कक्षा 2: माइंडफुलनेस

ध्यान देने की प्रक्रिया (Mindfulness) – एक परिचय

किताब के इस पृष्ठ को पढ़ने के लिए थोड़ा-सा कुछ अलग करते हैं...
यदि आप भी मेरी तरह किसी किताब का परिचय वाला पन्ना छोड़ देते हैं, तो आप इस क्षण नीचे दिए गए प्रयोग को करके देखें -
आप यह पढ़ते समय ध्यान दें कि आपका ध्यान कहाँ है? आपने जो इस पल अपने हाथ में किताब पकड़ी हुई है, उसके प्रति सजग हो जाएँ। देखें, क्या आप इस किताब के भार को महसूस कर पा रहे हैं? इस किताब के पन्ने के रंग को देखें; हर अनुच्छेद (paragraph) के बीच के अंतर पर ध्यान दें; हर वाक्य के बीच के अंतर पर ध्यान दें; अक्षर की बनावट को देखें।
अब अपना ध्यान अपनी बैठने की स्थिति पर दें। यदि आप कुर्सी पर बैठे हैं तो आप अपने शरीर और कुर्सी के संपर्क को महसूस करें। ध्यान दें कि आप इस क्षण कैसा महसूस कर रहे हैं? यदि मन में किसी विचार और भावनाएँ हैं, तो एक क्षण के लिए उन पर ध्यान दें। बिना किसी तरह के विचार में उलझे हुए अपना ध्यान अपने अंदर आती हुई साँस पर ले आएँ और फिर बाहर जाती हुई साँस के साथ अपने आस-पास के वातावरण में मौजूद आवाज़ों के प्रति सजग हो जाएँ।
स्वयं के साथ बिताए गए इस क्षण के लिए आप, अपने आप की सराहना करें। आपने अभी जो अनुभव किया, यह ध्यान देने की प्रक्रिया का एक उदाहरण है।
जब हम अपना ध्यान अपने आस-पास के वातावरण व स्वयं पर लेकर जाते हैं तब हम अपने अंदर एक नई ऊर्जा एवं स्थिरता का अनुभव करते हैं और वह हमारी अंतर्दृष्टि विकसित करता है।
अन्य किसी भी कौशल की तरह ही ध्यान की प्रक्रिया को भी सीखा जा सकता है। जिस तरह से संगीत, नृत्य, गाड़ी चलाना, आदि को सीखने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है, ठीक उसी तरह ध्यान के लिए भी अभ्यास की आवश्यकता होती है। ध्यान के माध्यम से हम मन की स्थिरता व संतुलन का अनुभव कर सकते हैं।

