शिक्षक के संदर्भ के लिए: अभी तक के अध्याय में हमने समझा है कि: ● हम सब ख़ुश रहना चाहते हैं। ● हमारा मन ख़ुशी की अवस्था में तब होता है जब हमारी आवश्यकताएँ पूरी हो रही होती हैं। अब इस अध्याय में हम हमारी आवश्यकतायों को बेहतर समझेंगे और इस बात की खोज गहराई से करेंगे की हमारी आवश्यकताओं की सीमा क्या है। अपनी आवश्यकताओं को हम दो प्रकार में बाँट सकते हैं। पहली, भौतिक (सामान की) आवश्यकताएँ जैसे:- खाना, कपड़े, पेन, पुस्तक, साइकिल, घर, पानी, सड़क, बिजली, पेड़-पौधे आदि। दूसरी, संबंध या भाव की जैसे सम्मान, विश्वास, स्नेह, दया इत्यादि जो हमें हमारे मम्मी, टीचर या मित्रों से प्राप्त होता है। ये दोनों प्रकार की आवश्यकताएँ पूरी किए बिना हमें अधूरापन लगा ही रहता है। इन्हें समझकर हम अपने बारे में और स्पष्टता से समझ सकते हैं की हम चाहते क्या हैं। यह समझ बन गई तो अपनी आवश्यकताओं को कैसे पूरा करना है, इस पर विचार किया जा सकता है। इस अध्याय में हम इन आवश्यकताओं को समझते हैं।
Section 1: आवश्यकताओं की समझ
- गतिविधि 1.1: हमारी आवश्यकताएँ
- गतिविधि 1.2: हमारी आवश्यकताओं में अंतर - मात्रा (quantity) के आधार पर
- गतिविधि 1.3: हमारी आवश्यकताओं में अंतर - समय अवधि के आधार पर
- गतिविधि 2.1: क्या आवश्यकताएँ असीम और साधन सीमित?
- कहानी 2.1 कितनी ज़मीन
Section 1: आवश्यकताओं की समझ
शिक्षक के संदर्भ के लिए:
● हम मूलतः गलती करना नहीं चाहते हैं। हम जो भी करते हैं ख़ुश होने के लिए करते हैं।
● ख़ुश हम तब ही होंगे जब हमारी आवश्यकताएँ पूरी होंगी।
● आवश्यकताएँ पूरी होने से हम ग़लतियाँ करना नहीं चाहेगा।
● हमारी आवश्यकताएँ दो प्रकार की होती हैं। एक-भौतिक जो कि शरीर की होती है, दूसरी -भाव जो मन (स्वयं, self, mind) के लिए होती है। इसे इस गतिविधि के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं :-
गतिविधि 1.1: हमारी आवश्यकताएँ
गतिविधि का उद्देश्य: विद्यार्थियों में यह स्पष्ट हो जाए कि हम सब की दो तरह की आवश्यकताएँ हैं - शरीर की और मन की।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
गतिविधि के चरण:
1. शिक्षकों से अनुरोध है कि इस गतिविधि को बच्चों के बीच आवश्यकताओं पर चर्चा से शुरू करें, जैसे- हम सबकी बहुत सारी ज़रूरते हैं। सबकी अलग-अलग आवश्यकताएँ होती हैं। आप लोग को क्या लगता है, क्या हैं वह आवश्यकताएँ?
2. यह चर्चा 2-4 मिनट करें इसके बाद चर्चा को इस सामान्य प्रचलित वाक्य पर लाएँ कि इंसान की आवश्यकताएँ असीमित हैं और उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता है। बच्चों से पूछें कि क्या उन्होंने यह वाक्य सुना है। 1-2 मिनट इस पर भी लगा सकते हैं कि अगर सुना है तो कहाँ सुना है, किससे सुना है?
