उद्देश्य: ख़ुद में और परिवार, दोस्त, विद्यालय व समाज में एक-दूसरे के लिए विश्वास देख पाना, महसूस करना और व्यक्त करना।
शिक्षक के संदर्भ के लिए नोट: विश्वास को दो तरह से देखा जाता है।
A. आत्मविश्वास (Self-confidence):
जब भी हम किसी काम को ठीक से कर पाते हैं या किसी बात को ठीक से समझते हैं तो उस समय हमारे मन में कोई डर या घबराहट नहीं रहती है। इस ठीक से करने व समझने की आश्वस्ति (assurance) से हममें एक स्थिरता (stability) रहती है, जिसे हम ख़ुशी (happiness) के रूप में महसूस करते हैं।
किसी चीज़ की स्पष्टता (clarity) होने पर ही हम उसके बारे में आश्वस्त (assured) होते हैं। हमारा मन किसी निश्चितता (certainty) को पहचानने पर ही निश्चिंत (relaxed) होता है। अस्पष्टता (obscurity) और अनिश्चितता (uncertainty) की स्थिति में हमारा मन विचलित या अस्थिर (unstable) रहता है, जिसे हम परेशानी या समस्या के रूप में महसूस करते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति में सोचने-समझने की असीम क्षमता (unlimited potential) होती है। जब एक व्यक्ति अपनी मूल क्षमताओं को पहचानकर ‘सिखाने’ और ‘समझाने’ के रूप में अपनी योग्यताओं (competences) को विकसित कर लेता है तो उसमें ख़ुशहालीपूर्वक जीने का भरोसा पैदा हो जाता है। इसे ही हम आत्मविश्वास के भाव (feeling of self-confidence) के रूप में महसूस करते हैं।
B. परस्परता में विश्वास (Trust for each other):
हमेशा ख़ुश रहने और दूसरों के ख़ुश रहने में मददगार होने की चाहत प्राकृतिक रूप से धरती के सभी इनसानों की मूल चाहत (basic intention) है। ऐसा चाहने के बावज़ूद भी हम हमेशा ख़ुश नहीं रह पाते हैं और न ही दूसरों के ख़ुश रहने में हमेशा मददगार हो पाते हैं। यही स्थिति दूसरों की भी होती है।
यदि हम प्रकृति की व्यवस्था को देखें तो पाते हैं कि हवा, पानी, मिट्टी, पत्थर, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सभी एक-दूसरे के लिए पूरक (पूरा करने वाले/complementary) हैं। इसके विपरीत यदि इनसान को देखें तो अभी सभी इनसान एक-दूसरे के पूरक नहीं हो पाए हैं, इसीलिए सभी समस्याएँ हैं। प्रकृति के नियमानुसार सभी की ख़ुशी के लिए सभी को एक-दूसरे का पूरक होना आवश्यक है।
हम सभी शांत मन से अपने में देखें तो पाते हैं कि हम सब हमेशा ख़ुश रहना चाहते हैं और दूसरे के ख़ुश रहने में हमेशा सहयोगी रहना चाहते हैं। ऐसा चाहने के बावज़ूद भी हम हमेशा ख़ुश कैसे रहें और दूसरे को ख़ुश कैसे करें - यह समझ में नहीं आता है। यह समझ में न आना ही हमारी पीड़ा (दु:ख) का कारण बनता है। यही पीड़ा कभी गुस्से में भी बदल जाती है। जैसे- जब बच्चा किसी कारणवश चिड़चिड़ा होता है और हमें समझ में नहीं आता है कि उसे ख़ुश कैसे करें या शांत कैसे करें तब अकसर हमें बच्चे पर गुस्सा आ जाता है। यह गुस्सा उसकी गलती से ज़्यादा हमें अपनी अयोग्यता के कारण आता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि योग्यता (competence/समझ) में कमी होने के कारण, न तो हम हमेशा ख़ुश रह पाते हैं और न ही दूसरे के ख़ुश रहने में हमेशा सहयोगी हो पाते हैं। यहाँ योग्यता या सही समझ होने का तात्पर्य है कि हमारा ध्यान दूसरे की मूल चाहना (हमेशा ख़ुश रहना) पर बना रहता है। दूसरा कहाँ खड़ा है, उसकी समझ, उसकी परिस्थितियाँ क्या हैं? इस पर ध्यान बना रहता है। ध्यान बने रहने से दूसरे की योग्यता का सही मूल्यांकन हो पाता है। इससे दूसरे से गलती होने पर यह साफ़-साफ़ दिखता है कि वह गलती समझ के अभाव में हुई है न कि जान-बूझकर। साथ ही दूसरे में सही करने की योग्यता कैसे विकसित हो सकती है, यह भी दिखता है। यही हममें सही समझ या योग्यता होने का फलन है।
