Chapter 1: हैप्पीनेस को समझें


शिक्षक के संदर्भ के लिए: हैप्पीनेस यानी ख़ुशी मन की एक अवस्था है। एक ऐसी अवस्था जिसमें हमारे भाव और विचार सकारात्मक या पॉज़िटिव होते हैं। ख़ुशी मन की ऐसी अवस्था है जिसे हम हमेशा बनाए रखना चाहते हैं। हम ख़ुद के लिए कुछ काम करें, किसी दूसरे के साथ कोई व्यवहार करें अथवा दूसरे हमारे लिए कोई काम करें या व्यवहार करें, उसमें हम ख़ुशी ही ढूँढना चाहते हैं। अगर पढ़ा हुआ हमें समझ में आ जाए तो हमें ख़ुशी मिलती है। कभी किसी से आगे निकलने में ख़ुशी मिलती है तो कभी ऐसा भी होता है कि किसी के पीछे रहने में भी ख़ुशी मिलती है। जो कुछ भी हम समझे हैं उसे कर सकें तो हमें ख़ुशी मिलती है। परीक्षा में सफलता पर हमें ख़ुशी मिलती है। किसी से कुछ लेकर ख़ुशी मिलती है तो किसी को कुछ देकर ख़ुशी मिलती है। कोई हमारी परेशानियाँ दूर करे तो ख़ुशी मिलती है और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि दूसरों के लिए ख़ुद को परेशानी में रख कर भी हमें ख़ुशी मिलती है। इन सभी स्थितियों में हमारे भाव और विचार कुछ अच्छा या सही करने की प्रेरणा के साथ हैं। हैप्पीनेस की क्लास में हम अपने मन की इन्हीं अवस्थाओं को अलग-अलग तरीके से समझेंगे कि हमारा मन कब ख़ुशी महसूस करता है। किन परिस्थितियों में हम ज़्यादा ख़ुश होते हैं और किन परिस्थितियों में कम। किन परिस्थितियों में हमारी ख़ुशी क्षणिक होती है और किन परिस्थितियों में लंबी। हम यह भी समझेंगे कि “ख़ुश होने के लिए कुछ करना है या ख़ुश होकर कुछ करना है।” इन सब बातों को हम हैप्पीनेस क्लास में समझेंगे, लेकिन सबसे पहले इस अध्याय में हम हैप्पीनेस यानी ख़ुशी को समझने की कोशिश करते हैं। (शिक्षकों से अनुरोध है कि उपर्युक्त दोनों पैराग्राफ़ को अलग से पढ़कर क्लास में एक बार ऊपर कही बातों पर विचार कर लें। कक्षा में चर्चा का मकसद होना चाहिए कि बच्चा हैप्पीनेस क्लास के बारे में कुछ सोच सके। पहले चैप्टर में हम निम्नलिखित विषयों पर विभिन्न गतिविधियों और कहानियों के माध्यम से आगे बढ़ेंगे।)

Section 1: हैप्पीनेस क्लास क्यों?
  • गतिविधि 1.1: पढ़ना-लिखना क्यों? 
  • कहानी 1.1: अलेक्जेंडर और डायोगनीज 
Section 2: कितनी ख़ुशी चाहिए? कभी-कभी या हमेशा? थोड़ी या ज़्यादा?
  • गतिविधि 2.1: कितनी ख़ुशी चाहिए? 
  • कहानी 2.1: मन के अंदर महल गतिविधि 
  • 2.2: ख़ुश होना- किससे और कितनी देर? 
  • कहानी 2.2: राबिया की सूई 
Section 3: ख़ुशी क्या है?
  • गतिविधि 3.1: हम कब ख़ुश होते हैं? 
  • गतिविधि 3.2: हमारे दु:खी होने के कारण 
  • कहानी 3.3: क्या असली तो क्या नकली

Section 1: हैप्पीनेस क्लास क्यों? 
शिक्षक के संदर्भ के लिए: सूत्र: हम सब जो कुछ भी करते हैं, ख़ुशी के लिए करते हैं। 
  •  ● इस Section की कहानी और गतिविधि का उद्देश्य यही है कि बच्चों का (और हमारा भी) ध्यान इस तरफ़ चला जाए कि हम सब जो कुछ भी करते हैं, वह ख़ुश होने या ख़ुश रहने के लिए करते हैं। 
  • ● यह सूत्र एक universal truth है। मतलब यह हर मनुष्य पर लागू होता है। चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, युवा हो या बुज़ुर्ग, गाँव में रहना वाले हो या शहर में। 
  • ● क्या कोई दु:खी होना चाहता है? इसका उत्तर है - नहीं। जिन कामों में हम कष्ट उठाते हैं, उनमें भी ख़ुशी की ही चाहत है, जैसे:- माँ का भूखा रहकर बच्चे को खाना देना। 
गतिविधि 1.1: पढ़ना-लिखना क्यों? 
गतिविधि का उद्देश्य: पढ़ाई-लिखाई का मुख्य उद्देश्य ख़ुशी ही है, इस ओर विद्यार्थियों का ध्यान दिलाना। साथ ही इस निष्कर्ष पर पहुँचना कि हम जो भी कुछ करते हैं, अपनी ख़ुशी के लिए करते हैं। समय: एक से दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक शिक्षक के लिए नोट:- अभी पढ़ाई कर रहे अधिकतर विद्यार्थियों को यह स्पष्ट ही नहीं है कि वे क्यों पढ़ रहे हैं? उन्हें लगता है कि वे आजीविका के लिए पढ़ रहे हैं। यह बात उन्हें पता लग जाए कि पढ़ाई-लिखाई ख़ुशी के लिए है तो बड़ी सफलता मिल जाएगी। इसीलिए यह हैप्पीनेस क्लास रखी गई है कि हम इस लक्ष्य को पाने का रास्ता समझ पाएँ।