3. इसके बाद बच्चों से कुछ समय यह भी चर्चा करें कि वे इस बात से सहमत हैं या असहमत हैं। अगर सहमत हैं तो क्यों? और असहमत हैं तो क्यों? दोनों ही पक्ष में कम से कम 3-4 बच्चों से इस पर ज़रूर बुलवाएँ।
4. अब इस चैप्टर के मूल बिंदू पर आएँ और सवाल करें कि क्या कभी किसी ने अपनी आवश्यकताओं को गिना है, क्या कभी किसी ने अपनी आवश्यकताओं की कोई सूची बनाई है? यदि नहीं, तो चलिए आज अपनी आवश्यकताओं को गिनते हैं और उनकी सूची बनाते हैं।
5. सभी विद्यार्थियों से कहें कि अपनी नोटबुक में अपनी समझ के अनुसार अपनी-अपनी आवश्यकताओं की सूची बनाने का प्रयास करें। विद्यार्थियों को 5-7 मिनट देकर उनसे पूछें कि उन्होंने क्या-क्या लिखा है और उसके सारांश रूप में विद्यार्थियों के बोलने के साथ-साथ बोर्ड पर आवश्यकताओं की एक सूची बनाते चले जाएँ। इस बात का ध्यान रखें कि बोर्ड की सूची में दोहराव न हो।
- विद्यार्थी यदि केवल भौतिक आवश्यकता ही लिखे हों तो उन्हें भाव वाली आवश्यकताएँ, जैसे- विश्वास, सम्मान, स्नेह, पहचान, यश, प्यार, सुरक्षा आदि की तरफ़ भी ध्यान ले जाकर उन्हें भी सूची में शामिल करना ठीक रहेगा।
- अब शिक्षक विद्यार्थियों से पूछकर सामान से संबंधित ज़रूरतों पर गोल घेरा लगाएँ।
- विद्यार्थियों से यह पूछना ठीक रहेगा कि बाकी ज़रूरतें किसकी हैं? (संभावित उत्तर:- “मन की”। यदि विद्यार्थियों से यह उत्तर न निकले तो शिक्षक द्वारा ही बता दिया जाए।)
- क्या आप सभी पहचान पा रहे हैं कि आपकी सारी आवश्यकताएँ इन दो श्रेणियों (शरीर और मन) में ही हैं? या कोई अन्य श्रेणी भी हो सकती है? चर्चा करें।
- अपने दैनिक जीवन में हम सामान की ज़रूरतों के लिए ज़्यादा समय देते हैं या मन की ज़रूरतों के लिए?
- इन आवश्यकताओं में आपको क्या-क्या अंतर दिखते हैं? - मात्रा के आधार पर? - समय के आधार पर? शरीर और मन की आवश्यकताओं में समय और मात्रा के आधार पर अंतर है, इसे हम निम्नलिखित गतिविधि से स्पष्ट कर सकते हैं :
गतिविधि 1.2: हमारी आवश्यकताओं में अंतर - मात्रा (quantity) के आधार पर
गतिविधि का उद्देश्य: पिछली गतिविधि में हमनें समझा कि हमारी आवश्यकताओं को हम दो हिस्सों में बाँट सकते हैं। सामान से संबंधित आवश्यकताएँ और मन से संबंधित आवश्यकताएँ। इस गतिविधि का उद्देश्य छात्रों को यह समझने में मदद करना कि सामान से संबंधित आवश्यकताएँ मात्रात्मक हैं (quantitative) अर्थात जिन्हें हम गिन सकते हैं, नाप सकते हैं, तौल सकते है, जबकि मन की आवश्यकताएँ गुणात्मक (qualitative) हैं अर्थात जिन्हें हम गिन, नाप और तौल नहीं सकते हैं।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
गतिविधि के चरण:
1. कक्षा को छोटे समूहों में बाँट सकते हैं प्रत्येक समूह में 5 से 6 विद्यार्थी रखना ठीक रहेगा।
2. शिक्षक द्वारा बोर्ड पर प्रश्न लिख कर विद्यार्थियों को अपने समूह में 5 मिनट तक उन पर चर्चा करके उत्तर लिखने को कहना चाहिए -
- आपको कितने स्कूल यूनिफार्म की आवश्यकता है?