बच्चे एवं ध्यान देने की प्रक्रिया (Mindfulness)
बच्चों का मूल स्वभाव रचनात्मक एवं कल्पनाशील होता है। उनकी सहज प्रवृत्ति (natural tendency) वर्तमान में रहने की ही होती है। जब वे कोई भी कार्य करते हैं तो वे उसी के बारे में सोचते हैं। जैसे - अगर वे खेल रहे हैं, तो वे उस समय खेलने के बारे में ही सोचते हैं। जब वे खा रहे हैं तो वे केवल खाने के बारे में ही सोचते हैं। परन्तु आजकल की भाग-दौड़ और प्रतियोगिता के दौर में, बच्चों पर कई प्रकार के दबाव बनने शुरू हो जाते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होने लगते हैं, स्कूल जाने लगते हैं, उनके ऊपर उम्मीदों का बोझ बढ़ने लगता है। ऐसे में, खेलते समय उनके मन में पढ़ाई का विचार आ जाना या फिर पढ़ाई करते समय घर की किसी और बात का विचार आ जाना अब सामान्य बात होने लगी है। उनका ध्यान और मन भटकने लगता है। वे या तो गुज़रे हुए समय के बारे में सोच रहे होते हैं, या फिर उनका ध्यान भविष्य की योजना में लगा होता है। ध्यान देने के अभ्यास में हम बच्चों को वर्तमान में रहना सिखाएंगे। इस अभ्यास की एक और विशेषता यह भी है कि वे इसमें बिना किसी पूर्वधारणा के, अच्छे - बुरे का निर्णय लिए बिना, वस्तुओं और परिस्थितियों को अपने वास्तविक रूप में देखना सीखेंगे।
ध्यान देने के अभ्यास में हम अलग-अलग गतिविधियों के माध्यम से बच्चों का ध्यान केंद्रित करवाएंगे, जैसे- ध्यान दे कर सुनना, जिसमें बच्चे अपने वातावरण में मौजूद आवाज़ों के प्रति जागरूक (aware) होंगे; ध्यान दे कर देखना, जिसमें बच्चे अपने वातावरण या किसी वस्तु को देखेंगे; श्वास पर ध्यान देना, जिसमें बच्चे अपना ध्यान अपनी साँसों की प्रक्रिया पर केंद्रित करेंगे; शरीर के खिंचाव पर ध्यान देना, जिसमें हाथ या पैर की अलग-अलग स्थिति में शरीर के खिंचाव की ओर ध्यान देंगे; विचारों पर ध्यान देना, जिसमें बच्चे अपने विचारों को पहचानेंगे और वर्तमान क्षण में अपने विचारों को आते-जाते देखेंगे।
ध्यान के अभ्यास से बच्चों को कई तरह के लाभ होते हैं, जैसे-
  • लम्बी अवधि के लिए एक कार्य पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का विकास (sustained attention)
  • शैक्षिक प्रदर्शन (academic performance) का बेहतर होना
  • भावनात्मक सुदृढ़ता (emotional stability) का बेहतर होना
  • शांति और ख़ुशी का एहसास बढ़ना (sustained happiness)
  • हाइपर-एक्टिविटी (hyperactivity) कम होना
  • क्रोध कम आना
  • एक-दूसरे को समझने की क्षमता का विकास (empathy)
  • वर्तमान में जीने की क्षमता का विकास
  • सोच-समझ कर निर्णय लेने की क्षमता का विकास
हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों रोज़ाना का एक पीरियड हैप्पीनेस विषय का होगा। इस पाठ्यक्रम के तहत विभिन्न गतिविधियाँ होंगी, उनमें से एक महत्वपूर्ण गतिविधि है - “ध्यान देने का अभ्यास”। आज पूरी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहाँ ध्यान का अभ्यास न किया जाता हो। प्राचीन भारतीय शिक्षा परम्परा में ‘ध्यान करने’ पर नहीं, बल्कि ‘ध्यान देने’ पर जोर रहा है। हैप्पीनेस कार्यक्रम के तहत स्कूल में आने वाला हर बच्चा, ध्यान देने का अभ्यास करेगा।

ध्यान की कार्यप्रणाली (Methodology):
  • ध्यान की कक्षा का अभ्यास सार्वभौमिक एवं लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है। इसका किसी भी तरह के धर्म, संप्रदाय, जाति या वर्ग से कोई संबंध नहीं है।
  • कक्षा 1 में हर सप्ताह 2 दिन (सोमवार व गुरूवार) ‘ध्यान देने’ का पीरियड होगा। हर पीरियड में एक सेशन करवाएँ। इस सेशन को सप्ताह के दूसरे पीरियड भी दोहराएँ। इस प्रकार एक सप्ताह में एक सेशन करवाएँ।
  • इस सेशन के दौरान 25 मिनट के पीरियड में तीन प्रमुख चरण होंगे:
1.a. शुरुआत में 3 से 5 मिनट का माइंडफुलनेस चेक इन।

