Chapter 4: विश्वास


शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
पिछले अध्याय में आपने देखा की :
  • भौतिक दिखावे से हमारे अहंकार का पोषण तो होता है पर इससे स्वयं का विश्वास नहीं बढ़ता। 
  • हमें यह भी पता है की मन की आवश्यकता हैं सुखी होना, और अहंकार के पोषण से हमारा सुख नहीं बढ़ता बल्कि भीतर की असुरक्षा और बढ़ जाती है। इसके लिए विश्वास मुख्य मुद्दा है। विश्वास एक स्वभाव है। स्वभाव कभी भी बताया नहीं जाता वह तो महसूस किया जाता है और यह अंदर से प्रकट होता है ना कि बाहर से आता है। विश्वास सबसे पहले ख़ुद पर होता है, इसे ही आत्मविश्वास कहते हैं। इससे ही हमारे सुख का दरवाज़ा खुलता है। इमर्सन का कथन है- “संसार के सारे युद्धों में इतने लोग नहीं हारते, जितने कि सिर्फ़ घबराहट अर्थात आत्मविश्वास की कमी से।” अत: आत्मविश्वास से ही आप बड़े से बड़ा काम सहज ही कर सकते हैं और अपने ज़िंदगी को आसान बना सकते हैं। इससे हमारी संकल्प शक्ति बढ़ती है, हमारे मन की आवश्यकताओं को पूरा करने में और हमारे संबंधों में तालमेल के लिए भी यह आवश्यक है। इस अध्याय में हम लोग आत्मविश्वास और संबंधों में विश्वास पर चर्चा करेंगे। 
  Section 1: स्वयं के प्रति विश्वास 
  • गतिविधि 1.1: स्वयं के प्रति विश्वास को समझें 
  • गतिविधि 1.2: विश्वास स्थाई चाहिए या कभी-कभी? 
  • कहानी 1.1: अरुणिमा सिन्हा 
Section 2: संबंध में विश्वास 
  • गतिविधि 2.1: संबंध में विश्वास 
  • गतिविधि 2.2: चाहत और योग्यता (Intention and Competence)

Section 1: स्वयं के प्रति विश्वास 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
विश्वास हमारी सबसे बड़ी ज़रूरतों में से एक है हम जो भी काम करते हैं उसमें हमें हमारे ख़ुद के विश्वास की अहम भूमिका होती है हम किसी काम को कैसे करते हैं कितना सफलतापूर्वक करते हैं कितना प्रशिक्षण के साथ करते हैं या उसमें कितनी कमी छोड़ देते हैं यह इसी बात पर निर्भर करता है कि हमारा ख़ुद का विश्वास कितना है हम जो भी काम करते हैं उसमें हमारे ख़ुद के विश्वास की अहम भूमिका होती है हम किसी काम को कैसे करते हैं किसी स्थिति को कैसे हैंडल करते हैं यह हमारे ख़ुद के विश्वास पर निर्भर करता है ख़ुद के प्रति विश्वास यानी स्वयं के प्रति विश्वास इसे हम बोलचाल की भाषा में सेल्फ़ कॉन्फिडेंस भी कहते हैं इस अध्याय में हम इसी पर बात करेंगे।

  गतिविधि 1.1: स्वयं के प्रति विश्वास को समझें 

समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट: स्वयं के प्रति विश्वास यानी आत्मविश्वास, इसे हम सेल्फ़ कॉन्फिडेंस या बोलचाल की भाषा में ख़ुद पर भरोसा भी कहते हैं। आदमी की ज़िंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि "स्वयं के प्रति विश्वास" है। मैं बहुत Power चाहता हूँ, मैं बहुत पैसा चाहता हूँ, मैं बहुत नाम चाहता हूँ, मैं बहुत ज्ञान चाहता हूँ…. आख़िरकार यह सब कुछ …."मेरे भीतर का अधूरापन या जो विश्वास की कमी है (जो डर है), मैं उससे मुक्त होकर आत्मविश्वास से भर जाना चाहता हूँ”, इसलिए है। इस गतिविधि में हम इस पर चर्चा करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे हमारी ख़ुशी हमारे स्वयं के प्रति विश्वास पर निर्भर करती है। 