गतिविधि के चरण: 
1. शिक्षक द्वारा कक्षा में बच्चों से पूछा जाए कि ‘आप सब पढ़ते-लिखते क्यों हैं?’ “पास क्यों होना है? फर्स्ट क्यों आना है? पैसे क्यों कमाने हैं? स्पोर्ट्स में मेडल क्यों जीतना है?”
2. बच्चे थोड़ी देर सोचें और अपना उत्तर अपनी कॉपी में लिखें। (आसपास बैठे हुए दो बच्चे आपस में चर्चा करके एक-दूसरे का सहयोग भी ले सकते हैं।)
3. फिर शिक्षक उनसे बारी-बारी से शेयरिंग करवा सकते हैं। बच्चों को अपनी तरफ़ से शुरू में कोई जवाब देने में मदद न करें बल्कि उनके अंदर से उन्हीं के शब्दों में उनका उत्तर देने दें।
4. शिक्षक स्वयं अथवा बच्चों की मदद लेकर शेयरिंग से निकल रहे बिंदुओं को साथ-साथ बोर्ड पर लिखते रहें ताकि क्लास का ध्यान बना रहे।
5. सब बच्चों को अपनी शेयरिंग करने का अवसर मिले, यह आवश्यक है।
6. शिक्षक बच्चों को और सोचने के लिए कह सकते हैं। बार-बार शिक्षक द्वारा हर उत्तर पर ‘क्यों’ पूछकर बच्चे को और आगे सोचने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
  • जैसे:- बच्चा अगर बोले इंजीनियर बनने के लिए पढ़ाई करता हूँ, तो शिक्षक द्वारा फिर उनसे पूछा जाए कि इंजीनियर क्यों बनना चाहते हो? बच्चा बोल सकता है -‘पैसे के लिए’, तो फिर शिक्षक पूछ सकते हैं- ‘पैसा क्यों’? 
  • या फिर यदि विद्यार्थी डॉक्टर बनना चाहें तो इस बात पर चर्चा की जा सकती है कि दूसरों का इलाज करके भी ख़ुशी तो उसे ही मिलेगी। 
  • नोट: हर प्रश्न बच्चे पर ही केंद्रित हो कि वह जो भी करता है वह ‘क्यों’ करता है। जैसे- आप स्कूल क्यों आते हैं? बच्चे का जवाब हो सकता है: ‘घर वाले भेजते हैं।’ ऐसी स्थिति में अगला प्रश्न हो सकता है: ‘आप उनका कहना क्यों मानते हैं?’ इसी प्रकार प्रश्नों का क्रम बच्चे और उसकी सोच पर ही केंद्रित रहे। 
  • नोट: यदि बच्चे के उत्तर से संदर्भ कहीं और जाता है तो बच्चे से पूछा जा सकता है कि ‘आख़िर इससे आपको क्या फ़ायदा होगा?’ 
 7. बच्चे इस अंतिम उत्तर (जिसके बाद और कोई ‘क्यों’ बचता नहीं) तक आ पाएँ कि हम सब कुछ ख़ुश होने के लिए करते हैं / हम सब ख़ुश होना चाहते हैं, तब तक ऐसा प्रयास करना ठीक रहेगा।
8. शिक्षक द्वारा बच्चों से चर्चा की जाए कि वे ऐसे कामों के उदाहरण दें जो सुखी होने के लिए नहीं किए जाते। सामाजिक और व्यक्तिगत उदाहरण पर बात कर सकते हैं। जैसे-
  • किसी को चोट लग गई और आपने मदद की। 
  • किसी को ठंड लग रही थी और आपने उसे अपना कंबल दे दिया। 
  • तोहफ़ा या आइसक्रीम क्यों चाहिए? 
9. इस चर्चा में भी यही बात सामने आएगी कि हमारा हर कार्य ख़ुशी की तलाश में ही होता है।

नोट: यदि किसी बच्चे का शुरू में ही जवाब आ जाए कि वह जो भी करता है, ख़ुशी के लिए करता है। ऐसी स्थिति में उस बच्चे से पूछा जाए कि उसके आगे वह जो करेंगे वह क्यों करेंगे? या अन्य बच्चों से प्रश्न पूछकर चर्चा को आगे बढ़ाया जाए।

चर्चा के लिए प्रस्तावित बिंदु: 
शिक्षक से अनुरोध है कि इस सूत्र (हम सब जो कुछ भी करते हैं, ख़ुश रहने के लिए करते हैं।) को अब बोर्ड पर लिखकर बच्चों के साथ चर्चा करें। इस सूत्र पर उनके विचार/टिप्पणी सुनें।
  •  बच्चों के साथ यह चर्चा करने की कोशिश करें कि क्या कोई दु:खी होने के लिए कुछ करता है। इस चर्चा में यह ध्यान रखें कि बच्चे अपने जीवन से ही कोई उदाहरण बताएँ जो उनके अनुसार वे दु:खी होने के लिए करते हैं, क्योंकि किसी अन्य व्यक्ति के मन के बारे में कुछ कहना असंभव है, इसलिए वे अपना ही कोई उदाहरण दें। बच्चे के उदाहरण पर चर्चा करें और विश्लेषण करें कि किस तरह उनकी चाहत तो ख़ुश होने की ही है। 
  • बच्चों से चर्चा करें कि किस तरह एक इनसानलगभग 3-4 वर्ष की उम्र में स्कूल में आता है और स्कूल, कॉलेज आदि की पढ़ाई करते हुए 20 साल शिक्षा में लगाता है। पढ़ता है, मेहनत करता है, परीक्षा पास करता है। इस सबका उद्देश्य क्या है? आखिर अपनी ज़िंदगी के 20 साल देकर आदमी शिक्षा से क्या चाहते हैं?... क्या सिर्फ़ नौकरी, क्या सिर्फ़ पैसा, क्या सिर्फ़ सुविधाएँ या फिर कुछ और? इस पर बच्चों से खुलकर चर्चा कराएँ।
क्या करें और क्या न करें: 
  • अगर बच्चों को नोटबुक में पूरा वाक्य लिखने में दिक्कत आती है तो उन्हें मोटे - मोटे शब्दों में लिखने के लिए कह सकते हैं। जैसे- “मैं डॉक्टर बनना चाहता हूँ।” यह पूरा वाक्य लिखने की बजाय वे केवल “डॉक्टर” लिख सकते हैं। 
कहानी 1.1: अलेक्जेंडर और डायोगनीज 
कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को इस बात का एहसास दिलाना कि हम सबके जीवन का मूल उद्देश्य ख़ुशी ढूँढना है। भले ही कुछ लोग ग़लत काम करके ख़ुशी ढूँढते हैं, कुछ लोग अच्छा काम करके ख़ुशी ढूँढते हैं। समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्टि होने तक

कहानी: 
प्राचीन ग्रीस में एक बुद्धिमान व्यक्ति डायोगनीज रहता था। उसका चारों तरफ़ बड़ा नाम था। लोग दूर-दूर से उससे मिलने के लिए आते थे। वह लोगों को हमेशा एक ही शिक्षा देता था कि अगर ख़ुश होने के लिए कुछ करोगे तो मन चाहा न होने पर हमेशा दु:खी रहोगे और अगर ख़ुश होकर कुछ करोगे तो मन चाहा हो या न हो, पर हमेशा ख़ुश रहोगे। उसी दौरान सिकंदर नाम का एक सम्राट दुनिया को जीतने की धुन में एक के बाद एक युद्ध किए जा रहा था। वह जहाँ भी जाता युद्ध करता और वहाँ के लोगों को अपना गुलाम बना लेता। युद्ध में खूब मार-काट मचती। लाखों लोगों की हत्याएँ की जाती। एक बार सिकंदर की मुलाकात डायोगनीज से हुई। सिकंदर ने बड़े अहंकार के साथ डायोगनीज से कहा कि मैं सिकंदर महान हूँ और सारी दुनिया जीतने निकला हूँ। मैंने आपकी बड़ी तारीफ सुनी है। आपको कभी मुझसे कोई काम हो तो बताईयेगा ज़रूर। डायोगनीज ने पूछा कि तुम सारी दुनिया में इतना युद्ध क्यों कर रहे हो। सिकंदर ने कहा कि मैं सारी दुनिया पर विजय प्राप्त करना चाहता हूँ। अब कुछ ही देश बचे हैं, एक बार उन्हें भी युद्ध में हरा दूँ तो उसके बाद आराम से बैठूंगा। डायोगनीज ने उससे कहा कि सिकंदर तुम सारी दुनिया भी जीत लोगे तब भी ख़ुश नहीं हो सकते। क्योंकि जिस दिन तुम सारी दुनिया जीत लोगे उस दिन तुम यह सोचकर दु:खी होगे कि अब जीतने के लिए कुछ बचा नहीं। ख़ुशी मानवीयता के उत्थान में है, उसके पतन में नहीं। इसलिए जो भी करो ख़ुश होकर करो, ख़ुश होने के लिए मत करो। कहते हैं कि सिकंदर ने मरते दम तक डायोगनीज की इस बात को याद रखा और अपने सैनिकों के साथ अकसर युद्ध जीतने के बाद वह इसकी चर्चा किया करता था।

