं कि ये सब उन्हें अपने हैप्पीनेस क्लास से समझ में आ रहा है।

- नगमा सिद्धीकी (माँ), फ़ाएज़ा सिद्धीकी, सातवीं कक्षा




हम सब जानते हैं कि हमारे पेरेंट्स हमारे लिए कितना कुछ करते हैं। जब मुझे टीचर ने हैप्पीनेस क्लास में समझाया कि हमें पेरेंट्स की हेल्प करनी चाहिए तो मुझे लगा कि मेरा भी फर्ज़ बनता है अपनी माँ की हेल्प करना । कभी-कभी मैं अपने बर्तन धो देता हूँ, साफ सफाई करता हूँ और अपनी मम्मी की खाना बनाने और आटा छानने इत्यादि में मदद करता हूँ । इससे मेरी माँ को और मुझे बहुत खुशी मिलती है।

- आशुतोष, आठवीं कक्षा



पहले मेरे दिमाग में बहुत सारे ख्याल घूमते रहते थे पर जब से हैप्पीनेस क्लास में मुझे माइंडफुल-मेडिटेशन कराया गया तो इन सब ख्यालां से हटकर मेरी कॉन्सनट्रेशन पावर बढ़ने लगी । अब मैं जो भी पढ़ाई करता हूँ, मुझे समझ आता है । मेरा पूरा ध्यान अब क्लास में बना रहता है। अब मैथ्स भी मुझे अच्छे से समझ आने लगा है।

-युवराज, आठवीं कक्षा




हैप्पीनेस क्लास से मेरे बच्चे में तो बदलाव आया ही है साथ ही घर के माहौल में भी बदलाव आया है। पारिवारिक समस्याओं के कारण मैंने अपनी बेटी को प्राईवेट स्कूल से निकाल कर उसका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया । मुझे माईग्रेन के कारण सर में दर्द और टेंशन रहती थी, जिस वजह से बहुत तकलीफ होती थी । लेकिन एक साल से मुझे बहुत रिलीफ पहुँचा है। मेरा बच्ची अब मुझे हैप्पीनेस का पाठ पढ़ाती है । रोज़ स्कूल से घर आकर मेरी बच्ची मुझे माइंडफुल-मेडिटेशन की एक्सरसाइज कराती है। हैप्पीनेस पाठ्यक्रम से मेरा पूरा परिवार अब हैप्पी रहता है।

-रानी मिश्रा (माँ), अंशिका मिश्रा, आठवीं कक्षा


पहले मेरी बेटी प्राइवेट स्कूल में पढ़ती थी। पढ़ाई में तो जैसे-तैसे ये अच्छे अंक ले आती थी, पर किसी से बिल्कुल बात नहीं करती थी। स्कूल से आकर अपने कमरे में दिन भर रहती थी पर जब से मैंने इसे सरकारी स्कूल में डाला है और खासकर हैप्पीनेस क्लासेस के बाद मेरी बेटी में कॉन्फिडेंस आया है। अब मेरी बेटी हंसने लगी है और मुझे भी हंसाती है। साथ में मुझे रोज़ बोलती है कि टेंशन मत लो, अच्छा सोचो सब अच्छा होगा।

-श्वेता मिश्रा (माँ), ऋचा मिश्रा, पाँचवी कक्षा




पहले तो मेरा माइंड बिलकुल शांत नहीं रहता था । किसी काम में मेरा मन नहीं लगता था पर ‘तीन मज़दूर’ स्टोरी पढ़ने के बाद मुझे सीख मिली कि काम मन लगा कर करना चाहिए । अब कोई भी काम करने से पहले मैं माइंडफुल-मेडिटेशन करती हूँ । ऐसा करने से मेरा मन उस काम में और भी ज्यादा लगता है और मैं अपना 100%देती हूँ।

-स्नेहा, आठवीं कक्षा




पहले मेरी बेटी छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करती थी, घर पर अगर किसी काम में हाथ बटाने को कह दो तो भागती थी लेकिन हैप्पीनेस क्लासेस के बाद मैंने अपने बच्चे में बहुत बदलाव देखे हैं । वो हम सबकी बात मानती है । स्कूल से थक के आने के बाद भी अपनी मम्मी की मदद करती है । ये अब अपनी छोटी बहन को भी हैप्पीनेस का पाठ पढ़ाती है।

-मोहम्मद नसीम अहमद (पिता), ज़बीबा राधिका, आठवीं कक्षा





हैप्पीनेस क्लास की वजह से मैं अपनी बेटी में बदलाव देख रही हूँ। अब वो मेरे साथ ज़्यादा समय बिताती है । मोबाईल और टी.वी. से ज़्यादा अब वो परिवार के साथ समय बिताती है। हैप्पीनेस क्लास में जो भी कहानी सुनाई जाती है, वो घर पर आकर भी सुनाती है। इतना ही नहीं, खुद आगे बढ़कर घर के कामों में मेरी मदद करती है।

-गीता देवी (माँ), मिनाक्षी, पाँचवी कक्षा

2 comments:

  1. हमारे स्कूल मे रोज मिन्द्फुल्ल्नेस्स होती है. और साथ हि स्टोरीज भी सुनाती है.
    स्वीटी
    कक्षा-8बी

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  2. Good news
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