Chapter 7: ख़ुशहाल परिवार


शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
पिछले अध्याय में हमने देखा है कि:

  • समझदार इंसान ही सुखी रह सकता है। 
  • वह अपनी भौतिक और भावनात्मक आवश्यकताओं को समझकर, उनकी पूर्ति के लिए सक्षम होता है। 
  • समझदार इंसान स्पष्टता से जीता है। इसी कारण से वह सुखी रहता है। 
  • और अपने परिवार और समाज के लिए उपयोगी होता है। उनके लिए व्यवस्थित रूप से अपनी भागीदारी निभाता है।
प्रत्येक मानव परिवार में रहता है। मानव का अधिकांश समय परिवार में ही बीतता है। हमारे जीने का सबसे महत्वपूर्ण स्थान परिवार है।
परिवार में समझदार माता-पिता प्यार और समानता का वातावरण बनाकर रखते हैं और बच्चों को सही मार्गदर्शन देने में सक्षम होते हैं। माता-पिता की तरह दादा-दादी, चाचा-चाची, नाना-नानी, मामा-मामी एवं अन्य सभी बड़े भी बच्चों को लगातार प्यार, मार्ग दर्शन, सही शिक्षा, सुरक्षा का वातावरण प्रदान करते हैं।
माता-पिता का पुत्र-पुत्री से संबंध जन्म से ही होता हैI बच्चे के जन्म के समय से ही माता-पिता उसकी सेवा, आवश्यकता की पूर्ती और शिक्षा की व्यवस्था करते हैंI माता-पिता के वृद्ध होने पर बच्चे उनकी सेवा करते हैंI समझदार (ख़ुशहाल) परिवार में सब एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं और एक-दूसरे को सुखी रखने का प्रयास करते हैं। यह परिवार का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। ख़ुशहाल परिवार में सभी बड़े इसमें expert होते हैं। परिवार में बच्चे भी इसे (परिवार में प्यार से, मिल-जुलकर जीना) समझते और सीखते हैं और बड़े होते-होते वे भी इसमें expert हो जाते हैं।
यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है यही संबंधों का निर्वाह कहलाता हैI संबंधों के निर्वाह से ही परिवार में ख़ुशी रहती हैI निर्वाह न होने पर परिवार के सदस्य दु:खी होते हैं और संबंधों में दरार आ जाती हैI
इस अध्याय में हम परिवार में संबंधों को ठीक प्रकार से समझने की कोशिश करेंगे I

Section1: परिवार एक व्यवस्था 
कहानी 1.1: पतंग की डोर
कहानी 1.2: बड़ा आदमी

Section 2: संबंधों में योगदान 
कहानी 2.1: भाई है बोझ नहीं
कहानी 2.2: मिल-जुलकर

Section 3: परिवार में संबंध 
गतिविधि 3.1: माता-पिता/ पुत्र-पुत्री संबंध को पहचानना
गतिविधि 3.2: भाई-बहन/मित्र-मित्र संबंध को पहचानना


Section 1: परिवार एक व्यवस्था 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: अधिकतर परिवारों में सुविधाओं को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, अकसर हमने ऐसा देखा हैI हम अकसर परिवार को वह जगह मान कर चलते हैं जहाँ हम जैसा चाहें वैसा हो, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। परिवार वह जगह है जहाँ हम इकट्ठा होकर एक-दूसरे के सुख और समझ के लिए योगदान देते हैं। समाज में एक साथ खड़े हो कर अपनी भूमिका निभाते हैं। निम्न कहानियों के द्वारा पारिवारिक संबंधों के महत्त्व पर बात की जा सकती है। 