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. सिकंदर अपनी ख़ुशी कहाँ ढूँढ रहा था?
2. एक देश के लोगों को गुलाम बनाना या उनकी हत्या कर देने के बाद जब सिकंदर दूसरे देश को जीतने आगे बढ़ता था तो उसे लगता था कि इस देश को और जीत लूँ तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी। बच्चों से पूछें कि उनके हिसाब से क्या सिकंदर सही सोचता था? (बच्चों को अपनी तरफ़ से सही या गलत न बताएँ बल्कि उनके अंदर से ही सही या गलत का उत्तर आने दें और सिर्फ़ सही या गलत मानने के पीछे उनके कारण पूछें।)
3. क्या ख़ुश होकर अनुचित कार्य किया जा सकता है? जैसे: दूसरों का शोषण करना या उन्हें पीड़ा पहुँचाना।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
  • इस बारे में बातचीत करें कि लोग किन चीज़ों या कार्यों से सुख खोज रहे हैं। दूसरा दिन अथवा आगे: 
  • कहानी की पुनरावृत्ति कुछ विद्यार्थियों से करवाएँ। 
  • कुछ अन्य विद्यार्थियों को घर पर कहानी सुनाने के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. डायोगजीन ने सिकंदर से कहा कि सारी दुनिया भी जीत लोगे तब भी तुम ख़ुश नहीं हो सकते। ऐसा उसने क्यों कहा?
2. ख़ुश होकर कोई काम करने की अवस्था और ख़ुश होने के लिए कोई काम करने की अवस्था के बारे में बच्चों से चर्चा करें। उनसे दोनों अवस्थाओं के लिए उदाहरण निकलवाएँ। कोशिश करें कि बच्चे अपनी ज़िंदगी से जुड़े हुए उदाहरण निकाले जैसे- ख़ुश होकर आइसक्रीम खाना या ख़ुश होने के लिए आइसक्रीम खाना। ख़ुशी मन से अच्छे कपड़े पहनना या अच्छे कपड़े पहनकर ख़ुश होने की कोशिश करना। ख़ुशी मन से किसी की मदद करना या किसी की मदद करके ख़ुशी ढूँढना। इन सब अवस्थाओं में क्या अंतर है।
3. बच्चों से चर्चा करें क्या कोई व्यक्ति सारी दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनकर ख़ुश हो सकता है। इस चर्चा के लिए टाटा या बिलगेट्स जैसी हस्तियों के उदाहरण दे सकते हैं जिन्होंने अपार दौलत कमाने के बाद अपनी संपत्ती समाज के काम में लगाई।

क्या करें, क्या न करें 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें।
Section 2: कितनी ख़ुशी चाहिए? कभी- कभी या हमेशा? थोड़ी या ज़्यादा? 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
  • अभी हमने Section 1 में देखा है कि ख़ुशी की चाहत सभी को होती है। 
  • हमारा उद्देश्य है कि इस सेक्शन के अंदर बच्चे अपने मन में समय-समय पर उठने वाली ख़ुशी की अवस्था को स्पष्ट रूप से 3 हिस्सों में बाँट कर देखने की आदत बना सके।बच्चों को यह स्पष्ट किया जाए कि – ○ वस्तुओं/सामान से मिलने वाली ख़ुशी क्षणिक होती है। ○ संबंधों से मिलने वाली ख़ुशी लंबे समय तक होती है। ○ समझ/स्पष्टता से मिलने वाली ख़ुशी हमेशा के लिए होती है। 
  • इस Section में हम यह देखेंगे कि ख़ुशी कितनी चाहिए? 
  • हम बच्चों में यह समझ विकसित करके आगे लाए हैं कि हमें ख़ुशी चाहिए। लेकिन कितनी ख़ुशी चाहिए अब चर्चा इस पर भी होनी चाहिए।
गतिविधि 2.1: कितनी ख़ुशी चाहिए? 

गतिविधि का उद्देश्य: इस गतिविधि द्वारा ध्यान इस तरफ़ ले जाना है कि हमें ख़ुशी हमेशा (निरंतर) चाहिए और असीमित चाहिए।

गतिविधि के चरण : 
  • पहले सब बच्चों से निम्न प्रश्नों पर चर्चा करें: 
    • आपको ख़ुशी सप्ताह के एक दिन चाहिए या हर दिन? [ जवाब - रोज़ाना ] 
    • आपको ख़ुशी दिन के कुछ घंटों के लिए चाहिए या हर घंटे में? 
    • आपको ख़ुशी घंटे के कुछ ही मिनटों में चाहिए या हर मिनट में? 
    • आपको ख़ुशी मिनट के कुछ पलों में चाहिए या हर पल में? 
  • यहां भी बच्चों को अपनी तरफ़ से पहले से कोई उत्तर न दें और उनके अंदर से उत्तर निकलने दें। यह संभव है कि कुछ बच्चे इस पर अटकें कि ख़ुशी हमेशा मिल ही नहीं सकती। इसलिए हमेशा चाहना भी संभव नहीं होता। 
  •  अगर ऐसा होता है तो उनसे इस बात पर चर्चा करें कि वे अपने मन के अंदर झाँककर देखें कि क्या वे एक क्षण के लिए भी दु:खी होना चाहेंगे? 
  •  क्या ऐसा नहीं होता है कि अगर एक क्षण के लिए भी ख़ुशी का क्रम टूटता है तो उनके मन में तनाव, निराशा की भावना नहीं आती? 
  • क्या उन्हें एक क्षण के लिए भी निराशा या तनाव स्वीकार है?
 * इस चर्चा से ये परिणाम निकलेगा कि बच्चे समझ पाएँगे कि हमें ख़ुशी निरंतर चाहिए।

दूसरा दिन अथवा आगे: 
पिछले दिन की चर्चा को एक बार संक्षिप्त में बच्चों के साथ मिल कर दोहरायें। और फिर आगे इस क्रम में बढ़ें:
  • बच्चों को छोटे-छोटे समूह (5-6) में बाँटकर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रयोग करने वाली कुछ वस्तुओं की या रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हम जो कुछ भी करते हैं उसकी सूची बनवाई जाए। 
  • नोटबुक में उन कामों की सूची बनाने को कह सकते हैं जिनसे उन्हें ख़ुशी मिलती है। (इस काम के लिए 5 मिनट का समय देना ठीक रहेगा।) 
  • बच्चों से पूछ-पूछकर यह सूची बोर्ड पर लिख लें। उदाहरण: भोजन, खेल, कंप्यूटर गेम्स, नए कपड़े, तोहफ़े, गाना, movie देखना इत्यादि। 
 चर्चा के लिए बिंदु: 
1. हमें लड्डू अच्छा लगता है तो क्या हम सुबह से शाम तक लगातार लड्डू खा सकते हैं?
2. हमें आरामदायक बिस्तर पर सोना अच्छा लगता है तो क्या हम हमेशा उस बिस्तर पर लगातार सोते रहें (उठें ही नहीं), ऐसा हमें स्वीकार है?
3. हमें कार से यात्रा अच्छी लगती है तो क्या हम हमेशा कार में बैठे रहें, ऐसे हमें स्वीकार है?
 4. हमें पंखे या एयर-कंडीशनिंग में अच्छा लगता तो क्या हम सदा इनके सामने बैठे रह सकते हैं?
5. हम सदा कंप्यूटर के सामने बैठे रहें तो?
6. हमें movie देखना पसंद है तो हम हमेशा movie देखते रहें, क्या ऐसा हो सकता है?
7. क्या हम हमेशा खेलते रहें तो ख़ुश रहेंगे? जीते तो ख़ुश, हार गए तो दु:खी।
8. क्या हम हमेशा हमारी पसंदीदा खाना खाते रह सकते हैं? नहीं। हमें वैराइटी पसंद है। उसके बिना हम बोर हो जाते हैं। इसी तरह बच्चों द्वारा बताई गई सभी चीज़ों के बारे में चर्चा की जा सकती है। इस प्रक्रिया से गुज़रने के बाद स्पष्ट होता है की कोई भी भौतिक वस्तु का आवश्यकता से अधिक उपयोग करने से हमारे लिए वही अनुभव तकलीफ़देह हो सकता है। हमें सुविधाओं की आवश्यकता तो है परन्तु इससे लंबी ख़ुशी नहीं मिल सकती और हमें तो लंबी ख़ुशी चाहिए। लगातार ख़ुशी चाहिए।