- दिन में कितना पानी पीते हैं?
- घर में कितने पंखें चाहिए?
- कक्षा में कितनी कुर्सियाँ चाहिए?
- दिल्ली में कितनी बसें होनी चाहिए?
- स्कूल में कितने गार्ड चाहिए?
- माँ का प्यार कितना चाहिए?
- दोस्तों के साथ कितना मज़ा आना चाहिए?
- आपको सम्मान कितना चाहिए?
- दूसरा आप पर कितना विश्वास करे?
- भाई-बहन के बीच कितना स्नेह चाहिए?
- आप अपने दादा-दादी का कितना ध्यान रखते हैं?
5. शिक्षक विद्यार्थियों से इन दोनों प्रकार के प्रश्नों में अंतर पूछकर तथा उस पर ध्यान आकर्षण करने के लिए निम्नलिखित प्रश्नो पर चर्चा करा सकते हैं:
चर्चा के लिए प्रस्तावित बिंदु:
1. इनमें से किन-किन चीज़ों को मापा जा सकता है?
2. इनमें से किन-किन चीज़ों को मापा नहीं जा सकता?
3. इनमें से किन-किन चीज़ों को इन्द्रियों से पहचाना जा सकता है- अर्थात सूंघकर/छूकर/ देखकर/सुनकर या चखकर पहचाना जा सकता है?
4. इनमें से किन-किन चीज़ों को इन्द्रियों से नहीं पहचाना जा सकता? फिर इन्हें कैसे पहचाना जा सकता है? (उत्तर :-इन्हें महसूस कर पाते हैं - भाव या feelings के रूप में)
दूसरा दिन अथवा आगे
1. उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर पर चर्चा करने के पश्चात शिक्षक कृपया बोर्ड पर दो कॉलम बना दें।
जिन्हें मापा
जा
सकता
है
|
जिन्हें मापा
नहीं
जा
सकता
|
जिन्हें इन्द्रियों
से
पहचान
सकते
हैं
|
जिन्हें इन्द्रियों
से
नहीं
पहचान
सकते
/ महसूस
कर
सकते
हैं
|
2. विद्यार्थियों से पूछा जाए कि बाएँ वाले कॉलम को क्या नाम दें और दाएँ वाले कॉलम को क्या नाम दें?
भौतिक
आवश्यकताएँ (physical)
|
अभौतिक(भाव) आवश्यकताएँ (non-physical)
|
जिन्हें मापा
जा
सकता
है
|
जिन्हें मापा
नहीं
जा
सकता
|
जिन्हें इन्द्रियों
से
पहचान
सकते
हैं
|
जिन्हें इन्द्रियों
से
नहीं
पहचान
सकते
/ महसूस
कर
सकते
हैं
|
चर्चा के लिए कुछ अन्य बिंदु:
1. भौतिक आवश्यकता शरीर की होती है या मन की? (उत्तर: शरीर)
2. अभौतिक (भाव की) आवश्यकता शरीर की होती है या मन की? (उत्तर: मन)
3. भौतिक आवश्यकता को मापा जा सकता है। पर क्या इसकी मात्रा सबके लिए एक जैसी होती है या अलग-अलग? जैसे - रोटी की आवश्यकता हर व्यक्ति की एक जैसी होती है या अलग-अलग?
