Chapter 6: समझदार इंसान = ख़ुशहाल इंसान


शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
पिछले अध्याय में हमने देखा कि: 
  • हम सभी में विविधताएँ और समानताएँ हैं। 
  • हममें विविधताएँ एक-दूसरे को पहचानने के अर्थ में हैं। 
  • हम सबमें समानताएँ हैं जो मूल रूप से एक-दूसरे के साथ संबंध का आधार है। 
  • हम सभी की भौतिक और भावनात्मक आवश्यकताएँ होती हैं जो समझदारी से पूरी होती हैं। अब इस अध्याय में हम आवश्यकताओं को समझकर जीने के बारे में चर्चा करेंगे। और देखेंगे किस प्रकार समझ का होना ही ख़ुशी का होना है अर्थात समझदार इंसान ही ख़ुशहाल इंसान होता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि समझकर जीना ही ख़ुश होकर जीना है। समझदारी ही सुख है।
हम सब सुखी रहना चाहते हैं। हम रहते हैं इस अस्तित्व में। जितना हम इस अस्तित्व को समझते हैं उतना हम सुखी हो पाते हैं। समझदारी = अस्तित्व में जो जैसा है उसे वैसा जान लेना। जब समझदारी नहीं होती तो भ्रम या नासमझी होती है। जिसमें ग़लतियाँ होती हैं और समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यही हमारे दुःख का कारण बनती हैं।

Section 1: समझ क्या है? 
गतिविधि 1.1 : हम किसे समझदार मानते हैं
कहानी 1.1: सुकरात के तीन सवाल

Section 2: समझदारी यानी स्वयं व्यवस्थित होते हुए व्यवस्था में भागीदारी 
गतिविधि 2.1: समझदार आदमी की व्यवस्था में भागीदारी
कहानी 2.1: तीन मज़दूर तीन नज़रिए

Section 3: समृद्धि क्या है? 
गतिविधि 3.1: अमीरी, गरीबी और समृद्धि

Section 4: मन के काम करने के तरीके/ ख़ुशहाल मन(मैं) 
कहानी 4.1: निर्मल पानी
गतिविधि 4.1: ग़ुस्सा कैसी बला
कहानी 4.2: कौन बोल रहा है

Section 1: समझ क्या है? 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: समझ ज़िंदगी का वह पहलू है जो हर वक्त काम आता है। बड़ी से बड़ी मुसीबतों में समझ की अहम भूमिका होती है। समझ से हम सबका जीना सार्थक हो सकता है, क्योंकि जहाँ समझदारी नहीं होगी वहाँ कोई न कोई समस्या आ ही जाएगी। समझ ही इंसान के शरीर को तथा संबंधों में जीने का संतुलन बना के रखती है। चाहे वह परिवार का मसला हो, चाहे वह समाज और सरकार का मसला हो, हर जगह समझदारी ही काम आती है। इस section में हम समझ पर संवाद करने का प्रयास करेंगे। 

  गतिविधि 1.1 : हम किसे समझदार मानते हैं 

उद्देश्य: समझदार मनुष्य किसे कहें अर्थात समझदार मनुष्य की क्या विशेषताएँ होती हैं, इसे बच्चे समझ सकेंगे।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

पहला दिन: 
गतिविधि के चरण: 
शिक्षकों से अनुरोध है कि कक्षा में सभी बच्चों से चर्चा करें -
अपने समझदार होने के बारे में हमारी धारणा -
  • हम सब समझदार होना चाहते हैं। सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • हम सब चाहते हैं हमारे परिवार वाले, हमारे रिश्तेदार, हमारे मित्र, समाज के सभी लोग हमें एक समझदार इंसान के रूप में पहचाने। सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  •  जब भी हमें लगता है कि कोई हमारी समझदारी पर सवाल उठा रहा है या शक कर रहा है तो कैसा लगता है? अच्छा या खराब? अच्छा तो क्यों? खराब तो क्यों? 
चर्चा करें। दूसरों के समझदारी पूर्वक व्यवहार के बारे में हमारी धारणा-
  • दूसरों से भी हम समझदारी की अपेक्षा करते हैं। सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • हम सब चाहते हैं कि हमारे परिवार वाले, हमारे रिश्तेदार, हमारे मित्र, समाज के सभी लोग हमसे समझदारी के साथ ही व्यवहार करें। सहमत/असहमत? चर्चा करें।
  • अगर कोई हमारे साथ समझदारी पूर्वक व्यवहार ना करें तो हमें कैसा लगता है? अच्छा या खराब? अच्छा तो क्यों? खराब तो क्यों? चर्चा करें। (नोट:- शिक्षकों से अनुरोध है कि इन प्रश्नों पर बच्चों से गहराई से चर्चा करें। अध्याय में आगे चलकर हम समझदार इंसान के बारे में और चर्चा करेंगे। इसलिए यह ज़रूरी है कि बच्चे समझदार होने के बारे में अपने अभी तक के अपने विचारों को ठीक से जान लें। अभी तक के अपने विचारों को ठीक से जान लेने से ही उन्हें वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।) 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
  • समझदार इंसान आप किसे मानते हैं? 
  • क्या उम्र बढ़ने से इंसान में समझदारी बढ़ती है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। (चर्चा के लिए संभावित दिशा: क्या ऐसा नहीं होता है कि कोई व्यक्ति उम्र में बहुत छोटा है, लेकिन वह बहुत समझदार है, और कई बार कोई व्यक्ति उम्र में बहुत बड़ा होने के बावजूद नासमझ है? इसी तरह नीचे प्रश्नों की दिशा भी निर्धारित करें) 
  • क्या ज़्यादा पढ़ा-लिखा होने से मानव समझदार हो जाता है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • क्या शहर में रहने से मानव समझदार हो जाता है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • क्या पुरुष होने से मानव समझदार हो जाता है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • क्या अच्छे कपड़े पहनने से मानव समझदार हो जाता है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • क्या बड़े पद पर होने से कोई समझदार हो जाता है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • क्या ज़्यादा पैसा होने से कोई समझदार हो जाता है? सहमत/असहमत? चर्चा करें। 
  • समझदार इंसान के क्या-क्या लक्षण है? 
(कोशिश करें कि बच्चे अपनी तरफ़ से निम्न बिंदुओं तक आएँ, लेकिन अगर बच्चे ख़ुद न आ पा रहे हों तो चर्चा को इस तरफ़ लाने के कोशिश करें:- जैसे - समझदार मानव अपनी आवश्यकताओं को शारीरिक और मानसिक भेद से स्पष्टता से देख पाता है, सुख और सुविधा को स्पष्टता से देख पता है, समझदार इंसान होगा तो अपने परिवार, समाज और देश के लिए कुछ उपयोगी काम करता है, विपरीत परिस्थितियों में भी समाधान खोज लेता है, गुस्सा- आवेश में नहीं आता, ख़ुद में निराश नहीं होता, दूसरों को दु:खी नहीं करता, डरा हुआ नहीं रहता, असुरक्षित महसूस नहीं करता आदि)
  • एक समझदार इंसान से उसके परिवार में क्या-क्या योगदान होता है? 
चर्चा के संभावित बिंदु - 
- परिवार की आवश्यकताएँ पूरी करने में समर्थ होगा।
- परिवार में तालमेल बनाने में समर्थ होगा जिसके कारण परिवार में झगड़े नहीं होंगे, तरक्की होगी।
- दूसरे सदस्यों के समझने में भागीदार होगा आदि।
  • एक समझदार इंसान का समाज में क्या-क्या योगदान होता है? (झगड़े, हिंसा, घृणा, अपराध, शोषण के बिना जीने में सक्षम होगा और दूसरों को भी ऐसे जीने की प्रेरणा दे पाएगा आदि) 
  • एक समझदार इंसान का प्रकृति में क्या-क्या योगदान होता है? (प्रदूषण, गंदगी नहीं फैलाएगा, सुविधाओं का दुरुपयोग नहीं करेगा, वस्तुओं को व्यर्थ नहीं करेगा आदि।) 
शिक्षक के लिए नोट: इन सवालों पर जितना हो सके एक-एक बच्चे के साथ चर्चा करके उसे अपने विचारों को अभिव्यक्त करने में मदद करें। कोशिश करें कि हर बच्चा अपने अंदर से ही खोजकर इसका जवाब दे। अंदर से जवाब आने की स्थिति में ही आगे की चर्चा उनके मन में ठीक से बैठ सकेगी। इस प्रक्रिया में बच्चों से मिलने वाले जवाबों की सूची संक्षेप में बोर्ड पर लिखते जाएँ ताकि पूरी क्लास उन जवाबों पर साथ-साथ मंथन कर सके। इस मंथन के बाद यह सेक्शन खत्म करने से पहले बच्चों से चर्चा करें कि-
किसी व्यक्ति को समझदार मानने या ना मानने के हमारे अपने अनुभव और कारण हो सकते हैं लेकिन वैज्ञानिक आधार पर किसी व्यक्ति के समझदार होने का आकलन निम्नलिखित पाँच बिंदुओं के आधार पर किया जा सकता है-
1. स्वयं के प्रति विश्वास
2. स्वस्थ शरीर
3. शिकवा-शिकायत से मुक्त संबंध
4. परिवार में समृद्धि
5. व्यवस्था में भागीदारी
बच्चों को बता दे की इन पाँच बिंदुओं पर एक-एक करके विस्तार से चर्चा होगी और विभिन्न कहानियाँ और गतिविधियों के माध्यम से हम इन पाँचों बिंदुओं को उनके सामने रखेंगे।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह क्लास के बाद या घर पर भी इन पाँच बिंदुओं के बारे में मंथन और चर्चा करें। जैसे-
  • स्वयं के प्रति विश्वास से वह क्या समझते हैं?  
  • स्वस्थ शरीर के बारे में उनकी राय क्या है? 
  • गिला/शिकवा व शिकायत से मुक्त संबंधों पर उनकी समझ क्या है? 
  • परिवार में समृद्धि के बारे में और विशेषकर समृद्धि शब्द के बारे में क्या सोचते हैं? 
  • व्यवस्था में भागीदारी से वह क्या समझते हैं? 
दूसरा दिन: 
बच्चे उपर्युक्त बिंदुओं पर अपने मित्रों, रिश्तेदारों, परिवारजनों से चर्चा करके आए रहेंगे तो अब हम उनसे निम्नलिखित चर्चा करेंगे:-
  • आपने किन-किन लोगों से चर्चा किया? 
  • उन्हें आपके प्रश्न कैसे लगे? 
  • क्या क्या उत्तर आए?
बच्चों से आ रहे उत्तरों को बोर्ड पर लिखते जाएँ।

  चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
  • आप अपने में विचार करके बताएँ कि ख़ुद पर भरोसा होने से अब आप क्या समझते हैं? 
  • शरीर को स्वस्थ रखने में समझदारी कैसे काम आती है? 
  • संबंध में तालमेल पूर्वक जीने में समझ की ज़्यादा भूमिका है या पैसे की? चर्चा करें। 
  • समझ होगी तो ही हम व्यवस्था में भागीदारी कर सकेंगे। कैसे? चर्चा करें। 
शिक्षक द्वारा स्पष्टीकरण: 
यह स्पष्ट है कि जब मैं ख़ुद को समझ जाता हूँ तो स्वयं पर विश्वास आता है और अपने तन और मन का ठीक से उपयोग कर पाता हूँ। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और मन प्रफुल्लित रहता है। संबंध समझ में आता है तो पैसा बड़ी चीज़ नहीं रहता है और जब तक संबंध समझ में नहीं आता अर्थात जहाँ संबंध में विश्वास नहीं है तो वहाँ पैसा बहुत बड़ी चीज़ हो जाता है। जहाँ संबंध में कमी है वहाँ उसे हम पैसे से भरने की कोशिश करते हैं। जहाँ संबंध में विश्वास है वहाँ हमें बीच में पैसे को लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।


कहानी 1.1: सुकरात के तीन सवाल 

उद्देश्य: बच्चों को सार्थक (समझदारी वाली) बातचीत के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी:
प्राचीन यूनान में सुकरात नाम के विद्वान हुए हैं। वे बहुत ही ज्ञानवान और विनम्र थे। एक बार वे बाजार से गुज़र रहे थे तो रास्ते में उनकी मुलाकात एक परिचित व्यक्ति से हुई। उस सज्जन ने सुकरात को रोककर कुछ बताना शुरू किया। वह बताने लगा, “क्या आप जानते हैं कि कल आपका मित्र आपके बारे में क्या कह रहा था?”
सुकरात ने उस व्यक्ति की बात को वहीं रोकते हुए कहा, “सुनो, भले व्यक्ति! मेरे मित्र ने मेरे बारे में क्या कहा यह बताने से पहले तुम मेरे तीन छोटे प्रश्नों का उत्तर दो। उस व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा – “तीन छोटे प्रश्न?”
सुकरात ने कहा, “हाँ, तीन छोटे प्रश्न।”
पहला प्रश्न तो यह है कि तुम मुझे जो कुछ भी बताने जा रहे हो क्या वह पूरी तरह से सही है?
उस आदमी ने जवाब दिया, “नहीं, मैंने अभी-अभी यह बात सुनी है।”
सुकरात ने कहा, “कोई बात नहीं, इसका मतलब यह है कि तुम्हें नहीं पता कि तुम जो कहने जा रहे हो वह सच है या नहीं।”
अब मेरे दूसरे प्रश्न का जवाब दो कि जो कुछ तुम मुझे बताने जा रहे हो क्या उसमें कोई सार्थकता है?
उस आदमी ने तुरंत कहा, “नहीं।”
सुकरात बोले ठीक है। अब मेरे आख़िरी प्रश्न का और जवाब दो कि जो कुछ तुम मुझे बताने जा रहे हो क्या वह मेरे लिए उपयोगी है?
वह व्यक्ति बोला, “नहीं, उस बात में आपके काम आने जैसा तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है।” तीनों प्रश्नों के उत्तर सुनने के बाद सुकरात बोले, “ऐसी बात जो सुनी-सुनाई है, जिसमें कोई सार्थकता नहीं है और जिसकी मेरे लिए कोई उपयोगिता नहीं है उसे सुनने से क्या फ़ायदा?”