कहानी 2.1: मन के अंदर महल 

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान जाना कि सुविधा में लम्बी ख़ुशी की सम्भावना नहीं है। समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक

कहानी: एक राजा के राज्य में एक संत बहुत दिनों से एक पेड़ के नीचे रह रहे थे। उस संत का बड़ा नाम था। लोग उनसे मिलने के लिए दूर-दूर से आते थे। इससे राजा को भी लगा कि वह कोई पहुँचे हुए संत हैं। एक दिन राजा भी संत से मिलने गया। संत की बातों से राजा बहुत प्रभावित हुआ और निवेदन किया कि आप इस पेड़ के नीचे रहने की बजाय मेरे साथ महल में रहने के लिए चलें। संत ने कहा कि आप जहाँ रहने के लिए कहेंगे हम वहीं रह सकते हैं। राजा थोड़ा हैरान हुआ। उसने सोचा था कि संत का जवाब होगा कि हम संतों का महल में क्या काम। राजा की उम्मीद के विपरीत वह संत तुरंत चलने के लिए तैयार हो गये। राजा को इससे थोड़ा धक्का लगा लेकिन उसने ख़ुद ही चलने के लिए निवेदन किया था, इसलिए संत को अपने महल में ले जाना पड़ा। राजा ने संत को सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाईं। कालीन बिछवाए, सोने के लिए मुलायम गद्दे दिए, स्वादिष्ट भोजन दिया। संत आराम से इन सबका उपयोग करने लगे। राजा को लगा कि यह कैसा संत है। एक बार भी यह नहीं कहा कि हम तो संत हैं, हम गद्दे पर नहीं सोते हैं। हम तो ज़मीन पर सोते हैं। एक बार भी यह नहीं कहा कि इतने स्वादिष्ट भोजन की संतों को ज़रूरत नहीं है। संत तो रूखा-सूखा खा लेते हैं। कुछ दिन बीते तो राजा ने पूछा ‘महाराज मेरे मन में एक संदेह है। मैं जानना चाहता हूँ कि आप पेड़ कि नीचे ज़्यादा ख़ुश थे या महल में तमाम सुख-सुविधाओं के बीच ज़्यादा ख़ुश हैं। संत ने कहा ख़ुशी का महल से क्या संबंध। राजा को लगा कि शायद संत को महलों की आदत लग गई है। उसने पूछा कि मैं भी महल में रहता हूँ और अब आप भी महल में ही रहते हैं। मेरे जैसे भोगी ओर आप जैसे संत में अब कोई फर्क नहीं बचा। संत ने कहा कि अगर फ़र्क समझना है तो मेरे साथ महल से बाहर चलो। राजा संत के साथ महल के बाहर गया। जब महल से काफ़ी दूर निकल आए तो राजा ने कहा कि महाराज अब तो बताइए। संत ने कहा थोड़ा और आगे चलें। अब तक धूप तेज हो गई थी, इसलिए गर्मी से बेहाल राजा ने फिर पूछा,- “महाराज अब तो बता दीजिए। हम बहुत दूर आ गए हैं और हमें वापस महल में भी जाना है।” संत ने कहा,- “देखो! महल में रहकर तो आपने देख लिया है। अब हमारे साथ रहो तभी आपके प्रश्न का उत्तर मिलेगा।” राजा ने कहा कि मैं महल को छोड़कर, राज-पाठ छोड़कर, आपके साथ कैसे जा सकता हूँ? इस पर संत ने कहा कि संत और भोगी में यहीं अंतर है। भोगी जब आगे बढ़ता है तो उसके मन में बहुत कुछ ऐसा होता है जो उसे आगे बढ़ने से रोकता है। लेकिन संत के मन में ऐसा कुछ नहीं होता है जो उसे आगे बढ़ने से रोक सके। जब मैं पेड़ के नीचे था तो पेड़ मेरे अंदर नहीं था, इसलिए आपके साथ महल चला गया। जब मैं महल के अंदर रहा तो भी महल मेरे अंदर नहीं था, लेकिन आपके अंदर है, इसलिए आपको रोकता है।

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. इस कहानी में संत ने राजा से एक जगह कहा- महलों का ख़ुशी से क्या संबंध है, इस पर चर्चा करें। क्या महलों में रहने भर का अवसर मिलने से कोई ख़ुश रह सकता है।
2. चर्चा करें कि – क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति झोपड़ी में रहकर भी ख़ुश रहे और एक व्यक्ति महलों में रहकर भी ख़ुश न हो।
3. चर्चा करें कि क्या मन के अंदर ख़ुशी हुए बिना महलों की सुविधाएँ किसी इनसानको ख़ुश रख सकती है। (उपर्युक्त सभी प्रश्नों में बच्चों का ध्यान इस ओर ले जाने की कोशिश करें कि सुविधाएँ ज़रूरी है और होनी भी चाहिए लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि सुविधाएँ होने मात्र से कोई इंसान ख़ुश हो सकता है। उसके लिए परिवार में आपस में अच्छे संबंध, एक-दूसरे से प्यार, परिवार और समाज में सम्मान आदि भी ज़रूरी है। सिर्फ़ सुविधाओं से ख़ुश नहीं रहा जा सकता है। लेकिन अगर कोई इंसान अंदर से, अपने मन से ख़ुश है तो वह कम सुविधाओं में भी ख़ुश रहता ही है।)

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
● कृपया, विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहें।

दूसरा दिन अथवा आगे: 
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. चर्चा करें कि हमारे आसपास ऐसी कौन सी सुविधाएँ हैं जो अगर हमें छोड़कर जानी पड़ें तो आगे बढ़ने से रोक सकती है।

चर्चा की दिशा: इस कहानी से बच्चों का ध्यान दिलाया जा सकता है कि सुख-सुविधाएँ हासिल करना, उन्हें इस्तेमाल करना बिलकुल गलत बात नहीं है, लेकिन किसी भी तरह की सुख-सुविधाओं के छिन जाने पर दु:खी होना कमज़ोरी की निशानी है। मज़बूत आदमी वह नहीं है जो सुख-सुविधाओं से भरपूर है, न ही मज़बूत वह है जिसने सुख-सुविधाओं से अपने आपको दूर रखा हुआ है। असल में मज़बूत आदमी वह है जो सुख-सुविधाओं की कमी में भी दु:खी नहीं होता और उनके छिन जाने की स्थिति में भी आगे बढ़ता रहता है। ऐसे ही आदमी की ख़ुशी लंबी होती है।

क्या करें और क्या न करें: 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें। इस विषय में अपनी समझ और विकसित करने के लिए निम्नलिखित गतिविधि को करते हैं:-
गतिविधि 2.2: ख़ुश होना - किससे और कितनी देर? 

