कक्षा 4: कहानी

मानव ने जब से बोलना सीखा है तभी से शिक्षण हेतु कहानी विधा उसकी प्रिय विधि रही है। कहानी के माध्यम से ही हम अपनी बात या अपने सीखे हुए सबक को दूसरों के सामने रखते रहे हैं। विद्यालयी शिक्षा में भी कहानी विधा का भरपूर इस्तेमाल होता रहा है। कहानी के माध्यम से बच्चे अपना ध्यान विषय-वस्तु पर आसानी से केंद्रित कर पाते हैं। घर में दादा-दादी, नाना-नानी द्वारा सुनाई गई कहानियों को बच्चे ध्यान से सुनते और दोहराते हैं। कहानियों को बच्चे उत्साह से सुनते और सुनाते हैं। हमारे समक्ष यह एक ज्वलंत प्रश्न रहा है कि हैप्पीनेस करिकुलम की कहानियां कैसी हों? हम सब बचपन से कल्पनालोक में विचरण करने वाली फंतासी (fantasy) से भरपूर कहानियाँ सुनते आ रहे हैं, जिनमें अवास्तविक किरदार होते हैं, जानवर बोलते हैं, पेड़-पौधे बोलते और चलते हैं इत्यादि इत्यादि। इस पाठ्यक्रम में ऐसी कल्पनालोक की कहानियों को सम्मिलित नहीं किया गया है जिसका कारण यही है कि हम विद्यार्थियों को वास्तविकता पर आधारित कहानियों के माध्यम से वास्तविकताओं पर ध्यान दिलाना चाहते हैं। विद्यार्थियों में सद्गुणों के विकास के लिए इस पुस्तक में वास्तविकता पर आधारित प्रेरक कहानियों का समावेश किया गया है। प्रत्येक कहानी विद्यार्थी या किसी बालक के परिवेश से जुड़ी हुई है। कुछ कहानियाँ बड़े लोगों के बीच का संवाद है, लेकिन इनमें भी विद्यार्थियों को सोचने और समझने का बेहतर अवसर उपलब्ध होता है।

कहानी सुनाते समय एवं उसके उपरांत चर्चा के समय ध्यान देने योग्य बातें:
  • कहानी हाव-भाव के साथ सुनाई जाए ताकि विद्यार्थियों की रुचि बनी रहे और वे स्वयं को कहानी के पात्रों से जोड़ पाएँ।
  • कहानी को टुकड़ो में न सुनाएँ।
  • यह भाषा की कक्षा नहीं है, इसलिए कहानी सुनाने एवं चर्चा में भाषा पढ़ाने की शैली का प्रयोग न करें बल्कि भाव पक्ष पर अधिक ध्यान रहे।
  • हैप्पीनेस करिकुलम की कहानियों के पश्चात की जाने वाली चर्चा अधिक महत्त्वपूर्ण है, इसलिए अधिक समय चर्चा के प्रश्नों को दिया जाए।
  • चर्चा के प्रश्न कहानी के उद्देश्य की दिशा में बढ़ने के लिए एक कदम है। यदि आपकी कक्षा के विद्यार्थी इन प्रश्नों के माध्यम से उद्देश्य तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो अपनी ओर से भी कुछ प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
  • उद्देश्य को सीख के रूप में बच्चों को बताने का प्रयास न करें।
  • शिक्षक विद्यार्थियों को स्वयं निष्कर्ष पर पहुँचने का अवसर दें।
  • कहानी से क्या सीखा के स्थान पर,कहानी के पात्रों जैसा उन्होंने कब महसूस किया, इस कहानी जैसी स्थिति में वे क्या करते हैं या भविष्य में क्या करना चाहेंगे। जैसे- प्रश्नों का समावेश किया जाए।
  • कहानियाँ बहुत छोटी-छोटी हैं उनमें कुछ जोड़ने या घटाने की कोशिश ना करें। ऐसा करने से कहानी का मूल भाव बदल सकता है।
  • विद्यार्थी ने कहानी को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कहाँ जोड़ा, इस बात पर ध्यान दिया जाए।
  • ध्यान देने योग्य बात यह है कि कहानी के लिए कोई लिखित होमवर्क नहीं दिया जाएगा, हर कहानी के अंत में ‘घर जाकर देखो, पूछो, समझो’ के तहत कुछ कार्य दिए गए हैं। इनका उद्देश्य है कि कक्षा में कहानी पर आधारित चर्चा को अपने परिवार और आस-पड़ोस में जीने में देखने का अवसर उपलब्ध कराना।
  • दूसरे दिन के लिए विशेष निर्देश कहानी के अंत में दिए हुए हैं, उनके अनुसार ही विद्यार्थियों को चिंतन और चर्चा के अवसर दिया जाए।
कहानी के लिए कम से कम दो दिन प्रस्तावित हैं:
  • पहले दिन कहानी सुनाकर उससे जुड़े प्रश्नों की सामान्य चर्चा पूरी कक्षा के साथ की जाए।
  • विद्यार्थियों से कहा जाए कि यह कहानी घर जाकर अपने माता-पिता, भाई-बहन, पड़ोसी, मित्रों आदि से साझा करें और प्रश्नों पर चर्चा भी करें।
कक्षा में वातावरण का निर्माण:
  • सभी विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति का अवसर दिया जाए।
  • कोई भी उत्तर सही अथवा गलत नहीं है, इसलिए सभी की अभिव्यक्ति का स्वागत समान रूप से करें।
  • कक्षा में सभी विद्यार्थी इस बात को समझ पाएँ कि सबकी अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण है।
  • कक्षा का वातावरण प्रोत्साहन भरा हो ताकि सभी विद्यार्थी अपने मन में उठने वाले विचारों और भावों को कक्षा में रख सकें

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  1. फाइनल मैच
  2. उपयोगिता ही सौंदर्य
  3. रूचि की सेवइयाँ
  4. श्रम का महत्व
  5. वीडियो गेम
  6. बुजुर्गो का साथ
  7. घड़ी की टिक टिक
  8. एक बाल्टी पानी
  9. प्राची में बदलाव
  10. पिता को पत्र
  11. दादी बनी टीचर दादी
  12. एक कदम बदलाव की ओर
  13. सच्ची ख़ुशी जोड़ने में है तोड़ने में नहीं
  14. भैया! कुछ भी कठिन नहीं
  15. बिल्लू और गुल्लू
  16. बदलाव कौन करेगा
  17. जली हुई रोटी
  18. गीता मैम से ऊँचा टावर
  19. एक जूता
  20. शिक्षा क्यों
  21. तितली क्यों नहीं उड़ी

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