उद्देश्य: ख़ुद में और परिवार, दोस्त, विद्यालय व समाज में एक-दूसरे के लिए सम्मान देख पाना, महसूस करना और व्यक्त करना।
शिक्षक के संदर्भ के लिए नोट: सम्मान को दो तरह से देखा जाता है।
A. आत्मसम्मान (Self-respect):
यदि हम एक व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकताओं को देखें तो रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सम्मान और पहचान उसकी बहुत बड़ी आवश्यकताएँ हैं। अपमान के साथ शायद ही कोई व्यक्ति रोटी स्वीकार करता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के लिए उसका सम्मान और पहचान रोटी, कपड़ा और मकान से भी बड़ा मुद्दा होता है।
अभी सम्मान पाने के प्रयासों के बारे में देखा जाए तो हम पाते हैं कि अधिकतर लोग पद, पैसा, रंग-रूप, भाषा और ताकत के आधार पर सम्मान पाना चाहते हैं। इस बात को हम अपने में अच्छे से जाँचकर देख सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति समाज के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी नज़र नहीं आता है या उसका व्यवहार दूसरे लोगों के प्रति ठीक नहीं है तो चाहे उसके पास कितने ही पैसे हों, कोई भी पद हो, कैसा भी रंग-रूप हो, कितनी ही अच्छी कोई भाषा बोलता हो और कितनी भी ताकत हो, हम मन से उसे सम्मानित व्यक्ति नहीं मानते हैं फिर चाहे दिखावे के रूप में हम उसे कितनी भी बड़ी माला पहनाते रहें।
सही मायने में आत्मसम्मान क्या है?
सभी व्यक्ति अपनी उपयोगिता व अपने महत्त्व को जानकर स्वयं में सम्मानित महसूस करते हैं। यहाँ उपयोगिता से मतलब है- स्वयं ख़ुश रहकर दूसरों के ख़ुश रहने में सहयोगी होना। ऐसी योग्यता सही समझ और अभ्यास से विकसित होती है। यदि आत्मसम्मान शब्द का अर्थ देखें तो आत्म+सम्+मान अर्थात स्वयं का सही मूल्यांकन (right evaluation of self) करना ही आत्मसम्मान है। जब हम अपनी सोचने-समझने की असीम क्षमताओं को ‘सिखाने’ और ‘समझाने’ की योग्यताओं में विकसित करते हैं तो हम स्वयं ख़ुश रहकर दूसरों के ख़ुश रहने में सहयोगी होने के रूप में उपयोगी हो जाते हैं। अपनी इस उपयोगिता को जानकर ही हम आत्मसम्मान का भाव (feeling of self-respect) महसूस करते हैं। जैसे-जैसे हम अपनी उपयोगिता बढ़ाते जाते हैं वैसे-वैसे हम स्वयं में सम्मानपूर्वक जीने लगते हैं। इससे हम अपने सम्मान के लिए दूसरों पर निर्भरता से मुक्त होते जाते हैं।
हम व्यवहार में देखते हैं कि जो लोग स्वयं में सम्मानित महसूस नहीं करते हैं वे कोई दिखावा करके दूसरों से सम्मान पाने का असफल प्रयास करते हैं। अब इस बात पर विचार किया जा सकता है कि स्वयं के प्रति सम्मान का भाव अपनी उपयोगिता से महसूस होगा या यह भाव किसी दूसरे व्यक्ति से मिलेगा जो ख़ुद ही इसकी तलाश में है।
B. परस्परता में सम्मान (Respect for each other):
यदि हम धरती के सभी लोगों की मूल चाहत को देखें तो पाते हैं कि सभी लोग हमेशा ख़ुश रहना चाहते हैं, सभी clarity के साथ जीना चाहते हैं। इसके साथ ही यदि हम सभी लोगों की मूल क्षमता के बारे में देखें तो पाते हैं कि सभी लोगों में सोचने-समझने की असीम ताकत (unlimited potential) होती है।
इस प्रकार प्राकृतिक आधार पर देखें तो धरती के सभी इनसान समान हैं और सभी में समानता की चाहत भी है। अत: जब हम किसी व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के अपने समान ही एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो उसके प्रति हम सम्मान का भाव महसूस करते हैं। इसे हम ख़ुशी (happiness) के रूप में महसूस करते हैं।
किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और प्रतिभा को स्वीकार करने पर भी हम ऐसा ही महसूस करते हैं।
यदि सम्मान शब्द का अर्थ देखें तो सम्+मान अर्थात सही मूल्यांकन (right evaluation) करना ही सम्मान है। अत: किसी इनसान को बिना किसी भेदभाव के, अपने जैसे ही एक इनसान के रूप में स्वीकार (accept) करना ही उसका सही मूल्यांकन या सम्मान है। सम्मान एक व्यक्ति की पहचान का आधार होता है।
जब हम किसी के प्रति सम्मान के भाव के साथ होते हैं तो उसके प्रति हमारा व्यवहार सौहार्दपूर्ण (मित्रवत/दोस्ताना/cordial) रहता है।
जब हम किसी व्यक्ति को अपने समान ही (सोचने-समझने की मूल क्षमता और ख़ुशी की चाहत के आधार पर) एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो वह व्यक्ति भी सम्मानित महसूस करता है। किसी भी व्यक्ति को भेदभाव स्वीकार नहीं होता है। जब भी किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, पद, भाषा, पैसे आदि के आधार पर कोई भेदभाव किया जाता है तो वह बहुत अपमानित महसूस करता है। साथ ही भेदभाव करने वाला व्यक्ति भी कभी अच्छा महसूस नहीं करता है, क्योंकि व्यक्ति-व्यक्ति में समानता प्रकृति के नियम के आधार पर है और प्राकृतिक नियम के विपरीत चलकर कोई भी ख़ुश नहीं रह सकता है। अत: दूसरों के प्रति सम्मान का भाव रखना किसी पर एहसान करना नहीं है बल्कि स्वयं के ख़ुश रहने के लिए एक प्राकृतिक बाध्यता है।
अत: दूसरे इनसान में समानता देखे बिना हम अपने में उसके प्रति सम्मान का भाव महसूस नहीं कर सकते हैं। जब कोई भाव महसूस न हो रहा हो और फिर भी हम उसे व्यक्त करने के तौर-तरीक़े (actions) अपनाते हैं तो उसे ‘दिखावा’ कहते हैं। जैसे- न चाहते हुए भी किसी को माला पहनाना, पैर छूना आदि।
सम्मान का भाव महसूस सभी को एक जैसा ही होता है, लेकिन उसे व्यवहार में व्यक्त करने के तौर-तरीक़े समय, स्थान और संस्कृति के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे- सम्मान के भाव को कोई पैर छूकर, कोई झुककर या किसी अन्य तरीक़े से व्यक्त कर सकता है।
सम्मान के भाव (feeling of respect) को पहचानने (to explore), महसूस करने (to experience) और व्यक्त करने (to express) के लिए निम्नलिखित सत्र (sessions) रखे गए हैं।
उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर जाए कि स्वयं के सम्मान की निर्भरता दूसरों पर नहीं है।
समय: प्रत्येक सत्र के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक से दो दिन (अभिव्यक्ति दिन ) का समय निर्धारित किया गया है बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक चलाया जाए।
शिक्षक के लिए नोट : शिक्षक बच्चों का ध्यान इस ओर ले जाएं कि अच्छा और सही काम करना ठीक होता है चाहे उस काम की कोई प्रशंसा करे या न करें। अच्छा और सही काम करके आत्मविश्वास बढ़ता है और मेरी उपयोगिता ही मेरा आत्मसम्मान होता है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
अभिव्यक्ति हेतु प्रश्न:
1. इस सप्ताह आपने घर पर कौन-कौन से काम किए?
2. आप कौन से काम दूसरों के कहने पर करते हैं और कौन से काम अपने आप?
3. कौन-कौन से काम अपने लिए करते हैं और कौन से काम दूसरों के लिए?
4. क्या आपके किसी काम की कभी किसी ने आपकी प्रशंसा की? वह कौन-सा काम था?
5. अपनी प्रशंसा सुनकर आपको कैसा लगा?
6. क्या कभी ऐसा हुआ जब आपने कोई काम बहुत अच्छा किया पर किसी ने आपकी प्रशंसा नहीं की। तब आपको कैसा लगा था?
