कक्षा 7: अभिव्यक्ति

हर इनसान में अपने विचारों और भावों (thoughts and feelings) को व्यक्त करने की स्वाभाविक चाहत (natural desire) होती है। जिन चीज़ों को हम सीखते और समझते हैं, उन्हें व्यक्त करने पर हम आराम (relax) महसूस करते हैं। अभिव्यक्ति से ही हम एक-दूसरे को ठीक से समझ पाते हैं। अभिव्यक्त होने पर दूसरों के साथ-साथ ख़ुद की भी यह स्पष्टता बढ़ती है कि हम कैसा सोचते हैं और कैसा महसूस करते हैं। अपनी समझ और भावनाओं को व्यक्त करने में समर्थ होने के कारण ही इनसान को 'व्यक्ति' भी कहते हैं। एक व्यक्ति को ख़ुद को व्यक्त करने पर ही संतुष्टि मिलती है। अत: अभिव्यक्ति एक व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

हैप्पीनेस कक्षा में अभिव्यक्ति क्यों? (Why to express?) 
प्रकृति में हर चीज़ की एक निश्चित भूमिका (definite role/purpose) है। हम किसी वस्तु की उस निश्चित भूमिका को उसकी उपयोगिता के रूप में पहचानते हैं। यह उपयोगिता समय, स्थान और परिस्थिति के आधार पर कभी भी बदलती नहीं है। जैसे- चावल की उपयोगिता को हम शरीर के पोषक के रूप में पहचानते हैं। चावल की यह उपयोगिता समय, स्थान और परिस्थिति के आधार पर बदलती नहीं है। किसी वस्तु की इस सार्वभौमिक उपयोगिता (universal utility) को हम उस वस्तु के मूल्य (value) के रूप में पहचानते हैं।
दूसरी वस्तुओं की तरह ही इनसान की भी इस दुनिया में कोई भूमिका है। इस भूमिका को वह परिवार व समाज में जिम्मेदारियों के रूप में निभाता है। जैसे:- माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। पुत्र-पुत्री अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल और सेवा करते हैं। वृद्ध माता-पिता अपनी संतान का मार्गदर्शन करते हैं। गुरु अपने शिष्यों को शिक्षित करते हैं। भाई-बहन और मित्र एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। इस प्रकार एक-दूसरे के ख़ुशहाल जीवन के लिए हम जो भागीदारी करते हैं, यही एक-दूसरे की ज़िंदगी में हमारा मूल्य है। इन मूल्यों को ही हम भावों के रूप में महसूस करते हैं। अपने ख़ुशहाल जीवन के लिए माता-पिता, भाई-बहन, गुरु, मित्र आदि की भागीदारी को देख पाने पर और अपनी भागीदारी को निभाने पर धरती के सभी लोग समान रूप से भावों को महसूस करते हैं। अत: इस खंड में हमारे भावों को ही सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों (universal human values) के रूप में अभिव्यक्ति का आधार माना गया है। जैसे- कृतज्ञता का भाव, सम्मान का भाव, स्नेह का भाव आदि।
जब हम अपने संबंधों में एक-दूसरे के लिए इन भावों को देख पाते हैं, महसूस करते हैं तो हमें ख़ुशी होती है। जब भी हम ख़ुश होते हैं तो अपनी ख़ुशी अपनों के साथ साझा (share) करना चाहते हैं। इससे हम और ज़्यादा ख़ुशी महसूस करते हैं। अत: ख़ुशहाल जीवन के लिए संबंधों में भावों को पहचानना, महसूस करना और व्यक्त करना बहुत ज़रूरी है। इसके साथ ही इन भावों की स्थिरता (stability of feelings) के लिए सजग (aware) रहने का अभ्यास करना भी आवश्यक है। एक-दूसरे से अपने भावों के आदान-प्रदान के लिए ही भाषाएँ (मौखिक, लिखित, सांकेतिक) विकसित हुई हैं। किसी कौशल के साथ अपने भावों को व्यक्त करने के लिए निष्पादन कलाएँ (performing arts) विकसित हुई हैं, जैसे-संगीत, नृत्य, रंगमंच आदि। सौंदर्य के साथ अपने भावों को व्यक्त करने के लिए दृश्य कलाएँ (visual arts) विकसित हुई हैं, जैसे- ड्रॉइंग, पेंटिंग, स्कल्पचर आदि। इस प्रकार देखें तो हमारी ख़ुशी का संसार एक-दूसरे के प्रति सही भावों के साथ होने और विभिन्न माध्यमों व तरीकों से उन्हें व्यक्त करने से ही जुड़ा हुआ है। अत: एक व्यक्ति के समुचित विकास और ख़ुशहाल जीवन के लिए भावों की अभिव्यक्ति (expression of feelings) अति आवश्यक है, इसीलिए हैप्पीनेस कक्षा में अभिव्यक्ति को शामिल किया गया है।

हैप्पीनेस कक्षा में अभिव्यक्ति क्या? (What to express?) 
