Chapter 3: मन की आवश्यकताएँ


शिक्षक के संदर्भ के लिए: 
अभी तक के चैप्टर्स में हमने समझा है कि-
  • हम सब ख़ुश रहना चाहते हैं। हम जो भी करते हैं इस उम्मीद में करते हैं कि इससे हमको ख़ुशी मिलेगी. 
  • हमको अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति से ख़ुशी महसूस होती है। 
  •  हमने अपनी आवश्यकताओं को भी समझा और देखा कि हमारी आवश्यकताएँ दो तरह की हैं- ○ भौतिक आवश्यकताएँ यानी हमारे शरीर से संबंधित आवश्यकताएँ। जैसे- रोटी, कपड़ा, मकान, गाड़ी, मोबाइल, घर इत्यादि 
    • मानसिक आवश्यकताएँ यानी हमारे मन से संबंधित आवश्यकताएँ। जैसे- प्यार, सम्मान, शांति, सुख इत्यादि। 
  • बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपने शरीर या मन की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए यह भूल जाते हैं कि हमारी आवश्यकताएँ क्या है और जाने अनजाने बहुत कुछ ऐसा करते चले जाते हैं जो हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अहंकार और दिखावे के लिए कर रहे होते हैं। इस अध्याय में हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि हम अपनी ज़रूरतों को पूरा करते करते कब अहंकार और दिखावे की ज़रूरतों को पूरा करने में फँस जाते हैं. मन की आवश्यकताएँ जो सुख से, समझ से पूरी होती हैं, उन्हें हम दिखावे से पुष्ट करने के प्रयास में हैं। हम अहंकार और दिखावे में अपना सुख, अपना सम्मान ढूँढ रहे हैं। भले ही हमारे घर में चीज़ें सड़ रही हों, हम उन पर पर्दा लगा देते हैं। भले ही हमारे घर में बीमारी हो हम उधार लेकर घर में शादी करते हैं। 36 प्रकार के व्यंजन प्रस्तुत करते हैं। और कौनसे काम हैं जो हम दिखावे के लिए करते हैं? मेरी ज़रूरतें हैं या मैं दिखावे के लिए कर रहा हूँ? मेरी ज़रूरतें हैं या मैं अहंकार के पोषण के लिए कर रहा हूँ? 
Section 1: अहंकार और दिखावा 
  • कहानी 1.1: अहंकार का कमरा 
  • कहानी 1.2: पगड़ी 
Section 2: मन की आवश्यकता: भाव 
  1. गतिविधि 2.1: दावत - कब ज़रूरी कब दिखावा 
  2. कहानी 2.1: मेरी पहचान
Section 1: अहंकार और दिखावा 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: अभी तक चर्चा करते हुए हमने समझा कि हम सबसे पहले अपनी ज़रूरतों को समझें और फिर उन्हें पूरा करने की योग्यता हासिल करें और उसके लिए परिश्रम करें। ज़रूरतों को समझे बिना बहुत बार हम सामान और सुविधाएँ इकट्ठा किए चले जाते हैं और हमें पता ही नहीं होता कि कब हम अपने शरीर या मन की ज़रूरतों को भूल कर अपने अहंकार और दिखावे के चक्कर में पड़ गए। अहंकार या दिखावे और ज़रूरतों के बीच फर्क को समझने के लिए यह कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं। 