7. क्या आपने कभी कोई ऐसा काम किया है जिसमें आपकी चाहते थे कि कोई आपकी से प्रशंसा पाने की थी, पर आपकी प्रशंसा नहीं की गई? ऐसे में आपके मन में क्या विचार आए?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस (expression day) पर आप इस बात पर चिंतन और चर्चा (reflection and discussion) करेंगे कि जब भी आप किसी के लिए मददगार होते हैं, उस समय आपको कैसा महसूस (feel) होता है। अत: इस दौरान आप अपने में इसे देखने का प्रयास करें।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की अपनी अभिव्यक्ति के बारे में विचार करें।
उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति सम्मान का भाव महसूस कराना।
समय: प्रत्येक सत्र के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक से दो दिन (अभिव्यक्ति दिन ) का समय निर्धारित किया गया है बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक चलाया जाए।
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): हर व्यक्ति चाहता है कि उसके साथ किसी भी तरह का भेदभाव न किया जाए। इस बात का ध्यान रखकर व्यवहार करना भी सम्मान देना ही है। किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और प्रतिभा को स्वीकार करने पर भी हम उस व्यक्ति के प्रति सम्मान महसूस करते हैं। जिनका हम सम्मान करते हैं, उनके प्रति हमारा व्यवहार स्वनियंत्रित व विनम्र होता है। इस सत्र में विद्यार्थी यह देख पाएँ कि वे किन लोगों के साथ भेदभाव नहीं करते और किन लोगों का सम्मान श्रेष्ठता के आधार पर करते हैं और उनका व्यवहार उनके प्रति कैसा होता है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
अभिव्यक्ति हेतु प्रश्न:
1. आप किसके जैसा आप बनना चाहते हैं? वे कौन हैं? उनकी कौन-सी बातें आपको पसंद आती हैं?
2. किस-किस से आप कुछ सिखाते है? उनकी कौन-सी बातें आपको अच्छी लगती हैं?
3. आप उन लोगों के साथ व्यवहार करते समय किन बातों का ध्यान रखते हैं?
4. क्या कभी ऐसा लगा कि दूसरा व्यक्ति भी आप की तरह सोचता है? वह कौन-सी बात थी? आपका ध्यान दोनों के विचारों की समानता पर जाने पर कैसा लगा?
5. घर पर आपको कौन-कौन अपने जैसा लगता है? उनकी कौन सी बातें आपको अपने जैसी लगती है?
6. क्या कभी आपको लगा कि घर या स्कूल में कोई भी आपकी बात समझता ही नहीं है? ऐसा आपको कब और क्यों लगा?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस (expression day) पर आप इस बात पर चिंतन और चर्चा (reflection and discussion) करेंगे कि जब भी आप किसी के लिए मददगार होते हैं, उस समय आपको कैसा महसूस (feel) होता है। अत: इस दौरान आप अपने में इसे देखने का प्रयास करें।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की अपनी अभिव्यक्ति के बारे में विचार करें।
शिक्षक के संदर्भ के लिए नोट: सम्मान को दो तरह से देखा जाता है।
A. आत्मसम्मान (Self-respect):
यदि हम एक व्यक्ति की अनिवार्य आवश्यकताओं को देखें तो रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सम्मान और पहचान उसकी बहुत बड़ी आवश्यकताएँ हैं। अपमान के साथ शायद ही कोई व्यक्ति रोटी स्वीकार करता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के लिए उसका सम्मान और पहचान रोटी, कपड़ा और मकान से भी बड़ा मुद्दा होता है।
अभी सम्मान पाने के प्रयासों के बारे में देखा जाए तो हम पाते हैं कि अधिकतर लोग पद, पैसा, रंग-रूप, भाषा और ताकत के आधार पर सम्मान पाना चाहते हैं। इस बात को हम अपने में अच्छे से जाँचकर देख सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति समाज के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी नज़र नहीं आता है या उसका व्यवहार दूसरे लोगों के प्रति ठीक नहीं है तो चाहे उसके पास कितने ही पैसे हों, कोई भी पद हो, कैसा भी रंग-रूप हो, कितनी ही अच्छी कोई भाषा बोलता हो और कितनी भी ताकत हो, हम मन से उसे सम्मानित व्यक्ति नहीं मानते हैं फिर चाहे दिखावे के रूप में हम उसे कितनी भी बड़ी माला पहनाते रहें।
सही मायने में आत्मसम्मान क्या है?