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जो भी बातचीत करते हैं, क्या उसका निर्णय इन तीन सवाल के आधार पर लेते हैं? चर्चा करें।
2. हमारी बहुत सी बातों में यह तीन विशेषताएँ न होते हुए भी हम ऐसी बातें क्यों करते हैं?
3 . उदाहरण देकर बताओ कि हाल ही में आपने कौनसी ऐसी बातें की जिनमें ये तीनों विशेषताएँ थीं।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
  • विद्यार्थियों को अपने मित्रों से उनकी उन आदतों के बारे में चर्चा करने के लिए कहा जाए जो वे छोड़ना चाहते हैं। 
दूसरा दिन: 
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. यदि हम बातचीत में हमेशा इन तीनों बातों का ध्यान रखें तो इससे हमारी बातचीत पर क्या असर पड़ेगा? इससे हमें और हमारे मित्रों/परिवारजनों को क्या फ़ायदा होगा?
2. “दूसरों के गुणों की चर्चा करने से हमारी उन्नति होती है और दूसरों के अवगुणों की चर्चा करने से हमारी अवनति होती है।” सहमत/असहमत? चर्चा करें। चर्चा की दिशा: हम रोज़मर्रा कि ज़िंदगी में देखें कि जब हम फ़ुरसत में होते हैं तो हमारी बातचीत का विषय क्या होता है और इससे हमें क्या फ़ायदा होता है? अधिकतर लोगों की ज़्यादातर बातचीत दूसरों की कमियों को लेकर होती हैं। इसकी आदत होने पर नज़रिया नकारात्मक हो जाता है। नकारात्मक नज़रिए वाले लोग हमेशा दुःखी रहते हैं और दूसरे लोग इनसे धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं। हमारी बातचीत का हमारी ज़िंदगी में बहुत प्रभाव पड़ता है। दूसरों के गुणों की चर्चा करने से हमारी उन्नति होती है और दूसरों के अवगुणों की चर्चा करने से हमारी अवनति होती है। इन प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को सार्थक और उपयोगी बातचीत करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।

क्या करें और क्या न करें: 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें।
Section 2: समझदारी यानी स्वयं व्यवस्थित होते हुए व्यवस्था में भागीदारी 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: समझदार होना यानी ख़ुद तनाव मुक्त होते हुए अपने से बड़ी व्यवस्था को समझकर, उसमें अपनी भूमिका को समझकर चलना। जैसे एक स्वस्थ शरीर में लाखों कोशिका (cell) हैं और सभी अपनी भूमिका निभा रही हैं। कुछ मिलकर गुर्दे का काम करते हैं तो कुछ हृदय तो कुछ पेट। और यह सब अंग अपना-अपना काम बिना चूक के निभाते हैं। यह सब मिलकर शरीर को बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। ठीक इसी तरह हर समझदार इंसान अपने परिवार में एक भूमिका निभाता है ताकि परिवार समाज/देश (बड़ी व्यवस्था) में अपनी भागीदारी निभा सके। समझदार आदमी स्वयं विश्वास से भरा हुआ रहते हुए अपने से बड़ी व्यवस्था में अपनी भूमिका स्वीकारता है। उसका ज़िंदगी को लेकर नज़रिया भी बड़ी व्यवस्था को केन्द्र में रख कर होता है। इसी में उसकी सबसे बड़ी ख़ुशी है। 

गतिविधि 2.1: समझदार आदमी की व्यवस्था में भागीदारी 

उद्देश्य: समझदार आदमी व्यवस्था में कैसे भागीदारी कर सकता है, इसे समझना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

शिक्षक के लिए नोट: समझ नहीं होने से व्यवस्था में भागीदारी एक समस्या है। व्यवस्था सबको चाहिए। व्यवस्था सब के लिए ठीक हो यह भी सब को चाहिए। हम विद्यार्थियों की ही बात करें तो जितने बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं उसका मुश्किल से 10% कॉलेज लेवल तक आते हैं। कुल मिला कर देखें तो भारत के बहुत सारे बच्चे तो स्कूल में भी नहीं आ पाते हैं। यानी कि भारत के कुल बच्चों में से मुश्किल से 7% ही कॉलेज लेवल तक आ पाते हैं। समाज में व्यवस्था हो यह हमारी आवश्यकता है सब बच्चों के लिए पूरी शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए, सब बच्चों के लिए नौकरी या व्यवसाय की व्यवस्था हो, सब बच्चों को अच्छा पर्यावरण मिले, यह हम सब की आवश्यकता है। ऐसी व्यवस्था हम सब चाहते हैं। व्यवस्था में भागीदारी करना समझदार मनुष्य होने का प्रमाण है। अभी तक मनुष्यों द्वारा व्यवस्था में भागीदारी न हो पाना ही समस्या है।

गतिविधि के चरण: शिक्षक कक्षा में निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा कराएँ:-

विद्यालय की सफ़ाई व्यवस्था पर चर्चा: 
  • विद्यालय की सफ़ाई व्यवस्था से क्या मतलब है? (प्रस्तावित उत्तर: क्लासरूम, कॉरीडोर या मैदान में कूड़ा-करकट न होना, टॉयलेट साफ़ रहना इत्यादि।) 
  • विद्यालय की सफ़ाई व्यवस्था में कौन-कौन भागीदार हैं? 
  • विद्यालय की सफ़ाई अव्यवस्था में कौन-कौन भागीदार हैं? (टॉयलेट को फ़्लश न करना, कूड़ा इधर-उधर फेंकना, दीवारों पर लिखना आदि।) 
  • पानी की अव्यवस्था? 
अब व्यवस्था क्या है, इस पर भी कुछ चर्चा हो जाए: 1. हम रोज़ सुनते रहते हैं कि व्यवस्था खराब हो गई है। व्यवस्था को ठीक करना पड़ेगा आदि आदि। यहाँ व्यवस्था शब्द से क्या आशय है? चर्चा करें। 2. आपके घर में व्यवस्थाओं को कौन-कौन लोग सँभालते हैं? सूची बनाइए। 3. अपने पास-पड़ोस में व्यवस्था को सम्हालने वाले लोगों की सूची बनाइए। 4. इन व्यवस्थाओं को सम्हालने वाले लोगों की कोई विशेष योग्यता होती है क्या? चर्चा करें।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. आदमी की भागीदारी से आप क्या समझ पा रहे हैं? चर्चा करें। (जैसे- सफ़ाई व्यवस्था, पब्लिक प्रॉपर्टी की मेंट्नेन्स की व्यवस्था में)  
2. आदमी व्यवस्था में ठीक प्रकार से भागीदारी क्यों नहीं कर पा रहा है? चर्चा करें।(समझ और ध्यान न होने से) 
3. व्यवस्था में समझदार व्यक्ति की भूमिका क्या-क्या हो सकती है? चर्चा करके सूची बनाएँ। (example: दूसरों का इंतज़ार नहीं करेगा कोई काम होने में, एक बार ख़ुद भी कोशिश करेगा, समाजिक जगहों और वस्तुओं के रख-रखाव में और अपनी ओर से दूषित और प्रदूषित ना करे, इस बात का ध्यान रखेगा, प्रदूषण नहीं फैलायेगा आदि) 
4. समझदार व्यक्ति ही व्यवस्था में भागीदारी कर सकता है। सहमत/ असहमत। कैसे? चर्चा करें। 