यदि हम किसी व्यक्ति की मूल चाहत को ध्यान में रखते हैं तो उससे गलती होने पर हम उसकी योग्यता में कमी देखकर उस योग्यता को बढ़ाने के लिए सहयोगी हो जाते हैं। इसके विपरीत जब भी हम उसकी योग्यता का सही मूल्यांकन न कर, उसकी मूल चाहत (basic intention) पर शंका (doubt) करते हैं तो हम सहयोग करने की बजाय गुस्सा या विरोध करते हैं। जैसे- कोई बहुत छोटा बच्चा बिस्तर गीला कर देता है तो हम उसके intention पर doubt नहीं करते हैं और हम उसकी योग्यता में कमी को देखकर उसका सहयोग करते हैं, लेकिन जब वह बच्चा बड़ा होने के बाद भी यदि बिस्तर गीला करता है तो हम उसके intention पर doubt करते हैं और सहयोगी होने के बजाय गुस्सा करते हैं, जबकि उसने यह गलती अब भी योग्यता में कमी के कारण ही की है। निश्चित रूप से वह ऐसा जान-बूझकर नहीं करता है।
इस प्रकार हम जब भी किसी के intention पर doubt करते हैं तो गुस्सा या विरोध ही करते हैं और स्वयं परेशान होकर दूसरे को भी परेशान करते हैं। इसके विपरीत जब भी हम किसी के intention पर doubt नहीं करते हैं तो उसकी गलती को योग्यता (सही समझ) में कमी के रूप में देखते हैं और हम उसके लिए सहयोगी/पूरक हो जाते हैं। अपने संबंधों में एक-दूसरे की मूल चाहत को लेकर जब हम शंकामुक्त होते हैं तो एक-दूसरे के प्रति विश्वास के साथ संबंधों को ख़ुशी से निभाते हैं।
विश्वास का भाव हमारे सभी संबंधों का आधार है। अत: संबंधों में इस भाव (मूल्य) को 'आधार मूल्य' भी कहा जाता है। विश्वास के बाद ही हम दूसरे भावों को महसूस कर पाते हैं।
जब हम दूसरों के प्रति विश्वास के भाव के साथ होते हैं तो उनके साथ हमारा व्यवहार सौजन्यपूर्ण (सज्जनतापूर्वक/सहयोगात्मक/collaborative) रहता है अर्थात हम हमेशा सहयोग की भावना के साथ होते हैं।
विश्वास को हम कॉन्फ़िडेंस, भरोसा, यकीन, एतबार आदि नामों से भी जानते हैं।
विश्वास के भाव (feeling of trust) को पहचानने (to explore), महसूस करने (to experience) और व्यक्त करने (to express) के लिए निम्नलिखित सत्र (sessions) रखे गए हैं।
उद्देश्य (Objective): आत्मविश्वास (self-confidence) का भाव महसूस करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): कभी-कभी किसी चीज़ को करने या सीखने से पहले हम में यह विश्वास नहीं होता कि हम उसे कर पाएँगे लेकिन कभी यह भी होता है कि हम किसी कार्य को करने के प्रति आश्वस्त होते हैं। इस सत्र में विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर दिलाना है कि वे कब-कब विश्वास के साथ होते हैं और जब विश्वास के साथ होते हैं तब कैसा महसूस होता है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कौन-कौनसे ऐसे कार्य हैं जिन्हें करते समय पहले आप डर या घबराहट महसूस करते थे, लेकिन अब उन्हें करते समय आप बिलकुल नहीं घबराते हैं? ऐसा कैसे हुआ? (जैसे-साइकिल चलाना, खाना बनाना, कोई खेल खेलना आदि।)
2. हाल ही में आपने कौनसा काम/कला/कौशल/हुनर सीखा है? उसे सीखने से पहले और उसे ठीक से सीखने के बाद आपको अपने अंदर क्या बदलाव महसूस हुआ? (जैसे- साइकिल चलाना सीखा, पेंटिंग करना सीखा, हारमोनियम बजाना, कोई खेल विशेष इत्यादि।)
3. कोई ऐसी घटना याद करके बताइए जब आप कक्षा में किसी टॉपिक को ठीक से समझ नहीं पाएँ हो जबकि आपके सहपाठी उसे समझ गए हों। उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था?