  कहानी 1.1: पतंग की डोर 

उद्देश्य: कहानी के माध्यम से विद्यार्थी समझ पाएँगे कि संबंध बंधन नहीं है बल्कि संबंधों मे रहना ही सुख की अनुभूति है।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी: 
एक दिन मंजीत अपने पिता के साथ छत पर पतंग उड़ाना सीख रहा था। मंजीत के पिता ने पतंग को थोड़ा ऊँचाई देकर उसकी डोर मंजीत के हाथ में दे दी। जल्द ही उसकी पतंग आकाश में ऊँची उड़ गई। थोड़ी देर के बाद मंजीत ने पूछा, "क्या ऐसा नहीं लगता कि यह पतंग आज़ाद होकर आकाश में और ऊँचा उड़ना चाहती है, लेकिन हमारे हाथ में जो इसकी डोर है, वह इसे और ऊँचा उड़ने से रोक रही है। अगर हम इस दौर को छोड़ दें तो यह पतंग आकाश में और ऊँचा उड़ सकती है।” ऐसा कहकर मंजीत ने अपने पिता से पूछा कि क्या हम इस डोर को तोड़ दें?
पिता जी ने कुछ कहे बिना धागा काट दिया। पतंग ने थोड़ा ऊँचा जाना शुरू कर दिया। इससे मंजीत बहुत ख़ुश हुआ। थोड़ी ही देर में पतंग धीरे-धीरे नीचे आना शुरू हो गई और जल्द ही वह एक घर की छत पर गिर गई। मंजीत को यह देखकर आश्चर्य हुआ। पिता ने मंजीत के कंधे पर प्यार से हाथ रखा और मुस्कराकर बोले “मैं पहले से जानता था कि अगर हम डोर काट देंगे तो पतंग गिर जाएगी। डोर से बंधे रहने के कारण पतंग को सही दिशा मिलती है और वह ऊँचा उड़ पाती है।” मंजीत ने थोड़े आश्चर्य से पूछा कि आप अगर जानते थे तो फिर आपने मेरे कहने पर पतंग की डोर क्यों काट दी थी। पिता ने कहा कि मैं चाहता था कि इस पतंग से तुम भी कुछ अपने बारे में सीख ले लो। मंजीत ने पूछा कि क्या सीख लेनी चाहिए। पिता ने कहा कि हमारा परिवार और हमारे संबंध इस डोर की तरह ही हमें बांधे रहते हैं। हम जब आगे बढ़ते हैं, ऊँचा उठते हैं तो यही संबंध ज़रूरत पड़ने पर हमें ढील देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर हमारी डोर को खींच लेते हैं ताकि हम अपना रास्ता न भटकें। परिवार की डोर से बंधकर ही हमें इस खुले आसमान जैसे संसार में सफलतापूर्वक जीने के लिए सही दिशा मिलती है।

चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. कई बार परिवार के बड़े लोग बच्चों को टोकते या समझते रहते हैं। क्यों समझाते हैं? आपको क्या लगता है ऐसा करने से उन्हें क्या मिलता होगा?
2. एक ऐसी घटना का उदाहरण दें जब किसी परिवार के सदस्य ने आपको कुछ समझाया हो और उस समय उनकी वह बात आपको अच्छी नहीं लगी पर उनकी बात मानने के बाद आपने यह महसूस किया कि आपको फायदा हुआ।
3. क्या कभी आपने अपने परिवार में अपने माता पिता की आप बड़े भाई बहन से यह जानने की कोशिश की है कि जब वह बच्चे थे तब उनको भी अपने माता पिता का पतंग की डोर की तरह हर वक्त नियंत्रित करने का व्यवहार उन्हें कैसा लगता था?