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह क्लास के बाद या घर पर भी इन बिंदुओं के बारे में मंथन और चर्चा करें। जैसे- 
  • व्यवस्था से वह क्या समझते हैं? 
  • क्या स्वस्थ शरीर भी एक व्यवस्था है? 
  • परिवार में व्यवस्था से क्या आशय है? 
  • प्रकृति में व्यवस्था से क्या आशय है? 
  • व्यवस्था में भागीदारी के बारे में उनकी समझ क्या है? 
दूसरा दिन: बच्चे उपर्युक्त बिंदुओं पर अपने मित्रों, रिश्तेदारों, परिवारजनों से चर्चा करके आए रहेंगे तो अब हम उनसे निम्नलिखित चर्चा करेंगे:-
  • आपने किन-किन लोगों से चर्चा की? 
  • उन्हें आपके प्रश्न कैसे लगे? 
  • क्या-क्या उत्तर आए? बच्चों से आ रहे उत्तरों को बोर्ड पर लिखते जाएँ। 
  चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. शरीर की व्यवस्था ठीक रहे इसके लिए क्या-क्या करेंगे? 
2. परिवार की व्यवस्था में आप क्या-क्या भागीदारी कर सकते हैं? (माँ -बाप को परेशान ना करना, दु:खी न करना, लड़ाई न करना, उनसे हँसी-ख़ुशी प्यार से बात करना, सुख-दुःख बाँटना, परिवार की आर्थिक स्थिति को हमेशा ध्यान में रखकर चलना, बड़े होकर आर्थिक स्थिति मज़बूत करने में मदद करना आदि। 
 3. समाज में व्यवस्था में आप क्या-क्या भागीदारी कर सकते हैं? (आपस में भाई-चारा बढ़ाना, घृणा और नफ़रत को दूर करना, लोगों की भौतिक और भावनात्मक ज़रूरतें पूरी करने के लिए उत्पादन करना अथवा अपनी सेवा देना, आसपास सफ़ाई रखना, ट्रैफिक और अन्य व्यवस्था में सहयोग करके इत्यादि।)
  • यहाँ पर उत्पादन करने अथवा अपनी सेवाएँ देने पर थोड़ी सी खुलकर चर्चा कर लें। उत्पादन के उदाहरण हो सकते हैं- खेती करना, रोज़मर्रा के इस्तेमाल में आनी वाली वस्तुएँ, जैसे- कपड़े बनाना, मोबाइल, पंखे, गाड़ी इत्यादि का उत्पादन। 
  • सेवाओं के उदाहरण हो सकते हैं शिक्षक, डॉक्टर, नर्स, इंजीनियर, इलेक्ट्रिशन, ड्राइवर, मज़दूर, वक़ील, मैनेजर, व्यापारी, पत्रकार, दर्ज़ी प्लमर, सुरक्षा कर्मी, सफ़ाई कर्मी, सरकारी अधिकारी, नेता इत्यादि। (थोड़ी चर्चा इस बात पर भी करें की यह सब अभी व्यवस्था में भागीदार हैं या अव्यवस्था में?) 
4. प्रकृति में व्यवस्था बनी रहे इसके लिए आप क्या-क्या भागीदारी कर सकते हैं? (पेड़-पौधों को नुकसान न पहुँचाना, पेड़-पौधे लगाकर, पानी व्यर्थ ना गँवाकर, बिजली व्यर्थ न गँवाकर, खाने-पीने या एनी ज़रूरत की वस्तुओं को व्यर्थ न गँवाकर, अपनी आवश्यकताओं को समझकर अपनी आवश्यकता से बहुत ज़्यादा इकठ्ठा करने की होड़ में न पड़कर आदि।) 

शिक्षक की स्पष्टता हेतु नोट: 
  • शरीर में व्यवस्था का मतलब उसका स्वस्थ होना ही है। यह स्वस्थ रहे इसके लिए आहार-विहार को ठीक रखना ही शरीर की व्यवस्था में भागीदारी है। 
  • परिवार में व्यवस्था का मतलब है की संबंधों में विश्वास, सम्मान और कृतज्ञता बना रहे इसके लिए अपनी समझ को बढ़ाना और भागीदारी करना होता है। 
  • समाज भयमुक्त (शोषण मुक्त, अपराध मुक्त, युद्ध मुक्त आदि) हो जाए इसके लिए अपनी समझ को बढ़ाना और भागीदारी करना होता है। 
  • प्रकृति संतुलित रहे इसके लिए अपनी समझ को बढ़ाना और भागीदारी करना होता है। 
कहानी 2.1: तीन मज़दूर तीन नज़रिए 

कहानी का उद्देश्य: यह स्पष्टता बनाना कि किसी काम को करके हम सुखी या दु:खी नहीं होते हैं बल्कि उस काम को करते समय हमारा भाव क्या है, यह हमारे सुखी या दु:खी होने का आधार बनता है। 

कहानी: 
कहीं पर एक स्कूल बन रहा था। तीन मज़दूर बैठे पत्थर तोड़ने का काम कर रहे थे। वहाँ से एक राहगीर गुज़रा। उसने पहले मज़दूर से पूछा, “क्या कर रहे हो?”। वह दु:खी मन से बोला, “पत्थर तोड़ रहा हूँ।” सच में वह मन में भी पत्थर ही तोड़ रहा था, इसीलिए वह दु:खी भी था।
राहगीर दूसरे मज़दूर के पास गया। वह दु:खी नहीं था। संतुलित था - न दु:खी न सुखी। राहगीर ने उससे पूछा, “क्या कर रहे हो?” उसने कहा, “रोज़ी-रोटी कमा रहा हूँ।” सच में वह मज़दूर रोज़ी-रोटी कमाने के लिए ही काम कर रहा था, इसीलिए उसके चेहरे पर न दु:ख था न सुख।
राहगीर तीसरे मज़दूर के पास पहुँचा। वह मज़दूर आनंदित था। वह पत्थर तोड़ते हुए गुनगुना रहा था। उसने अपना गीत बीच में रोक कर कहा, “मैं शिक्षा का मंदिर बना रहा हूँ। यहाँ बच्चे पढ़ेंगे।” यह कहते हुए उसकी आँखों में चमक थी। जीवन में काम करने के यही तीन तरीके हैं: पहला है - मज़बूरी में काम करना और दु:खी रहना। दूसरा है - रोज़ी-रोटी के लिए मशीन की तरह मेहनत करना और तीसरा है - अपने काम से दूसरे लोगों को होने वाले सुख से आनंदित रहना।
जीवन का आनंद जीने वाले की दृष्टि में होता है। वह अंदर से आता है बाहर से नहीं।

पहला दिन चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. तीनों मज़दूरों में से कौन सबसे ज़्यादा समझदार या ख़ुशहाल मनःस्थिति में है? चर्चा करें।
2. पहले मज़दूर को अपने काम में कोई रुचि नहीं है और अगर उसे बिना काम किये मज़बूरी मिल जाए तो भी वह दु:खी ही रहेगा, क्योंकि वह दु:खी होने का कोई न कोई और कारण ढूँढ लेगा। सहमत/असहमत? चर्चा करें।
3. यदि आपको घर बैठे एक कमरे में सब सुविधा (जैसे TV, AC, खाना, आराम के लिए बिस्तर) उपलब्ध करा दिया जाए और आपको कह दें की आपको कमरे से कभी बाहर नहीं निकलना, हमेशा के लिए यह सब मिलता ही रहेगा। तो आपको कैसा लगेगा? सुखी होंगे या दु:खी होंगे? क्यों? चर्चा करें।
 4. यदि तीसरे मज़दूर को एक निरर्थक काम (जैसे एक कमरे से दस कुर्सी दूसरे कमरे में ले जानी, फिर वही दस कुर्सी वापस पहले कमरे में ले जानी, सुबह से शाम तक यही करते रहना) करने के लिए दे दिया जाता तो उसको कैसा लगता? वह अभी भी सुखी ही रहता या दु:खी हो जाता? चर्चा करें।
 5. उपयोगी काम पर थोड़ी चर्चा कर लें- जैसे, इस कहानी में स्कूल बनाना एक उपयोगी काम है और तीसरा मज़दूर उस उपयोगी काम में अपने योगदान को समझ रहा है इसीलिए वह ख़ुश है। कुछ अन्य उपयोगी काम के उदाहरण दें, जैसे - सफ़ाई करना, मिड डे मील बाँटना, पढ़ाना, घर में खाना बनाना। (शिक्षक के लिए नोट: आवश्यकता हो तो चर्चा करें की जो काम व्यवस्था को बनाएँ रखते या मज़बूत करते हैं उन्हें उपयोगी काम कहा जा रहा है)।