4. कोई ऐसी अभौतिक (भाव की) आवश्यकता है जिसकी हम मात्रा तय कर सकते हैं? (उत्तर: नहीं) अब टेबल इस प्रकार होगा:-
भौतिक
आवश्यकताएँ =
शरीर
|
अभौतिक
आवश्यकताएँ = मन
|
मापा जा
सकता
है
|
मापा नहीं
जा
सकता
|
इन्द्रियों से
पहचान
सकते
हैं
|
इन्द्रियों से
नहीं
पहचान
सकते
/ महसूस
कर
सकते
हैं
|
** विद्यार्थी जब उपरोक्त गतिविधि कर लेंगे तो अब उनका ध्यान यहाँ पर ले जाना ठीक रहेगा कि जिन आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए हम लगे रहते हैं उनमें समय अवधि के आधार पर भी अंतर होता है। क्या हम इसे पहचान पाते हैं? अब इस गतिविधि को कराके पहचानने की कोशिश करते हैं।
गतिविधि 1.3: हमारी आवश्यकताओं में अंतर - समय अवधि के आधार पर
गतिविधि का उद्देश्य: इस गतिविधि का उद्देश्य भी छात्रों की इस समझ को और गहरा करना है कि हमारी आवश्यकताएँ दो तरह की हैं - सामान की और मन की अर्थात बौद्धिक और भाव की। इस गतिविधि के माध्यम से हम छात्रों की यह समझ बनाने में मदद करेंगे कि सामान की आवश्यकताएँ यानी भौतिक आवश्यकताएँ समय समय पर (जब ज़रूरत हो तब) पड़ती है जबकि मन की आवश्यकताएँ लगातार होती हैं।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
गतिविधि के चरण:
1. शिक्षक क्लास रूम में बच्चों को दिये जाने के लिए कागज की छोटी-छोटी पर्चियाँ बनायें यह सुनिश्चित कर लें कि पर्चियों की संख्या विद्यार्थियों की संख्या से कम न हो।
2. हर पर्ची पर शिक्षक कोई एक आवश्यकता लिखे। यह आवश्यकता भौतिक भी हो सकती है या फिर मन की भी, परंतु एक पर्ची पर एक ही आवश्यकता लिखें। आवश्यकताओं के कुछ उदाहरण यह हो सकते हैं - खाना, पानी, हवा, गाड़ी, पैसा, घूमना, सुरक्षित होना, बुद्धिमान होना, famous होना, प्यार, दूसरों की मदद करना, बड़ी गाड़ी, बड़ा मकान, burger, pizza, ख़ुशी, शांति, computer, bike, smartphone, laptop, earrings, हर दिन फिल्म देखना, AC, wrist watch, new bag इत्यादि।
3. इन सभी पर्चीयों को एक टेबल पर रख दें और बिना किसी नियम के एक-एक बच्चे को एक-एक पर्ची उठाने को कहें।
4. सभी विद्यार्थियों को कहें कि पर्ची में लिखी आवश्यकता को पढ़ें और यह तय करें कि यह आवश्यकता मन से संबंधित है या फिर सामान से संबंधित है। अब क्लास रूम में दो अलग-अलग कोने निर्धारित कर दें और एक कोने में मन की आवश्यकता वाली पर्ची वाले बच्चों को इकट्ठे होने को कहें और दूसरे कोने में सामान की आवश्यकता वाली पर्ची वाले बच्चों को समूह में इकट्ठे होने को कहें।
5. 10 मिनट के लिए वे अपने अपने ग्रुप में अपनी पर्चियाँ शेयर करें और बताएँ की उनको क्यों लगता है की उनकी आवश्यकता उन्हें हर समय चाहिए होती है या फिर समय-समय पर। जैसे - ‘भोजन’ -- समय समय पर चाहिए - क्यों कि हर समय भोजन खाना संभव नहीं है - हर समय खाएँगे तो बीमार हो जाएँगे। ‘सम्मान’ - हमेशा चाहिए - किसी भी समय हम अपमान नहीं चाहते।