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 

  • घर जाकर बच्चे अपने माता-पिता या बड़े भाई बहन से यह जानने की कोशिश करें कि जब वह बच्चे थे तो क्या उन्हें भी उस वक्त अपने माता-पिता का व्यवहार पतंग की डोर की तरह बंधन जैसा लगता था? 
  • क्या वह भी उस समय ऐसा सोचते थे कि अगर हमारी यह डोरियाँ खुल जाएँ तो हम बहुत ऊँचा उड़ सकते हैं. 
  • उनसे यह भी जानने की कोशिश करें कि आज वह उसके बारे में क्या सोचते हैं? 
  • बच्चे यह भी ध्यान दे कि कब-कब और किस-किस ने आपको कुछ समझाने का प्रयास कियाl ऐसे में उस व्यक्ति के साथ आप का क्या संबंध है? इस बारे में सोचेंl उस संबंध में होने के कारण आपको कितनी ख़ुशियाँ मिली हैं इस पर भी ध्यान दें 
 दूसरा दिन: 
पिछले दिन की कहानी पर एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति की जाए। घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूह में बातचीत करेंगे। पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।

चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. ऐसी घटना बताओ जब आपके प्रियजनों ने आपको सही राह दिखा दी और आप गलत रास्ते पर जाने से बच गए।
2. क्या ऐसे संबंध सभी के लिए ज़रूरी हैं जिनमें समय-समय पर हमें गलत काम करने से रोकने वाले लोग या निराशा वाली स्थिति में हमें प्रोत्साहन देने वाले लोग हमारे साथ हमेशा बने रहे, इस पर चर्चा करें।

चर्चा की दिशा: हम सब किसी न किसी संबंध में जुडे हैं। यह संबंध कभी कभी बंधन की तरह लगने लगते हैं। एक अनदेखी डोर जो हमें एक-दूसरे से बांधे रखती है वही हमें सही दिशा दिखाती है। एक पतंग डोर से बँधकर ही सही दिशा में ऊँचा उड़ पाती है। डोर से कट जाने के बाद उसका उड़ना बंद हो जाता है, किंतु ध्यान रखने योग्य बात है कि यदि उस पतंग की डोर किसी जानकार व्यक्ति के हाथ में आ जाए तो फिर से खुला आसमान है उसके उड़ने के लिए और वह नई ऊँचाइयों को छूती है।  