दूसरा दिन: 
  • पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं। 
  • पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए। 
  • घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं। 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. क्या आपने अपनी माँ या पिताजी के भावों को एक ही काम करते हुए, अलग-अलग समय पर अलग-अलग पाया है?
2. क्या आपके साथ ऐसी स्थिति आई है कि अलग-अलग समय पर एक ही काम करते हुए, आपकी मन:स्थिति अलग रही हो? उदाहरण देकर बताइए।
3. ख़ुश होकर काम करने से ख़ुशी मिलेगी या काम करके आप ख़ुश होंगे? (अपने जीवन से कोई उदाहरण देकर बताओ कि कौन-कौनसे काम आप ख़ुश हो कर करते हो और किन-किन कामों मे आपको लगता है कि कर के ख़ुशी मिलेगी?) (शिक्षक के लिए नोट: ख़ुश होकर करने से आशय है उस काम की उपयोगिता की समझ होना। हम कोई भी काम क्यों कर रहे हैं, उसकी व्यवस्था में क्या भूमिका है, इस स्पष्टता से हम ख़ुश होते हैं)।
4. जिन कामों से आपको लगता है कि कर के ख़ुशी मिलेगी, क्या उन्हें ख़ुश हो कर भी किया जा सकता है, उदाहरण देकर समझाओ। (यदि बच्चों को कोई उदाहरण ढूँढने में मुश्किल हो रही हो तो टीचर इस उदाहरण से चर्चा शुरू कर सकते हैं: हम अपने मित्रों के साथ बाहर जाकर आइस-क्रीम खाने का प्रोग्राम बनाते हैं, तो ऐसा लगता है कि आइस-क्रीम खा कर हम ख़ुश होंगे। लेकिन ऐसा भी हो सकता है की हम मित्रों के साथ ख़ुश ही हैं। आइस-क्रीम नहीं खाई तो भी ख़ुश, और खा ली तो भी ख़ुश। दूसरा उदाहरण: आपके मित्र ने नए जूते लिए और वह नए जूते मिलने के कारण ख़ुश दिख रहा है। आपने नए जूते नहीं लिए और लेने की ज़रूरत भी नहीं लग रही तब भी आप ख़ुश ही हैं।)

क्या करें और क्या न करें: 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें। 
चर्चा की दिशा: हमारा और बच्चों का ध्यान इस तरफ़ जाए की किसी काम को करके हम सुखी या दु:खी नहीं होते हैं बल्कि उस काम को करते समय हमारा भाव क्या है उससे हम सुखी या दु:खी होते हैं।दूसरे शब्दों में कार्य की उपयोगिता और उसको करते समय व्यवस्था में उस काम की भूमिका को समझकर करने पर हमें ख़ुशी मिलती है।
Section 3: समृद्धि क्या है? 

शिक्षक के संदर्भ के लिए:

  •  ● हमारी मानसिक अवस्था हमारी समृद्धि अथवा अभाव की स्थिति के मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण है। 
  • ● जो व्यक्ति तनाव मुक्त जीवन जी रहा है, वह उस व्यक्ति की अपेक्षा बेहतर जी रहा है जो दौलतमंद तो है लेकिन तनाव से भरा है। 
  • ● चिंता, तनाव, काम का बोझ, कुंठा, क्रोध, चिड़चिड़ापन, असहिष्णुता तथा अधैर्य आदि ऐसे मनोभाव हैं जो हमें आर्थिक उपलब्धि के बावज़ूद मानसिक दरिद्रता प्रदान करते हैं। 
  • ● समृद्धि एक मानसिक स्थिति का नाम है, इसे “अभाव का अभाव” के रूप में देखा जा सकता है। अर्थात मुझे जितने वस्तुओं की आवश्यकता है मैं पहचानता हूँ और उसके लिए मेहनत करता हूँ बाकी का समय अपनी समझ को बढ़ाने के लिए लगाता हूँ। इस गतिविधि में इस बात को ही समझने की कोशिश की गई है। 
 गतिविधि 3.1: अमीरी, गरीबी और समृद्धि 


 गतिविधि का उद्देश्य: अभाव का अभाव ही समृद्धि है विद्यार्थी इसको समझ सकेंगे। 
 नोट: अभाव का अभाव ही समृद्धि है अर्थात मेरे पास मेरी आवश्यकता से अधिक सामान भी हो और ऐसा ही एहसास भी हो तो हम अपने को समृद्ध मान पायेंगे। हम ऐसा ही अपने को पाना भी चाहते हैं। यह मानसिकता बदलने से हमारे ज़िंदगी के सारे कार्यक्रम बदल जाते है। 

गतिविधि के चरण: 
 शिक्षक निम्नलिखित चार्ट को बोर्ड पर बना कर विद्यार्थियों से पूछकर भरेंगे:-

वस्तुओं/सुविधाओं का अभाव
वस्तुओं/सुविधाओं की कमी का एहसास
नाम










विद्यार्थियों से पूछकर टिक (√) लगाएँ की कुछ लोग समाज में ऐसे होते हैं जिन्हें सुविधाओं का अभाव होता है और सुविधाओं में कमी का एहसास भी होता है।

वस्तुओं/सुविधाओं का अभाव
वस्तुओं/सुविधाओं की कमी का एहसास
नाम








कुछ लोग समाज में ऐसे होते हैं जिन्हें सुविधाओं का अभाव तो नहीं होता है, लेकिन सुविधाओं में कमी का एहसास होता है।

वस्तुओं/सुविधाओं का अभाव
वस्तुओं/सुविधाओं की कमी का एहसास
नाम
X








हम सब की अपेक्षा है कि हमें सुविधाओं का अभाव भी न हो और सुविधाओं में कमी का एहसास भी न हो।

वस्तुओं/सुविधाओं का अभाव
वस्तुओं/सुविधाओं की कमी का एहसास
नाम
X
X








इन तीनों स्थितियों का अलग-अलग नाम क्या होगा?
.
वस्तुओं/सुविधाओं का अभाव
वस्तुओं/सुविधाओं की कमी का एहसास
नाम
गरीब
X
अमीर
X
X
समृद्ध

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:-
1. आप अमीर होना चाहते हैं या समृद्ध?
2. समृद्धि से आपको क्या समझ में आ रहा है?
3. अपने आसपास आप किसी को समृद्ध पाते है? किसे और कैसे?
4. “तीन मज़दूर तीन नज़रिए” कहानी में समृद्ध मज़दूर कौन सा है?
 5. समृद्धि में केवल वस्तु/सुविधा के सामान ही शामिल हैं या मानसिकता भी शामिल है? कैसे?
6. समृद्ध आदमी के पास क्या-क्या होना चाहिए? सिर्फ़ पैसा या सिर्फ़ समझ या दोनों?
7. कितना पैसा होने से आदमी समृद्ध होना महसूस कर सकता है?
 8. आदमी की समृद्धि का रास्ता क्या है? (संभावित उत्तर:- आवश्यकताओं को समझना, उसे पूरी करने की योग्यता हासिल करना और अपनी योग्यताओं का सदुपयोग करते हुए आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाना)
 9. हम सब समृद्धि चाहते हैं तो पहले समझदार होना ज़रूरी होगा। इसे आप कैसे समझ पा रहे हैं?