गतिविधि का उद्देश्य: बच्चों को यह समझ में आ पाना कि: हम ख़ुशी कहाँ-कहाँ ढूँढते हैं और हमें कहाँ से कितनी ख़ुशी मिलती है।
  • सामान से ख़ुशी क्षणिक (थोड़ी देर तक) मिलती है। 
  • संबंध से ख़ुशी लम्बे समय तक होती है। 
  • समझकर जीने की ख़ुशी लगातार बनी रहती है। 
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक

गतिविधि के चरण: 
1. शिक्षक विद्यार्थियों के छोटे-छोटे समूह बना लें।
2. हर एक समूह के विद्यार्थी आपस में चर्चा करके अपनी-अपनी नोटबुक में उन वस्तुओं के संबंधों या घटनाओं आदि की सूची बनाएँ जिनसे उन्हें ख़ुशी मिली है। शिक्षक बच्चों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वे जितनी चाहे उतनी लंबी सूची बना सकते हैं।
3. 5-7 मिनट बाद शिक्षक बच्चों से पूछे कि उन्होंने अपनी सूची में क्या-क्या शामिल किया है। बच्चे जो-जो बात कहें, शिक्षक उन्हें बोर्ड पर लिखें।
4. बच्चों से लिख कर पूछेंगे इसलिए शिक्षक बोर्ड पर 3 हेडिंग बना दें।
A- सामान की ख़ुशी B- संबंधों की ख़ुशी C- समझने की ख़ुशी
5. जैसे-जैसे बच्चा अपनी नोटबुक से सूची पढ़ता जाए वैसे-वैसे शिक्षक उनमें से कुछ के उदाहरणों को उपर लिख दें। हेडिंग्स के नीचे लिखते जाएँ।
A. सामान की ख़ुशी = जब हमें चीज़ों (भौतिक सुविधाओं) से ख़ुशी मिलती है
B. संबंध की ख़ुशी = जब हमें संबंधों में ख़ुशी मिलती है
C. समझने की ख़ुशी = जब हमें कोई चीज़ समझ में आती है
जैसे- Ice-cream, कपड़े, पेन, मोबाइल, साइकल आदि।
भाई बहन के साथ खेलना, मम्मी -पापा को स्कूल की बातें बताना।
किसी भी परिस्थिति में सही निर्णय लेने की समझ आना या किसी को सही तरीके से कर पाने की योग्यता पाना।
ice-cream
भाई-बहन के साथ खेलना
गणित का कोई पाठ जैसे:- संख्या पद्धति (number system) समझ में जाना 
chocolate
दोस्तों के साथ पढ़ना
खाना बनाने में चीज़ों का आवश्यक अनुपात (ratio) समझ में जाना 
राजमा-चावल
परिवार के साथ घूमने जाना
ज़िंदगी में क्या बनना है - इसकी स्पष्टता
नए कपडे
मम्मी पापा के साथ समय बिताना
स्वयं से निर्णय ले पाना
साईकिल
लड़ाई नहीं होना
साईकिल चलाना जाना

6. शिक्षक इस गतिविधि को यह कह कर पूरा करें कि ये तीन प्रकार की ख़ुशी हैं: एक - जब हमें चीज़ों से ख़ुशी मिलती है जिसे ‘अच्छा लगना’ भी कहा है- सामान की ख़ुशी। दो - जब हमें संबंधों में ख़ुशी मिलती है जिसे ‘तालमेल’ भी कहा - संबंध की ख़ुशी। तीन - जब हमें अपने अंदर स्पष्टता होती है जिसे ‘समझ’ कहा- समझने की ख़ुशी।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:- 
1. आपको कोई चौथे प्रकार की ख़ुशी लगती है? अगर हाँ ! तो उसे भी इस टेबल में शामिल कर लें। (शिक्षक के द्वारा जाँचा जाएगा कि विद्यार्थी का सुझाव इन्हीं तीन में आता है या उसे अलग से ही लिखना होगा।)
2. इन तीनों प्रकार में क्या अंतर लगता है?

दूसरा दिन अथवा आगे:

गतिविधि के चरण:-
1. शिक्षक से अनुरोध है कि पिछले दिन की गतिविधि के निष्कर्ष (main points) को पुन: बोर्ड पर टेबल बनाकर दोहराएँ।
2. विद्यार्थी टेबल के साथ और गहराई से जांचें।

सामान = ख़ुशी
संबंध = ख़ुशी
समझ = ख़ुशी
गिफ़्ट,
नया सामान,
नई किताब,
नए जूते इत्यादि।
भाई-बहन, दोस् के साथ गपशप,
भाई-बहन के साथ खेलना,
जब परिवार या मित्रों ने हमारे भाव समझे इत्यादि।
किसी शब् का मतलव समझ पाना,
किसी विज्ञान का अर्थ समझना,
गणित या विज्ञान का कोई सुत्र समझ पाना,
किसी समस्या का समाधान मिल पाना,
उलझन के समय सही निर्णय ले पाना,
किसी झगड़े को समझदारी से निपटा लेना,
माता-पिता की आर्थिक स्थिति को समझना इत्यादि।


चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:- 
1. इन तीनों प्रकार की खुशी में क्या अंतर लगता है?
2. समय का कोई अंतर लगता है? अर्थात कौन सी ख़ुशी कितने समय तक होती है?
3. उपर्युक्त तीन कॉलम में कौन सी -
  • ख़ुशी थोड़ी देर के लिए होती है? 
  • ज़्यादा देर के लिए होती है? और 
  • लगातार होती है? 
4. आप अभी तक ज़्यादातर किसमें ख़ुशी ढूँढते आए हैं?
5. आपकी ख़ुशी उस चीज़ में लम्बे समय तक बनी रहती है या आपको फिर से ख़ुश होने के लिए कुछ ढूँढना पड़ता है?
6. उपर्युक्त चर्चा के आधार पर हर एक कॉलम के बारे में बच्चों के साथ यह चर्चा करें कि इनमें से किसी में ख़ुशी के ज़्यादा देर तक बने रहने की संभावना है? और बच्चों से पूछें कि क्या यह सही है।
A. सामान की ख़ुशी = थोड़ी देर की ख़ुशी
B. संबंध की ख़ुशी = ज़्यादा देर तक ख़ुशी
C. समझने की ख़ुशी = लगातार ख़ुशी