कहानी 1.2: बड़ा आदमी

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों में माता-पिता के प्रति आदर भाव विकसित करना और यह भावना भी विकसित करना कि किसी के प्रति कोई धारणा बनाने से पहले सोचें।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी: 
एक परिवार में माता-पिता बड़ी मेहनत से अपने बच्चे को पढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन बच्चा हमेशा अपनी क्लास के धनी मित्रों के महँगे मोबाइल, घड़ी आदि देखकर अपने मम्मी–पापा पर झुंझलाता रहता था। उसे एक बार मोटरसाइकिल लेने की धुन सवार हो गई। माता-पिता के पास पैसे नहीं थे। पापा के मना करने पर एक दिन वह बहुत गुस्सा हो गया और गुस्से में घर से चला गया। वह इतने ग़ुस्से में था कि ग़लती से पापा के ही जूते पहनकर निकल गया। मन में सोच रहा था कि बस आज घर छोड़ दूँगा। तभी लौटूँगा जब बड़ा आदमी बन जाऊँगा। अगर मुझे मोटरसाइकिल नहीं दिलवा सकते हैं तो मुझे इंजीनियर बनाने के सपने क्यों देखते हैं।
बच्चे ने पापा का पर्स उठा लिया, जिसे पापा किसी को हाथ तक नहीं लगाने देते थे। उसने सोचा पर्स में पैसे होंगे और पैसों के हिसाब-किताब की डायरी भी होगी। पता चल जाएगा कि पापा ने कितना पैसा कहाँ-कहाँ बचा कर रखा है।
बच्चा जैसे ही गली से आगे सड़क तक आया उसे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है। उसने जूता निकाल कर देखा कि जूते की कील निकली हुई थी। उसे दर्द तो हुआ, लेकिन ग़ुस्से में वह आगे बढ़ता चला गया। जैसे ही कुछ दूर चला पाँव में गीला-गीला लगा। सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था। पाँव उठाकर देखा तो जूते का तला टूटा हुआ था। कील अलग से चुभ रही थी। जैसे-तैसे लंगड़ाकर बस स्टाप तक पहुँचा। जब काफ़ी देर तक कोई बस नहीं आई तो उसने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ले ली जाए। उसने पर्स खोला, उसमें एक पर्ची दिखाई दी जिसमें लिखा था- “मोबाइल के लिए 10 हजार उधार”। उसे याद आया कि पापा ने पिछले महीने जो मोबाइल लाकर दिया था, वह किसी से उधार लेकर आए थे।
उसने पर्स में मुड़ा हुआ दूसरा पन्ना देखा। उसमें उनके ऑफिस के किसी प्रोग्राम की हॉबी-डे की पर्ची थी। उसके पापा ने अपनी हॉबी लिखी थी- अच्छे जूते पहनना। उसने अपने पैरों में पहने पापा के जूतों को देखा तो उसे बहुत दु:ख हुआ। उसे याद आया कि माँ पिछले चार महीने से हर बार सैलरी आने पर पापा से कहती थी कि नए जूते ले लो। पापा हँसकर कहते थे कि अभी तो छह महीने और चलेंगे। अब मैं समझा कि जूते कितने और चलेंगे।
तीसरी पर्ची खोली। उसमें एक विज्ञापन था कि पुराना स्कूटर देकर बदले में नई मोटरसाइकिल लीजिए। यह पढ़ते ही उसका दिमाग घूम गया। इसका मतलब पापा अपने स्कूटर के बदले मेरी मोटर साइकिल -----------। वह घर की ओर दौड़ा। घर पहुँचा तो वहाँ न पापा थे न स्कूटर। वह सब समझ गया और तुरंत दौड़कर नज़दीकी मोटरसाइकिल एजेंसी पर पहुँचा। पापा वहीं थे। उसने पापा को गले लगा लिया। आँसुओं से उनका कंधा भिगो दिया। बोला, “मुझे नहीं चाहिए मोटरसाइकिल। बस आप नए जूते ले लो। मुझे बड़ा आदमी तो बनना है, मगर आप जैसा।’’

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. क्या कभी आपने अपने माता पिता से बैठकर यह चर्चा की है कि वह घर के ख़र्चे चलाने के लिए या आपकी पढ़ाई या शौक का खर्च पूरा करने के लिए पैसे की व्यवस्था कैसे करते हैं? उनकी अपनी आमदनी क्या है? उनके ऊपर ख़र्चों की क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं?
2. क्या आपने कभी अपने माता-पिता के साथ बैठकर इस पर चर्चा की है कि वह अपनी कमाई में से अपनी ज़रूरतों पर कितना पैसा खर्च करते हैं?
3. माता-पिता इतनी मुश्किलों के बावज़ूद संतान को क्यों पढ़ाना-लिखाना चाहते हैं?
4. क्या आपने किसी से प्रभावित होकर अपने माता-पिता से कोई मांग की है? उदाहरण सहित बताइए।
5. क्या जीवन में सफलता पाने के लिए महँगे मोबाइल, घड़ी, साइकिल जैसी वस्तुएँ अनिवार्य हैं? क्यों? घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): विद्यार्थियों को यह कहा जाए कि वह घर जा कर अपने परिवार में आज की इस कहानी की चर्चा करें और अपने परिवार के सदस्यों के विचार भी जाने। साथ ही परिवार के सदस्यों के साथ ऊपर लिखे प्रश्नों पर भी चर्चा करें।

दूसरा दिन:
  • पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं। 
  • पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए। 
  • घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं। 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपने कभी किसी के बारे में बिना पूरी बात जाने कोई धारणा बनाई हो, और बाद में वह ग़लत साबित हुई हो? तब आपने क्या किया? उदाहरण सहित बताइए I
2. आपको क्या लगता है कि जीवन में सफल होने के लिए क्या होना अनिवार्य है? क्यों?