सभी व्यक्ति अपनी उपयोगिता व अपने महत्त्व को जानकर स्वयं में सम्मानित महसूस करते हैं। यहाँ उपयोगिता से मतलब है- स्वयं ख़ुश रहकर दूसरों के ख़ुश रहने में सहयोगी होना। ऐसी योग्यता सही समझ और अभ्यास से विकसित होती है। यदि आत्मसम्मान शब्द का अर्थ देखें तो आत्म+सम्+मान अर्थात स्वयं का सही मूल्यांकन (right evaluation of self) करना ही आत्मसम्मान है। जब हम अपनी सोचने-समझने की असीम क्षमताओं को ‘सिखाने’ और ‘समझाने’ की योग्यताओं में विकसित करते हैं तो हम स्वयं ख़ुश रहकर दूसरों के ख़ुश रहने में सहयोगी होने के रूप में उपयोगी हो जाते हैं। अपनी इस उपयोगिता को जानकर ही हम आत्मसम्मान का भाव (feeling of self-respect) महसूस करते हैं। जैसे-जैसे हम अपनी उपयोगिता बढ़ाते जाते हैं वैसे-वैसे हम स्वयं में सम्मानपूर्वक जीने लगते हैं। इससे हम अपने सम्मान के लिए दूसरों पर निर्भरता से मुक्त होते जाते हैं।
हम व्यवहार में देखते हैं कि जो लोग स्वयं में सम्मानित महसूस नहीं करते हैं वे कोई दिखावा करके दूसरों से सम्मान पाने का असफल प्रयास करते हैं। अब इस बात पर विचार किया जा सकता है कि स्वयं के प्रति सम्मान का भाव अपनी उपयोगिता से महसूस होगा या यह भाव किसी दूसरे व्यक्ति से मिलेगा जो ख़ुद ही इसकी तलाश में है।
B. परस्परता में सम्मान (Respect for each other):
यदि हम धरती के सभी लोगों की मूल चाहत को देखें तो पाते हैं कि सभी लोग हमेशा ख़ुश रहना चाहते हैं, सभी clarity के साथ जीना चाहते हैं। इसके साथ ही यदि हम सभी लोगों की मूल क्षमता के बारे में देखें तो पाते हैं कि सभी लोगों में सोचने-समझने की असीम ताकत (unlimited potential) होती है।
इस प्रकार प्राकृतिक आधार पर देखें तो धरती के सभी इनसान समान हैं और सभी में समानता की चाहत भी है। अत: जब हम किसी व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के अपने समान ही एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो उसके प्रति हम सम्मान का भाव महसूस करते हैं। इसे हम ख़ुशी (happiness) के रूप में महसूस करते हैं।
किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और प्रतिभा को स्वीकार करने पर भी हम ऐसा ही महसूस करते हैं।
यदि सम्मान शब्द का अर्थ देखें तो सम्+मान अर्थात सही मूल्यांकन (right evaluation) करना ही सम्मान है। अत: किसी इनसान को बिना किसी भेदभाव के, अपने जैसे ही एक इनसान के रूप में स्वीकार (accept) करना ही उसका सही मूल्यांकन या सम्मान है। सम्मान एक व्यक्ति की पहचान का आधार होता है।
जब हम किसी के प्रति सम्मान के भाव के साथ होते हैं तो उसके प्रति हमारा व्यवहार सौहार्दपूर्ण (मित्रवत/दोस्ताना/cordial) रहता है।
जब हम किसी व्यक्ति को अपने समान ही (सोचने-समझने की मूल क्षमता और ख़ुशी की चाहत के आधार पर) एक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं तो वह व्यक्ति भी सम्मानित महसूस करता है। किसी भी व्यक्ति को भेदभाव स्वीकार नहीं होता है। जब भी किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, पद, भाषा, पैसे आदि के आधार पर कोई भेदभाव किया जाता है तो वह बहुत अपमानित महसूस करता है। साथ ही भेदभाव करने वाला व्यक्ति भी कभी अच्छा महसूस नहीं करता है, क्योंकि व्यक्ति-व्यक्ति में समानता प्रकृति के नियम के आधार पर है और प्राकृतिक नियम के विपरीत चलकर कोई भी ख़ुश नहीं रह सकता है। अत: दूसरों के प्रति सम्मान का भाव रखना किसी पर एहसान करना नहीं है बल्कि स्वयं के ख़ुश रहने के लिए एक प्राकृतिक बाध्यता है।
अत: दूसरे इनसान में समानता देखे बिना हम अपने में उसके प्रति सम्मान का भाव महसूस नहीं कर सकते हैं। जब कोई भाव महसूस न हो रहा हो और फिर भी हम उसे व्यक्त करने के तौर-तरीक़े (actions) अपनाते हैं तो उसे ‘दिखावा’ कहते हैं। जैसे- न चाहते हुए भी किसी को माला पहनाना, पैर छूना आदि।
सम्मान का भाव महसूस सभी को एक जैसा ही होता है, लेकिन उसे व्यवहार में व्यक्त करने के तौर-तरीक़े समय, स्थान और संस्कृति के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे- सम्मान के भाव को कोई पैर छूकर, कोई झुककर या किसी अन्य तरीक़े से व्यक्त कर सकता है।
सम्मान के भाव (feeling of respect) को पहचानने (to explore), महसूस करने (to experience) और व्यक्त करने (to express) के लिए निम्नलिखित सत्र (sessions) रखे गए हैं।
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सत्र (Session): 4.1
उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर जाए कि स्वयं के सम्मान की निर्भरता दूसरों पर नहीं है।
समय: प्रत्येक सत्र के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक से दो दिन (अभिव्यक्ति दिन ) का समय निर्धारित किया गया है बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक चलाया जाए।
शिक्षक के लिए नोट : शिक्षक बच्चों का ध्यान इस ओर ले जाएं कि अच्छा और सही काम करना ठीक होता है चाहे उस काम की कोई प्रशंसा करे या न करें। अच्छा और सही काम करके आत्मविश्वास बढ़ता है और मेरी उपयोगिता ही मेरा आत्मसम्मान होता है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
अभिव्यक्ति हेतु प्रश्न:
1. इस सप्ताह आपने घर पर कौन-कौन से काम किए?