4. किसी भी subject के ऐसे कौन-कौनसे पाठ या टॉपिक हैं जिनको लेकर आपको विश्वास है कि आप उन्हें अपने किसी सहपाठी या दोस्त को समझा सकते हैं?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि आप कब-कब ख़ुद में भरोसा महसूस करते हैं।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की अपनी अभिव्यक्ति के बारे में विचार करें।
उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति विश्वास का भाव महसूस कराना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): जिस प्रकार हम चाहते हैं कि हम हमेशा ख़ुश रहें और दूसरों के ख़ुश रहने में हमेशा मददगार रहें उसी प्रकार दूसरे भी यही चाहते हैं। ऐसा चाहने के बावज़ूद हम कभी दूसरों को ख़ुश कर पाने में सफल होते हैं और कभी असफल। ये सफलता अथवा असफलता परिस्थितियों एवं हमारी समझ और योग्यता पर निर्भर करती है। यही बात दूसरों पर भी लागू होती है।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थी यह देख पाएँगे कि हमारी मूल चाहना दूसरों के प्रति और दूसरों की मूल चाहना हमारे प्रति अच्छी ही होती है। ऐसा देख पाने पर वे दूसरों के प्रति विश्वास का भाव महसूस करेंगे।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कोई ऐसी घटना बताइए जब आपके किसी पारिवारिक सदस्य या मित्र की ग़लती से आपका कोई नुक़सान हुआ हो? अगर हाँ, तो उस वक़्त आपको कैसा महसूस हुआ था?
2. क्या किसी अन्य व्यक्ति (जो आपका मित्र या सम्बन्धी नहीं है) की ग़लती से कभी आपका नुकसान हुआ है? यदि हाँ, तो उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था?
3. किसके द्वारा आपका नुकसान होने पर आपको अधिक ग़ुस्सा आया था या बहुत ख़राब लगा था? क्यों?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब आप दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं तो आपको कैसे महसूस होता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति विश्वास के भाव को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): जब किसी से कोई ग़लती हो जाती है तो उसकी नीयत पर संदेह उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप उस व्यक्ति के प्रति ग़ुस्सा आता है।
ध्यान देने योग्य बात है कि जब भी हम किसी के intention पर doubt करते हैं तो क्रोध या विरोध ही करते हैं। इसके विपरीत जब भी हम किसी के intention पर doubt नहीं करते हैं तो हमें उस पर ग़ुस्सा नहीं आता। अब हम उसकी कमी को सुधारने में उसके लिए सहयोगी/पूरक हो जाते हैं।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थी एक-दूसरे की ग़लतियों को योग्यता में कमी के रूप में देखकर एक-दूसरे की योग्यता बढ़ाने में सहयोगी/पूरक बने रहें।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कोई ऐसी घटना बताइए जब आपसे कोई ग़लती हुई हो और किसी ने आपकी नीयत पर संदेह किया हो। उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था? क्यों?
2. क्या आपके कभी ऐसा किया है कि किसी से ग़लती होने पर आपने उसकी नीयत पर संदेह किया हो? आपने ऐसा क्यों सोचा?
3. किन-किन लोगों से ग़लती हो जाने पर भी आप नाराज़ नहीं होते हैं? क्यों?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब भी आप दूसरों के intention पर doubt करते हैं तो कैसा महसूस होता हैं।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
उद्देश्य (Objective): दूसरों के प्रति विश्वास के भाव को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): किन व्यक्तियों पर विश्वास नहीं हो पाता और किन व्यक्तियों पर सहजता से विश्वास हो जाता है? इन प्रश्नों को देखा जाए तो समझ में आता है कि कुछ कारक हैं जिनकी बदौलत उपर्युक्त दोनों ही स्थितियाँ हो सकती हैं।
इस सत्र में हम विद्यार्थियों से ही उन्हीं कारकों के बारे में जानेंगे। साथ ही यह जानने का भी प्रयास करेंगे कि हम क्यों चाहते हैं कि हम पर विश्वास किया जाए।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
चिंतन और अभिव्यक्ति के लिए कुछ अन्य प्रस्तावित प्रश्न: निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. आप किस-किसकी कही हुई हर बात मानते हैं? क्यों?
