इस खंड में प्रयोग हुई विभिन्न विधाओं के बारे में दिशा निर्देश
कहानी:
मानव ने जब से बोलना सीखा है तभी से शिक्षण हेतु कहानी विधा उसकी प्रिय विधि रही है। कहानी के माध्यम से ही हम अपनी बात या अपने सीखे हुए सबक को दूसरों के सामने रखते रहे हैं। विद्यालयी शिक्षा में भी कहानी विधा का भरपूर इस्तेमाल होता रहा है। कहानी के माध्यम से बच्चे अपना ध्यान विषय-वस्तु पर आसानी से केंद्रित कर पाते हैं। घर में दादा-दादी, नाना-नानी द्वारा सुनाई गई कहानियों को बच्चे ध्यान से सुनते और दोहराते हैं। कहानियों को बच्चे उत्साह से सुनते और सुनाते हैं। हमारे समक्ष यह एक ज्वलंत प्रश्न रहा है कि हैप्पीनेस करिकुलम की कहानियाँ कैसी हों? हम सब बचपन से कल्पनालोक में विचरण कराने वाली फंतासी (fantasy) से भरपूर कहानियाँ सुनते आ रहे हैं, जिनमें अवास्तविक किरदार होते हैं, जानवर बोलते हैं, पेड़-पौधे बोलते और चलते हैं इत्यादि इत्यादि। इस पाठ्यक्रम में ऐसी कल्पनालोक की कहानियों को सम्मिलित नहीं किया गया है। इसका कारण यही है कि हम विद्यार्थियों को वास्तविकता पर आधारित कहानियों के माध्यम से वास्तविकताओं पर ध्यान दिलाना चाहते हैं। विद्यार्थियों में सद्गुणों के विकास के लिए इस पुस्तक में वास्तविकता पर आधारित प्रेरक कहानियों का समावेश किया गया है। प्रत्येक कहानी विद्यार्थी या किसी बालक के परिवेश से जुड़ी हुई है। कुछ कहानियाँ बड़े लोगों के बीच का संवाद है, लेकिन इनमें भी विद्यार्थियों को सोचने और समझने का बेहतर अवसर उपलब्ध होता है।
कहानी सुनाते समय एवं उसके उपरांत चर्चा के समय ध्यान देने योग्य बातें:
- कहानी हाव-भाव के साथ सुनाई जाए ताकि विद्यार्थियों की रुचि बनी रहे और वे स्वयं को कहानी के पात्रों से जोड़ पाएँ।
- कहानी को टुकड़ो में न सुनाएँ बल्कि एक ही बार में पूरी कहानी सुनाएँ।
- यह भाषा की कक्षा नहीं है, इसलिए कहानी सुनाने एवं चर्चा में भाषा पढ़ाने की शैली का प्रयोग न करें बल्कि भाव पक्ष पर अधिक ध्यान दें।
- हैप्पीनेस करिकुलम की कहानियों के पश्चात की जाने वाली चर्चा अधिक महत्त्वपूर्ण है, इसलिए अधिक समय चर्चा के प्रश्नों को दिया जाए।
- चर्चा के प्रश्न कहानी के उद्देश्य की दिशा में बढ़ने के लिए एक कदम है। यदि आपकी कक्षा के विद्यार्थी इन प्रश्नों के माध्यम से उद्देश्य तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो अपनी ओर से भी कुछ प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- उद्देश्य को सीख के रूप में बच्चों को बताने का प्रयास न करें।
- शिक्षक विद्यार्थियों को स्वयं निष्कर्ष पर पहुँचने का अवसर दें।
- कहानी से क्या सीखा के स्थान पर, कहानी के पात्रों जैसा उन्होंने कब महसूस किया, इस कहानी जैसी स्थिति में वे क्या करते हैं या भविष्य में क्या करना चाहेंगे? जैसे प्रश्नों का समावेश किया जाए।
- कहानियाँ बहुत छोटी-छोटी हैं उनमें कुछ जोड़ने या घटाने की कोशिश ना करें। ऐसा करने से कहानी का मूल भाव बदल सकता है।
- विद्यार्थी ने कहानी को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कहाँ जोड़ा, इस बात पर ध्यान दिया जाए।
- ध्यान देने योग्य बात यह है कि कहानी के लिए कोई लिखित होमवर्क नहीं दिया जाएगा। हर कहानी के अंत में ‘घर जाकर देखो, पूछो, समझो’ के तहत कुछ कार्य दिए गए हैं। इनका उद्देश्य है कि कक्षा में कहानी पर आधारित चर्चा को अपने परिवार और आस-पड़ोस में जीने में देखने का अवसर उपलब्ध कराना।