6. चर्चा के बाद अगर ग्रुप में किसी को लगे कि वह गलत ग्रुप में आ गया है तो उसे अपना ग्रुप बदलने का अवसर दिया जा सकता है।
7. दोनों ग्रुप अब अपनी प्रस्तुति करें कि उनकी कौन-कौनसी आवश्यकताएँ हैं और उन्हें क्यों लगता है कि वह हमेशा या समय-समय पर चाहिए।
8. प्रस्तुति के बाद दोनों ग्रुप को एक-दूसरे से प्रश्न करने का मौका मिले।
9. शिक्षक के द्वारा आवश्यकता अनुसार स्पष्टीकरण दिया जा सकता है- जैसे जहाँ विभाजन में दिक्कत आती है वहाँ विद्यार्थियों का सहयोग करें।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. जो आवश्यकताएँ समय-समय पर चाहिए वे शरीर की हैं या मन की? जैसे-भोजन, पानी, कपडा, फोन इत्यादि (उत्तर - शरीर)
2. जो आवश्यकताएँ हमेशा (हर समय) चाहिए वे शरीर की हैं कि मन की? जैसे - ख़ुशी, प्यार, स्नेह, सम्मान, भरोसा इत्यादि (उत्तर-मन)
3. कक्षा के कौनसे कोने में सबसे अधिक लोग थे - सामयिक या हमेशा वाले कोने में? (उत्तर - पर्ची के हिसाब से उत्तर आएगा )
4. इसका मतलब किसकी आवश्यकता सबसे अधिक है - मन या शरीर? (उत्तर - मन)
स्पष्टता हेतु नोट:
1. अकसर विद्यार्थी पूछते हैं कि कपड़ा तो लगातार चाहिए? इस बात पर हम विद्यार्थियों के साथ यह शेयर कर सकते हैं कि कपड़ा समय-समय पर बदलना होता ही है, मौसम के अनुसार भी बदलते हैं परन्तु सम्मान लगातार चाहिए, एक जैसा चाहिए बेशक उसके पाने के तरीके अलग- अलग हो। श्वास लेने पर भी विद्यार्थी अकसर प्रश्न पूछते हैं - इस पर भी यही उत्तर बनता है की श्वास अंदर लेते हैं और फिर बाहर छोड़ते हैं - पूरे समय अंदर नहीं लेते - उसमें बदलाव आता है। इसी तरह तैरते समय भी हम श्वास को कुछ समय तक रोक सकते हैं।
2. कुछ उदाहरण जो क्लास में आ सकते हैं: - भोजन शरीर की आवश्यकता है। ‘स्वादिष्ट’ भोजन किसकी आवश्यकता है? स्वादिष्ट भोजन मेरी / मेरे मन की आवश्यकता है। - पैसा किसकी आवश्यकता है - मन या शरीर? पैसे से हम क्या खरीद पातें हैं? भोजन की सामग्री, कपड़ा, मकान बनवा सकते हैं, वाहन ले सकते हैं इत्यादि - यह सब चीज़ें शरीर के उपयोग के लिए हैं - इसी लिए पैसा शरीर की आवश्यकता है। - Technology (जैसे फ़ोन, टी वी, गाड़ी इत्यादि) - फ़ोन टीवी से हमें सूचनाएँ जल्दी मिल पाती हैं। शरीर के गति से अधिक technology काम कर पाती है। जैसे गाड़ी हमें एक दूर जगह तक पहुंचा पाती है। वही अगर हम अपने शरीर से करना (रोज़ चलकर आना जाना करें) चाहें तो शरीर को बहुत अधिक श्रम करना होगा और शरीर थक जाएगा।
Section 2: क्या हमारी आवश्यकताएँ असीम और साधन सीमित हैं?
शिक्षक के संदर्भ के लिए:
- हम में से अधिकतर लोग ये मानकर चलते हैं कि हमारी भौतिक आवश्यकताएँ असीम है।
- हमें इस बात की समझ भी है की धरती पर इन आवश्यकताओं की पूर्ति के संसाधन सीमित है।
- हमने कभी इस बात पे कभी गौर नहीं किया है कि क्या ये मान्यता सही है?