Section 4: मन के काम करने के तरीके/ ख़ुशहाल मन (मैं) 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
  • एक व्यक्ति की विशिष्टता उसके दो हाथ, दो पैर, चेहरे आदि शारीरिक अंगों के कारण नहीं है परंतु यह विशेषता उसके मन की है,   जिसमें समझने की शक्ति होती है। 
  • हम सभी के लिए यह जानना ज़रूरी है कि हमारा मन कैसे काम करता है? यह एक अच्छा विषय हैं क्योंकि यह केवल रुचिकर ही नहीं बल्कि ज़रूरी भी है। 
  • मन के बारे में जानना बहुत ही ज़रूरी हो गया है क्योंकि इसकी समझ न होने से बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे हम कहीं घूमने के लिए जाते हैं तो उसके पहले उस जगह और उसके बारे में जानकारी लेते हैं उसी प्रकार हमें इस ज़िदगी के सफ़र में आगे बढ़ने से पहले मन और इसके काम करने के तरीकों के बारे में जानना ठीक रहेगा।
इस section में हम इस पर ही बातचीत करेंगे।

कहानी 4.1: निर्मल पानी 

समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
उद्देश्य: विद्यार्थियों को धैर्य और शांत मन के महत्त्व से अवगत कराना।

कहानी:
एक बार एक संत अपने एक शिष्य के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में काफ़ी चलने के बाद उन्हें प्यास लगी तो वे एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुक गए।
शिष्य पास की छोटी नदी से पानी लेने चला गया। जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि अभी-अभी कुछ पशु नदी से दौड़कर निकले थे जिससे नदी का पानी गंदा हो गया था। पशुओं की भाग-दौड़ से नदी के पानी में कीचड़ और सड़े हुए पत्ते उभरकर ऊपर की ओर आ गए थे। गंदगी को देखकर शिष्य बिना पानी लिए लौट आया। उसने गुरु से कहा कि यहाँ पर नदी का पानी साफ़ नहीं है। मुझे थोड़ा ऊपर की ओर जाकर पानी लाना होगा। गुरु ने उससे कहा कि ऊपर से पानी लाने में देर लगेगी। एक बार फिर वहीं पर जाओ और पानी ले आओ।
शिष्य थोड़ी देर बाद फिर खाली लौट आया। पानी अब भी गंदा था, लेकिन गुरु ने फिर से उसे वहीं से पानी लाने भेज दिया। तीसरी बार जब शिष्य नदी पर पहुँचा तो चकित रह गया। नदी अब बिल्कुल साफ़ और शांत दिख रही थी। कीचड़ नीचे बैठ गया था और पानी एकदम निर्मल हो गया था। इस बार शिष्य पानी लेकर आ गया।
शिष्य ने गुरु से पूछा कि आपको यह कैसे पता था कि इस बार अवश्य ही साफ़ पानी मिलेगा। गुरु ने उसे बताया कि प्रकृति में कोई भी विषम परिस्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रह सकती है। ऐसा हमारे मन के साथ भी होता है। जब किसी घटना या विचार से हमारा मन विचलित हो जाता है तो काफ़ी देर तक उथल-पुथल का ही माहौल रहता है जैसा उस नदी में था। यदि शांति और धीरज से काम लें तो सभी समस्याओं का समाधान ढूँढा जा सकता है।

पहला दिन: 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. जब आपका मन गुस्से या दुःख की वज़ह से विचलित होता है उस समय आपके द्वारा लिया गया निर्णय अधिकतर सही होता है या गलत? क्यों?
2. शांत मन और अशांत मन से लिए गए निर्णयों में क्या अंतर होता है? दोनों स्थितियों के एक-एक उदाहरण देकर बताएँ।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
  • विद्यार्थियों को विचलित मन की स्थिति में अपने विचारों और निर्णयों के प्रति सजग रहने के लिए कहा जाए ताकि वे आगे अपने अनुभवों को ईमानदारी से साझा कर सकें।
दूसरा दिन: 
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. किसी प्रतिक्रिया में लिए गए निर्णय से आपको क्या-क्या नुकसान हुआ? आप अपने साथ हुई किसी घटना का उदाहरण देकर साझा करें।
2. अपने जीवन से किसी घटना को साझा करते हुए बताइए कि कैसे प्रतिक्रिया वश लिया गया निर्णय बाद में आपको ही स्वीकार नहीं हुआ? शांत मन से सोचने पर उस घटना के लिए अब आपको क्या निर्णय उपयुक्त लगता है?

चर्चा की दिशा: प्रकृति में कोई भी विषम परिस्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रह सकती है। जैसे, हम लंबे समय तक लगातार गुस्से में नहीं रह सकते हैं। हम हमेशा हमारे मन की स्थिति शांत चाहते हैं। शांत स्थिति में ही सही निर्णय ले पाते हैं। किसी प्रतिकूल या विषम परिस्थिति में हमारा मन विचलित हो जाता है और उस स्थिति में प्रतिक्रिया वश लिया गया निर्णय अधिकतर सही नहीं होता है। बाद में हमें ही वह निर्णय स्वीकार नहीं होता है। अत: विचलित मन:स्थिति में निर्णय न लेकर शांत मन से निर्णय लिया जाए तो बाद में हमें पछतावा नहीं होगा।
गतिविधि 4.1: गुस्सा कैसी बला 

गतिविधि का उद्देश्य: ग़ुस्से को अपनी अक्षमता के रूप में पहचानना और अपनी मान्यताओं (beliefs) के प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
आवश्यक सामग्री: किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं है।