2. मन में उस व्यक्ति के बारे में सोचिए जिस पर आप बहुत विश्वास करते हैं। आप किन कारणों से उसपर विश्वास करते हैं?
3. क्या आप चाहते हैं कि आप पर विश्वास किया जाए? किन कारणों से आप पर विश्वास किया जाए?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब भी कोई आप विश्वास नहीं करता है तो आपको कैसा महसूस होता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
उद्देश्य (Objective): एक-दूसरे के लिए विश्वास के भाव का अर्थ स्पष्ट कराना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): जब हम अपने संबंधों में दूसरे व्यक्ति की मूल चाहत (basic intention) को लेकर आश्वस्त (assured) रहते हैं तो हम अपने अंदर एक स्थिरता (stability) महसूस करते हैं। एक-दूसरे के प्रति शंकामुक्त स्थिति (doubtless state of mind) को ही हम एक-दूसरे के लिए विश्वास का भाव (feeling of trust) कहते हैं।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थियों को दूसरे के प्रति विश्वास के भाव का अर्थ स्पष्ट हो जाए ताकि वे अपने संबंधों में एक-दूसरे के basic intention पर doubt न करते हुए परस्पर सहयोगी बने रहें।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. आप किस-किस व्यक्ति के प्रति विश्वास का भाव महसूस करते हैं? सूची बनाओ और एक-दूसरे से साझा करो।
2. क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी व्यक्ति ने आपका भरोसा तोड़ दिया हो? उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था? अपना अनुभव साझा करें।
3. कोई ऐसी घटना बताइए जब आप पर किसी ने भरोसा नहीं किया हो। उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि दूसरे व्यक्ति के प्रति विश्वास का भाव होने पर उससे ग़लती होने पर उसके साथ आपका व्यवहार कैसा रहता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
शिक्षक के संदर्भ के लिए नोट: विश्वास को दो तरह से देखा जाता है।
A. आत्मविश्वास (Self-confidence):
जब भी हम किसी काम को ठीक से कर पाते हैं या किसी बात को ठीक से समझते हैं तो उस समय हमारे मन में कोई डर या घबराहट नहीं रहती है। इस ठीक से करने व समझने की आश्वस्ति (assurance) से हममें एक स्थिरता (stability) रहती है, जिसे हम ख़ुशी (happiness) के रूप में महसूस करते हैं।
किसी चीज़ की स्पष्टता (clarity) होने पर ही हम उसके बारे में आश्वस्त (assured) होते हैं। हमारा मन किसी निश्चितता (certainty) को पहचानने पर ही निश्चिंत (relaxed) होता है। अस्पष्टता (obscurity) और अनिश्चितता (uncertainty) की स्थिति में हमारा मन विचलित या अस्थिर (unstable) रहता है, जिसे हम परेशानी या समस्या के रूप में महसूस करते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति में सोचने-समझने की असीम क्षमता (unlimited potential) होती है। जब एक व्यक्ति अपनी मूल क्षमताओं को पहचानकर ‘सिखाने’ और ‘समझाने’ के रूप में अपनी योग्यताओं (competences) को विकसित कर लेता है तो उसमें ख़ुशहालीपूर्वक जीने का भरोसा पैदा हो जाता है। इसे ही हम आत्मविश्वास के भाव (feeling of self-confidence) के रूप में महसूस करते हैं।
B. परस्परता में विश्वास (Trust for each other):
हमेशा ख़ुश रहने और दूसरों के ख़ुश रहने में मददगार होने की चाहत प्राकृतिक रूप से धरती के सभी इनसानों की मूल चाहत (basic intention) है। ऐसा चाहने के बावज़ूद भी हम हमेशा ख़ुश नहीं रह पाते हैं और न ही दूसरों के ख़ुश रहने में हमेशा मददगार हो पाते हैं। यही स्थिति दूसरों की भी होती है।
