शिक्षा मंत्री का संदेश
मेरी राय में शिक्षा के दो ही मकसद हैं- आदमी पढ़ लिख कर खुशी पूर्वक जीने की योग्यता हासिल कर सके और दूसरों की खुशी पूर्वक जीने में सहयोग देने की योग्यता हासिल कर सके। कुल मिलाकर नर्सरी- के०जी० से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक की शिक्षा का हासिल-जमा इतना ही है। मैं जब भी यह बात कहता हूँ तो कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि जब सारी शिक्षा ही खुशी पूर्वक जीने के लिए है तो फिर हैप्पीनेस करिकुलम क्यों? जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का मकसद खुशी ही है तो फिर हैप्पीनेस करिकुलम का मकसद क्या है?
मेरी राय में शिक्षा के दो ही मकसद हैं- आदमी पढ़ लिख कर खुशी पूर्वक जीने की योग्यता हासिल कर सके और दूसरों की खुशी पूर्वक जीने में सहयोग देने की योग्यता हासिल कर सके। कुल मिलाकर नर्सरी- के०जी० से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक की शिक्षा का हासिल-जमा इतना ही है। मैं जब भी यह बात कहता हूँ तो कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि जब सारी शिक्षा ही खुशी पूर्वक जीने के लिए है तो फिर हैप्पीनेस करिकुलम क्यों? जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का मकसद खुशी ही है तो फिर हैप्पीनेस करिकुलम का मकसद क्या है?
हैप्पीनेस करिकुलम का मकसद है - खुशी की
समझ बनाना। हमारे छात्रों के लिए वर्तमान जीवन में और भविष्य में, उनके अपने जीवन में
खुशी का क्या मतलब है? दूसरों के खुशी पूर्वक जीने में सहयोग का क्या मतलब है? क्या खुशी को नापा जा
सकता है? क्या खुशी की तुलना की जा सकती है? दूसरों से तुलना में मिलने वाली खुशी और
अपने अंदर से प्रकट होने वाली खुशी का विज्ञान क्या है? कहीं हम सुविधाओं को
ही तो खुशी नहीं मान बैठे हैं? इन सब, और इन जैसे और सवालों के वैज्ञानिक जवाब अपने अंदर से, अपने आसपास से तलाशने
की गतिविधि का नाम है हैप्पीनेस करिकुलम।
दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों में
हैप्पीनेस करिकुलम को दो ही वर्ष हुए है। लागू किए जाने के पहले दो ही वर्ष में इस
पाठ्यक्रम की सफलता के किस्से हवाओं में गूंजने लगे हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान
सैकड़ों प्रधानाचार्य और अध्यापक साथियों ने खुद अपने अनुभव के आधार पर इस
पाठ्यक्रम की दिल से सराहना की है। पाठ्यक्रम की सफलता से उत्साहित बहुत से
विद्यालय प्रमुखों ने मुझे बताया है कि इसके लागू होने से विद्यालयों में छात्रों
की उपस्थिति बढ़ रही है और विद्यालय के अनुशासन में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
बहुत से शिक्षक साथियों ने बताया है कि इस कार्यक्रम की वजह से बच्चों में पढ़ाई
के प्रति रुचि बढ़ी है और अब बच्चे अपने विषयों पर अधिक फोकस करने लगे हैं। लेकिन
सबसे महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय उपलब्धियाँ अभिभावकों की ओर से आई हैं जो मुझे खुद
शिक्षक साथियों से सुनने को मिली है। बहुत से अभिभावकों ने मेरे शिक्षक साथियों के
साथ अपने बच्चों में आए व्यावहारिक परिवर्तन का जिक्र किया है। उनका मानना
है कि इस पाठ्यक्रम से उनमें माता पिता और परिवार के प्रति सम्मान बढ़ा है और अब वह
अपने परिवार और रिश्तों के प्रति और संवेदनशील होते हुए दिख रहे हैं। अगर ऐसा हो
रहा है तो यह वाकई अपने आप में ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह एक बहुत बड़ी संभावना की
ओर इशारा करती है।
आज जब पूरी दुनिया में आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग और
भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के जरिए खोजने की कोशिश
हो रही है, उस समय दिल्ली के सरकारी स्कूलों में चल रहाहैप्पीनेस करिकुलम इस बात
का गवाह बन रहा है कि मानवीय व्यवहार की वजह से उत्पन्न समस्याओं का स्थाई समाधान
केवल और केवल शिक्षा में संभव है और दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था इसका एक प्रमाण बनकर सामने आ रही है। मैं
बहुत बार इस बात को कहता हूं कि अच्छी स्कूल बिल्डिंग्स बनवाना, मॉडर्न क्लासरूम्स खड़े करना, आधुनिकतम तकनीक को पढ़ाने में इस्तेमाल
करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियां नहीं हैं, यह सब जरूरतें हैं लेकिन उपलब्धियां नहीं है। शिक्षा की असली उपलब्धि है कि क्या वह वर्तमान और भविष्य की संभावित
समस्याओं का समाधान खोज कर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती है अथवा
नहीं। हैप्पीनेस करिकुलम मुझे संभावना की दिशा में बड़ा और महत्वपूर्ण कदम दिखाई
देता है।
इसीलिए दिल्ली में लागू होने के महज दो साल के अंदर आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के विभिन्न राज्यों से
शिक्षाविद और शिक्षा व्यवस्था से जुड़े लोग आकर हैप्पीनेस करिकुलम को समझ रहे हैं
और अपने- अपने स्तर से इसे अपने यहां लागू कर रहे हैं। नेपाल और अफगानिस्तान
जैसे देशों में भी हैप्पीनेस करिकुलम को लागू करने की तैयारी हो रही है। पूर्व से
लेकर पश्चिमी देशों तक का राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मीडिया हैप्पीनेस करिकुलम की
प्रक्रिया और परिणामों को बड़ी जिज्ञासा से देख रहा है। उसकी एक बड़ी वजह यह
है कि इतने बड़े पैमाने पर हैप्पीनेस पाठ्यक्रम का प्रयोग दुनिया में कहीं नहीं
हुआ है। आज दिल्ली के सभी 1000 सरकारी स्कूलों में करीब 10 लाख बच्चे रोजाना हैप्पीनेस की क्लास ले रहे हैं। सारी दुनिया के लिए
बहुत बड़ा प्रयोग है।
मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा भरोसा है कि
हमारी दिल्ली की सुयोग्य टीम एजुकेशन के माध्यम से हैप्पीनेस करिकुलम अपने उच्चतम
लक्ष्य को हासिल करेगा साथ ही अभिभावकों, छात्रों और प्रशासकों के साथ- साथ समाज
के प्रत्येक वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा। इस पाठ्यक्रम की सफलता इस बात पर
निर्भर भी होगी कि हमारे सभी शिक्षक साथी किस हद तक इसे अपने जीवन में आत्मसात कर
सकेंगे।
मैं सभी छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों और
अधिकारियों को इसकी सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूँ।
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