- क्या ऐसा हो सकता है कि हमारी आवश्यकताऐं असीमित नहीं बल्कि निश्चित हैं और उन्हें पूरा करने के साधन भी पर्याप्त हैं।
- हमें अपनी आवश्यकताएँ असीमित लगती हैं, क्योंकि हमने उन्हें ठीक से पहचाना नहीं है। इसे इस गतिविधि के माध्यम से हम इस विचार को गहराई से समझने की कोशिश करेंगे :-
गतिविधि का उद्देश्य: विद्यार्थियों में यह समझ बने कि हमारी मान्यता- आवश्यकताएँ असीम हैं और साधन सीमित हैं। यह एक भ्रम है जिसे लोग सच मानते हैं, क्योंकि हमने अपनी आवश्यकताओं को ठीक से नहीं पहचाना है।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
पहला दिन:
गतिविधि के चरण:
1. शिक्षक कृपया बोर्ड पर यह वाक्य लिखें - “हमारी आवश्यकताएँ अनंत, जबकि साधन सीमित हैं।”
2. विद्यार्थियों से कृपया पूछें - “कितने लोग इस वाक्य से सहमत हैं और कितने असहमत?” इस बात पर कुछ देर चर्चा होने दीजिए और असीमित आवश्यकताओं के उदाहरण बोर्ड पर लिखें।
3. इस थोड़ी देर चर्चा कराने के बाद शिक्षक बोर्ड पर भौतिक आवश्यकताएँ और मन की आवश्यकताओं की एक अलग-अलग सूची उदाहरण के लिए बनाएँ।
- भौतिक आवश्यकताएँ
- (रोटी, कपड़ा, मकान, गाड़ी, घर, मोबाइल, टीवी इत्यादि।)
- मन की आवश्यकताएँ d. (सम्मान, सुरक्षा, शांति, प्यार आदि)
5. इनमें से किसकी सीमा है और किसकी नहीं है।
- जैसे- एक इंसान अगर एक दिन में 10 रोटी भी खाता है और वह 100 साल जीता है तो पूरी ज़िंदगी में उसे 10 x 365 x 100 रोटियों की ज़रूरत पड़ेगी। यह असीमित नहीं है।
- इसी तरह कपड़ा एक आदमी अपनी पूरी ज़िंदगी में अधिक से अधिक कितने कपड़े पहनेगा। अगर हर महीने भी नए कपड़े खरीदे तब भी उसे गिना जा सकता है। असीमित नहीं है।
- एक आदमी को रहने के लिए कितने घर चाहिए। यह भी गिना जा सकता है। असीमित नहीं है। गाड़ी मोबाइल आदि की भी गिनती हो सकती है। कोई भी भौतिक आवश्यकता असीमित नहीं है।
1. क्या हर प्रकार की आवश्यकता सीमित है? (गिनी जा सकती है)
2. आवश्यकताएँ सीमित कब और क्यों लगती हैं?
3. फिर हम यह क्यों मानते हैं कि आवश्यकताएँ असीम होती हैं?
दूसरा दिन:
इस बात को स्पष्ट रूप में समझेंगे कि हम भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जो वस्तुएँ खरीदते हैं उनका सही मूल्य क्या है:-
गतिविधि के चरण:
1. पिछले दिन की चर्चा को फिर से रिकैप करें।
2. “आइए देखते हैं की जिन वस्तुओं से हम अपनी आवश्यकताएँ पूरी करते हैं, उनका मूल्य क्या है।”
3. हमारे एक शर्ट की क्या क़ीमत है? (उदाहरण: 100 रुपए) इस रक़म को बोर्ड पर लिख लें।
4. अब पूछें कि इस शर्ट के दुकान में आने तक की क्या यात्रा रही होगी? दुकान के भाड़े की क़ीमत, उसके ट्रांसपोर्ट की क़ीमत (यानी एक जगह से दूसरे जगह ले जाने वाले की तनख़्वाह), (इन सब को भी बोर्ड पर लिखते जाएँ), इस शर्ट के लिए दर्ज़ी का श्रम, इसको रुई से बुन्नने वाले बुनकर का श्रम, इसके लिए रुई उगाने वाले किसान का श्रम? करते करते सारी रक़म इन सबमें पूरी हो जाती है।
5. फिर पूछें “तो फिर हम उस रुई की, उस कपड़े के थान की, उस शर्ट की क्या क़ीमत देते हैं? क्या अंत में हमने यह शर्ट ख़रीदी?” मूल में तो वह हमें मुफ्त में ही उपलब्ध है।
6. इसी प्रकार से और वस्तुओं का उदहारण दीजिए - जैसे मोबाइल, पेन, चिप्स इत्यादि और यह बात सामने आ जाएगी कि कोई भी वस्तु की असल में कोई कीमत नहीं होती। हम मूल रूप मैं उस वस्तु के बनने में जो मानव श्रम लगा है, उसके पैसे देते हैं।
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आप किसी ऐसे वस्तु के बारे में सोच सकते हैं जिसके लिए मानव श्रम के अलावा भी हमें पैसे देने पड़ते हों?