पहला दिन:
गतिविधि के चरण: 
स्वयं के प्रति विश्वास पर बात करने से पहले बच्चों से “विश्वास” शब्द पर चर्चा करना ठीक रहेगा।
1. विश्वास शब्द से आप क्या समझते हैं?
2. आप कब-कब ख़ुद में विश्वास महसूस करते हैं? (नोट: प्रश्न को ठीक से दोहरा दें। हमारा मकसद है कि बच्चा अपने अंदर से झाँककर बताएँ कि वह कब-कब यह महसूस करता है कि वह विश्वास में है?)
3. आपको अपने ऊपर भरोसा कब-कब रहता है? सवाल एक ही है लेकिन अलग- अलग तरीके से पूछ कर बच्चों को इस सवाल को समझने में मदद कर सकते हैं।
  • बच्चों से मिल रहे जवाबों की सूची भी साथ ही साथ बोर्ड पर संक्षेप में बनाते रहे। 
  • अगर बच्चे अपनी तरफ़ से जवाब न दे सकें तो उनकी थोड़ी मदद करते रहे ताकि वह अपने अंदर से जवाब निकालने की कोशिश कर सकें। प्रश्न को बीच-बीच में दोहराते रहें और कोशिश करें कि बच्चों की तरफ़ से इस सवाल के जवाब में कम से कम 10 -12 बिंदु ज़रूर निकल कर आ जाए। नोट: देखा गया है कि सामान्यता बच्चों की तरफ़ से इस सवाल के बारे में कुछ इस तरह के जवाब आते हैं:- (उनके जवाब इसके अलावा भी हो सकते हैं) 
हम विश्वास में तब होते हैं:- 
1. जब हम पर कोई भरोसा कर रहा होता है अथवा शक नहीं कर रहा होता है।
2. जब हमारे पास किसी समस्या का समाधान होता है।
3. जब हमें अपने सही होने के प्रति भरोसा होता है।
4. जब एक-दूसरे के प्रति लगाव यानी अपनापन होता है।
5. जब दूसरे हम को स्वीकार कर सकते हैं या हमारी प्रशंसा करते हैं।
6. जब हमें पता है कि दूसरे हमारे साथ हैं।
7. जब हम किसी काम को ठीक से कर पाते हैं या पूरा कर पाते है।
8. जब किसी बात की निश्चितता रहती है और हमें लगता है कि हमें जो पता है वह ऐसा ही है।
9. जब दूसरे हम पर विश्वास करते हैं।
10. जब हमारे पास सुविधाएँ होती हैं भौतिक संसाधन होते हैं।
11. जब हम दूसरों से तुलना में अपने आपको ज़्यादा पाते हैं तब उन मोमेंट्स में हमें ख़ुद पर भरोसा लगता है।
12. जब भी हम अपने अंदर किसी अधूरापन को देखते हैं और यह महसूस करते हैं किस कमी के बावजूद हम अपने काम को कर पाएँगे।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. अभी तक हम जिसे विश्वास समझते रहे हैं वह या तो कोई कौशल (skill) है या तो कोई सुविधा। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
2. जब हमारे पास किसी समस्या का समाधान होता है, या हम किसी काम को ठीक से कर पाते हैं तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ जाता है। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
3. अन्य लोगों से तुलना करके ख़ुद को किसी क्षेत्र (रूप,पद,धन,ताकत) में बेहतर पाने पर मेरा ख़ुद पर भरोसा बढ़ जाता है। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
4. जब दूसरे मेरी प्रशंसा करते हैं या दूसरों से अधिक सुविधा या भौतिक संसाधन मेरे पास होता है तो मेरा विश्वास बढ़ जाता है। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।

नोट: बच्चों द्वारा दिए गए उदाहरण का विश्लेषण करें और देखें कि किस तरह विश्वास यानी कॉन्फिडेंस को लेकर तीन रूप हमारे सामने आते हैं, -
1. मेरे अंदर का विश्वास - जैसे जब हमारे पास किसी समस्या का समाधान होता है, या हम किसी काम को ठीक से कर पाते हैं,
2. अन्य लोगों से तुलना में ख़ुद को ज़्यादा पाकर मेरे विश्वास का बढ़ना - इसके तो ढेरों उदाहरण मिल जाएँगे। 
3. ईगो अर्थात मेरे अहंकार की तृप्ति- जैसे दूसरों से मेरी प्रशंसा, या दूसरों से अधिक सुविधा या भौतिक संसाधनों का होना।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
उपर्युक्त उदाहरणों के बारे में बच्चों से कक्षा के बाहर, घर पर या दोस्तों से बातचीत करने को कहा जाए।