कहानी 1.1: अहंकार का कमरा 
कहानी का उद्देश्य: इस कहानी के माध्यम से चर्चा करें और कोशिश करें कि विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर चला जाए कि कि बहुत बार हम ज़रूरतों को भूलकर किस तरह अहंकार या दिखावे के अंतहीन फेर में पड़ जाते हैं. समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी: 
एक आदमी ने बहुत बड़ा घर बनाया। उसमें उसने सौ कमरे बनवाए, लेकिन उस घर में वह और उसकी पत्नी दो लोग ही रहते थे। जब भी कोई मेहमान आता बड़ी शान से घर का एक-एक कमरा दिखाते। उसमें लगे मूल्यवान संगमरमर के पत्थर के बारे में बताते। खिड़की दरवाज़ों में लगे महँगे सामान की ओर ध्यान दिलाते। अपने घर में आने वाले हर आदमी को वह दूसरे कमरे में ले जाना कभी नहीं भूलते थे। एक बार एक संत उनके घर आकर ठहरे संत को भी उन्होंने अपना पूरा घर दिखाया। संत ने पूछा कि आप पति-पत्नी का काम एक कमरे में चल जाता है बाकी निन्यानवे कमरों में कौन रहता है। उन्होंने कहा कि कोई नहीं रहता। संत ने कहा- नहीं, जब से मैं इस घर में आया हूँ मुझे यह अनुभव हो रहा है कि आपके हर कमरे में कोई बीमारी रहती है। पति-पत्नी के मन में थोड़ा डर बैठ गया। संत के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान था। उन्हें लगा कि पहुँचे हुए संत हैं, शायद उन्हें हमारे घर में किसी भूत-प्रेत के रहने का पता चला है। वे घबरा गए। संत ने कहा आपके निन्यानवे कमरों में भूत-प्रेत से भी ज़्यादा खतरनाक बीमारी रहती है, लेकिन मैं यह आपको अभी नहीं बताऊँगा कि आपके घर में क्या बीमारी है। यह मैं दो-चार महीने में जब दोबारा आऊँगा तब आपको बताऊँगा कि आपको क्या बीमारी है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप इसका इलाज अभी से शुरू कर दें। पति-पत्नी दोनों संत के प्रति काफ़ी सम्मान रखते थे, उन्होंने पूछा कि बीमारी नहीं बता रहे तो इलाज ही बता दीजिए। हम इलाज शुरू कर देंगे। संत बोले कि अब से जो भी मेहमान आपके घर में आए उसे अपने कमरे दिखाने मत ले जाना। अगर मेहमान रुकने आए तो उसे केवल उसके रुकने के कमरे में ले जाना, लेकिन उससे कीमती संगमरमर और महँगे साजो-सामान पर चर्चा मत करना। दो महीने बाद संत वापस लौटे। उन्होंने पति-पत्नी से पूछा कि आपके घर में मौजूद बीमारी का जो इलाज मैंने आपको बताया था, क्या आप वह कर रहे हैं। दोनों के दोनों ने हामी भरी। संत ने पूछा कि आप बीमारी के बारे में नहीं जानना चाहोगे? पति-पत्नी ने कहा कि बीमारी को हम ख़ुद जान चुके हैं। हमारे घर में एक कमरे में हम रहते थे और 99 कमरों में हमारे अहंकार की बीमारी रहती थी। जब से आपने हमें मेहमानों को कमरे दिखाने और उसमें लगे साजो-सामान की कीमत बताने से मना किया तब से हमें पता चला कि वास्तव में हम कमरे नहीं दिखा रहे होते थे बल्कि अपने अहंकार की तुष्टि कर रहे होते थे। संत की समझ में आ गया कि पति-पत्नी अपनी बीमारी को पहचान चुके हैं। उसके बाद वे भी अपनी ज़रूरत के जितना एक घर लेकर ख़ुशी से रहने लगे।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न : 
1. हम कोई वस्तु अपने पास ज़्यादा मात्रा में क्यों रखना चाहते हैं?
2. जब आपके साथ कोई दिखावा करता है तो आपको कैसा लगता है?
3. क्या कभी आपने भी किसी के आगे दिखावा किया है? क्यों और कैसे?
4. परीक्षा में सबसे ज़्यादा नंबर लाकर, जब हम सबको अपने सबसे ज़्यादा नंबर लाने की बात बताते हैं तो वह ज़रूरत है या अहंकार की पुष्टि?
5. एक अच्छा पेन लाना, भले ही वह महँगा हो लेकिन हमारे लिखने की ज़रूरत को ठीक से पूरा करता हो, बीच में रुकता ना हो, हमारी ज़रूरत है या अहंकार?
6. एक मशहूर कंपनी वाले या महँगे पेन को अपने साथियों को दिखाना ज़रूरत है या अहंकार की पुष्टि?
7. कुछ लोग अपने महंगे सामान की कीमत बार-बार सब को बताते रहते हैं यह उनकी ज़रूरत है या अहंकार और दिखावा?
8. अपने आसपास की ज़िंदगी में ऐसे पाँच उदाहरण ढूँढकर लाए जो आपके अनुसार लोगों की ज़रूरत नहीं थे फिर भी दिखावे या अहंकार की पुष्टि के लिए वह किए गए। ( यहां कोशिश करें कि छात्र जन्मदिन पर दिए जाने वाले तोहफ़े, दहेज या शादी ब्याह में होने वाले अनावश्यक खर्च की ओर भी अपना ध्यान लेकर जाएँ।)