Section 2: संबंधों में योगदान 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: 

  • दो लोगों के बीच जो संबंध हैं उनको निभाने के लिए हम हर समय कोशिश करते हैं। 
  • समझदारी को बढ़ाने के लिए परिवार और समाज में कर्तव्य निर्वाह के लिए हमें अपना योगदान देना ही होता है। यह हमारी भूमिका है, इससे बचने की कोशिश करना अपनी ज़िम्मेदारियों से भागना होगा। 
  • यह “योगदान” ही “निर्वाह” (निभाना) है। 


  कहानी 2.1: भाई है बोझ नहीं 

उद्देश्य: विद्यार्थियों में पारिवारिक संबंधों मैं विश्वास रखने और उनके निर्वाह करने की क्षमता का विकास करना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी:
 दो मित्र कई साल बाद एक दिन अचानक मिले। दोनों ने एक-दूसरे का सुख-दुख पूछा। पहले मित्र ने बताया कि सब कुछ ठीक चल रहा है। दूसरा मित्र थोड़ा दु:खी था। उसने कहा कि पिछले वर्ष उसके पिताजी गुज़र गए। उसके बाद से छोटे भाई की फ़ीस का बोझ उसके सर पर आ पड़ा है बाकी तो सब ठीक चल रहा है। तभी उन्होंने सामने देखा एक पहाड़ी लड़की जिसकी उम्र कोई नौ-दस साल की थी, वह अपने छोटे भाई को कंधे पर उठाकर ऊपर चढ़ रही थी। पसीने से लथपथ, लेकिन लगातार ऊपर की ओर बढ़ रही थी।
जब इन दोनों मित्रों के पास से वह गुज़री तो उन्होंने सहानुभूति के स्वर में उस लड़की से कहा,‘‘बेटा तुम्हें पसीना आ रहा है। तुम भाई के बोझ से थक गई होगी। थोड़ी देर के लिए हम तुम्हारे भाई को गोद में उठा लेते हैं। तुम्हें थोड़ा आराम मिल जाएगा।’’ लड़की ने उन दोनों मित्रों की तरफ़ देखा और कहा ‘‘यह कैसी बात है, अंकल? बोझ आपके लिए होगा। मेरा तो छोटा भाई है बोझ नहीं।’’
लड़की का जवाब सुनते ही दोनों मित्रों को एहसास हुआ कि थोड़ी देर पहले वह कैसी बातें कर रहे थे। यह लड़की अपने भाई से अपने संबंध को समझती है और जहाँ संबंध होता है वहाँ बोझ कैसे हो सकता है? मित्र को अपने भाई के लिए अपनी गलत सोच का एहसास हो गया था। छोटी-सी लड़की ने उसे समझा दिया कि भाई-भाई होता है, बोझ नहीं।

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. पहाड़ी बच्ची ने अपने भाई को बोझ क्यों नहीं माना? आप कौन से संबंधों को बोझ नहीं मानते? क्यों?
2. जिन संबंधों को आप मन से स्वीकार कर लेते हैं वह आपको बोझ क्यों नहीं लगते?
3. बोझ और ज़िम्मेदारी में क्या अंतर है?
4. रिश्ते को बोझ मानकर निर्वाह करने के तरीके में और रिश्ते को ज़िम्मेदारी मानकर निर्वाह करने के तरीके में क्या अंतर होता होगा?

दूसरा दिन: 
  • पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं। 
  • पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए। 
  • घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 1. पारिवारिक संबंधों मैं मधुरता लाने के लिए आप क्या-क्या प्रयास कर सकते है? अपने जीवन से उदाहरण दीजिए। (अगर बच्चों की तरफ़ से कोई स्पष्ट उत्तर ना आए तो कुछ संभावित उत्तर इस तरह भी हो सकते हैं- सॉरी बोलना, बातचीत करना, उनके साथ हंसी-ख़ुशी समय बिताना आदि।) 2. आप अपने परिवार मैं कौन-कौनसी ज़िम्मेदारी निभाते हैं और क्यों?