इन बिंदुओं पर भी चर्चा करके आने को कहा जाए:- 
  • इनमें से कौन सी स्थिति में महसूस होने वाला विश्वास हमें स्थाई लगता है? 
  • कौन सी स्थिति में मिलने वाला विश्वास हमें अस्थाई लगता है? 
दूसरा दिन: 
बच्चे उपर्युक्त बिंदुओं पर अपने मित्रों, रिश्तेदारों, परिवारजनों से चर्चा करके आए रहेंगे तो अब हम उनसे निम्नलिखित चर्चा करेंगे:-
  • आपने किन-किन लोगों से चर्चा किया? 
  • उन्हें आपके प्रश्न कैसे लगे? 
  • क्या-क्या उत्तर आए? बच्चों से आ रहे उत्तरों को बोर्ड पर लिखते जाएँ। 
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. हमारा सारा विश्वास हमारे skill पर आधारित है। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
2. skill से मिला हुआ विश्वास स्थाई नहीं हो सकता। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
3. दूसरों से तुलना करके मिला हुआ विश्वास भी स्थाई नहीं हो सकता। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
4. हम दूसरों के व्यवहार से प्रभावित होकर अपने विश्वास को बढ़ाना चाहते हैं यह विश्वास भी स्थाई नहीं हो सकता। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
5. जब हम अपने किसी मित्र/संबंधी के पास कोई सामान देखते हैं तो लगता है की काश यह सामान मेरे पास भी होता, तब मेरा विश्वास बढ़ जाता है। सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।

नोट: हम मोटे तौर पर कह सकते हैं कि अभी जिसे हम विश्वास कह रहे हैं वह या तो-
  • कोई कौशल है। जैसे:- इंग्लिश बोलना, हिंदी बोलना, मैथमेटिक्स अच्छा कर लेना, साइंस की कोई समस्या हल कर लेना आदि। 
 या
  • दूसरों से तुलना करना और तुलना करके अपने आपको दूसरों से अधिक पाना। 
या
  • फिर दूसरों के व्यवहार का प्रभाव।  

गतिविधि 1. 2: विश्वास स्थाई चाहिए या कभी-कभी? 

समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट: 
विश्वास हम सबको चाहिए इसके बिना हमारा काम चलना मुश्किल है सवाल यह है कि यह विश्वास हमें स्थाई चाहिए या कभी-कभी? इसका जवाब यही मिलता है की हम सबको अपनी ज़िंदगी में स्थाई विश्वास ही चाहिए, हमारे पास ऐसे उदाहरण नहीं है जिसे हम यह कह सकें कि हमारे ज़िंदगी में स्थाई विश्वास है। हमारी उपलब्धियाँ हमारी सुविधाएँ हमारे भौतिक सामान हमारे रिश्ते…। इन सबमें एक भी मामले में हमारे पास स्थाई विश्वास नहीं है। इस गतिविधि में स्थाई विश्वास पर चर्चा करेंगे। 

पहला दिन: गतिविधि के चरण: 
विश्वास पर चर्चा करते हुए कक्षा में बच्चों से पूछे कि:-
  •  ● क्या वह अपनी बात अपने माता-पिता के साथ खुलकर शेयर कर पाते हैं? अगर वह अपनी बात माता-पिता के साथ खुलकर शेयर नहीं कर पाते हैं तो इसका क्या मतलब है? (उत्तर:- विश्वास में कमी) 
  • ● अगर माता-पिता बच्चों पर शंका करते हैं तो वह क्या है? (उत्तर:- विश्वास में कमी) 
  • ● कोई व्यक्ति रिश्वत माँगता है जबकि उसको अपना घर चलाने के लिए तनख्वाह मिल रही है फिर भी वह रिश्वत क्यों माँगता है? (उत्तर:- क्योंकि उसके अंदर उसके अपने विश्वास में कमी है। उसे यह विश्वास ही नहीं है कि वह अपनी तनख्वाह से अपनी ज़िंदगी चला सकता है।) 
  • ● इसी तरह कोई व्यक्ति अगर अपना काम कराने के लिए किसी सरकारी दफ्तर में रिश्वत देता है तो उसका क्या कारण है? (उत्तर:-यह भी विश्वास में कमी ही है, क्योंकि उसे यह विश्वास ही नहीं है कि वह सही है या उसका काम बिना रिश्वत के हो सकता है।) 
  • ● 2+2 = 4 होता है। यह एक सार्वभौम सत्य है। अगर मेरा इस पर विश्वास है तो अगर कोई दो और दो पाँच बोलेगा तो क्या इससे मेरे विश्वास में कमी आएगी? (शिक्षक के लिए नोट: यदि मैं दूसरों के बोलने से प्रभावित होता हूँ तो इसका मतलब है कि मुझे अपनी ऊपर कॉन्फिडेंस नहीं है।) 
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. अपने अंदर विश्वास में कमी के कुछ उदाहरण क्या-क्या हो सकते हैं?
2. ऐसे कौन-कौन से काम हैं - जो हम करते हैं या करने से डरते हैं या नहीं करते हैं, क्योंकि हमारे विश्वास में कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ कमी है?
3. हम दूसरों के बोलने से प्रभावित होते हैं तो इसका साफ मतलब है कि हमारी स्पष्टता नहीं है हमारे अंदर विश्वास की कमी है। चर्चा करें।
4. विश्वास और स्किल में क्या अंतर है? चर्चा करें।
 5. हम ज़्यादा प्रयास किसके लिए हैं? स्थाई विश्वास के लिए या अस्थाई विश्वास के लिए?
6. अभी हमारी सारी मेहनत किसके लिए है? अहंकार के पोषण के लिए या स्थाई विश्वास के लिए?