2. इन वस्तुओं को पाने के लिए साधन सीमित हैं या पर्याप्त हैं? कैसे?
3. हमें ऐसा क्यों लगता है की हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के साधन सीमित हैं?
4. (इस बात पर चर्चा करें की हम मन की आवश्यकताओं को शरीर की आवश्यकताएँ समझकर भ्रमित हैं)
स्पष्टता हेतु नोट: हम ये मान कर चलते हैं की हमारी आवश्यकताएँ असीम है और साधन सीमित है क्योंकि हम जिन भौतिक वस्तुओं के माध्यम से सुख ढूँढ रहे हैं, असल में वह हमारे मन की आवश्यकताएँ है। पैसों से हम वस्तु खरीद नहीं सकते; केवल उन्हें इस्तेमाल करने का अधिकार पाते हैं, क्योंकि हम उस वस्तु को बनाने वाले व्यक्ति के मानव श्रम के लिए पैसे दे रहे हैं। यदि इस बात को हम ठीक से समझ लें तो हमें यह भी समझ आने लगेगा कि हर वस्तु की कुछ उपयोगिता होती है और उसी के आधार पर हम उस वस्तु का सही मूल्य समझ सकते हैं।
कहानी 2.1 कितनी ज़मीन
उद्देश्य: बच्चों का ध्यान अपनी आवश्यकताओं की ओर ले जाना और यह पहचानने के लिए की हमारी भौतिक आवश्यकताएँ सीमित होती है; तथा अधिक संग्रह की होड़ में पड़ने के परिणाम से अवगत कराना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक
कहानी:
एक आदमी के घर किसी दिन एक मुसाफिर मेहमान आया। रात के समय बातों ही बातों में मुसाफिर ने कहा, वहाँ से कुछ दूर एक गाँव है जहाँ पर ज़मीन इतनी सस्ती है कि मानो मुफ्त ही मिलती हो। वहाँ हज़ारों एकड़ ज़मीन मिल सकती है वह भी करीब-करीब मुफ्त में। उस आदमी का लोभ जगा। उसने दूसरे दिन ही उस गाँव की राह पकड़ी और जब पहुंचा तो उसने कहा कि मैं ज़मीन खरीदना चाहता हूँ। गाँव वालों ने कहा कि तुम जितना पैसा लाए हो, रख दो। ज़मीन खरीदने का तरीका यह है कि कल सुबह सूरज उगने से पहले तुम निकल पड़ना और श्याम के सूरज के अस्त होने तक जितनी ज़मीन तुम घेर सको, वह तुम्हारी होगी। वह आदमी रात-भर सो न सका। योजनाएँ बनाता रहा कि कितनी ज़मीन घेर लूँ। सुबह होते ही भाग निकला। उसने साथ अपनी रोटी और पानी का भी इंतज़ाम कर लिया था, यह सोचकर कि रास्ते में यदि भूख-प्यास लगे तो दौड़ते-दौड़ते ही खा-पी लूँगा। उसने सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट आऊँगा ताकि सूरज डूबते-डूबते वापस पहुँच जाऊँ। उसने दोपहर तक मीलों का सफ़र पूरा कर लिया। उसके मन में विचार आया कि दोपहर हो गई और मुझे लौटना चाहिए, लेकिन सामने और उपजाऊ ज़मीन दिखाई दी और यह खयाल आया कि थोड़ी-सी और ज़मीन घेर लेता हूँ। ज़रा तेज़ी से दौड़ना पड़ेगा लौटते समय। उसने खाना भी न खाया, पानी भी नहीं पीया, क्योंकि रुकना पड़ेगा। रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया और पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा था। उसने कोट भी उतार दिया और टोपी भी उतार दी। जितना हल्का