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
1. विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार जानने के लिए कहा जाए।

दूसरा दिन अथवा आगे: 
1. पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों से करवाएँ।
 2. पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए कर सकते हैं।
3. घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैंI

चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. जब कभी कोई ख़ुद को दूसरों से बड़ा या बेहतर दिखाने की कोशिश करता है, तो सामान्यत: उन लोगों द्वारा सामने किए जा रहे व्यवहार और मन में चल रहे विचार में क्या अंतर लगता है?
2. आप ऐसा एक पल साझा कीजिए जब आपने किसी का ख्याल रखा या आप किसी के काम आए। उस पल आपको कैसा लगा था?
3. कोई हमारा सच्चा सम्मान कब करता है? (उदाहरण: जब हमारे पास उससे अधिक या बड़ी वस्तुएँ होती हैं या जब हम उसके किसी काम आते हैं?) अन्य कारण बताएँI

क्या करें और क्या न करें: 
1. चिंतन के लिए प्रश्न का जवाब देने का अवसर हर विद्यार्थी को दिया जाए, पर बोलने के लिए दबाव न हो।
2. जब बच्चे दिखावे से संबंधित कोई शेयरिंग करते हैं तो उनका मज़ाक न उड़ाया जाए I

चर्चा की दिशा: सम्मान दिखावे में नहीं बल्कि किसी के जीवन में उसकी उपयोगिता एवं श्रेष्ठता की स्वीकृति से है। हम ऐसा मान लेते हैं की भौतिक सुविधा से सुख और सम्मान हमें प्राप्त हो जाएगा। हमें जब तक पता ही न हो कि हमें कितने की आवश्यकता है तो हम और सामान बटोरते रहेंगे और असुरक्षित महसूस करते रहेंगे। उस असुरक्षा को छिपाने के लिए हम और दिखावे की ओर बढ़ते हैं।


कहानी 1.2: पगड़ी 

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को अपने अहंकार का पोषण करने वाली चीज़ों के प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी: 
एक चालाक आदमी एक सम्राट के दरबार में पाँच रुपए की चमकदार रंगों से रँगवाई गई एक सस्ती-सी पगड़ी लेकर गया। सम्राट ने उस पगड़ी को देखकर पूछा, “इस पगड़ी के क्या दाम हैं?” उस आदमी ने कहा, “एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ।” सम्राट हँसा और पूछा- एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ कैसे? सम्राट के वज़ीर ने सम्राट को उस चालाक आदमी से सावधान रहने को कहा। जब उस आदमी ने कहा कि अब मैं चलता हूँ तो सम्राट ने पूछा, “क्यों आए थे और क्यों जा रहे हो?” उसने कहा कि मैंने जिस आदमी से यह पगड़ी ख़रीदी थी उससे मैंने भी यही प्रश्न पूछा था कि यह पगड़ी एक हजार स्वर्ण मुद्राओं की कैसे? उस आदमी ने मुझे बताया था कि इस दुनिया में एक ऐसा सम्राट है जो इसके पाँच हजार स्वर्ण मुद्राएँ दे सकता है। किंतु मुझे लगता है कि यह उस सम्राट का नहीं है जिसे मैं खोज रहा हूँ। मुझे किसी और सम्राट के दरबार में जाना पड़ेगा। यह सुनते ही उस सम्राट ने कहा, “दस हजार स्वर्ण मुद्राएँ इसे दे दी जाएँ और पगड़ी ख़रीद ली जाए। जब वह आदमी रुपए लेकर दरबार से बाहर निकल रहा था तो वज़ीर ने उससे पूछा कि पाँच रुपए की पगड़ी को दस हजार स्वर्ण मुद्राओं में बेचने का राज़ क्या है? उस आदमी ने वज़ीर के कान में कहा, “मित्र, इसका राज है आदमी की कमज़ोरी।” वज़ीर ने पूछा, “क्या है आदमी की कमज़ोरी?” उसने जवाब दिया कि आदमी की कमज़ोरी है- अहंकार। वह मानता है कि मैं ही श्रेष्ठ हूँ? ‘आप ही सबसे श्रेष्ठ हैं’ मैंने यह जताकर सम्राट के अहंकार का पोषण कर दिया और पाँच रुपए की पगड़ी दस हजार स्वर्ण मुद्राओं में बिक गई।

