1. सम्मान (Respect)

उद्देश्य: ख़ुद में और परिवार, दोस्त, विद्यालय व समाज में एक-दूसरे के लिए सम्मान देख पाना, महसूस करना और व्यक्त करना।

शिक्षक के संदर्भ के लिए नोट: सम्मान को दो तरह से देखा जाता है।

A. आत्मसम्मान (Self-respect): 
यदि हम एक व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकताओं को देखें तो रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सम्मान और पहचान उसकी बहुत बड़ी आवश्यकताएँ हैं। अपमान के साथ शायद ही कोई व्यक्ति रोटी स्वीकार करता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के लिए उसका सम्मान और पहचान रोटी, कपड़ा और मकान से भी बड़ा मुद्दा होता है।
अभी सम्मान पाने के प्रयासों के बारे में देखा जाए तो हम पाते हैं कि अधिकतर लोग पद, पैसा, रंग-रूप, भाषा और ताकत के आधार पर सम्मान पाना चाहते हैं। इस बात को हम अपने में अच्छे से जाँचकर देख सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति समाज के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी नज़र नहीं आता है या उसका व्यवहार दूसरे लोगों के प्रति ठीक नहीं है तो चाहे उसके पास कितने ही पैसे हों, कोई भी पद हो, कैसा भी रंग-रूप हो, कितनी ही अच्छी कोई भाषा बोलता हो और कितनी भी ताकत हो, हम मन से उसे सम्मानित व्यक्ति नहीं मानते हैं फिर चाहे दिखावे के रूप में हम उसे कितनी भी बड़ी माला पहनाते रहें।

सही मायने में आत्मसम्मान क्या है? 
सभी व्यक्ति अपनी उपयोगिता व अपने महत्त्व को जानकर स्वयं में सम्मानित महसूस करते हैं। यहाँ उपयोगिता से मतलब है- स्वयं ख़ुश रहकर दूसरों के ख़ुश रहने में सहयोगी होना। ऐसी योग्यता सही समझ और अभ्यास से विकसित होती है। यदि आत्मसम्मान शब्द का अर्थ देखें तो आत्म+सम्+मान अर्थात स्वयं का सही मूल्यांकन (right evaluation of self) करना ही आत्मसम्मान है। जब हम अपनी सोचने-समझने की असीम क्षमताओं को ‘सिखाने’ और ‘समझाने’ की योग्यताओं में विकसित करते हैं तो हम स्वयं ख़ुश रहकर दूसरों के ख़ुश रहने में सहयोगी होने के रूप में उपयोगी हो जाते हैं। अपनी इस उपयोगिता को जानकर ही हम आत्मसम्मान का भाव (feeling of self-respect) महसूस करते हैं।
जैसे-जैसे हम अपनी उपयोगिता बढ़ाते जाते हैं वैसे-वैसे हम स्वयं में सम्मानपूर्वक जीने लगते हैं। इससे हम अपने सम्मान के लिए दूसरों पर निर्भरता से मुक्त होते जाते हैं।
हम व्यवहार में देखते हैं कि जो लोग स्वयं में सम्मानित महसूस नहीं करते हैं वे कोई दिखावा करके दूसरों से सम्मान पाने का असफल प्रयास करते हैं। अब इस बात पर विचार किया जा सकता है कि स्वयं के प्रति सम्मान का भाव अपनी उपयोगिता से महसूस होगा या यह भाव किसी दूसरे व्यक्ति से मिलेगा जो ख़ुद ही इसकी तलाश में है।