क्या करें और क्या न करें: 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें।   
कहानी 2.2: मिल-जुलकर 

उद्देश्य: छात्रों को परिवार में मिल-जुलकर रहने के महत्व से रूबरू कराना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी:
एक व्यक्ति के चार बेटे थे। वे आपस में खूब झगड़ा करते थे। वह व्यक्ति उन्हें खूब समझाता, परंतु वे कुछ भी न समझते। जब बातों के द्वारा वह अपने बच्चों के झगड़ों को रोकने में सफल नहीं रहा तो उसने कुछ प्रयोग करके इसका समाधान करने का निर्णय लिया।
एक दिन उसने अपने बेटों से कहा कि वह उसे लकड़ियों का एक बंडल लाकर दें। जब उन्होंने ऐसा किया तो उसने उनमें से प्रत्येक के हाथों में वह बंडल देकर उसे तोड़ने के लिए कहा। उन्होंने अपनी पूरी ताकत से कोशिश की और ऐसा करने में वे सफल नहीं हो पाए। उसने अगली बार बंडल खोला और एक-एक करके लकड़ियों को अलग-अलग किया और फिर उन लकड़ियों को अपने बेटों के हाथों में देकर उन्हें तोड़ने के लिए कहा। इस बार उन्होंने उन लकड़ियों को आसानी से तोड़ दिया।
अब वह व्यक्ति अपने बेटों से बोला, "बच्चों यदि तुम मिल-जुलकर एक रहोगे और एक-दूसरे की सहायता करने के लिए एकजुट रहोगे तो तुम अपने दुश्मनों के सभी प्रयासों को इस बंडल की तरह मज़बूत रहकर विफल कर सकते हो। यदि तुम आपस में बँटे रहोगे तो आसानी से टूट जाओगे और लोग तुम्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं। ”

चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. परिवार कब टूटते हैं जब पैसा नहीं होता या आपस में एकता नहीं होती?
2. चाहे क्रिकेट टीम हो या स्कूल की कोई खेल या म्यूज़िक आदि की टीम हो, भले ही उसमें कितने ही प्रतिभावान खिलाड़ी क्यों ना हो, क्या वह बिना एकता के कभी जीत सकती है?
3. क्या आप के साथ कभी ऐसा हुआ है जब आप मिल-जुलकर काम नहीं कर पाए और उसका नुकसान आपको उठाना पड़ा? ऐसा कोई उदाहरण दें और यह भी चर्चा करें के तब क्या निष्कर्ष निकला।
4. कब-कब आपने परिवार में मिलकर रहने से काम पूरे होते देखें, उदाहरण के साथ बताएँ।

 घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): अपने आस पड़ोस से ऐसे उदाहरण इकट्ठे करो जिनमें आपको मिल-जुलकर रहने का महत्व नज़र आता है। परिवार में भी इस विषय पर चर्चा करो।

दूसरा दिन: 
कहानी पर एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति की जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए, आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं। पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।

चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. किस प्रकार आप विद्यालय में मिल-जुलकर काम करते हैं और कार्य करने में सफल हो पाते हैं?
2. अपने गली मोहल्ले में मिलजुलकर किए गए कार्यों को साझा करें।

चर्चा की दिशा: यदि हम अपने परिवार, समाज, देश और इस धरती पर मिल-जुलकर रहें तो जीवन सुखी हो सकता है, क्योंकि सभी मानव सुख से जीना चाहते हैं और अपनेपन के साथ अखंड होकर जीने में ताक़त है और सुख भी है।
Section 3: परिवार में संबंध 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: संबंधों में आदमी रहता ही है। माँ के गर्भ में रहता है तो भी संबंध है। गोद में रहता है तो भी संबंध है। समझदार आदमी हर संबंध के प्रयोजन को पहचानता है। माँ की गोद में बैठे हुए बच्चे द्वारा माँ के प्रयोजन की पहचान होना। पिता के संरक्षण में पिता के प्रयोजन की पहचान होना। इस section में हम माता-पिता और पुत्र-पुत्री संबंध में भाव को पहचानने की कोशिश करेंगे।