2. आप कौन से काम दूसरों के कहने पर करते हैं और कौन से काम अपने आप?
3. कौन-कौन से काम अपने लिए करते हैं और कौन से काम दूसरों के लिए?
4. क्या आपके किसी काम की कभी किसी ने आपकी प्रशंसा की? वह कौन-सा काम था?
5. अपनी प्रशंसा सुनकर आपको कैसा लगा?
6. क्या कभी ऐसा हुआ जब आपने कोई काम बहुत अच्छा किया पर किसी ने आपकी प्रशंसा नहीं की। तब आपको कैसा लगा था?
7. क्या आपने कभी कोई ऐसा काम किया है जिसमें आपकी चाहते थे कि कोई आपकी से प्रशंसा पाने की थी, पर आपकी प्रशंसा नहीं की गई? ऐसे में आपके मन में क्या विचार आए?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस (expression day) पर आप इस बात पर चिंतन और चर्चा (reflection and discussion) करेंगे कि जब भी आप किसी के लिए मददगार होते हैं, उस समय आपको कैसा महसूस (feel) होता है। अत: इस दौरान आप अपने में इसे देखने का प्रयास करें।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की अपनी अभिव्यक्ति के बारे में विचार करें।
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सत्र (Session): 4.2
उद्देश्य (Objective): विद्यार्थियों को दूसरों के प्रति सम्मान का भाव महसूस कराना।
समय: प्रत्येक सत्र के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक से दो दिन (अभिव्यक्ति दिन ) का समय निर्धारित किया गया है बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक चलाया जाए।
शिक्षक के लिए नोट (Note for the teacher): हर व्यक्ति चाहता है कि उसके साथ किसी भी तरह का भेदभाव न किया जाए। इस बात का ध्यान रखकर व्यवहार करना भी सम्मान देना ही है। किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और प्रतिभा को स्वीकार करने पर भी हम उस व्यक्ति के प्रति सम्मान महसूस करते हैं। जिनका हम सम्मान करते हैं, उनके प्रति हमारा व्यवहार स्वनियंत्रित व विनम्र होता है। इस सत्र में विद्यार्थी यह देख पाएँ कि वे किन लोगों के साथ भेदभाव नहीं करते और किन लोगों का सम्मान श्रेष्ठता के आधार पर करते हैं और उनका व्यवहार उनके प्रति कैसा होता है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
अभिव्यक्ति हेतु प्रश्न:
1. आप किसके जैसा आप बनना चाहते हैं? वे कौन हैं? उनकी कौन-सी बातें आपको पसंद आती हैं?
2. किस-किस से आप कुछ सिखाते है? उनकी कौन-सी बातें आपको अच्छी लगती हैं?
3. आप उन लोगों के साथ व्यवहार करते समय किन बातों का ध्यान रखते हैं?
4. क्या कभी ऐसा लगा कि दूसरा व्यक्ति भी आप की तरह सोचता है? वह कौन-सी बात थी? आपका ध्यान दोनों के विचारों की समानता पर जाने पर कैसा लगा?
5. घर पर आपको कौन-कौन अपने जैसा लगता है? उनकी कौन सी बातें आपको अपने जैसी लगती है?
6. क्या कभी आपको लगा कि घर या स्कूल में कोई भी आपकी बात समझता ही नहीं है? ऐसा आपको कब और क्यों लगा?
अगले अभिव्यक्ति दिवस के लिए कार्य (Task for next expression day): अगले अभिव्यक्ति दिवस (expression day) पर आप इस बात पर चिंतन और चर्चा (reflection and discussion) करेंगे कि जब भी आप किसी के लिए मददगार होते हैं, उस समय आपको कैसा महसूस (feel) होता है। अत: इस दौरान आप अपने में इसे देखने का प्रयास करें।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की अपनी अभिव्यक्ति के बारे में विचार करें।
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