इसका विचार कैसे आया?


हैप्पीनेस करिकुलम की शुरुआत का आधार मेरे और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी के बीच की एक बातचीत कही जा सकती है. मैं मुख्यमंत्री जी के साथ उनके ड्राइंग रूम में शिक्षा विभाग से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा कर रहा था. बातचीत को बीच में रोककर उन्होंने मुझसे कहा कि हम स्कूल की बिल्डिंग अच्छी बनाते जा रहे हैं, शिक्षकों की ट्रेनिंग की अच्छी व्यवस्था हो गई है और अब उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है, इस सब के परिणाम स्वरूप परीक्षाओं में नतीजे भी अच्छे आने लगे हैं, लेकिन राजनीति में आने से पहले हम यह सोचते थे बच्चों को अच्छा इंसान बनाया जाए, उस पर कोई काम अभी तक हमने नहीं किया। मुख्यमंत्री की बात सही थी. हमारा अभी तक का सारा ध्यान, या कहीं की उस समय तक की सारी मेहनत इसी बात पर थी की स्कूल की बिल्डिंग अच्छी हो जाएं, टीचर्स के अंदर एनर्जी देखने को मिले और परीक्षा के परिणाम अच्छा न लगे. इंसान बनाने पर हम मेहनत ही कहां कर रहे थे? यह बात मेरे मन के किसी कोने में बैठ गई और शायद अंदर ही कोई संकल्प पाया कि अब इस पर मेहनत करनी होगी। हमने अपने शिक्षकों के लिए जीवन विद्या की बहुत सारी वर्कशॉप कराई थी, विपस्सना के लिए भी हमने अपने शिक्षकों को भेजा था, लेकिन यह सब काम शिक्षकों पर हो रहा था और हम सब मिलकर बच्चों को अच्छा किताबी कीड़ा बनाने पर मेहनत कर रहे थे. जीवन विद्या और विपस्सना का मूल तत्व शिक्षा के जरिए विद्यार्थियों के जीवन में कैसे पहुंचे स्पर्श कोई सघन कार्यक्रम हमारे पास नहीं था. मुख्यमंत्री के सवाल उठाने पर मैंने इस बारे में सोचना शुरू किया। संयोग से कुछ ही दिन बाद में 10 दिन के विपस्सना शिविर में भी गया. वहां पर ध्यान-अभ्यास करते करते मुख्यमंत्री की वह बात भी ध्यान में आती रही. कहना गलत नहीं होगा कि हैप्पीनेस करिकुलम का आधार मुख्यमंत्री के साथ हुई बातचीत बनी और मेरे मन में उसका पूरा खाका विपस्सना शिविर के दौरान 10 दिन में बना. यहां यह उल्लेख करना भी दिलचस्प है विपस्सना शिविर में 10 दिन के दौरान अपने पास पेन और पेपर रखने की इजाजत भी नहीं होती है, किसी से बात करने की इजाजत भी नहीं होती है फोन रखना तो बहुत दूर की बात है. इसलिए इस दौरान जो भी खाका बनता रहा वह मेरे अपने मस्तिष्क में ही बनता रहा और मैं उसमें अपने मन में ही सुधार करता रहा.