शिक्षक के लिए नोट: हमारे सारे निर्णय हमारी मान्यताओं के आधार पर होते हैं और हमें पता भी नहीं है कि हम कितनी बातों को सही माने हुए हैं जिनके बारे में हम ठीक से जानते भी नहीं हैं। जैसे- सामान्य बातचीत में हम कह देते हैं कि ग़ुस्सा आना तो स्वाभाविक (natural) है। इस गतिविधि के माध्यम से हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि ग़ुस्सा स्वाभाविक (natural) है या अस्वाभाविक (unnatural)।
यह किस आधार पर तय किया जाए कि कोई चीज़ natural है या unnatural? मोटे तौर पर देखा जाए तो natural चीज़ें सभी को स्वीकार होती हैं और अपने आप से होती हैं अर्थात् उनके लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता है। ग़ुस्सा न तो करने वाले को स्वीकार होता है और न उस व्यक्ति को जिस पर यह किया जाता है। यह लग सकता है कि यह अपने आप होता है, लेकिन गहराई से देखें तो अधिकतर ग़ुस्सा आता नहीं है बल्कि अपने से कमज़ोर के सामने किया जाता है। अकसर ग़ुस्सा तभी करते हैं जब हम किसी स्थिति को सँभालने या स्वीकारने में अक्षम होते हैं या किसी काम को करने की योग्यता नहीं हो और उसे करने का दबाव हो। अत: ग़ुस्सा आदमी का स्वभाव नहीं हैं। यह व्यक्ति की अक्षमता का प्रदर्शन है। एक ही स्थिति में कुछ लोग ग़ुस्सा करते हैं जबकि कुछ क्षमतावान लोग अपनी समझदारी से बिना ग़ुस्सा किए स्थिति को सँभाल लेते हैं।
आदमी का स्वभाव ख़ुश रहना है। सभी की चाहत हमेशा ख़ुश रहने की है और निरंतर ख़ुश रहा भी जा सकता है, लेकिन अभी समझदारी और योग्यता के अभाव में सभी लोग अपने मूल स्वभाव ‘हमेशा ख़ुश रहना’ को पाए नहीं है।
इस गतिविधि के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी मान्यता को जाँचने का अवसर दिया गया है जो यह मानते हैं कि ग़ुस्सा तो स्वभाविक है और कम या ज़्यादा सभी को आता है और कभी-कभी ग़ुस्सा उचित और ज़ायज़ भी होता है।

गतिविधि के चरण: 
पहला दिन: 
  • कक्षा को निम्नलिखित तीन समूहों में बाँटा जाएगा। समूह का चयन विद्यार्थी अपनी मान्यता के अनुसार स्वयं करेंगे। 
Group-1: Agree group/सहमत- इस समूह में वे विद्यार्थी होंगे जिनका मानना है कि ग़ुस्सा स्वाभाविक (natural) है।
Group-2: Disagree group/असहमत- इस समूह में वे विद्यार्थी होंगे जिनका मानना है कि ग़ुस्सा अस्वाभाविक (unnatural) है।
Group-3: Not sure group/पता नहीं- इस समूह में वे विद्यार्थी होंगे जो यह तय नहीं कर पा रहे या यह मानना है कि यह तय नहीं किया जा सकता है कि ग़ुस्सा स्वाभाविक (natural) है या अस्वाभाविक (unnatural) है।
  • सभी विद्यार्थी अपने-अपने समूह में अस्थाई तौर पर एकत्र होकर अपने मत के पक्ष में 5-7 मिनट तक चर्चा करें। चर्चा से निकले तर्कों को कोई एक विद्यार्थी अपनी नोटबुक में लिखे। किसी समूह में विद्यार्थियों की संख्या अधिक है तो उस समूह में sub-groups बनाकर चर्चा करें। 
  • निर्धारित समय पूरा होने पर प्रत्येक समूह बारी-बारी से 2-3 मिनट की अवधि में अपने मत के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करें। 
  • शिक्षक बोर्ड को तीन हिस्सों में बाँटकर सभी समूहों के तर्कों को मुख्य बिंदुओं के रूप में लिखेंगे। 
  • सभी की प्रस्तुति के बाद तर्कों के आधार पर यदि किसी विद्यार्थी का मत बदलता है तो उसे अपना समूह भी बदलने का अवसर दिया जाए। 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. क्या किसी बात पर गहराई से विचार करने पर अपना मानना बदलता है? अपनी ज़िंदगी से कोई उदाहरण दें। 
2. मान्यताओं की हमारी ज़िंदगी में क्या भूमिका रहती है? (उत्तर- हमारे विचार, व्यवहार और प्रयास मान्यताओं के अनुसार ही रहते हैं।) 

दूसरा दिन: 
शिक्षक द्वारा सभी विद्यार्थियों को पूर्व गतिविधि के अनुसार अपने-अपने समूह में एकत्र होने के लिए कहा जाए। प्रत्येक समूह से बारी-बारी से निम्नलिखित प्रश्न पूछा जाए। प्रत्येक प्रश्न का जवाब समूह के अलग विद्यार्थी से लें और इन प्रश्नों का जवाब एक या दो शब्दों में ही लिया जाए।

Group-1
1. जो हमें ही पसंद न हो, क्या वह हमारा स्वभाव हो सकता है?
2. क्या ग़ुस्सा जिस व्यक्ति पर किया जाता है उसे स्वीकार होता है?
3. जब हम किसी काम को नहीं कर पाते हैं तब ग़ुस्सा आता है या किसी काम को कर पाते हैं तब आता है?
4. क्या ग़ुस्से की स्थिति में निरंतर रहा जा सकता है?
5. जब हम किसी स्थिति को सँभाल नहीं पाते हैं तब ग़ुस्सा आता है या सँभाल पाने के विश्वास के साथ होते हैं तब भी ग़ुस्सा आता है?

Group-2
1. ग़ुस्से के समय हम nomal होते हैं या abnormal होते हैं?
2. ग़ुस्सा हमें स्वस्थ बनाता है या अस्वस्थ बनाता है?
3. ग़ुस्सा अपने से कमज़ोर व्यक्ति के सामने ही आता है या अपने से ताकतवर के सामने भी आता है?
4. ग़ुस्सा अपने से कमज़ोर व्यक्ति के सामने व्यक्त की गई अपनी कमज़ोरी है या ताकत है?
5. ग़ुस्से से किसी काम को करवाने पर, क्या ग़ुस्सा करने वाले व्यक्ति के प्रति सम्मान बढ़ेगा?

Group-3
1. ग़ुस्सा करके काम करवाने वाले लोग अच्छे कहलाते हैं या समझाकर काम करवाने वाले लोग अच्छे कहलाते हैं?
2. काम ग़ुस्से से होते हैं या अपनी समझदारी और योग्यता से होते हैं?
3. किसी की योग्यता ग़ुस्से से बढ़ेगी या समझाने से बढ़ेगी?
4. क्या जो काम ग़ुस्से से करवाया जाता है वह समझाने से नहीं हो सकता हैं?
5. क्या संबंध बिगाड़कर काम पूरा करवाना सही तरीक़ा है?
नोट:- प्रश्नों के बाद और अधिक स्पष्टता होने पर अपना मत बदलने से एक बार फिर से विद्यार्थियों को अपना समूह बदलने का अवसर दिया जाए और अवलोकन किया जाए कि क्या किसी मुद्दे पर गहराई से चर्चा करने पर जो मान्यताएँ सही नहीं हैं, वे बदलती हैं?

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. आपसे ग़लती होने पर आप क्या चाहेंगे- आप पर ग़ुस्सा करके आपको अपमानित किया जाए या आपको स्नेहपूर्वक समझाया जाए? ऐसा आप क्यों चाहते हैं?
2. जब हम स्वयं नहीं चाहते कि कोई हम पर ग़ुस्सा करे फिर हम दूसरों पर ग़ुस्सा क्यों करते हैं?
3. क्या एक ही स्थिति में सबको समान गुस्सा आता है?
4. ग़ुस्सा स्वभाविक है या हमारी अक्षमता का प्रदर्शन है? कैसे?

