कक्षा 2: गतिविधि

इस आयुवर्ग में बच्चों के साथ बहुत ज़्यादा तार्किक संवाद की गुंजाइश नहीं है। पर यह देखा जाता है कि ये बच्चे अपने आस-पास उपलब्ध वस्तुओं और घट रही घटनाओं पर बहुत ज़्यादा गौर करते हैं एवं जानने के उद्देश्य से अनेक प्रश्न करते हैं। कुछ करके सीखना उन्हें ख़ुशी का एहसास देता है। प्रारंभिक दौर में बाहर से मिलने वाली ख़ुशी उनके लिए बहुत मायने रखती है। पर साथ ही यह भी सच है कि माता-पिता, भाई-बहन और दोस्तों के अपनेपन से मिलने वाली ख़ुशी और आस-पड़ोस के व्यवस्थित होने पर मिलने वाली ख़ुशी के प्रति एक स्वाभाविक स्वीकृति बनी ही रहती है। हम पाते हैं कि बच्चे स्वभाव से चंचल भी होते हैं। ऐसी स्थिति में इन बच्चों के साथ की जाने वाली गतिविधियाँ प्रमुखतः शारीरिक क्रियाकलापों पर आधारित होंगी। इन गतिविधियों के माध्यम से खेल-खेल में विद्यार्थी अपने भाव को पहचान पाएंगे एवं उनमें मूल्यों के पोषण के साथ-साथ जीवन कौशलों का विकास भी हो पाएगा।

इन गतिविधियों को कराने के दौरान इन बातों का ध्यान रखे जाने की आवश्यकता लगती है:
  • कक्षा का माहौल उत्साह एवं प्रोत्साहन भरा हो जिससे विद्यार्थी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लें और अपने प्रश्न खुलकर पूछ सकें ।
  • शिक्षक भी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल हों जिससे विद्यार्थी उन्हें देखकर ठीक से समझ सकें। साथ ही यह शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच अपनेपन और विश्वास का वातावरण भी बनाएगा।
  • दो व्यक्तियों के बीच तुलना उनमें श्रेष्ठता या हीनता की भावना पैदा कर उनके बीच दूरी बढ़ाता है। इसलिए विद्यार्थियों के बीच किसी भी तरह की तुलना न की जाए।
  • कक्षा में किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि न कराई जाए, न ही उनका सन्दर्भ, उदाहरण या उद्धरण दिया जाए। विद्यार्थियों को तार्किक तरीक़े से वस्तुओं और घटनाओं के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया जाए।
  • इस बात का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इस कक्षा में उपदेश रूप में निष्कर्ष न सुनाया जाए। विद्यार्थियों से प्रश्न पूछते हुए उन्हें स्वयं ही निष्कर्ष तक पहुँचने में सहायता की जाए।
  • प्रत्येक गतिविधि के अंत में ‘करके देखें’ शीर्षक के अंतर्गत एक कार्य दिया गया है। हैप्पीनेस क्लास समाप्त कर कक्षा से निकलने से पहले वह कार्य विद्यार्थियों से अवश्य साझा करें। इसका उद्देश्य कक्षा में चर्चा की गई बातों को विद्यार्थियों के जीने से जोड़ना है। इस बात का ध्यान रखते हुए अगली हैप्पीनेस क्लास में उनके अवलोकन (observation) और अनुभवों को साझा करने का उन्हें पूरा अवसर दें।
इस पूरी प्रक्रिया के पीछे भाव यह है कि इसके द्वारा विद्यार्थियों का अपने विचार, कार्य एवं व्यवहार पर ध्यान जाने लगे और वह सही का चुनाव कर सके। इन गतिविधियों का एक लाभ यह भी होगा कि इनमें शामिल लोगों के बीच अपनत्व का भाव पनपेगा और विद्यालय एक उत्सव का स्थान बन जाएगा। यह आशा है कि धीरे-धीरे ये मूल्य उनके व्यवहार में आ जाएंगे और एक व्यक्ति के रूप में वे विभिन्न परिस्थितियों में सहज भाव से जी सकेंगे और हमेशा ख़ुश रह सकेंगे। सारांशतः यह कहा जा सकता है कि विद्यार्थी स्वयं से लेकर सामाजिक व्यवस्था और प्रकृति में अपनी भूमिका को खेल-खेल में जान तथा समझ सकें और उसमें अपनी एक उपयोगी भागीदारी और भूमिका निभाते हुए ख़ुश रह सकें, ऐसा एक माहौल उन्हें देने का प्रयास रहेगा।

कालांश (period) के समय का सदुपयोग कुछ इस प्रकार किया जा सकता है:
कालांश की शुरुआत 2-3 मिनट के ध्यान से हो।
अगले लगभग 20 मिनट में उद्देश्यों से प्रेरित एक रोचक क्रियाकलाप कराया जाए।
तत्पश्चात 10 मिनट क्रियाकलाप से संबंधित चर्चा की जाए।
अंतिम 1-2 मिनट शांति से बैठें और अपने निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
साथ ही कक्षा से जाने से पहले विद्यार्थियों से ‘करके देखें’ का कार्य साझा करें।

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  1. नमस्कार (Hello)
  2. हम सब एक समान
  3. अगर न हो तो
  4. आओ सुनें और करें
  5. मैं भी हूँ कलाकार
  6. ग़लती तो सब से हो जाती है
  7. ग़ुस्सा अच्छा या बुरा
  8. मेरी नोट-बुक
  9. सही और गलत
  10. सुन्दर-सा घर बनायेंगे
  11. हवाई जहाज़ उड़ाएंगे
  12. अनोखी चादर
  13. गुप्त संदेश
  14. आओ बातें करें उनकी
  15. हमारी ज़रूरतें
  16. काल्पनिक गेंद (Imaginary Ball)
  17. मित्र चित्र
  18. आओ जोड़ते चलें
  19. इल्ली (caterpillar)
  20. भावों की पहचान
  21. मैं क्या नहीं
  22. आया आंटी सबसे अच्छी
  23. हम हैं अच्छे
  24. आओ डर साझा करें
  25. धन्यवाद करें हम सबका
  26. खोया कार्ड
  27. पहचान कौन?
  28. सुरक्षित द्वीप
  29. मुझे पहचानो
  30. मुझमें क्या बदला पहचानो

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