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. क्या आपने भी कभी दिखावे के लिए कोई महँगी चीज़ ख़रीदी है? क्या और क्यों?
 2. ऐसे कौन से गुण हैं जो आप में नहीं हैं या बहुत कम हैं फिर भी आप उनके होने का दिखावा करते हैं? घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए। 
  • विद्यार्थियों को अपने आसपास यह देखने के लिए कहा जाए कि लोग किस तरह अपना अहंकार बढ़ाने में लगे हुए हैं। 
  दूसरा दिन अथवा आगे: 
  • विद्यार्थियों द्वारा कहानी की पुनरावृत्ति करवाएँ। 
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दें। 
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है। 
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. हम महँगी चीज़े किन-किन कारणों से ख़रीदते हैं? 
2. जब हम पहचान और सम्मान पाने के लिए महँगी चीज़े खरीदते हैं तो क्या यह उद्देश्य पूरा होता है? यदि नहीं, तो फिर ऐसा क्यों करते हैं? 

चर्चा की दिशा: यदि कोई व्यक्ति किसी बात में सिर्फ़ स्वयं को ही श्रेठ मानने लगता है तो इस भ्रम को ‘अहंकार’ कहते हैं। ज्ञान के साथ-साथ विनम्रता बढ़ती है। अहंकार के साथ-साथ क्रोध बढ़ता है। यदि समय के साथ-साथ अपनों की संख्या बढ़ रही है तो यह इस बात का प्रमाण है कि हमारी समझ बढ़ रही है और अपनों की संख्या घट रही है तो यह इस बात का प्रमाण है की हमारा अहंकार बढ़ रहा है। समझदार व्यक्ति अपने व्यवहार, विचार और उपयोगिता से स्वयं में सम्मान पूर्वक जीता है। नासमझ व्यक्ति दिखावे से सम्मान पाने की अपेक्षा रखता है और स्वयं भ्रम में रहते हुए दूसरों को भ्रमित समझता है। इस कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को अपने अहंकार का पोषण करने वाली चीज़ों के प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित किया गया है।

Section 2: मन की आवश्यकता: भाव 

शिक्षक के संदर्भ के लिए: इस बात पर ध्यान दिलाना की हम बिना दिखावे के भी या अनावश्यक ख़र्चे के बिना भी विश्वास और सम्मान के पात्र हो सकते हैं। अपनी आवश्यकता की पहचान होने से हमको स्पष्ट होता है कि शरीर के लिए हमको क्या और कितना करने की ज़रूरत है और जितना हम अपने मन के लिए करना चाह रहे हैं वह शारीरिक सुविधाओं से पूरा नहीं हो सकता। अंत में हमको पहचानना होगा कि आख़िर अपनी मन की आवश्यकता भौतिक दिखावे से पूरी ना होकर आत्मविश्वास और समझ से पूरी होगी। 

गतिविधि 2.1: दावत - कब ज़रूरी कब दिखावा 

शिक्षक के लिए नोट:
  • हमारी दो तरह की आवश्यकताएँ हैं- शरीर के लिए भोजन और मन के लिए भाव। 
  • हमारे लिए दोनों ही आवश्यक हैं, लेकिन इनमें ‘भाव’ प्रधान रहता है। जैसे- हमें बहुत भूख लगी है और भोजन की तुरंत आवश्यकता है, लेकिन उसी समय हमें कोई अपमानित कर देता है और फिर भोजन देता है, तो उस समय हमें कैसा लगेगा? हमारी तुरंत भूख मर जाएगी। इस गतिविधि के माध्यम से हम अपनी भाव की आवश्यकताओं को और समझने की कोशिश करेंगे। 
गतिविधि का उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस बात पर जाए की किसी भी स्थिति में हमारे कितने भी प्रयास के बावज़ूद भोजन के दिखावे से हम स्नेह या सम्मान सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