नोट:- विश्वास के रूप हैं-
  • मेरे अंदर का विश्वास 
  • दूसरों की तुलना में मेरा विश्वास 
  • और तीसरा इगो है अर्थात अहंकार
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह क्लास के बाद या घर पर इन बिंदुओं के बारे में मंथन और चर्चा करें। जैसे-
  • स्थाई विश्वास से हमारा क्या मतलब है? 
  • क्या स्थाई विश्वास माता-पिता के पास है? 
  • क्या स्थाई विश्वास बच्चों के पास है? 
दूसरा दिन : 
1. बच्चों से चर्चा किया जाए कि स्थाई विश्वास का थोड़ा बहुत आभास हमें है, जैसे -
  • मेरी भौतिक आवश्यकताएँ पूरी हो जाए- (उदाहरण:-मुझे दो शर्ट दो पैंट चाहिए, चार हो जाएँ तो मैं कॉन्फिडेंस महसूस करता हूँ। मुझे आने-जाने के लिए गाड़ी चाहिए, मेरे पास गाड़ी हो जाए तो मुझे ठीक लगता है। मुझे अच्छे कॉलेज में एडमिशन चाहिए, मेरा एडमिशन हो जाता है तो मुझे अच्छा लगता है। मुझे अच्छी जॉब चाहिए, जॉब मिल जाता है तो मुझे अच्छा लगता है।) 
  • यह सब अस्थाई ही है। यह हो भी जाए तो इसका मतलब यह नहीं है कि ज़िंदगी ठीक हो गई। 
2. हम अपने दिमाग़ का इस्तेमाल कहाँ कर रहे हैं- रूप कैसे अच्छा किया जाए? बल कैसे बढ़ाया जाए? धन कैसे बढ़ाया जाए? पद कैसे बढ़ाया जाए? इन सबमें इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि बुद्धि हमें स्थाई विश्वास देने के लिए है। ऐसा विश्वास जिसे पाने के बाद हम अपने आप में पूर्ण महसूस करते हैं। दूसरों से तुलना करके जीने की ज़रूरत महसूस नहीं करते हैं।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
  • मैं कैसे पहचानूँ कि मेरे पास स्थाई विश्वास है कि नहीं है। मैं कैसे समझूँ? 
  • मेरे अंदर विश्वास में कमी है। मैं इसको कैसे पहचान पाता हूँ? (नोट:- तीन चीजें हैं- भूतकाल की पीड़ा, वर्तमान से विरोध, भविष्य की चिंता। यदि हम इन तीनों से मुक्त हो जाएँ तो यही स्वयं के प्रति विश्वास है।) 
  • ऐसा कितने लोग हैं कि जो भूतकाल की पीड़ा में जी रहे हैं? (जैसे:- किसी ने हमसे ऐसा व्यवहार किया जो आज तक हम भूले नहीं। वह चाहे दोस्तों का हो, माता-पिता का हो या टीचर्स का हो। वह भले ही हमने किसी को बताया हो या न बताया हो। कितने लोगों के साथ ऐसा होता है?) 
  • 14 -15 साल की ज़िंदगी में आपके साथ ऐसा कुछ हुआ है जिसे याद करके आप अभी भी परेशान होते हैं। वह किन लोगों के कारण हुआ था? वे अपने थे कि पराये थे? (नोट:- यहाँ पर बच्चों को प्रेरित करें कि भूतकाल की पीड़ा के कुछ उदाहरण क्लास में शेयर करें। यह कोई घटना भी हो सकती है और कोई व्यवहार भी। यह किसी मित्र या परिवार के सदस्य द्वारा किया गया व्यवहार, दिया गया धोखा, कही गई कोई कड़वी बात, कोई दुर्घटना, कोई भी ऐसी घटना जिसको हम अकसर याद करते रहते हैं और उसे याद करके दु:खी होते रहते हैं। या हाल फिलहाल में घटी कोई ऐसी घटना जो हमारे ध्यान में रह रहकर आती है और हमें असहज महसूस कराती है।) 
  • ऐसा कितने लोगों के साथ है कि वह वर्तमान से विरोध में जी रहे हैं? (जैसे:- माँ-बाप सोचते हैं कि बच्चे हमारी बात नहीं सुनते। बच्चे सोचते हैं कि माँ-बाप हमारी बात नहीं सुनते। छात्रों को प्रॉब्लम है कि जिस विषय में उनकी दिलचस्पी नहीं है उसे भी पढ़ना पड़ता है। समाज की बहुत सारी ऐसी चीजें जो हमें स्वीकार नहीं है, लेकिन समाज में रहने के लिए हमें स्वीकार करनी पड़ती हैं। कोई व्यक्ति आपको अच्छा नहीं लगता। कोई दोस्त आपको अच्छा नहीं लगता। आपके मम्मी-पापा या अपने परिवार के किसी सदस्य का व्यवहार आपको अच्छा नहीं लगता।) 
  • आपकी अपने भविष्य की चिंताएँ क्या-क्या हैं? (जैसे:- जो आपकी अपनी चिंताएँ हैं जॉब, कॉलेज, आईआईटी में जाना, कॉलेज में एडमिशन इत्यादि।) 
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
बच्चों से कहा जाए कि घर पर किसी समय शाम को, रात को या सुबह बैठकर 5 मिनट माइंडफुलनेस का अभ्यास करें और बैठकर सोचें कि-
  • मेरी अपनी भूतकाल की पीड़ा क्या-क्या है? 
  • मेरा अपना वर्तमान से किस-किस बात को लेकर संघर्ष है? 
  • मेरी भविष्य की चिंता क्या क्या है? कोशिश करें कि उसकी सूची अपनी नोटबुक में बना लें। अपने लिए बना लें और उन्हें आश्वस्त कर दें कि यह आपके अपने लिए है। इसे क्लास में शेयर नहीं किया जाएगा और न ही पूछा जाएगा, लेकिन अपने लिए लिख ज़रूर लें। अगर आपका शेयर करने का मन होगा तो ही शेयर किया जाएगा।
कहानी 1.1: अरुणिमा सिन्हा