शिक्षक के स्पष्टीकरण के लिए: 
सामान की ख़ुशी = थोड़ी देर की ख़ुशी। पर बच्चों का तर्क हो सकता है कि कुछ सामान थोड़ी देर की ख़ुशी देते हैं लेकिन कुछ सामान से लंबी ख़ुशी मिलती है। जैसे:- चॉकलेट खाने की ख़ुशी तो कुछ देर रहती है, लेकिन नए कपड़े या साइकिल आदि की ख़ुशी कई साल तक चल सकती है। इसलिए उन्हें लंबे समय तक मिलने वाली ख़ुशी में क्यों नहीं डाला गया। ऐसे बच्चों को स्पष्ट कर दें कि किसी भी सामान से मिलने वाली ख़ुशी या तो तब तक है जब तक वह नई है या फिर जब तक कि वह नष्ट न हो जाए। या फिर हम उसका नई या और बढ़िया मॉडल किसी के पास न देख लें। जैसे ही कोई नया मॉडल या कोई और आकर्षक चीज हम किसी और के पास दिखाई देती है तो ख़ुशी कम होने लगती है। इसी तरह सामान के नष्ट होने की स्थिति में भी ख़ुशी गायब हो जाती है। 
संबंधों की ख़ुशी = ज़्यादा देर तक ख़ुशी में थोड़ा भ्रम हो सकता है। कुछ बच्चे ये तर्क दे सकते हैं कि सामान से मिलने वाली ख़ुशी भी तो लंबी ख़ुशी होती है। बच्चे अपनी जगह सही हैं लेकिन उन्हें ये स्पष्ट कर दें कि संबंधों में ख़ुश होते वक्त वस्तुत: हम सामने वाले के व्यवहार से ख़ुश हो रहे होते हैं। जब तक वे हमारी इच्छा के अनुसार व्यवहार करते हैं या बात करते हैं तो हम ख़ुश रहते हैं और जैसे ही वह हमारी रीति या इच्छा के विपरित बात या व्यवहार करता है तो हमारी ख़ुशी गायब हो जाती है। इसलिए संबंधों की ख़ुशी सामान की तुलना में लंबी दिखती है। 
इसी तरह समझने की ख़ुशी = लगातार ख़ुशी। लगातार ख़ुशी के बारे में बच्चों को स्पष्ट कर दें कि समझना अपने आप में ख़ुशी देता है और जब भी हमें कोई बात समझ में आ जाती है तो वह समझ हमेशा बनी रहती है। जैसे:- अगर किसी को एक बार 2+2 = 4, एक बार समझ में आ जाता है तो वह फिर हमेशा के लिए समझ में आ जाता है। इसी तरह पानी प्यास बुझाता है या आग जलाती है। यह समझ एक ही बार बन गई तो हमेशा बनी ही रहती है। इसे एक ओर तर्क से समझ सकते हैं। इसी तरह एक बार हमें यह समझ में आ जाए की हमारे माता-पिता की आर्थिक स्थिति क्या है तो फिर कभी भी हमें यह बात दुख नहीं देती कि हमारे माता-पिता हमारे ऊपर बाकी बच्चों के माता-पिता जितना पैसा खर्च नहीं करते। 
 ** उपरोक्त गतिविधि से हमें यह स्पष्टता होती है कि जब-जब हमें ख़ुशी सुविधाओं और वस्तुओं (बाहर से) से मिलती है तो वह थोड़ी देर के लिए ही रहती है लेकिन जब हमें ख़ुशी अंदर की भावनाओं और समझ से प्राप्त होती है (अंदर से) तो वह ज़्यादा देर तक हमारे साथ रहती है। 
इसी बात को और गहराई से एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करेंगे। 


कहानी 2.2: राबिया की सूई 

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को यह समझ में आ सकेगा कि ख़ुशी स्वयं के भीतर होती है न कि बाहर की घटनाओं या वस्तुओं में I
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक

कहानी:
एक गाँव में लोग आपस में हमेशा एक-दूसरे की बुराई करने में लगे रहते थे। ये उनके दुख का बड़ा कारण था। गाँव में एक संत महिला राबिया रहती थी। वह हमेशा लोगों को समझाने के लिए नए-नए तरीके निकालती रहती थी। एक शाम वह अपने घर के सामने कुछ खोज रही थी। दो-चार लोग वहाँ से गुज़र रहे थे। उन्होंने राबिया को कुछ खोजते देख कर पूछा, “क्या खो गया है?” राबिया ने जवाब दिया, “मेरी सूई गिर गई है।” उन्होंने सोचा बूढ़ी महिला है और आँखें भी कमजोर हैं, इसकी मदद करनी चाहिए। वे लोग भी उसके साथ मिलकर सूई खोजने लगे, लेकिन तभी उनमें से किसी एक के मन में सवाल आया कि सूई तो बहुत छोटी चीज है जब तक ठीक से पता न चले कि कहाँ गिरी है तो इतने बड़े रास्ते पर कहाँ खोजते रहेंगे। उसने राबिया से पूछा, “ माँ जी ! यह तो बता दो कि सूई गिरी कहाँ है? राबिया ने जवाब में कहा, “ये तो पूछो ही मत। सूई तो घर के भीतर गिरी है।” राबिया का जवाब सुनते ही गाँव के लोग हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। कहने लगे कि हो न हो माई पागल हो गई है। सूई घर के भीतर गिरी थी और यह ख़ुद भी बाहर ही खोज रही थी। यह बात जब उन्होंने राबिया से कही तो राबिया बोलीं, “यह तो मुझे भी पता है, लेकिन भीतर अँधेरा है और बाहर रोशनी है।अंधेरे में खोजूँ तो कैसे खोजूँ? खोज तो केवल रोशनी में हो सकती है।” यह जवाब सुनकर तो गाँव वाले हँसने लगे। वे राबिया से कहने लगे, “लगता है बुढ़ापे में आपकी समझ गड़बड़ा गई है। घर में अगर रोशनी नहीं भी है तो भी खोजना तो घर में ही पड़ेगा।” अब हँसने की बारी राबिया की थी। राबिया बोली, “बेटा! बात तो आप समझदारी की करते हो। लेकिन मै तो वही तरीक़ा अपना रही थी जो तुम सबको अपनाते देखती हूँ।” गाँव वालों ने हैरत से कहा, “क्या मतलब?” राबिया ने कहना जारी रखा, “मैं रोज़ तुम लोगों को हमेशा दूसरों की बुराई करते देखती हूँ। असल में तुम सब दूसरों में ख़ुशी खोजते हो और जब नहीं मिलती तो उनकी बुराई करते हो, जबकि ख़ुशी तो ख़ुद के अंदर होती है। तुम सब दूसरों के व्यवहार में, दूसरों के तोहफ़ों में, दूसरों से मिलने वाले फ़ायदों में, दूसरों से मिलने वाली तारीफ़ और दूसरों के काम में ख़ुशी खोजते हो, जबकि तुम्हारी ख़ुशी तो तुम्हारे मन के अंदर खोई है। ख़ुशी वहीं खोजो जहाँ खोई है।” गाँव के लोगों को यह बात समझ में आ गई थी कि राबिया उन्हें समझाने के लिए ही सूई खोजने का नाटक कर रही थी।

पहला दिन चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. गाँवों के लोग अपनी ख़ुशी कहाँ खोजते थे? जैसे:- एक छात्र अपने जीवन से एक-एक उदाहरण और बताएँ जब वे दूसरों से कोई काम कराना या दूसरों से कोई व्यवहार की उम्मीद में ख़ुशी ढूँढ रहा था और उसे ख़ुशी मिली।
2. गाँवों के लोग अपनी ख़ुशी कहाँ खोजते थे? जैसे:- एक छात्र अपने जीवन से एक-एक उदाहरण और बताएँ जब वे दूसरों से कोई काम कराना या दूसरों से कोई व्यवहार की उम्मीद में ख़ुशी ढूँढ रहा था और उसे ख़ुशी नहीं मिली।
3. हर एक छात्र अपनी ज़िंदगी से कोई उदाहरण देकर बताए कि जब उसने किसी से अपने मित्रों या संबंधियों की बुराई की हो। और यह सोचकर बताएँ कि बुराई के पीछे क्या यही कारण था कि वह दूसरे में ख़ुशी खोज रहा था या कोई और कारण था।
4. ऐसा अकसर क्यों होता है कि दूसरों की बुराई करने पर लोग ख़ुश होते देखे जाते हैं।
5. दूसरों की बुराई करने वाले लोग दूसरों में ख़ुशी ढूँढ रहे होते हैं या अपने अंदर ख़ुशी ढूँढ रहे होते हैं?
6. क्या दूसरों की बुराई करने वाले लोगों में कभी यह योग्यता आ सकती है कि वे अपने अंदर की ख़ुशी ढूँढ सकें?
(शिक्षक से अनुरोध: उपर्युक्त सभी प्रश्नों का मकसद है कि विद्यार्थी गहराई से अपने ख़ुद के मन के अंदर गहराई से झाँक सकें और खुलकर अपनी बात शेयर कर सकें। अगर विद्यार्थी ने अपने मन के अंदर गहरा उतरकर अपनी इस बीमारी को पकड़ लिया ओर उसकी यह समझ बन गई कि ख़ुशी तो मन के अंदर ही मिलेगी तो उसका आत्मविश्वास बेहद बढ़ जाएगा और वह दूसरे की प्रगति से जलने की जगह अपनी ही प्रगति की ओर आगे ध्यान देगा। इसलिए इन प्रश्नों पर चर्चा करते वक्त कोशिश करें की हर एक विद्यार्थी अपने मन में उतर सके और अपनी बात रख सकें। यह भी ध्यान रखें कि अपने जीवन से उदाहरण लेंगे एक साहस का काम है और किसी बच्चे का अपनी बात कहते हुए कोई उपहास बनाएँगे तो बच्चे की हिम्मत टूट जाएगी। हमेशा ऐसे वक्त में पूरी क्लास बच्चे को ध्यान से सुने और ज़रूरत पड़ने पर उसे प्रोत्साहित करे न की उसका मज़ाक बनाएँ। ज़रूरत पड़े तो बच्चे की झिझक मिटाने के लिए शिक्षक स्वयं अपने जीवन से कोई उदाहरण बताएँ। उपर्युक्त प्रश्नों पर चर्चा शुरू करें ताकि बच्चों का यह विश्वास बन सके कि इस बातचीत में कोई भी बात खुलकर बताई जा सकती है।)
1. आपके अनुसार, ख़ुशियों और दुखों के कौन-कौन से कारण होते है?
2. हम अपने अंदर ख़ुशी कैसे ढूँढ सकते हैं या पहचान सकते हैं?
3. इस कहानी को समझकर आपकी ज़िंदगी में क्या परिवर्तन आ सकता है?