गतिविधि के चरण: 
1. विद्यार्थियों को 4-5 के छोटे छोटे समूहों में बैठने के लिए कहें।
2. प्रत्येक समूह के पास एक कागज़ और क़लम सुनिश्चित कर लें।
3. हर समूह स्वयं को एक परिवार मान ले। परिवार में कोई भी एक अवसर मान लिया जाए, जिसकी दावत दी जानी है।
4. वे मिलकर तय करें कि उन्हें क्या क्या इंतज़ाम करना है। इंतज़ाम किस स्तर का होगा? और वैसा वे क्यों करना चाहते हैं? वे उपलब्ध कागज़ पर सूची बना लें। (इस कार्य के लिए उन्हें 10 मिनट का समय दिया जा सकता है।)
5. अब उन्हें कहा जाए कि किसी कारण से कुछ पैसों की दिक्कत आ गई है। ऐसे में उन्हें किन्हीं 5 वस्तुओं/कार्यों को सूची में से काट देने के लिए कहा जाए जिनके बिना ही वे दावत का आयोजन करेंगे।
 6. दावत में परिवार के प्रत्येक सदस्य कौन सी ज़िम्मेदारी लेंगे, यह भी तय करके लिख लें।
 7. अब हर समूह से कोई एक व्यक्ति अपने समूह की योजना साझा करे जिसमें उनके उन 5 कार्यों के हटाने से आयोजन पर पड़ने वाले प्रभाव और हटाने का कारण भी बताए।
8. अब मान लें कि सभी के यहां दावत एक ही दिन है। वे अन्य परिवारों को अपने आयोजन में आमंत्रित करें। 
9. प्रश्न रखा जाए - आप किसके यहां जाना पसंद करेंगे और क्यों? (इस प्रश्न के माध्यम से विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर ले जाने का प्रयास करें कि निर्णय लेते समय उन्होंने उपलब्ध अच्छी सुविधाओं को प्राथमिकता दी या दावत के प्रयोजन पर या फिर बुलाने वाले के भाव पर)

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ जब किसी ने आपके सामने स्वादिष्ट भोजन परोसा हो, पर किसी कारण से आपका खाने का मन नहीं किया? बिना किसी का नाम लिए वह कारण साझा करें। 2. आप किसी के यहाँ दावत पर गए और वहाँ आपको बैठने या भोजन के इंतज़ाम में कोई कमी दिखी। ऐसे में आप क्या करेंगे और क्यों?
दूसरा दिन अथवा आगे: 
  • विद्यार्थियों को छोटे समूहों में बाँटा जाए। 
  • विद्यार्थी अपने-अपने समूह में 8-10 मिनट चर्चा करें कि वे कहाँ-कहाँ और किस-किस प्रकार का 'दिखावा' देखते हैं। चर्चा के निष्कर्षों को बिंदुओं के रूप में नोट किया जाए। 
  • दिखावा करने के कारणों पर भी चर्चा करें। 
  • प्रत्येक समूह कक्षा में अपने समूह के निष्कर्षों को साझा करें। 
 चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. क्या एक ही स्थिति में सभी लोग समान रूप से दिखावा करते हैं?
2. दिखावे के पीछे मुख्य कारण क्या है? (उत्तर- पहचान और सम्मान पाने का भ्रम या दबाव)
3. क्या आप दिखावा करने वाले लोगों का सम्मान करते हैं? क्यों/क्यों नहीं?
4. आप किसी व्यक्ति का सम्मान क्यों करते हैं? 5. आप अपने लिए सम्मान पाने के लिए क्या-क्या प्रयास करते हैं?  