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान स्वयं के प्रति विश्वास के महत्व की ओर ले जाना और शारीरिक बल एवं मनोबल की ओर ध्यान ले जाना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी: 
अरुणिमा सिन्हा उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की निवासी हैं और 2012 से केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में सेवारत है। वह राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबाल खिलाड़ी रही हैं। अप्रैल 2011 में लखनऊ से दिल्ली जाते समय बरेली के निकट ट्रेन में कुछ लोगों ने उनका बैग और सोने की चेन खींचने का प्रयास किया। अरुणिमा ने उनका डटकर मुकाबला किया, लेकिन उन्हें ट्रेन से बाहर धक्का दे दिया गया जिसके कारण उसने अपना एक पैर गँवा दिया।
अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई को छूने का मन बना लिया था। इसके लिए उसे ऊर्जा देने का काम एक टी वी शो “टू डू समथिंग” ने किया था। अरुणिमा को बड़ी प्रेरणा क्रिकेटर युवराज सिंह से मिली, जिन्होंने कैंसर जैसी बीमारी को हराकर फिर से अपने देश के लिए खेलने का ज़ज़्बा दिखाया था। बछेंद्री पाल ने अरुणिमा से कहा था, “अरुणिमा तुमने इस हालत में एवरेस्ट श्रृंखला की ऊँचाई को छूने का मन बना लिया है अब तो सिर्फ़ लोगों को दिखाना रह गया है।” शारीरिक चुनौती और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावज़ूद अरुणिमा ने गज़ब के साहस का परिचय दिया। 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को फ़तह कर एक नया इतिहास रचा। अरुणिमा के मज़बूत इरादों ने उन्हें यहीं नहीं रुकने दिया। उसने सातों महाद्वीपों की सबसे ऊँची पर्वत चोटियों को फ़तह कर दुनिया को मन की ताकत से अवगत करा दिया। पहली भारतीय दिव्यांग महिला का यह रिकार्ड सभी के लिए प्रेरणा बन गया।

  पहला दिन: चर्चा के लिए प्रश्न: 
1 . किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए केवल शरीर की ताकत की आवश्यकता होती है या मन की ताकत की भी आवश्यकता होती है? चर्चा करें।
2.क्या दूसरे ही हमारा मनोबल बढ़ा सकते हैं या हम स्वयं भी अपना मनोबल बढ़ा सकते हैं? चर्चा करें।

  घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
  • ऐसे व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र करें जिन्होंने शारीरिक चुनौतियों के बावजूद ऐसी उपलब्धियाँ हासिल की है जिसके लिए सामान्यतया लोग प्रयास भी नहीं करते हैं? कक्षा में साझा करें। 
   दूसरा दिन: 
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. सभी में सोचने-समझने की असीम मानसिक क्षमाताएँ होने के बावज़ूद सभी लोग बड़ी उपलब्धियाँ हासिल क्यों नहीं कर पाते?
2. शारीरिक ताकत अधिक होने के बाद भी कुछ लोग बड़ी उपलब्धियाँ हासिल क्यों नहीं कर पाते?
3. आपने अपने मन की ताकत के आधार पर क्या करने के किए सोचा है? कक्षा में सभी के साथ साझा करें।
4. कुछ लोग परिस्थितियों में थोड़ा सा बदलाव होते ही परेशान हो जाते हैं, किंतु कुछ लोग परिस्थितियों के विपरीत होने पर भी सफलता प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा होने के कौन-कौनसे कारण हो सकते हैं? चर्चा करें।

चर्चा की दिशा अकसर यह देखने में आता है कि कुछ लोग शारीरिक ताकत कम होने के बावज़ूद अपने मजबूत मनोबल से अपनी सभी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और समय आने पर बड़ी उपलब्धियाँ भी हासिल कर लेते हैं, जैसे- हेलेन केलर, स्टीफन हॉकिंग और सुधा चंद्रन आदि। वहीं कुछ लोग शारीरिक ताकत अधिक होने पर भी प्रतिकूल परिस्थितियों में बहुत अधिक चिंतित हो जाते हैं। ऐसे लोग अपनी क्षमताओं से अवगत नहीं होते हैं। इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों का ध्यान मन की ताकत की ओर दिलाने का प्रयास किया गया है ताकि बच्चों को यह स्पष्ट हो जाए कि शारीरिक बल और मनोबल दो अलग-अलग वास्तविकताएँ हैं। इससे प्रत्येक विद्यार्थी में यह भरोसा जगेगा कि वे अपने मन की ताकत से जीवन में सभी कार्यों में सफलताएँ हासिल कर सकते हैं, फिर चाहे शारीरिक ताकत कम ही क्यों न हो।  

Section 2: संबंध में विश्वास शिक्षक के संदर्भ के लिए: आदमी-आदमी के बीच संबंध का आधार, अपनेपन का आधार सुविधा और पैसा नहीं है। वजह साफ है कि जब रिलेशन (संबंध) समझ में आता है तो पैसा उतना महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है, और जब तक रिलेशनशिप समझ में नहीं आता अर्थात जहाँ संबंध में विश्वास नहीं है तो वहाँ पैसा महत्वपूर्ण हो जाता है। जहाँ संबंध में कमी है वहाँ उसे हम पैसे से भरने की कोशिश करते हैं। जहाँ संबंध है, संबंध में विश्वास है वहाँ हमें बीच में पैसे को लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। अमीर परिवार हो या गरीब परिवार, सब अपने बच्चों को अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार सुविधाएँ और सामान उपलब्ध कराते ही हैं।

गतिविधि 2.1: संबंध में विश्वास 
उद्देश्य: बच्चे स्वयं में विश्वास को समझते हुए संबंध में विश्वास को समझ सकेंगे
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

गतिविधि के चरण: कक्षा में शिक्षक द्वारा निम्नलिखित प्रश्नों पर बच्चों के साथ बातचीत किया जाएगा:
1. अपने संबंधियों या पारिवारिक संबंधियों की एक सूची बनाइए जिनसे संबंध पैसे या किसी सुविधा के लिए हैं। 
2. अब दूसरी सूची बनाइए जिनसे संबंध का आधार पैसा या कोई सुविधा/ सामग्री नहीं है बल्कि कुछ और ही आधार है। उस आधार का भी उल्लेख करिए।
3. दोनों में से कौनसे संबंधी से मिलने पर आपको ज़्यादा संतुष्टि होती है? कारण भी बताएँ।
4. दोनों में से कौनसा संबंध लंबे समय तक निभाने की संभावना है? क्यों?