1.b. 5 मिनट की ध्यान देने की प्रक्रिया पर चर्चा- इसमें हर सप्ताह कुछ अलग अलग बच्चों से उनका अनुभव पूछे और चर्चा करें।
शिक्षक से अनुरोध है कि वे बच्चों को किसी भी अपेक्षित परिणाम का सुझाव न दे बल्कि बच्चों को स्वयं के अंदर खोज कर जवाब देने में मदद करें।
2. माइंडफुलनेस के अभ्यास के तहत शरीर में चल रही घटनाओं/अपने विचार या भावनाओं के प्रति सजगता के अभ्यास के लिए दिए गए अलग-अलग गतिविधि को क्लास में करवाएं। ये गतिविधियाँ हर सत्र (session) में अलग-अलग होंगी। इसके बाद किए गए अभ्यास पर चर्चा होगी। शिक्षक से अनुरोध है की प्रति सप्ताह होने वाले इस अभ्यास उपरांत चर्चा में अलग-अलग छात्रों को अपनी बात रखने के लिए प्रोत्साहित करें और कोशिश करें कि 3 से 4 सप्ताह में हर बच्चा अपनी बात ज़रूर रखें।

3. क्लास अंत करते हुए आख़िर में हर रोज़ की तरह 2 मिनट का माइंडफुलनेस का अभ्यास

ध्यान रखने की बातें :
  • ध्यान रखें कि इस दौरान बच्चों को किसी शब्द या मंत्र का उच्चारण करने को न कहें।
  • हैप्पीनेस व ध्यान की कक्षा में किसी तरह के तनावपूर्ण अभिव्यक्ति जैसे- किसी बात पर बच्चों को सख़्त शब्दों में निर्देश न दें व उनपर किसी प्रकार का दबाव न डालें।
  • चर्चा के दौरान सभी विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित करें।
शिक्षक के लिए कुछ विशेष ध्यान में रखने की बातें:
  • ध्यान की इस कक्षा में आप स्वयं भी सक्रिय भागीदार बनें। जैसे, ध्यान का अभ्यास करवाते समय आप भी अभ्यास करें।
  • जब कक्षा में प्रवेश करें तो अपनी मनःस्थिति को लेकर सजग रहें व कोशिश करें कि आपके विचार और भावनाएँ स्थिर रहें। याद रखें कि बच्चा शिक्षक के व्यवहार पर भी ध्यान देता है।
  • बच्चों के साथ प्यार, सौहार्द व विनम्रता के साथ पेश आएँ और मधुर भाषा में बात करें।
  • ध्यान की प्रक्रिया शुरू होने के पहले यह सुनिश्चित करें कि कक्षा का वातावरण शांत हो और हर बच्चा अपने आप को सहज महसूस करे। यह भी देखें कि ध्यान के पश्चात वह अपने अनुभव साझा कर सके। कोई भी बच्चा एक सुरक्षित और सहज वातावरण में ही अपनी बात कहना चाहता है या कह पाता है।
  • ध्यान के अभ्यास से हमारा उद्देश्य विचारों या भावनाओं से दूर होना या उनको दबाना नहीं हैं। हमारे इस प्रयास का उद्देश्य बच्चों को अपने वातावरण, संवेदनाओं, विचारों एवं भावनाओं के प्रति सजग करना है जिससे वे अपने सामान्य व्यवहार में सोच-विचार करके बेहतर प्रतिक्रिया देने में सक्षम हो जाएँ।  
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  • सत्र 1 (Understanding Breathing)
  • सत्र 2 (साइमन कहता है)
  • सत्र 3 (आलाप)
  • सत्र 4 (Mindful Breathing)
  • सत्र 5 (निर्देश अनुसार कार्य करना)
  • सत्र 6 (Mindful Listening)-I
  • सत्र 7 (Mindful Listening)-II
  • सत्र 8 (Mindful Smelling)
  • सत्र 9 (Mindful seeing)-I
  • सत्र 10 (Mindful seeing)-II
  • सत्र 11 (Heartbeat Activity)
  • सत्र 12 (Mindful Touch)
  • सत्र 13 (Mindful Scribbling)
  • सत्र 14 (Mindful Stretching-I )
  • सत्र 15 (Mindful Stretching-II )
  • सत्र 16 (Mindful Walking)
  • सत्र 17 (Mindfulness of Feelings)
  • सत्र 18 (Mindfulness of Feelings- II)

1 comment:

  1. Engagement of the students during these tough times , spreading positive vibes among the people.

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