तीसरा दिन: सभी विद्यार्थियों को एक सर्वे करने को दिया जाए। प्रत्येक विद्यार्थी कम से कम दस लोगों से निम्नलिखित प्रश्न पूछें और उनके जवाब नोट करें। ध्यान रहे कि एक ही व्यक्ति को सर्वे में दो बार शामिल न किया जाए।
1. ग़ुस्सा स्वाभाविक (natural) है या अस्वाभाविक (unnatural) है?
2. क्या आप मानते हैं कि गलती करने पर दूसरों पर कभी-कभी ग़ुस्सा करना उचित होता है? हाँ/नहीं 3. क्या आप अपने लिए भी यह उचित मानते हैं कि गलती होने पर आप पर भी ग़ुस्सा कर आपको अपमानित किया जाए? हाँ/नहीं
  • सभी विद्यार्थियों को 10-10 विद्यार्थियों के समूह में बाँटा जाए।
  • प्रत्येक समूह अपने सर्वे में शामिल 100 लोगों के जवाबों को compile करें और कक्षा में प्रस्तुत करें। 
  • शिक्षक द्वारा सभी समूहों के सर्वे को group leaders की मदद से compile कर प्राप्त आँकड़ों को कक्षा में साझा किया जाए। 
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. प्रकृति के नियम बदलते रहते हैं या हमेशा एक जैसे रहते हैं? जैसे- गुरुत्वाकर्षण का नियम।
2. प्रकृति के नियम सभी के लिए एक समान रहते हैं या अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग?
3. फिर किसी नियम को लेकर लोग एक मत क्यों नहीं होते हैं? (उत्तर- नियम जैसा है वैसा न पहचान पाना।) 4. ग़ुस्सा न करने के लिए आप क्या-क्या प्रयास करेंगे?
5. डरना-डराना और ग़ुस्सा करना, योग्यता में कमी और कमज़ोरी की पहचान है। चर्चा करें।

शिक्षक कथन: अपनी अक्षमता का प्रदर्शन ही क्रोध है। (यह कथन चार्ट पर लिखकर कक्षा में लगाया जाए ताकि इस पर ग़ुस्सा करने वाले विद्यार्थियों का ध्यान जाता रहे।)


कहानी 4.2: कौन बोल रहा है 

उद्देश्य: विद्यार्थियों को जानने और मानने के बीच का अंतर स्पष्ट करना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी: 
ज्ञान की तलाश में घूमता हुआ एक युवा व्यक्ति किसी आश्रम में रहने के लिए आया। पंद्रह दिन आश्रम में रहने के बाद वह युवा ऊब गया। उसे ऐसा लगा कि अब उस आश्रम में उसके लिए कुछ भी नया सीखने के लिए नहीं बचा था। उसे लगा कि आश्रम के वृद्ध गुरु जी केवल पहले सुनी हुई बातों को ही रोज़ नियमपूर्वक दोहराते हैं, इसलिए वह उन्हें सुन-सुनकर ऊब गया था। उसने निर्णय किया कि अगले दिन सुबह वह आश्रम छोड़कर चला जाएगा।
उसी रात उसने देखा कि एक नया युवा संन्यासी भी घूमते हुए इसी आश्रम में आ पहुँचा था। रात के भोजन के बाद जब आश्रम में रहने वाले सभी शिष्यों की बैठक हुई तो उस नए संन्यासी ने दो घंटे तक बड़ी सूक्ष्म और ज्ञान की बातें की। इस नए संन्यासी की बातें सुनकर वह युवा व्यक्ति सोचने लगा कि यह कितना ज्ञानवान और जानकार है। इसकी बातें सुनकर तो गुरु जी भी चकित रह गए होंगे। तभी नए आए संन्यासी ने गुरु जी की ओर देखा और पूछा, “आपको मेरी बातें कैसी लगीं?” गुरु जी ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी बातें सुनने के लिए बहुत देर से इंतज़ार कर रहा था, लेकिन तुमने तो अभी तक कुछ बोला ही नहीं।” गुरु जी की बात सुनकर वह संन्यासी झुँझलाकर बोला, “ लगता है शायद आपको सुनाई नहीं देता है। दो घंटे से मैं ही तो बोल रहा था।”
इस पर गुरु जी ने कहा, “वे तो तुम्हारे भीतर से शास्त्र बोल रहे थे, तुम्हारी मान्यताएँ बोल रही थीं, पर तुम तो ज़रा भी नहीं बोले। तुम्हारे भीतर से एक यंत्र की भाँति कुछ शब्द दोहराए जा रहे थे। इसमें तुम्हारा जाना हुआ और जीया हुआ कुछ भी नहीं था। पहले उन सूचनाओं और मान्यताओं को अपने जीने में परखो, महसूस करो और अपने अनुभव से जानो। जब वह तुम्हारा जाना हुआ बन जाएगा तब मैं कहूँगा कि तुम बोल रहे हो।”
गुरु जी की इस बात को सुनकर वह युवा व्यक्ति विचार करने लगा कि उसकी भी जो मान्यताएँ हैं, वह किस हद तक उसकी जानी हुई हैं या फिर उसने केवल सुनी सुनाई बातों को ही ज्ञान माना हुआ है।

चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. क्या हमारे साथ भी कभी ऐसा होता है कि हम बिना बातों को समझे लोगों के सामने बस उन्हें दोहराते रहते हैं?
2. क्या कभी कक्षा में पढ़ते वक़्त हम विषयों को जाने-परखे बिना ही उन्हें मान लेते हैं? क्यों? 3. कक्षा के विषयों को सिर्फ़ मानने की बजाय जानने के लिए क्या किया जा सकता है?

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
  • ऐसी स्थिति में अपने विचार व भावों के प्रति सजग रहने के लिए कहा जाए ताकि आगे अपने अनुभवों को ईमानदारी से साझा किया जा सके। 
दूसरा दिन: 
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. हम कभी-कभी यह देखते या सुनते हैं कि ऐसे भी कुछ लोग होते हैं जो पढ़-लिख नहीं सकते हैं, लेकिन उनमें नए-नए आविष्कार करने की क्षमता होती है।
 2. क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हैं? इनमें यह काबिलियत कहाँ से आती होगी? चर्चा करें।
3. किसी बात को जानकर मानने से ही विश्वास होता है। बिना जाने मानने से विश्वास नहीं होता हैं।
4. अपने जीवन से उदाहरण देकर बताएँ कि किन-किन बातों पर आपको विश्वास है और किन-किन बातों को आप मानते तो हैं, लेकिन विश्वास नहीं है?

चर्चा की दिशा: अकसर हम सुनी-सुनाई बातों और विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचनाओं को ही समझ या ज्ञान मानते हैं। हम बहुत-सी बातों को बिना जाने ही सही मान लेते हैं। इन बातों पर पूरा विश्वास नहीं रहता है, क्योंकि ये सही हो भी सकती हैं और नहीं भी।
जब सूचनाओं को अपने जीने में परख लेते हैं और अपने अनुभव से यह महसूस हो जाता है कि वे सही हैं तो उन्हें अपने जीवन में अपना लेते हैं। जब सूचनाएँ हमारे व्यवहार का हिस्सा हो जाती हैं तब ‘समझ’ कहलाती हैं। इस प्रकार जीने में प्रमाण के आधार पर जब वास्तविकताओं को जैसी हैं वैसी पहचान लेते हैं तो उसको ‘जानना’ कहते हैं।
इस कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को सुनी-सुनाई बातों को सिर्फ़ ‘मानने’ की बजाय ‘जानने’ के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।


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