कहानी समाज की विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करने का एक रोचक माध्यम है। समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं, कुरीतियों एवं अच्छाइयों से संबंधित मुद्दों के प्रति ध्यान आकर्षित करने के विचार से कहानियों की भूमिका हमेशा से महत्त्वपूर्ण रही है। यदि कहानियाँ वास्तविकता का बोध कराने वाली एवं आत्मावलोकन की दृष्टि देने वाली हों, तो ये और अधिक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण बन जाती हैं।
जब भी हम बच्चे को कुछ पढ़ने या लिखने के लिए कहते हैं तो वह प्रायः दूर भागता है। इसके ठीक विपरीत जब बच्चे की माँ, उसके नाना-नानी, दादा-दादी, या कोई अन्य व्यक्ति उसे कहानी सुनने के लिए बुलाता है तो वह भाग कर आता है और मज़े से कहानी सुनता है। इसलिए कहानी के माध्यम से जीने के विभिन्न पहलुओं की ओर बच्चे का ध्यान ले जाना आसान होता है। कहानियाँ, बच्चों में मानवीय मूल्यों को विकसित करने का सशक्त माध्यम हैं। अतः क्यों न कहानियों के माध्यम से बच्चों के प्रारंभिक वर्षों में ही उनकी जिज्ञासा और तार्किकता को दिशा देते हुए उनमें व्यवस्था में जीने की योग्यता विकसित करने की कोशिश की जाए! हैप्पीनेस पाठ्यक्रम में कहानियों को विशेष महत्त्व इसलिए भी दिया गया है क्योंकि कहानियाँ बच्चों के मन को सबसे अधिक छूती हैं और इनका प्रभाव लम्बे समय तक बना रहता है।
इस आयुवर्ग के बच्चों के लिए कहानियाँ ऐसी ली गई हैं जो छोटी हों और उनकी ज़िन्दगी से सीधा जुडती हों। इन कहानियों के लिखते या चयन करते समय इन बातों का भी ध्यान रखा गया है -
कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु:
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जब भी हम बच्चे को कुछ पढ़ने या लिखने के लिए कहते हैं तो वह प्रायः दूर भागता है। इसके ठीक विपरीत जब बच्चे की माँ, उसके नाना-नानी, दादा-दादी, या कोई अन्य व्यक्ति उसे कहानी सुनने के लिए बुलाता है तो वह भाग कर आता है और मज़े से कहानी सुनता है। इसलिए कहानी के माध्यम से जीने के विभिन्न पहलुओं की ओर बच्चे का ध्यान ले जाना आसान होता है। कहानियाँ, बच्चों में मानवीय मूल्यों को विकसित करने का सशक्त माध्यम हैं। अतः क्यों न कहानियों के माध्यम से बच्चों के प्रारंभिक वर्षों में ही उनकी जिज्ञासा और तार्किकता को दिशा देते हुए उनमें व्यवस्था में जीने की योग्यता विकसित करने की कोशिश की जाए! हैप्पीनेस पाठ्यक्रम में कहानियों को विशेष महत्त्व इसलिए भी दिया गया है क्योंकि कहानियाँ बच्चों के मन को सबसे अधिक छूती हैं और इनका प्रभाव लम्बे समय तक बना रहता है।
इस आयुवर्ग के बच्चों के लिए कहानियाँ ऐसी ली गई हैं जो छोटी हों और उनकी ज़िन्दगी से सीधा जुडती हों। इन कहानियों के लिखते या चयन करते समय इन बातों का भी ध्यान रखा गया है -
- कहानी सरल एवं रोचक हो जिसे बच्चे आसानी से समझ सकें।
- कहानी के मुख्य पात्र इसी आयुवर्ग के बच्चे हों और घटनाएँ उनके सामान्य जीवन से आती हों, जिससे विद्यार्थी आसानी से स्वयं को उस कहानी से जोड़ पाएँ।
- कहानी किसी मानव मूल्य (कृतज्ञता, सम्मान, मित्रता, भाईचारा, सहयोग, ख़ुशी आदि) पर आधारित हो।
- कोई भी कहानी अवास्तविक या परीलोक की न हो। कहानी में निर्जीव पदार्थ या जीव-जंतु अपने सामान्य व्यवहार से हटकर मानवीय बोलचाल या व्यवहार करते हुए न दिखाए गए हों।
कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- इन कहानियों का चयन व उन पर आधारित प्रश्नों का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि बच्चे सही मायने में अपने जीवन में ख़ुशी (Happiness) को समझकर उसे महसूस कर सकें।
- शिक्षक कक्षा में जाने से पहले कहानी ख़ुद पढ़ें व उसके उद्देश्य व भाव को समझें ताकि कक्षा में उसकी प्रस्तुति बेहतर तरीक़े से कर सकें।
- बच्चों की रुचि बनाए रखने के लिए शिक्षक प्रत्येक कहानी को सही उतार-चढ़ाव व हाव-भाव के साथ सुनायें।
- साधारण कठपुतली (puppet) का प्रयोग किया जा सकता है जैसे - जुराब या कागज़ से बनी कठपुतली।
- चार्ट पेपर पर कहानी से संबंधित चित्र का प्रयोग किया जा सकता है।
- शिक्षक बीच-बीच में कहानी के पात्रों का अभिनय भी कर सकते हैं।
- कहानी को और अधिक रोचक और स्पष्ट बनाने के लिए उसकी विषयवस्तु को कुछ गतिविधियों के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- कहानी सुनाने के पश्चात प्रश्न पूछते समय शिक्षक इस बात को ध्यान में रखें कि प्रश्नों का उद्देश्य बच्चों को सोचने के लिए प्रेरित करना है। इसलिए प्रश्न सरल व स्पष्ट हों।
- शिक्षक कक्षा में सहज एवं भयमुक्त वातावरण सुनिश्चित करें ताकि बच्चे अपने मन में उठने वाले प्रश्नों और विचारों को बेझिझक रख सकें।
- शिक्षक सभी बच्चों की पूरी बात धैर्य से सुनें।
- दिए गए प्रश्न केवल सुझावात्मक हैं। उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिक्षक अन्य प्रश्न भी पूछ सकते हैं।
- सभी बच्चों को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करें।
- शिक्षक एक कहानी को दूसरे दिन चर्चा के लिए ले कर जाएँ।
- कुछ बच्चों से कहानी सुनाने के लिए कहें और फिर उस पर चर्चा करें।
- बच्चों से उनके जीवन की कहानी से मिलती-जुलती घटना पर चर्चा करें।
- समूह में कहानी के पात्रों का रोल प्ले करा सकते हैं।
- ध्यान रखें कि ‘चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न’ के उत्तर मुख्य उद्देश्य (कृतज्ञता, सम्मान, मित्रता, बुद्धिमत्ता, भाईचारा, ख़ुशी, एकता आदि) की ओर ही जाए।
- नई कहानी की शुरुआत नए पीरियड से ही करें।
- आवश्यकतानुसार शिक्षक किसी भी कहानी को कुछ सप्ताह बाद फिर दोहरा सकते हैं।
- कालांश की शुरुआत 2-3 मिनट के ध्यान देने की प्रक्रिया से हो।
- अगले लगभग 10 मिनट में उद्देश्यों से प्रेरित एक कहानी सुनाई जाए।
- तत्पश्चात 20 मिनट कहानी से सम्बंधित चर्चा की जाए।
- चर्चा के अंत में 1-2 मिनट शांति से बैठें और अपने निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
- कक्षा से जाने से पूर्व विद्यार्थियों से ‘घर जाकर देखो, पूछो, समझो’ का कार्य साझा करें।
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- मिलजुल कर
- लंच ब्रेक
- आलू का पराँठा
- रोहन की जुराबें
- एक नई धुन
- मन का बोझ
- एक जूता
- दो दोस्त
- किसकी पेंसिल अच्छी?
- एक चिट्ठी दादाजी के नाम
- चंदू की सूझ-बूझ
- थोड़ी सी मस्ती
- फूलदान या गमला
- दोस्ती की दौड़
- मैं भी मदद करूँगा
- वो पैसे
- मेरे दोस्त की नाव
- बीच का पन्ना
- मैजिक स्ट्रॉ
- मोबाइल गेम
- हमारा प्यारा चाँद
- रोहित भैया का रॉकेट
- ऐसा क्यों?
- पिकनिक
- दादी का जन्मदिन
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