दूसरा दिन अथवा आगे: 
● पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों से करवाएँ।
● पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए।
● घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं।

चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. “ख़ुश होना” और “ख़ुश दिखना” में क्या अंतर है? चर्चा करें। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हमारा ध्यान इनमें से किस तरफ़ ज़्यादा रहता है? ज़्यादा महत्वपूर्ण क्या लगता है?
2. यदि आप कोई अच्छा काम करें मगर उसे देखने वाला कोई नहीं है, तो आपको कैसा लगता है? क्या आपकी योग्यता इससे प्रभावित होती है? चर्चा करें।
**अगले सेक्शन में ख़ुशी क्या है, इसके कुछ और पहलू देखते हैं।  


Section 3: ख़ुशी क्या है? 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
● अभी तक हमने समझा की हम जो भी करते हैं ख़ुशी के लिए करते हैं; हमें ख़ुशी लगातार चाहिए, ख़ुशी हमारे अंदर होती है, बाहर नहीं 
● हम ख़ुश होना तो चाहते हैं, पर होते कैसे हैं 
● सभी ख़ुश रहना चाहते हैं, पर ‘ख़ुशी क्या है?’ इसमें स्पष्टता नहीं है। 
● हम अपने परिवार में या मित्रों के साथ भी ‘ख़ुशी क्या है?’ के बारे में चर्चा करें तो सभी के विचार अलग-अलग होंगे। 
● ऐसे में ‘ख़ुशी क्या है?’ की स्पष्टता के बिना ख़ुश होना संभव नहीं हो पाता। 
● इस section में हम ‘ख़ुशी क्या है?’ के बारे में अपनी स्पष्टता बनाएँगे। 
● Section के अंत तक बच्चों को यह स्पष्ट हो जाए कि सबका लक्ष्य तो ख़ुशी ही है, केवल इसे पाने के माध्यम/तरीके सबके लिए अलग-अलग हैं। अब एक गतिविधि के माध्यम से हम अपने में यह पहचान सकेंगे कि हमें ख़ुशी कब महसूस होती है। 

अब एक गतिविधि के माध्यम से हम अपने में यह पहचान सकेंगे कि हमें ख़ुशी कब महसूस होती है।


गतिविधि 3.1: हम कब ख़ुश होते हैं 

गतिविधि का उद्देश्य: यह समझना कि हम ख़ुश तब होते हैं जब हमारी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।
समय: एक से दो दिन अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक

गतिविधि के चरण: 
  • सबसे पहले शिक्षक बच्चों के साथ अपनी ज़िंदगी के वे पल शेयर करें जिनको याद करके उन्हें बहुत ख़ुशी महसूस हुई। 
  • अब यही वे विद्यार्थियों से पूछें कि, “हम कब-कब ख़ुश होते हैं? अपनी ज़िंदगी से कुछ घटनाएँ सोचें।” उदाहरण के तौर पर: 
    • जब अपना मनपसंद खाना खाया। 
    • जब हमारे मित्र ने हमारे होमवर्क में मदद की। 
    • जब हमारे टीचर ने हमें शाबाशी दी। 
    • जब हम अपने गाँव में परिवार वालों से मिले। 
    • जब पिछली कक्षा से पास हुए। 
  • अब सभी विद्यार्थयों को छोटे समूह (5-5 बच्चों के छोटे समूह बना दें) में अपनी-अपनी घटनाओं को साझा करने को कहें। 
  • अब कुछ विद्यार्थी स्वेच्छा से अपनी प्रेरक व सुखद घटनाओं को सामूहिक रूप से कक्षा में साझा करें। 
  • शिक्षक बच्चों के जवाब साथ ही साथ बोर्ड पर लिखें। 
चर्चा के लिए प्रस्तावित बिंदु: 
  • सबके उदाहरण बोर्ड पर लिखने के बाद बच्चों से पहली वाली सूची के बारे में पूछें की इन उदाहरणों को पढ़ कर हमको क्या लगता है, आख़िर इन पलों में हमने ख़ुशी क्यों महसूस की? इससे जवाब मिलेगा कि ख़ुशी आख़िर में है क्या। (इस पर खुली चर्चा हो। टीचर अपनी ओर से शुरू में कुछ जवाब ना दें। बच्चे अच्छी तरह चर्चा करें, उसके बाद चर्चा को इस दिशा में ले जाया जा सकता है की - जब हमें कुछ अच्छा लगता है या हमारी कोई अपेक्षा पूरी हो जाती है या जब हमें जिस चीज़ की आवश्यकता महसूस हो वह मिल जाए तब हम ख़ुश होते हैं।) उदाहरण के लिए: जब टीचर शाबाशी देता है तब हमारी उनसे यह अपेक्षा पूरी होती है की वह हमको पहचानें; जब हमें अच्छा खाना मिलता है तब हमारी भोजन की आवश्यकता पूरी होती है; जब मित्र हमें होमवर्क में मदद करता है तो हमारी सहयोग की आवश्यकता पूरी होती है और पढ़ाई में और अच्छे से सीखने-समझने की आवश्यकता पूरी होती है, आदि। इस प्रकार छात्रों को और सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। 
क्या करें और क्या न करें :- 
  • कक्षा का वातावरण ख़ुशहाल और संकोच-मुक्त हो, इस बात पर ध्यान दिया जाए। 
  • घटना साझा करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित किया जाए लेकिन प्रारंभ में जो छात्र सहज महसूस न करें उन्हें बाध्य न किया जाए।  
गतिविधि 3.2: हमारे दु:खी होने के कारण 

गतिविधि का उद्देश्य: विद्यार्थियों की यह समझ बने कि:
 1. जब-जब वह दु:खी होता है तो कहीं न कही उसकी किसी आवश्यकता के पूरे न होने में रुकावट आ रही होती है।
 2. वह गहराई से अपनी उस आवश्यकता की ओर भी ध्यान दे सके जिसके पूरा न होने पर उसका मन थोड़ा या ज़्यादा दुख की अवस्था में है।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक

गतिविधि के चरण: 
  • सभी बच्चों से 2-4 मिनट बातचीत करके यह माहौल बनाएँ कि बच्चे अपनी रोजाना की ज़िंदगी में उन घटनाओं को याद कर सकें जब-जब वे दु:खी महसूस करते हैं। इस चर्चा में दुख के अलग-अलग भावों का भी जिक्र करें। जैसे- परेशान होना, चिंता करना, उदास होना, निराश होना, दु:खी होना इत्यादि। 2-4 मिनट की चर्चा के बाद बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे अपनी नोटबुक में ऐसे कुछ उदाहरणों की सूची बनाएँ जब वे पिछले कुछ दिनों में दु:खी हुए थे। घटना के उदाहरण: 
    • जब हमारे पिता जी ने हमको डाँटा 
    • जब हमारे टीचर ने हमारी जगह किसी और बच्चे को स्टेज पर जाने का मौक़ा दिया 
    • जब बहन के साथ लड़ाई हो गई 
    • जब जोर की भूख लगी थी और पास में खाना नहीं था 
    • जब चोट लग गई 
    • जब परीक्षा में नंबर कम आए 
    • जब हमारी पेंसिल खो गई 
    • जब किसी सवाल का उत्तर पता न हो 
  • अब बच्चों से उनकी सूचियाँ पढ़ने के लिए कहें। साथ ही साथ बोर्ड पर भी लिखते रहें। इस बात का ध्यान रखना ठीक रहेगा कि दोहराव न हो। 
  • इस सूची में जो सामान या सुविधा से संबंधित है उन पर गोल घेरा लगा दिया जाए। (जैसे- बस पर सीट ना मिलना, पेंसिल खो जाना इत्यादि) 
  • बची हुई चीज़ों में से जो दुःख, संबंध में कमी के कारण हैं उन्हें underline कर दिया जाए। (जैसे: डाँट पड़ना, मौक़ा न मिलना, किसी बात पर ग़ुस्सा होना, ईर्ष्या होना, डर लगना इत्यादि) 
  • अब बची हुई चीज़ों में से जो दुःख, समझ की कमी के कारण है उन्हें भी चिह्नित कर लें। (जैसे: सवाल के उत्तर न मिलना, परीक्षा में नंबर कम आना इत्यादि) 
  • यदि सूची में कुछ और भी बच गया है तो उसे पुन: देख लेना ठीक रहेगा कि वह उपर्युक्त तीन श्रेणियों में से किसी एक में ही जाएगा। 
  • ऐसा हो सकता है कि कोई चीज़ एक से अधिक श्रेणी में आती हो। (जैसे: परीक्षा में नंबर कम आने का दुःख समझ की कमी से है, लेकिन नंबर कम आने से माता-पिता भी दु:खी होते हैं जो कि संबंध का दुःख है।) इन्हें भी नोट कर लें। 
चर्चा के प्रश्न: 
1. हमारे दुःख के तीन ही कारण हैं। सामान की कमी, संबंध(भाव) की कमी और समझ की कमी? सहमत/असहमत। कैसे? चर्चा करें।
2. आपको क्या लगता है कि ज़्यादा दुःख किस कारण से हैं- सामान की कमी, संबंध या समझ की कमी के कारण? चर्चा करें।
3. सामान की कमी का दुःख कितने देर तक रहता है? उदाहरण सहित बताएँ। (चर्चा की दिशा: जब तक वस्तु उपलब्ध नहीं हो जाती)
4. संबंध की कमी का दुःख कितने देर तक रहता है? उदाहरण सहित बताएँ। (चर्चा की दिशा: जब तक संबंध में तालमेल पूर्वक जीना नहीं आ जाता)
5. समझ की कमी का दुःख कितने देर तक रहता है? उदाहरण सहित बताएँ। (उत्तर: जब तक समझ नहीं आ जाती)
6. इन दुखों से निकलने का रास्ता क्या है?  


कहानी 3.1: क्या असली तो क्या नकली 

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को दुःख की परिस्थिति में भी सभी पहलुओं में अपनी समझ को और संबंध बनाए रखते हुए निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना। सामान की ख़ुशी से ज़्यादा गहरी संबंध और समझ की ख़ुशी है यह बात स्पष्ट हो जाए।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक

कहानी: 
सोहन के पिता के निधन के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। ऐसे में माँ ने घर चलाने के लिए सोहन को अपना एक हार दिया और कहा कि इसे अपने चाचा की दुकान पर बेच देना। सोहन के चाचा एक जौहरी थे। सोहन ने अपने चाचा को जब हार दिखाया तो चाचा ने हार को अच्छे से देखा और कहा कि अभी बाजार मंदा है, इसे थोड़ा रुककर बेचना। यह सुनकर सोहन थोड़ा निराश हुआ परन्तु तभी चाचा ने कहा कि अभी तो तुम मेरी दुकान पर नौकरी कर सकते हो, वैसे भी मुझे एक भरोसेमंद सहायक की ज़रूरत है। सोहन अगले दिन से दुकान पर काम सीखने लगा। वहाँ उसे हीरों व रत्नों की परख का काम सिखाया गया। धीरे-धीरे उसे रत्नों की परख करना आ गया। कुछ महीनों बाद उसके चाचा ने उससे कहा कि जो हार तुम बेचना चाहते थे, उसे अब ले आओ। सोहन ने घर जाकर माँ का हार जैसे ही हाथ में लेकर गौर से देखा तो पाया कि वह हार तो नकली है! वह तुरंत दौड़कर चाचा के पास पहुँचा और पूछा कि आपने मुझे तभी सच क्यों नहीं बताया जब मैं इस हार को बेचने आया था? इस पर चाचा ने कहा कि अगर मैं तुम्हें उस समय सच बता देता तो तुम्हें लगता कि संकट की घड़ी में चाचा भी तुम्हारे कीमती हार को नकली बता रहे हैं और तुम्हारी मदद नहीं करना चाहते। आज जब तुम्हें ख़ुद ही गहनों को परखने का ज्ञान हो गया है तो अब तुम ख़ुद असली-नकली की पहचान कर सकते हो।

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. क्या सही-गलत की पहचान ख़ुद कर पाने से आपकी ख़ुशी बढ़ती है? कैसे? एक उदाहरण दीजिए।
2. कोई एक उदाहरण देकर बताइए जब आपको पता चला कि आप कई दिनों से जिस बात को जैसे माने हुए थे वह वैसी नहीं थी। (जैसे ice-cream अकेले खाना और दोस्तों के साथ खाने में हम दोस्तों के साथ ही पसंद करते हैं जिससे हमें एहसास होता है की दोस्तों के साथ बिताए हुए समय की ख़ुशी अकेले रहकर आइस-क्रीम खाने से कई ज़्यादा है।) इसका पता चलने पर आपको कैसा लगा और क्यों? घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
दूसरा दिन अथवा आगे: 
  • शिक्षक विद्यार्थियों से कहानी की पुनरावृत्ति करवाएँ। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. यदि किसी परिस्थिति में आपको संबंध या सामान में से कोई एक चुनना हो तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?
2. सोहन के चाचा ने उसको पैसे न देकर सही-गलत को परखने की समझ दी। आप अपने जीवन से एक ऐसा उदाहरण दीजिए जब आप भी सही-गलत की समझ को प्राप्त करके ख़ुश हुए हों।

क्या करें और क्या न करें: 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें।


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