यदि हम प्रकृति की व्यवस्था को देखें तो पाते हैं कि हवा, पानी, मिट्टी, पत्थर, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सभी एक-दूसरे के लिए पूरक (पूरा करने वाले/complementary) हैं। इसके विपरीत यदि इनसान को देखें तो अभी सभी इनसान एक-दूसरे के पूरक नहीं हो पाए हैं, इसीलिए सभी समस्याएँ हैं। प्रकृति के नियमानुसार सभी की ख़ुशी के लिए सभी को एक-दूसरे का पूरक होना आवश्यक है।
हम सभी शांत मन से अपने में देखें तो पाते हैं कि हम सब हमेशा ख़ुश रहना चाहते हैं और दूसरे के ख़ुश रहने में हमेशा सहयोगी रहना चाहते हैं। ऐसा चाहने के बावज़ूद भी हम हमेशा ख़ुश कैसे रहें और दूसरे को ख़ुश कैसे करें - यह समझ में नहीं आता है। यह समझ में न आना ही हमारी पीड़ा (दु:ख) का कारण बनता है। यही पीड़ा कभी गुस्से में भी बदल जाती है। जैसे- जब बच्चा किसी कारणवश चिड़चिड़ा होता है और हमें समझ में नहीं आता है कि उसे ख़ुश कैसे करें या शांत कैसे करें तब अकसर हमें बच्चे पर गुस्सा आ जाता है। यह गुस्सा उसकी गलती से ज़्यादा हमें अपनी अयोग्यता के कारण आता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि योग्यता (competence/समझ) में कमी होने के कारण, न तो हम हमेशा ख़ुश रह पाते हैं और न ही दूसरे के ख़ुश रहने में हमेशा सहयोगी हो पाते हैं। यहाँ योग्यता या सही समझ होने का तात्पर्य है कि हमारा ध्यान दूसरे की मूल चाहना (हमेशा ख़ुश रहना) पर बना रहता है। दूसरा कहाँ खड़ा है, उसकी समझ, उसकी परिस्थितियाँ क्या हैं? इस पर ध्यान बना रहता है। ध्यान बने रहने से दूसरे की योग्यता का सही मूल्यांकन हो पाता है। इससे दूसरे से गलती होने पर यह साफ़-साफ़ दिखता है कि वह गलती समझ के अभाव में हुई है न कि जान-बूझकर। साथ ही दूसरे में सही करने की योग्यता कैसे विकसित हो सकती है, यह भी दिखता है। यही हममें सही समझ या योग्यता होने का फलन है।
यदि हम किसी व्यक्ति की मूल चाहत को ध्यान में रखते हैं तो उससे गलती होने पर हम उसकी योग्यता में कमी देखकर उस योग्यता को बढ़ाने के लिए सहयोगी हो जाते हैं। इसके विपरीत जब भी हम उसकी योग्यता का सही मूल्यांकन न कर, उसकी मूल चाहत (basic intention) पर शंका (doubt) करते हैं तो हम सहयोग करने की बजाय गुस्सा या विरोध करते हैं। जैसे- कोई बहुत छोटा बच्चा बिस्तर गीला कर देता है तो हम उसके intention पर doubt नहीं करते हैं और हम उसकी योग्यता में कमी को देखकर उसका सहयोग करते हैं, लेकिन जब वह बच्चा बड़ा होने के बाद भी यदि बिस्तर गीला करता है तो हम उसके intention पर doubt करते हैं और सहयोगी होने के बजाय गुस्सा करते हैं, जबकि उसने यह गलती अब भी योग्यता में कमी के कारण ही की है। निश्चित रूप से वह ऐसा जान-बूझकर नहीं करता है।
इस प्रकार हम जब भी किसी के intention पर doubt करते हैं तो गुस्सा या विरोध ही करते हैं और स्वयं परेशान होकर दूसरे को भी परेशान करते हैं। इसके विपरीत जब भी हम किसी के intention पर doubt नहीं करते हैं तो उसकी गलती को योग्यता (सही समझ) में कमी के रूप में देखते हैं और हम उसके लिए सहयोगी/पूरक हो जाते हैं। अपने संबंधों में एक-दूसरे की मूल चाहत को लेकर जब हम शंकामुक्त होते हैं तो एक-दूसरे के प्रति विश्वास के साथ संबंधों को ख़ुशी से निभाते हैं।
विश्वास का भाव हमारे सभी संबंधों का आधार है। अत: संबंधों में इस भाव (मूल्य) को 'आधार मूल्य' भी कहा जाता है। विश्वास के बाद ही हम दूसरे भावों को महसूस कर पाते हैं।