कक्षा आठवीं के लिए अभिव्यक्ति के इस खंड में निम्नलिखित चार भावों/मूल्यों को पहचानने (to explore), महसूस करने (to experience) और उन्हें व्यक्त करने (to express) के लिए रखा गया है।
1. विश्वास (Trust)
2. सम्मान (Respect)
 3. कृतज्ञता (Gratitude)
4. स्नेह (Affection)
उपर्युक्त मूल्यों को 20 सत्रों (sessions) में फैलाया गया है।

अभिव्यक्ति का आधार: 
  • सभी सत्रों में अभिव्यक्ति भावों (सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों) की ही होगी। 
  • अभिव्यक्ति विद्यार्थी के अपने संबंधों में जीने पर केंद्रित होगी। जीने में व्यवहार व कार्य करना और महसूस करना निहित हैं। 
  • अभिव्यक्ति की कक्षा में किसी प्रकार की चर्चा नहीं होगी। इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाना भी अपेक्षित नहीं हैं कि इस बारे में आप क्या सोचते हो, क्या करना चाहते हो, इस स्थिति में क्या करना चाहिए, आगे क्या करेंगे आदि। हैप्पीनेस कक्षा की कहानियाँ चिंतन प्रधान, गतिविधियाँ विचार प्रधान और अभिव्यक्तियाँ भाव प्रधान हैं। 
  • अभिव्यक्ति के प्रश्न मुख्यत: निम्नलिखित चार स्थितियों पर आधारित हैं। विद्यार्थी अपने संबंधों में- 
    • 1. क्या देखता है? (Observation) 
    • 2. कैसा व्यवहार करता है? (Behaviour) 
    • 3. क्या ज़िम्मेदारी निभाता है? (responsibility) 
    • 4. क्या महसूस करता है? (Feeling) 
  • सामान्यतया अभिव्यक्ति गत सप्ताह के अनुभवों पर ही आधारित रहेगी, लेकिन कुछ स्थितियों में पहले के अनुभवों को भी साझा किया जा सकता है। 
  • सभी सत्रों में दिए गए प्रश्न केवल प्रस्तावित हैं। उपर्युक्त स्थितियों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक स्वयं भी आवश्यकतानुसार प्रश्न बनाएँ/पूछें। 
हैप्पीनेस कक्षा में अभिव्यक्ति कैसे? (How to express?) 