B. परस्परता में सम्मान (Respect for each other): 
यदि हम धरती के सभी लोगों की मूल चाहत को देखें तो पाते हैं कि सभी लोग हमेशा ख़ुश रहना चाहते हैं, सभी clarity के साथ जीना चाहते हैं। इसके साथ ही यदि हम सभी लोगों की मूल क्षमता के बारे में देखें तो पाते हैं कि सभी लोगों में सोचने-समझने की असीम ताकत (unlimited potential) होती है।
इस प्रकार प्राकृतिक आधार पर देखें तो धरती के सभी इनसान समान हैं और सभी में समानता की चाहत भी है। अत: जब हम किसी व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के अपने समान ही एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो उसके प्रति हम सम्मान का भाव महसूस करते हैं। इसे हम ख़ुशी (happiness) के रूप में महसूस करते हैं।
किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और प्रतिभा को स्वीकार करने पर भी हम ऐसा ही महसूस करते हैं।
यदि सम्मान शब्द का अर्थ देखें तो सम्+मान अर्थात सही मूल्यांकन (right evaluation) करना ही सम्मान है। अत: किसी इनसान को बिना किसी भेदभाव के, अपने जैसे ही एक इनसान के रूप में स्वीकार (accept) करना ही उसका सही मूल्यांकन या सम्मान है। सम्मान एक व्यक्ति की पहचान का आधार होता है।
जब हम किसी के प्रति सम्मान के भाव के साथ होते हैं तो उसके प्रति हमारा व्यवहार सौहार्दपूर्ण (मित्रवत/दोस्ताना/cordial) रहता है।
जब हम किसी व्यक्ति को अपने समान ही (सोचने-समझने की मूल क्षमता और ख़ुशी की चाहत के आधार पर) एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो वह व्यक्ति भी सम्मानित महसूस करता है। किसी भी व्यक्ति को भेदभाव स्वीकार नहीं होता है। जब भी किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, पद, भाषा, पैसे आदि के आधार पर कोई भेदभाव किया जाता है तो वह बहुत अपमानित महसूस करता है। साथ ही भेदभाव करने वाला व्यक्ति भी कभी अच्छा महसूस नहीं करता है, क्योंकि व्यक्ति-व्यक्ति में समानता प्रकृति के नियम के आधार पर है और प्राकृतिक नियम के विपरीत चलकर कोई भी ख़ुश नहीं रह सकता है। अत: दूसरों के प्रति सम्मान का भाव रखना किसी पर एहसान करना नहीं है बल्कि स्वयं के ख़ुश रहने के लिए एक प्राकृतिक बाध्यता है।
अत: दूसरे इनसान में समानता देखे बिना हम अपने में उसके प्रति सम्मान का भाव महसूस नहीं कर सकते हैं। जब कोई भाव महसूस न हो रहा हो और फिर भी हम उसे व्यक्त करने के तौर-तरीक़े (actions) अपनाते हैं तो उसे ‘दिखावा’ कहते हैं। जैसे- न चाहते हुए भी किसी को माला पहनाना, पैर छूना आदि।
सम्मान का भाव महसूस सभी को एक जैसा ही होता है, लेकिन उसे व्यवहार में व्यक्त करने के तौर-तरीक़े समय, स्थान और संस्कृति के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे- सम्मान के भाव को कोई पैर छूकर, कोई झुककर या किसी अन्य तरीक़े से व्यक्त कर सकता है।
सम्मान के भाव (feeling of respect) को पहचानने (to explore), महसूस करने (to experience) और व्यक्त करने (to express) के लिए निम्नलिखित सत्र (sessions) रखे गए हैं।

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सत्र (session): 1.1

उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों का ध्यान स्वयं की उपयोगिता और उसमें निहित सम्मान के भाव की ओर ले जाना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): कोई भी व्यक्ति अपनी उपयोगिता को देखकर ही आत्मसम्मान को महसूस करता है। इस सत्र में ऐसे प्रश्न रखे गए हैं जिनसे विद्यार्थियों का ध्यान अपने परिवार में स्वयं की उपयोगिता की ओर जाएगा। जब हम अपने आपको उपयोगी पाते हैं तब ही अपने आपमें सम्मानित महसूस कर पाते हैं।

कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. पिछले कुछ दिनों में कौनसे कार्यों में घर वालों को आपकी मदद की ज़रूरत महसूस हुई? किन्हीं एक-दो कार्यों को साझा करें। (जैसे- बाज़ार से सामान लाना, रसोई में मदद करना आदि।)
2. पिछले सप्ताह आपने अपने भाई-बहन की क्या सहायता की? ऐसा करने पर आपको कैसा महसूस हुआ?
3. पिछले सप्ताह आपने किसी मित्र अथवा पड़ोसी की क्या सहायता की? ऐसा करने पर आपको कैसा महसूस हुआ? (संकेत- उपयोगिता, सम्मान, संतुष्टि, ख़ुशी आदि।)

अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि आपने ऐसे कौन-कौनसे कार्य किए जिसकी बदौलत आप दूसरों के प्रति उपयोगी साबित हो पाए।

कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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  सत्र (session): 1.2

उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को स्वयं के प्रति सम्मान या आत्मसम्मान (self-respect) का भाव महसूस कराना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): इस सत्र से अपेक्षा है कि इसकी बदौलत विद्यार्थी का ध्यान अपनी ज़िंदगी मे अब तक आए आत्मसम्मान के क्षणों की ओर जाए एवं वह वास्तविक रूप में अपने प्रति सम्मान का भाव महसूस करे। वह जान पाए कि आख़िर आत्मसम्मान (self-respect) का भाव होता क्या है और यह महसूस कब होता है।

कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. इस सप्ताह आपने अपने बारे में कौनसी एक अच्छी बात सुनी? वह क्या बात थी, किसने कही और उसे सुनकर आपको कैसा लगा?
2. इस सप्ताह आपने किसके बारे में कोई अच्छी बात कही? वह क्या बात थी और उसे कहते हुए आपको कैसा लगा?
3. क्या किसी ने कभी आपके बारे में कोई ऐसी अच्छी बात कही है जो आपको लगता है कि वह बात तो आपमें है ही नहीं? वह कौनसी बात थी और उसे सुनकर आपको कैसा महसूस हुआ?

अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब भी आप किसी के लिए मददगार होते हैं, उस समय आपको कैसा महसूस (feel) होता है।

कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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सत्र (session): 1.3

उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों का ध्यान भेदभाव में निहित अपमान और समानता में निहित सम्मान की ओर जाए।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): भेदभाव किसी को स्वीकार नहीं है। जिसके साथ भेदभाव होता है उसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन जब हम किसी व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के अपने समान ही एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो उसके साथ ही हमें भी ख़ुशी महसूस होती है।
इस स्तर का उद्देश्य है कि विद्यार्थी भेदभाव में निहित अपमान और समानता में निहित सम्मान को देख पाएँ।

कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. आप किस-किसके प्रति सम्मान का भाव महसूस करते हैं और क्यों?
2. आपको कब अच्छा लगता है, जब आपके साथ भेदभाव किया जाता है या जब आपके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है? क्यों?
3. आपने कब-कब स्वयं को सम्मानित महसूस किया है और क्यों?
4. क्या आपने कभी ख़ुद को अपमानित महसूस किया है? कब और क्यों?

अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि आपने ऐसे कौन-कौनसे कार्य किए जिसकी बदौलत आप दूसरों के प्रति उपयोगी साबित हो पाए।

कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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  सत्र (session): 1.4

उद्देश्य (Objective): दूसरों के प्रति सम्मान का भाव महसूस करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): सभी इनसान सम्मान ही चाहते हैं। कोई अपमानित नहीं होना चाहता फिर भी जाने-अनजाने हमसे किसी का अपमान हो जाता है। अपमानित होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भी उतना ही बुरा लगता है जितना हमें अपमानित होकर लगता है।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थी हमेशा सजग रहें और किसी भी परिस्थिति में अपने संबंधों में किसी को भी अपमानित न करें।

कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कोई ऐसी घटना साझा कीजिए जब आपको अपना व्यवहार किसी के साथ ठीक लगा हो, लेकिन बाद में आपको महसूस हुआ कि वह ठीक नहीं था।
2. क्या जाने-अनजाने में कभी आपके कारण कोई अपमानित हुआ है? आपने ऐसा क्यों किया था? उस घटना को याद करने पर आपको कैसा लगता है?

अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि गुस्से के समय आप दूसरे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।

कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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सत्र (session): 1.5

उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति सम्मान के भाव को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): किसी दूसरे इनसान में समानता या श्रेष्ठता देखे बिना हमारे मन में उसके प्रति सम्मान का भाव महसूस होगा ही नहीं, लेकिन मन ही मन दूसरे को बुरा-भला कहते हुए माला पहनाकर सम्मान व्यक्त करने का दिखावा कर सकते हैं। जब मन में भाव महसूस न हो रहा हो और फिर भी हम उसे व्यक्त करने के तौर-तरीक़े (actions) अपनाते हैं तो उसे ‘दिखावा’ कहते हैं।
भाव सार्वभौमिक (universal) होते हैं अर्थात मन में महसूस सभी को एक जैसा ही होगा, लेकिन उसे व्यवहार में व्यक्त करने के तौर-तरीक़े समय, स्थान और संस्कृति के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे- सम्मान के भाव को कोई पैर छूकर, कोई झुककर या किसी अन्य तरीक़े से व्यक्त कर सकता है।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थी बिना किसी दिखावे के वास्तविक रूप में दूसरों के प्रति सम्मान का भाव महसूस करें और व्यक्त करें।

कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. आप अपने माता-पिता एवं परिवार के बड़े-बुजुर्गों के प्रति सम्मान का भाव किस-किस तरीक़े से व्यक्त करते हैं?
2. क्या कभी ऐसा हुआ है जब दूसरे के प्रति सम्मान का भाव होते हुए भी आप सम्मान व्यक्त न कर पाए हों? यदि हाँ, तो कारण बताएँ।
3. दूसरे व्यक्ति के प्रति अपने मन में सम्मान का भाव होना ही पर्याप्त/काफ़ी है या उसके प्रति सम्मान का भाव व्यक्त करना भी महत्त्वपूर्ण है? क्यों?

अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब भी कोई आपकी किसी भी प्रकार की मदद करता है, उस समय आपको कैसा महसूस (feel) होता है।

कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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