जब हम दूसरों के प्रति विश्वास के भाव के साथ होते हैं तो उनके साथ हमारा व्यवहार सौजन्यपूर्ण (सज्जनतापूर्वक/सहयोगात्मक/collaborative) रहता है अर्थात हम हमेशा सहयोग की भावना के साथ होते हैं।
विश्वास को हम कॉन्फ़िडेंस, भरोसा, यकीन, एतबार आदि नामों से भी जानते हैं।
विश्वास के भाव (feeling of trust) को पहचानने (to explore), महसूस करने (to experience) और व्यक्त करने (to express) के लिए निम्नलिखित सत्र (sessions) रखे गए हैं।
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सत्र (session): 3.1
उद्देश्य (Objective): आत्मविश्वास (self-confidence) का भाव महसूस करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): कभी-कभी किसी चीज़ को करने या सीखने से पहले हम में यह विश्वास नहीं होता कि हम उसे कर पाएँगे लेकिन कभी यह भी होता है कि हम किसी कार्य को करने के प्रति आश्वस्त होते हैं। इस सत्र में विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर दिलाना है कि वे कब-कब विश्वास के साथ होते हैं और जब विश्वास के साथ होते हैं तब कैसा महसूस होता है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कौन-कौनसे ऐसे कार्य हैं जिन्हें करते समय पहले आप डर या घबराहट महसूस करते थे, लेकिन अब उन्हें करते समय आप बिलकुल नहीं घबराते हैं? ऐसा कैसे हुआ? (जैसे-साइकिल चलाना, खाना बनाना, कोई खेल खेलना आदि।)
2. हाल ही में आपने कौनसा काम/कला/कौशल/हुनर सीखा है? उसे सीखने से पहले और उसे ठीक से सीखने के बाद आपको अपने अंदर क्या बदलाव महसूस हुआ? (जैसे- साइकिल चलाना सीखा, पेंटिंग करना सीखा, हारमोनियम बजाना, कोई खेल विशेष इत्यादि।)
3. कोई ऐसी घटना याद करके बताइए जब आप कक्षा में किसी टॉपिक को ठीक से समझ नहीं पाएँ हो जबकि आपके सहपाठी उसे समझ गए हों। उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था?
4. किसी भी subject के ऐसे कौन-कौनसे पाठ या टॉपिक हैं जिनको लेकर आपको विश्वास है कि आप उन्हें अपने किसी सहपाठी या दोस्त को समझा सकते हैं?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि आप कब-कब ख़ुद में भरोसा महसूस करते हैं।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की अपनी अभिव्यक्ति के बारे में विचार करें।
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सत्र (session): 3.2
उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति विश्वास का भाव महसूस कराना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): जिस प्रकार हम चाहते हैं कि हम हमेशा ख़ुश रहें और दूसरों के ख़ुश रहने में हमेशा मददगार रहें उसी प्रकार दूसरे भी यही चाहते हैं। ऐसा चाहने के बावज़ूद हम कभी दूसरों को ख़ुश कर पाने में सफल होते हैं और कभी असफल। ये सफलता अथवा असफलता परिस्थितियों एवं हमारी समझ और योग्यता पर निर्भर करती है। यही बात दूसरों पर भी लागू होती है।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थी यह देख पाएँगे कि हमारी मूल चाहना दूसरों के प्रति और दूसरों की मूल चाहना हमारे प्रति अच्छी ही होती है। ऐसा देख पाने पर वे दूसरों के प्रति विश्वास का भाव महसूस करेंगे।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कोई ऐसी घटना बताइए जब आपके किसी पारिवारिक सदस्य या मित्र की ग़लती से आपका कोई नुक़सान हुआ हो? अगर हाँ, तो उस वक़्त आपको कैसा महसूस हुआ था?
2. क्या किसी अन्य व्यक्ति (जो आपका मित्र या सम्बन्धी नहीं है) की ग़लती से कभी आपका नुकसान हुआ है? यदि हाँ, तो उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था?