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. संबंध का आधार विश्वास है या पैसा? चर्चा करें।
2. क्या यह कह सकते हैं कि जो परिवार अपने बच्चों पर ज़्यादा पैसा खर्च करते हैं उनके अपने बच्चों से संबंध ज़्यादा मधुर रहेंगे? चर्चा करें।
3. क्या यह कहा जा सकता है कि ज़्यादा पैसा या सुविधाएँ उपलब्ध कराने के आधार पर उन परिवारों में बच्चों से संबंध भविष्य में ज़्यादा अच्छे रहेंगे? चर्चा करें।
4. परिवार में संबंध के अपनेपन का आधार पैसा नहीं होता है। कैसे? चर्चा करें।
5. पैसा शरीर को जिंदा रखने के लिए हमारी ज़रूरत है लेकिन पैसा संबंधों को बनाए रखने के लिए अनिवार्य नहीं है। कैसे? चर्चा करें।
6. हम किसी के रूप,रंग, धन या पद को देखकर दोस्त नहीं बनाते, बल्कि व्यवहार को देखकर दोस्त बनाते हैं। सहमत/असहमत। चर्चा करें।

शिक्षक की स्पष्टता हेतु नोट: हमारे पास एक भी संबंध नहीं है जो हमेशा एक जैसा चलता हो। संबंधों में उतार चढ़ाव को हमने नियति मान रखा है। एक भी संबंध ऐसा नहीं है जो गिला शिकवा शिकायत से मुक्त हो। सामान्य बातचीत में हम यह भी कह देते हैं कि जहाँ दो बर्तन रहेंगे तो खटकेंगे ही। यह हमारी अयोग्यता को सही ठहराने का एक बहाना है। हमारा सारा ज्ञान यहां आकर शून्य हो जाता है। हम संबंध को ढोते रहते हैं। हमारे दु:खों का बड़ा भाग हमारे स्वयं में विश्वास का ना होना है और संबंध में विश्वास का न होना है। विश्वास शब्द हमारे पास पहले भी था, लेकिन अभी तक हम जिसे विश्वास कह रहे थे वह या तो कौशल पर आधारित था या आस्था पर। जैसे पानी पीते हैं, पानी के नाम पर हम कुछ भी पीते रहें, लेकिन प्यास नहीं बुझेगी वैसे ही विश्वास के नाम पर हम कुछ भी करते रहे लेकिन विश्वास नहीं मिला। शब्द के पीछे का अर्थ बहुत ज़रूरी है। पानी बोलने से प्यास नहीं बुझती बल्कि पानी पीने से ही प्यास बुझती है। यदि मैं विश्वास को समझता हूँ तो उसको जी सकता हूँ वरना हम विश्वास पर कितनी ही बात करें विश्वास से जीना नहीं बनता।



गतिविधि 2.2: चाहत और योग्यता (Intention and Competence) 

गतिविधि का उद्देश्य: चाहत और योग्यता में अंतर समझकर विद्यार्थियों को अपनी चाहत के अनुसार योग्यता बढ़ाने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट: हम सबकी ‘चाहत’ अर्थात् जो हम चाहते हैं और ‘योग्यता’ अर्थात् जैसे अभी हम हैं, में अंतर होता है। इसके कारण हमारी कथनी और करनी में अंतर होता है। यदि हमें यह समझ आ जाए कि हमारी तरह दूसरों की भी चाहना और योग्यता में अंतर है, तो हम उनके भाव भली प्रकार समझ पाएँगे और संबंधों में दूरी नहीं बढ़ेगी। मूल रूप से हम सभी की चाहत हमेशा ख़ुश रहने की है। इसी तरह हमारी चाहत दूसरों को भी ख़ुश रखने की रहती है, लेकिन हम हमेशा ख़ुश नहीं रह पाते हैं और न ही दूसरों को हमेशा ख़ुश रख पाते हैं, क्योंकि ऐसा करने की योग्यता नहीं है।

गतिविधि के चरण: 
  • शिक्षक नीचे दी गई प्रश्न तालिका को बोर्ड पर बनाए।

(A)      
उत्तर
(B)        
उत्तर
1A. क्या मैं ख़ुश रहना चाहता हूँ?
2A. क्या मैं दूसरे को ख़ुश रखना चाहता हूँ?
3A.  क्या दूसरा ख़ुश रहना चाहता है?
4A. क्या दूसरा मुझे ख़ुश रखना चाहता है?

1B. क्या मैं हमेशा ख़ुश रह पाता हूँ?
2B. क्या मैं हमेशा दूसरे को ख़ुश रख पाता हूँ?
3B. क्या दूसरा हमेशा ख़ुश रह पाता है?
4B. क्या दूसरा हमेशा मुझे ख़ुश रख पाता है?