हो सकता था, हो गया। दोपहर बीत गई पर लौटने का मन नही हुआ। तीसरा पहर हो गया। लौटना शुरु किया, परन्तु अब उसके मन में घबराहट थी। सारी ताकत लगाई, लेकिन अब वह थक चुका था। अब सूरज डूबने लगा था। वह गाँव के करीब पहुँचने लगा था और उसे लोग दिखाई पड़ने लगे। गाँव के लोग खड़े थे और आवाज़ दे रहे थे कि आ जाओ, आ जाओ! उसने दौडऩे में आखिरी दम लगा दिया। सूरज डूबने लगा। इधर सूरज डूब रहा था, उधर वह गाँव की तरफ़ भाग रहा था। सूरज डूबते-डूबते वह आदमी गिर पड़ा। अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई थी। वह किसी तरह अपने आपको गाँव की ओर घसीटकर ले जाने का प्रयास कर रहा था, परंतु सूरज डूब गया और वह थककर बेहोश हो गया। वहाँ मौजूद लोग हँसे और आपस में बातें करने लगे कि अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया जो घेरकर ज़मीन का मालिक बन पाया हो।
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या अपनी आवश्यकता से कई ज़्यादा पाने की लालसा की वजह से आपको भी कभी कोई नुकसान हुआ है? कैसे?
2. कौन-कौनसी चीज़े लोग अपनी आवश्यकता से अधिक इकट्ठा करते हैं? सूची बनाइए। 3. आप भी कौन-कौनसी चीज़े अपनी आवश्यकता से अधिक एकत्रित करते हैं? कक्षा में साझा करें। घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
- विद्यार्थियों को अपने आसपास यह देखने के लिए कहा जाए कि लोग कौन-कौन सी चीज़ें अपने आवश्यकताओं से अधिक संग्रह करने में लगे हुए हैं।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
1. कुछ चीज़ें हम अपनी आवश्यकता से अधिक इकट्ठा क्यों करते हैं? क्या इससे वह उद्देश्य पूरा होता है जिसके लिए ऐसा करते हैं?
2. हम अपनी आवश्यकताओं को कैसे तय कर सकते हैं कि किस चीज़ की कितनी ज़रूरत है? कक्षा में चर्चा करें।
चर्चा की दिशा: अभी बहुत से लोग अपने आवश्यकताओं को ठीक से तय नहीं कर पाने के कारण आवश्यकताओं से बहुत अधिक संग्रह करते हुए दिखाई पड़ते हैं। उनका ऐसा मानना है कि हमारी आवश्यकताओं की कोई सीमा नहीं है और सामग्री सीमित है तो संग्रह के अलावा कोई चारा नहीं और उसकी कोई सीमा भी तय नहीं है। इसलिए ज़िंदगी भर संग्रह के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। ऐसे में काफ़ी समय इस भ्रम के साथ जीते हुए हमारा स्वास्थ्य और संबंधियों का साथ भी छूटता है और जो मन कि आवश्यक्तयों को पूरा करने निकले थे (जैसे सम्मान, विश्वास) वह अस्थायी रहती है। इस कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों का ध्यान अपनी आवश्यकताओं की ओर ले जाने का प्रयास किया गया है ताकि आगे चलकर वे भौतिक वस्तुओं का सही मूल्यांकन कर सकें और अपनी भावनात्मक आवश्यकताओं को भी पहचानने की ओर बढ़ें।
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