कहानी 2.1: मेरी पहचान 

उद्देश्य: यह समझना कि हमारी पहचान हमारी वस्तुओं से नहीं, परंतु हम जैसे हैं, उससे होती है।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कहानी:
फोर्ड एक बड़े उद्योगपति थे फिर भी अपने ऑफ़िस और फ़ैक्टरी में बिलकुल साधारण कपड़ों में आते-जाते थे। यह देखकर उनके सभी कर्मचारी बहुत आश्चर्य करते और आपस में बातें करते कि बॉस के पास इतना पैसा है फिर भी वे इतने साधारण कपड़ों में ऑफ़िस आ जाते हैं। एक दिन उनकी सेक्रेटरी ने हिम्मत कर उनसे कह दिया, “सर, आपके पास इतना पैसा है कि आप सारी दुनिया से, एक से बढ़कर एक कपड़े मँगवा सकते है फिर भी आप इतने सादा कपड़ों में ऑफ़िस क्यों आ जाते हैं? हेनरी फोर्ड मुस्करा दिए और बोले, “यहाँ सब जानतें हैं कि मैं कौन हूँ। मैं महँगे कपड़े पहनकर सबको यह दिखाने की चिंता क्यों करूँ कि मैं हेनरी फोर्ड हूँ। कुछ दिनों बाद हेनरी फोर्ड वर्ल्ड टूर पर गए। वे बहुत सी जगहों पर गए, लेकिन उन्होंने साधारण कपड़े ही पहन रखे थे। उनकी सेक्रेटरी ने उनसे कहा, “सर, आपको यहाँ कोई नहीं जानता है, इसीलिए आपको महँगे और अच्छे कपड़े पहनना चाहिए!” हेनरी फोर्ड फिर मुस्करा दिए और बोले, “मैं पहनावे की चिंता क्यों करूँ और वह भी उन लोगों के लिए जो मुझे जानते ही नहीं।"

चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न: 
1. क्या समाज में उन सभी लोगों की पहचान होती है जो अच्छे (महँगे, ब्रांडेड,वैरायटी)कपड़े पहनते हैं? चर्चा करें कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके अच्छे कपड़ों की मोहताज नहीं है।
2. किन-किन आधारों पर कोई व्यक्ति समाज में अपनी पहचान बना पाता है? आप अपनी पहचान बनाने के लिए क्या क्या प्रयत्न करेंगे?
3. कोई एक नाम बताओ जिसकी कोई पहचान है तथा जिनसे आप प्रभावित हैं। यह भी बताओ की उनकी पहचान की मुख्य वजह क्या है?

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): 
अपने आस-पास मौजूद लोगों में यह देखने का प्रयास करें की आप जिन्हें पहचानते हैं उन्हें आप उनके पहनावे के कारण ही पहचानते है या उनकी कोई विशेषता के कारण पहचानते हैं। साथ ही यह भी ध्यान दें की जिन व्यक्तियों की आपके अनुसार पहचान है वह अपने पहनावे पर अधिक ध्यान देते हैं या व्यवहार पर।

दूसरा दिन अथवा आगे: 
पिछले दिन की कहानी पर एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति की जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए, आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं। घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूह में बातचीत करेंगे। पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।

चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न: 
1. क्या आपके अच्छी तरह परिचित व्यक्ति के उसके खराब कपड़े पहनने से उसकी पहचान बदल जाएगी? कारण बताओ।
2. व्यक्ति की पहचान अच्छे और महँगे कपड़ों से है या व्यक्ति के गुणों से? कुछ प्रसिद्ध लोगों के उदाहरण देकर बताएँ, उनके कुछ गुण भी बताएँ। (शिक्षक महात्मा गांधी का उदाहरण शेयर कर सकते हैं यदि किसी विद्यार्थी से यह उदाहरण न आए।)
3. क्या किसी की पहचान का उसके कपड़ों से कोई लेना देना है? (यदि किसी डॉक्टर ने सफेद कोट नहीं पहना तो क्या वह डॉक्टर नहीं है या किसी के सफेद कोट पहनने से वह डॉक्टर हो जाएगा?

चर्चा की दिशा: हम अकसर दूसरों की नज़र में अच्छे दिखना चाहते हैं और इसके कई प्रयास करते है। जैसे- अच्छे कपड़े पहनना, नया पेन या पेंसिल लाना, कोई खिलौना लेकर आना आदि। हमें लगता है कि सामान से ही हमारी पहचान है। परंतु इस ओर ध्यान जाना आवश्यक है ही किसी व्यक्ति कि पहचान उसके पहनावे से समाप्त नहीं हो जाती। उदाहरण के लिए:एक नर्स बिना नर्स कि ड्रेस के भी नर्स ही रहेगी।

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