  • विद्यार्थी प्रश्नों को अपनी कॉपी में लिखकर इनके आगे हाँ (yes), नहीं (no) या संदेह (doubt) लिखें। 
  • सभी विद्यार्थियों द्वारा उत्तर लिखने के बाद शिक्षक भाग A से शुरू करते हुए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर सामूहिक रूप से पूछते हुए उत्तरों को प्रश्नों पीछे लिखे। 
  • अब विद्यार्थियों से दोनों भागों के उत्तरों की तुलना करने को कहें। 
  • अंत में दोनों भागों के प्रश्नों के ऊपर शीर्षक लिखते हुए चाहत (intention) और योग्यता (competence) में अंतर स्पष्ट करें:-

(A)           चाहत (Intention)
(B)           योग्यता (Competence)
1A. क्या मैं ख़ुश रहना चाहता हूँ?
2A. क्या मैं दूसरे को ख़ुश रखना चाहता हूँ?
3A.  क्या दूसरा ख़ुश रहना चाहता है?
4A. क्या दूसरा मुझे ख़ुश रखना चाहता है?
1B. क्या मैं हमेशा ख़ुश रह पाता हूँ?
2B. क्या मैं हमेशा दूसरे को ख़ुश रख पाता हूँ?
3B. क्या दूसरा हमेशा ख़ुश रह पाता है?
4B. क्या दूसरा हमेशा मुझे ख़ुश रख पाता है?

भाग A: चाहत (Intention/जीने की प्राकृतिक अपेक्षा): जैसा हम वास्तव में होना चाहते है।
भाग-B: योग्यता (Competence/जीने का सामर्थ्य): जैसे अभी हम हैं। प्राकृतिक रूप से हम सभी की चाहत हमेशा ख़ुश रहने की है। इसी तरह हमारी चाहत दूसरों को भी ख़ुश रखने की रहती है, लेकिन हम हमेशा ख़ुश नहीं रह पाते हैं और न ही दूसरों को हमेशा ख़ुश रख पाते हैं क्योंकि ऐसा करने की योग्यता नहीं है। जैसे:- कोई व्यक्ति कार चलाना अभी बिलकुल भी नहीं जानता है, लेकिन उसकी चाहत है कि वह एक अच्छा ड्राइवर हो। इस चाहत के लिए उसे ट्रैफिक नियमों और गाड़ी के बारे में जानकारी लेकर किसी के मार्गदर्शन में अभ्यास करना पड़ेगा। समझकर अभ्यास करने से गाड़ी चलाने की योग्यता का विकास होगा तभी वह अच्छे से गाड़ी चला पाएगा। अत: कोई काम केवल चाहने से नहीं होता है उसके लिए योग्यता का विकास कर प्रयास भी करना होता है।
  • चाहत और योग्यता में अंतर स्पष्ट करने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों पर चर्चा करें। 
दूसरा दिन: 
  • शिक्षक द्वारा दोनों चरणों के प्रश्नों को बोर्ड पर फिर से लिखा जाएगा और विद्यार्थियों से इनके जवाबों पर चर्चा किया जाएगा।
  • अंत में पहले चरण के प्रश्नों के ऊपर चाहत (Intention) और दूसरे चरण के प्रश्नों के ऊपर योग्यता (competence) लिखकर इनके अंतर को और स्पष्ट किया जाएगा। इसके लिए शिक्षक कथन में दिया गया कार ड्राइवर का उदाहरण या कोई अन्य उदाहरण भी लिया जा सकता है। 
  • भाग A: चाहत (Intention): जैसा हम होना चाहते हैं। 
  • भाग-B: योग्यता (Competence): जैसे अभी हम हैं। 
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. अपनी एक चाहत बताइए जिसे पूरा करने की अभी आपकी योग्यता नहीं है?
2. काम चाहत के अनुसार होता है या योग्यता के अनुसार होता है?
3. योग्यता के विकास के लिए क्या करना पड़ता है?
4. हमारी कथनी और करनी में अंतर क्यों होता है?
5. जिसकी कथनी और करनी में अंतर होता है, क्या उस पर विश्वास किया जा सकता है?
6. विश्वास के योग्य बनने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
7. ‘मैं वैसा नहीं हूँ जैसा बोलता हूँ? मैं वैसा हूँ जैसा करता हूँ?’ इस पर कक्षा में चर्चा कराई जाए।

क्या करें और क्या न करें: 
  • विद्यार्थियों को सोचने और अभिव्यक्त करने के अधिकाधिक अवसर दिए जाएँ। 
  • शिक्षक द्वारा अपनी तरफ़ से सही निष्कर्ष न दिया जाए बल्कि विद्यार्थियों से ऐसे प्रश्न किए जाएँ कि वे स्वयं सही निष्कर्ष तक पहुँच सकें।


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