प्रस्तावित शिक्षण-विधियाँ (Proposed pedagogies): कक्षा में सभी विद्यार्थियों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग प्रश्नों के अनुसार अलग-अलग शिक्षण-विधियाँ (pedagogies) अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित प्रस्तावित विधियों को अपनाया जा सकता है।
  • व्यक्तिगत अभिव्यक्ति (individual expression) 
  • जोड़े में अपने अनुभव साझा करना (sharing their experiences in pairs) 
  • छोटे समूहों में अपने अनुभव साझा करना (sharing their experiences in small groups) 
अभिव्यक्ति के तरीके: 
  • सामान्यतया कक्षा में व्यक्तिगत मौखिक अभिव्यक्ति (Individual oral expression in whole class) ही कराई जाए। कभी-कभी कक्षा की आवश्यकता या प्रश्न की आवश्यकता के अनुसार जोड़े में या छोटे समूहों में भी अभिव्यक्ति के अवसर दिए जाएँ। 
  • प्रश्न की आवश्यकता या किसी विद्यार्थी की विशेष आवश्यकता के अनुसार अभिव्यक्ति के अन्य तरीकों को भी अपनाया जाए। जैसे:- लिखकर (पत्र, कार्ड, डायरी आदि), रोल प्ले करके, चित्र या चिह्न बनाकर, सांकेतिक भाषा द्वारा आदि। 
कक्षा कार्यनीतियाँ (Class strategies): 
  • कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो प्रत्येक विद्यार्थी से पूछे जा सकते हैं। कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो केवल उन्हीं विद्यार्थियों से पूछे जा सकते हैं जिनका उस प्रश्न से संबंधित अनुभव रहा हो। 
  • प्रश्न पूछने के लिए हमेशा एक ही क्रम न अपनाएँ। कभी कक्षा के पीछे या बीच से भी प्रश्न पूछना शुरू कर सकते हैं। 
  • यदि किसी प्रश्न के जवाब में ऐसा लगे कि विद्यार्थी अपना अनुभव न बताकर एक जैसा जवाब ही दोहरा रहे हैं तो उन्हें अपना अनुभव बताने के लिए प्रेरित करें या प्रश्न को बदल दें। 
  •  यदि किसी प्रश्न के एक से अधिक भाग हैं तो विद्यार्थी द्वारा एक भाग का जवाब देने के बाद ही उस प्रश्न का दूसरा भाग पूछें। 
  • यदि किसी प्रश्न को समझने में विद्यार्थी दिक्कत महसूस करें तो शिक्षक उस प्रश्न को स्पष्ट करने की कोशिश करे। 
  • प्रश्न पूछने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि एक प्रश्न 8-10 विद्यार्थियों से पूछें और अगले 8-10 विद्यार्थियों से दूसरा प्रश्न पूछें। इसके बाद तीसरा प्रश्न या पुन: पहला प्रश्न पूछा जा सकता है। कुछ प्रश्न सभी के लिए समान भी हो सकते हैं। 
  • एक सत्र के लिए कम से कम प्रस्तावित दिन संबंधित सत्र के साथ दिए गए हैं बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक उस सत्र को चलाया जा सकता है। 
क्या करें और क्या न करें (Dos and don'ts): 
  • प्रत्येक सत्र का 'उद्देश्य' और ‘शिक्षक के लिए नोट’ सिर्फ़ शिक्षक के संदर्भ के लिए हैं। इन्हें विद्यार्थियों को पढ़कर न सुनाएँ और न ही समझाएँ। 
  • प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थियों से ही निकलवाएँ। उन्हें उत्तर समझाने या उपदेश देने का प्रयास न किया जाए। 
  • शिक्षक की मुख्य भूमिका सभी विद्यार्थियों की सहज अभिव्यक्ति के लिए वातावरण प्रदान करना और प्रश्न पूछना है। 
  • सभी विद्यार्थियों को अपने अनुभव साझा करने के लिए प्रेरित करें। जो विद्यार्थी शुरूआत में कक्षा के सामने असहज महसूस करते हैं उन्हें पहले अपने साथ बैठे सहपाठियों से या छोटे समूहों में अपने अनुभव साझा करने के अवसर दें। 
  • किसी विद्यार्थी की अभिव्यक्ति पर कोई नकारात्मक टिप्पणी न करें अन्यथा कक्षा में उसकी भागीदारी कम हो सकती है। इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि अगली बार वह विद्यार्थी ईमानदारी से अपनी बात साझा न करे। 
  • शिक्षक का स्नेहपूर्वक प्रोत्साहित करने वाला व्यवहार सबसे अधिक प्रभावी रहता है।
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