3. किसके द्वारा आपका नुकसान होने पर आपको अधिक ग़ुस्सा आया था या बहुत ख़राब लगा था? क्यों?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब आप दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं तो आपको कैसे महसूस होता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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सत्र (session): 3.3
उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति विश्वास के भाव को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): जब किसी से कोई ग़लती हो जाती है तो उसकी नीयत पर संदेह उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप उस व्यक्ति के प्रति ग़ुस्सा आता है।
ध्यान देने योग्य बात है कि जब भी हम किसी के intention पर doubt करते हैं तो क्रोध या विरोध ही करते हैं। इसके विपरीत जब भी हम किसी के intention पर doubt नहीं करते हैं तो हमें उस पर ग़ुस्सा नहीं आता। अब हम उसकी कमी को सुधारने में उसके लिए सहयोगी/पूरक हो जाते हैं।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थी एक-दूसरे की ग़लतियों को योग्यता में कमी के रूप में देखकर एक-दूसरे की योग्यता बढ़ाने में सहयोगी/पूरक बने रहें।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. कोई ऐसी घटना बताइए जब आपसे कोई ग़लती हुई हो और किसी ने आपकी नीयत पर संदेह किया हो। उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था? क्यों?
2. क्या आपके कभी ऐसा किया है कि किसी से ग़लती होने पर आपने उसकी नीयत पर संदेह किया हो? आपने ऐसा क्यों सोचा?
3. किन-किन लोगों से ग़लती हो जाने पर भी आप नाराज़ नहीं होते हैं? क्यों?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब भी आप दूसरों के intention पर doubt करते हैं तो कैसा महसूस होता हैं।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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सत्र (session): 3.4
उद्देश्य (Objective): दूसरों के प्रति विश्वास के भाव को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): किन व्यक्तियों पर विश्वास नहीं हो पाता और किन व्यक्तियों पर सहजता से विश्वास हो जाता है? इन प्रश्नों को देखा जाए तो समझ में आता है कि कुछ कारक हैं जिनकी बदौलत उपर्युक्त दोनों ही स्थितियाँ हो सकती हैं।
इस सत्र में हम विद्यार्थियों से ही उन्हीं कारकों के बारे में जानेंगे। साथ ही यह जानने का भी प्रयास करेंगे कि हम क्यों चाहते हैं कि हम पर विश्वास किया जाए।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
चिंतन और अभिव्यक्ति के लिए कुछ अन्य प्रस्तावित प्रश्न: निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. आप किस-किसकी कही हुई हर बात मानते हैं? क्यों?
2. मन में उस व्यक्ति के बारे में सोचिए जिस पर आप बहुत विश्वास करते हैं। आप किन कारणों से उसपर विश्वास करते हैं?
3. क्या आप चाहते हैं कि आप पर विश्वास किया जाए? किन कारणों से आप पर विश्वास किया जाए?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि जब भी कोई आप विश्वास नहीं करता है तो आपको कैसा महसूस होता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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सत्र (session): 3.5
उद्देश्य (Objective): एक-दूसरे के लिए विश्वास के भाव का अर्थ स्पष्ट कराना।
समय (Time): कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): जब हम अपने संबंधों में दूसरे व्यक्ति की मूल चाहत (basic intention) को लेकर आश्वस्त (assured) रहते हैं तो हम अपने अंदर एक स्थिरता (stability) महसूस करते हैं। एक-दूसरे के प्रति शंकामुक्त स्थिति (doubtless state of mind) को ही हम एक-दूसरे के लिए विश्वास का भाव (feeling of trust) कहते हैं।
इस सत्र का उद्देश्य है कि विद्यार्थियों को दूसरे के प्रति विश्वास के भाव का अर्थ स्पष्ट हो जाए ताकि वे अपने संबंधों में एक-दूसरे के basic intention पर doubt न करते हुए परस्पर सहयोगी बने रहें।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
विद्यार्थियों द्वारा अभिव्यक्ति (Expression by the Students): निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
1. आप किस-किस व्यक्ति के प्रति विश्वास का भाव महसूस करते हैं? सूची बनाओ और एक-दूसरे से साझा करो।
2. क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी व्यक्ति ने आपका भरोसा तोड़ दिया हो? उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था? अपना अनुभव साझा करें।
3. कोई ऐसी घटना बताइए जब आप पर किसी ने भरोसा नहीं किया हो। उस समय आपको कैसा महसूस हुआ था?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस तक आप अपने में यह देखने का प्रयास करें कि दूसरे व्यक्ति के प्रति विश्वास का भाव होने पर उससे ग़लती होने पर उसके साथ आपका व्यवहार कैसा रहता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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