गतिविधि 3.1: माता-पिता/ पुत्र-पुत्री संबंध को पहचानना 

गतिविधि का उद्देश्य: 
1. माता-पिता --- पुत्र-पुत्री संबंध को बच्चा समझ सकेगा।
2. माता-पिता --- पुत्र-पुत्री संबंध में पूरकता (भाव) को पहचान सकेगा।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

गतिविधि के चरण: 
चार या पाँच छोटे समूह बनाकर निम्नलिखित 4 प्रश्न पर्ची पर लिखकर हर एक समूह को दिया जाए और आपस में 5 मिनट चर्चा करके उसी पर्चे पर प्रमुख बिंदुओं को नोट करने को कहाँ जाए:-
1. हम सभी अपने परिवार में माता-पिता संबंध को किस प्रकार पहचानते है? (संभावित उत्तर :- बचपन से बताया गया है)
2. आपको अपनी माता से कुछ अपेक्षाएँ रहती हैं, उदाहरण दीजिए।
3. आपको अपने पिता से कुछ अपेक्षाएँ रहती हैं, उदाहरण दीजिए।
4. आपके माता-पिता की आपसे भी कुछ अपेक्षाएँ रहती हैं? 5. ये अपेक्षाएँ केवल वस्तु की हैं या भाव की भी, उदाहरण दीजिए।
अब हर एक समूह से कोई एक सदस्य अपने समूह का विचार 3 मिनट में रखे

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 

  • क्या उपर्युक्त अपेक्षाएँ (जो विद्यार्थियों ने पर्चियों पर लिखी हैं) हमेशा पूरी होती हैं या नहीं? चर्चा करें। 
  • जो भी सदस्य अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर पाता उसकी चाहत (intention) में कमी होती है या योग्यता में? चर्चा करें। 
  • क्या आपके माता-पिता चाहते होंगे कि आप बड़े होकर स्वावलंबी हो जाएँ? या वे चाहते होंगे कि आप हमेशा उन पर निर्भर रहें? क्या सभी माता-पिता ऐसा ही चाहते होंगे? 
  • क्या आप चाहते हैं कि आप बड़े होकर स्वावलंबी हो जाएँ? या आप चाहते है कि आप हमेशा माता-पिता पर निर्भर रहें? क्या सभी विद्यार्थियों की सोच इस पर एक जैसी है या अलग-अलग? 

दूसरा दिन: 
1. विद्यार्थी अपने माता-पिता द्वारा उनके लिए किये जाने वाले कार्यों की सूची बनाकर ले आए होंगे। उसे कक्षा में प्रस्तुति कराई जाएगी। दोहराव से बचा जाए।
2. माता-पिता के द्वारा व्यक्त “ममता” और “वात्सल्य” मूल्य पर चर्चा की जाएगी।
(ममता अर्थात अपने संतान के शरीर के पोषण संरक्षण हेतु तन, मन, धन लगाने की स्वीकृति)
(वात्सल्य अर्थात अपने संतान के शिक्षा- संस्कार हेतु तन, मन, धन लगाने की स्वीकृति)
  • कौन-कौनसे संबंध माता-पिता संबंध जैसे ही हैं? इस पर भी चर्चा की जाएगी। 
  • संतान द्वारा व्यक्त कृतज्ञता मूल्य पर चर्चा की जाएगी।

(कृतज्ञता अर्थात जिस किसी ने भी मेरी सुविधा और समझ के लिए अपना योगदान दिया हो उसे स्मरण रखना)

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:- 
1. माता-पिता के ममता-वात्सल्य को आप किस प्रकार से देख पाते हैं?
2. आप स्वस्थ रहें इस बात के लिए आपके माता-पिता क्या-क्या करते हैं?
3. आप समझदार और ज़िम्मेदार हो जाएँ इस बात के लिए आपके माता-पिता क्या-क्या करते हैं?
4. आपका अपने माता-पिता के लिए क्या-क्या ज़िम्मेदारी है?  