यहाँ मैं हैप्पीनेस कार्यक्रम से जुड़े एक और दिलचस्प घटनाक्रम का जिक्र करना चाहूंगा। सितंबर 2017 में मैं मॉस्को में अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में सम्मिलित हुआ जहां करीब 45 देशों के शिक्षा मंत्री शिक्षा सुधारों, तकनीकी और इसके अन्य पहलुओं पर चर्चा कर रहे थे. मैंने देखा कि अधिकतर चाचा इस बात पर ही फोकस थी कि किस देश ने अपने क्लास रूम्स में कितनी एडवांस टेक्नोलॉजी अपना ही है. अपने उद्बोधन में मैंने आग्रह किया कि जब इतने सारे देशों के शिक्षा मंत्री इकट्ठा बैठे हैं तो हमें थोड़ा चिंतन इस बात पर भी करना चाहिए कि क्या शिक्षा के जरिए हम उन समस्याओं का समाधान देने का जिम्मा उठा सकते हैं जिनका समाधान दुनिया के बहुत सारे देश नए नए कानून बनाकर, संधियां करके, या फिर हथियारों का अंधाधुंध संग्रह करके ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं? क्या 45 देशों के शिक्षा मंत्री दुनिया को यह भरोसा दिलाने पर चिंतन कर सकते हैं कि आतंकवाद और ग्लोबल वार्मिंग जैसी जिन समस्याओं का समाधान इतने हथियारों के संग्रह, संधियों और कानूनों के जरिए संभव नहीं हुआ उसे हम शिक्षा के जरिए संभव करेंगे और दुनिया को इंसान और प्रकृति के लिए एक बेहतर जगह बनाएंगे। मेरी राय से सभी शिक्षा मंत्रियों ने तक रखा और अगले 2 दिन तक लगभग अनौपचारिक बातचीत में मुझसे कई देशों के शिक्षा मंत्रियों ने यह कहा की बात तो यह ठीक है लेकिन आतंकवाद जैसी समस्याओं का समाधान शिक्षा शिक्षा से संभव होगा। मैंने आश्वस्त यह संभव है और इसका रास्ता प्राचीन भारतीय अनुसंधान और ज्ञान परंपराओं से निकल कर आ सकता है. संयोग से दिसंबर 2018 में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मॉस्को में शामिल हुआ और वहां मैंने हैप्पीनेस करिकुलम के 3 महीने के प्रयोगों और अनुभवों को बताया। इस बार वहां पर 70 देशों के शिक्षा मंत्री आए हुए थे. कई देशों ने इस में गहरी दिलचस्पी दिखाई और उनमें से कुछ के शिक्षाविद अभी भी संपर्क में हैं.

मॉस्को की घटना का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि आज इस समय जब पूरी दुनिया में आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग और भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के जरिए खोजने की कोशिश हो रही है उस समय दिल्ली के सरकारी स्कूलों में चल रहा यह हैप्पीनेस करिकुलम इस बात का गवाह बन रहा है कि मानवीय व्यवहार की वजह से उत्पन्न समस्याओं का समाधान, स्थाई समाधान केवल और केवल शिक्षा में संभव है. मैं बहुत बार इस बात को कहता हूं कि अच्छी स्कूल बिल्डिंग्स बनवाना, मॉडर्न क्लासरूम्स खड़े करना, आधुनिकतम तकनीक को पढ़ाने में इस्तेमाल करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियां नहीं है, यह सब जरूरतें हैं लेकिन उपलब्धियां नहीं है. शिक्षा की असली उपलब्धि है कि क्या वह वर्तमान और भविष्य की संभावित समस्याओं का समाधान खोज कर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती है अथवा नहीं. हैप्पीनेस करिकुलम मुझे संभावना की दिशा में बड़ा और महत्वपूर्ण कदम दिखाई देता है.

जिस वक्त यह पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा था संयोग से उस दौरान मैं अमेरिका के हार्वड विश्वविद्यालय में एक लेक्चर देने के लिए गया हुआ था। वहां पर मेरी मुलाकात हार्वड के शिक्षा विभाग में अंतर्राष्ट्रीय ट्रेनिंग टीचर प्रोग्राम की प्रमुख मिथलीनो फ्लेचर से हुई। मैंने उन्हें दिल्ली सरकार की योजना और इसके व्यापक प्रयोग के बारे में बताया। मेरा मकसद था कि अगर अपने अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों एवं संपर्कों के आधार पर वह हमें इस पाठ्यक्रम को टीचर ट्रेनिंग में मदद कर सके तो हमारा काम आसान हो जाएगा। उन्होंने मुझे कई देशों के छोटे-छोटे उदाहरण बताए। लेकिन उन्होंने खुद माना कि पूरी दुनिया में उनकी जानकारी में इतना बड़े पैमाने पर और इस निरंतरता के साथ इतना लंबा चलने वाला कार्यक्रम उन्होंने अभी तक नहीं देखा है।


1 comment:

  1. शिक्षा की क्रंति ने दरवाजे पर दस्तक दे दी है, अब इसे हमारे मन और हृदय में उतारना है बस।

    मंत्री जी आप को हृदय से धन्यवाद इस क्रांति की अगुआइ करने के लिए।

    AAP क्रांति की मूल भावना को बतलाती हई इस कविता को आज यह संझा करना चाहूंगा।

    हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
    इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

    आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
    शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

    हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
    हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

    सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
    सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

    मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
    - दुष्यन्त कुमार

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