- दूसरे दिन के लिए विशेष निर्देश कहानी के अंत में दिए हुए हैं, उनके अनुसार ही विद्यार्थियों को चिंतन और चर्चा का अवसर दिया जाए।
- पहले दिन कहानी सुनाकर उससे जुड़े प्रश्नों की सामान्य चर्चा पूरी कक्षा के साथ की जाए।
- विद्यार्थियों से कहा जाए कि यह कहानी घर जाकर अपने माता-पिता, भाई-बहन, पड़ोसी, मित्रों आदि से साझा करें और प्रश्नों पर चर्चा भी करें।
- सभी विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति का अवसर दिया जाए।
- कोई भी उत्तर सही अथवा गलत नहीं है, इसलिए सभी की अभिव्यक्ति का स्वागत समान रूप से करें।
- कक्षा में सभी विद्यार्थी इस बात को समझ पाएँ कि सबकी अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण है।
- कक्षा का वातावरण प्रोत्साहन भरा हो ताकि सभी विद्यार्थी अपने मन में उठने वाले विचारों और भावों को कक्षा में रख सकें।
गतिविधि:
गतिविधियों में कक्षा के सभी विद्यार्थियों की सक्रिय भूमिका रहती है, इसलिए वे इन्हें संपन्न करने में बढ़-चढ़कर रुचि लेते हैं। इससे वे अपने द्वारा सृजित ज्ञान को हमेशा के लिए याद रखते हैं, क्योंकि यह उनके ख़ुद के अनुभव पर आधारित होता है। गतिविधियों की इन्हीं खूबियों को ध्यान में रखते हुए हैप्पीनेस पाठ्यक्रम में इनका उपयोग किया गया है। सामान्यतः बच्चों के सामने जो हो रहा होता है या जिस गतिविधि में वे ख़ुद शामिल होते हैं, उसे वे आसानी से सीख लेते हैं। गतिविधियों का निर्माण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि वे बच्चों के आयुवर्ग के अनुकूल हों तथा उनके मानसिक स्तर से मेल खाती हों। साथ ही साथ उन्हें सोचने-समझने के लिए प्रेरित करती हों। गतिविधियों में हिस्सा लेते समय बच्चों के मन में विचार उत्पन्न हों और उन पर वे आपस में चर्चा करें। प्रस्तुत पुस्तक में सम्मिलित गतिविधियों का उद्देश्य विद्यार्थियों को तर्कशील बनाना और वस्तुओं व घटनाओं को, वे जैसी हैं उन्हें वैसा ही देखने का अभ्यास कराना है। इससे वे अपनी परंपरागत सोच को तर्क की कसौटी पर जाँच सकेंगे। साथ ही लकीर से हटकर कुछ नया सोचने में और संतुलित निर्णय लेने में सक्षम होंगे। गतिविधियाँ कक्षाकक्ष में ही करवाई जा सकती हैं। इन्हें करवाने के लिए किसी विशेष शिक्षण सामग्री की आवश्यकता भी नहीं है। शिक्षक संसाधनों के अभाव को महसूस किए बिना इन्हें क्रियान्वित कर सकते हैं।
गतिविधि करवाते समय ध्यान देने योग्य बातें:
- गतिविधि का 'उद्देश्य' और ‘शिक्षक के लिए नोट’ सिर्फ़ शिक्षक के संदर्भ के लिए हैं। इन्हें विद्यार्थियों को पढ़कर न सुनाएँ और न ही समझाएँ।
- गतिविधि करवाने से पहले 'उद्देश्य' एवं 'शिक्षक के लिए नोट' पढ़कर अपनी स्पष्टता बना लें।
- गतिविधि की पूरी प्रक्रिया हैंडबुक से पढ़कर व समझकर ही करवाएँ।
- कक्षा में बिना किसी पूर्वाग्रह और सही-ग़लत के निर्णय के साथ विद्यार्थियों को अपने विचार रखने का मौक़ा दिया जाए।
- चर्चा के समय शिक्षक ध्यान दें कि सभी विद्यार्थी विषय-वस्तु से संबंधित चर्चा में भाग ले रहे हैं।
- विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक भी गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग लें।
- विद्यार्थियों को निष्कर्षों तक पहुँचने का पूरा अवसर दें, उन्हें अंतिम निर्णय के रूप में निष्कर्ष न सुनाएँ।
- गतिविधि के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कक्षा की परिस्थितियों के अनुसार गतिविधि को करवाने के बेहतर तरीके अपनाए जा सकते हैं।
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