गतिविधि 3.2: भाई-बहन/ मित्र-मित्र संबंध को पहचानना 

गतिविधि का उद्देश्य: 1. भाई-बहन संबंध में विश्वास, सम्मान को बच्चा समझ सकेगा। 2. मित्र-मित्र संबंध में पूरकता (मूल्यों) को बच्चा पहचान सकेगा। समय: कम से कम दो पीरियड बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक आवश्यक सामग्री: किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं है।

शिक्षक के लिए नोट:
परिवार में भाई-बहन संबंध को बचपन से ही बताया जाता है। जैसे- हर लड़की को बहन के रूप में संबोधन करने का रिवाज है चाहे अपने परिवार की हो चाहे पास-पड़ोस, गाँव की क्यों न हो और भाई के संबोधन से संबंधों का आरंभिक परिचय भी रहता ही है। इसमें आवश्यक है संबंधों के प्रयोजन को पहचानना। जैसे- भाई संबंध में प्रयोजन को पहचानना। बहन संबंध में प्रयोजन को पहचानना। मित्र संबंध में प्रयोजन को पहचानना। मानव-मानव संबंध को हम मूल्यों के आधार पर ही पहचानते हैं। इस गतिविधि में हम भाई-बहन और मित्र-मित्र संबंध में मूल्यों को पहचानने की कोशिश करेंगे। 

गतिविधि के चरण: चार या पाँच छोटे समूह बनाकर निम्नलिखित 3 प्रश्न पर्ची/बोर्ड पर लिखकर हर एक समूह को दे दें और आपस में 5 मिनट चर्चा करने को कहे-
1. हम सभी अपने परिवार में भाई-बहन संबंध को किस प्रकार पहचानते है? (संभावित उत्तर: बचपन से बताया गया है।)
2. आपको अपने भाई/बहन से क्या अपेक्षाएँ रहती हैं? उदाहरण दीजिए।
3. ये अपेक्षाएँ केवल वस्तु की हैं या भाव की भी? उदाहरण दीजिए।
4. क्या यही अपेक्षाएँ मित्रों से भी हैं?
अब हर एक समूह से कोई एक सदस्य अपने समूह के विचार 3 मिनट में रखे।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. क्या उपर्युक्त अपेक्षाएँ (जो बच्चों ने पर्चियों पर लिखी हैं) हमेशा पूरी होती हैं या नहीं? चर्चा करें।
2. जो भी सदस्य अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर पाता उसकी चाहत (intention) में कमी होती है या योग्यता में? चर्चा करें।
3. आपके भाई/बहन आपका सहयोग तो करें, लेकिन सम्मान न करें तो आपको कैसा लगेगा? कभी ऐसा हुआ है तो उदाहरण सहित बताइए।
4. आपके मित्र अपना कोई सामान जैसे खिलौना इत्यादि आपके साथ साझा तो करें परन्तु आपके पास वह वस्तु नहीं है इसका ताना भी दें तो आपको कैसा लगेगा? कभी ऐसा हुआ है तो उदाहरण सहित बताइए।
5. आपके द्वारा यदि विश्वास सम्मान न किया गया हो या ताना दिया गया हो तो साझा कीजिए।
6. विश्वास और सम्मान की ज़रूरत सभी को है या केवल आपको ही? यदि सभी को है तो आगे आप सबके साथ जीने की योजना कैसे बना सकते हैं?

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