11. तीन मज़दूर तीन नज़रिए


कहानी का उद्देश्य: यह स्पष्टता बनाना कि किसी काम को करके हम सुखी या दु:खी नहीं होते हैं बल्कि उस काम को करते समय हमारा भाव क्या है, यह हमारे सुखी या दु:खी होने का आधार बनता है। 

कहानी: 
कहीं पर एक स्कूल बन रहा था। तीन मज़दूर बैठे पत्थर तोड़ने का काम कर रहे थे। वहाँ से एक राहगीर गुज़रा। उसने पहले मज़दूर से पूछा, “क्या कर रहे हो?”। वह दु:खी मन से बोला, “पत्थर तोड़ रहा हूँ।” सच में वह मन में भी पत्थर ही तोड़ रहा था, इसीलिए वह दु:खी भी था।
राहगीर दूसरे मज़दूर के पास गया। वह दु:खी नहीं था। संतुलित था - न दु:खी न सुखी। राहगीर ने उससे पूछा, “क्या कर रहे हो?” उसने कहा, “रोज़ी-रोटी कमा रहा हूँ।” सच में वह मज़दूर रोज़ी-रोटी कमाने के लिए ही काम कर रहा था, इसीलिए उसके चेहरे पर न दु:ख था न सुख।
राहगीर तीसरे मज़दूर के पास पहुँचा। वह मज़दूर आनंदित था। वह पत्थर तोड़ते हुए गुनगुना रहा था। उसने अपना गीत बीच में रोक कर कहा, “मैं शिक्षा का मंदिर बना रहा हूँ। यहाँ बच्चे पढ़ेंगे।” यह कहते हुए उसकी आँखों में चमक थी। जीवन में काम करने के यही तीन तरीके हैं: पहला है - मज़बूरी में काम करना और दु:खी रहना। दूसरा है - रोज़ी-रोटी के लिए मशीन की तरह मेहनत करना और तीसरा है - अपने काम से दूसरे लोगों को होने वाले सुख से आनंदित रहना।
जीवन का आनंद जीने वाले की दृष्टि में होता है। वह अंदर से आता है बाहर से नहीं।

पहला दिन चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. तीनों मज़दूरों में से कौन सबसे ज़्यादा समझदार या ख़ुशहाल मनःस्थिति में है? चर्चा करें।
2. पहले मज़दूर को अपने काम में कोई रुचि नहीं है और अगर उसे बिना काम किये मज़बूरी मिल जाए तो भी वह दु:खी ही रहेगा, क्योंकि वह दु:खी होने का कोई न कोई और कारण ढूँढ लेगा। सहमत/असहमत? चर्चा करें।
3. यदि आपको घर बैठे एक कमरे में सब सुविधा (जैसे TV, AC, खाना, आराम के लिए बिस्तर) उपलब्ध करा दिया जाए और आपको कह दें की आपको कमरे से कभी बाहर नहीं निकलना, हमेशा के लिए यह सब मिलता ही रहेगा। तो आपको कैसा लगेगा? सुखी होंगे या दु:खी होंगे? क्यों? चर्चा करें।
 4. यदि तीसरे मज़दूर को एक निरर्थक काम (जैसे एक कमरे से दस कुर्सी दूसरे कमरे में ले जानी, फिर वही दस कुर्सी वापस पहले कमरे में ले जानी, सुबह से शाम तक यही करते रहना) करने के लिए दे दिया जाता तो उसको कैसा लगता? वह अभी भी सुखी ही रहता या दु:खी हो जाता? चर्चा करें।
 5. उपयोगी काम पर थोड़ी चर्चा कर लें- जैसे, इस कहानी में स्कूल बनाना एक उपयोगी काम है और तीसरा मज़दूर उस उपयोगी काम में अपने योगदान को समझ रहा है इसीलिए वह ख़ुश है। कुछ अन्य उपयोगी काम के उदाहरण दें, जैसे - सफ़ाई करना, मिड डे मील बाँटना, पढ़ाना, घर में खाना बनाना। (शिक्षक के लिए नोट: आवश्यकता हो तो चर्चा करें की जो काम व्यवस्था को बनाएँ रखते या मज़बूत करते हैं उन्हें उपयोगी काम कहा जा रहा है)।

दूसरा दिन: 
  • पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं। 
  • पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए। 
  • घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं। 
चर्चा के लिए प्रश्न: 
1. क्या आपने अपनी माँ या पिताजी के भावों को एक ही काम करते हुए, अलग-अलग समय पर अलग-अलग पाया है?
2. क्या आपके साथ ऐसी स्थिति आई है कि अलग-अलग समय पर एक ही काम करते हुए, आपकी मन:स्थिति अलग रही हो? उदाहरण देकर बताइए।
3. ख़ुश होकर काम करने से ख़ुशी मिलेगी या काम करके आप ख़ुश होंगे? (अपने जीवन से कोई उदाहरण देकर बताओ कि कौन-कौनसे काम आप ख़ुश हो कर करते हो और किन-किन कामों मे आपको लगता है कि कर के ख़ुशी मिलेगी?) (शिक्षक के लिए नोट: ख़ुश होकर करने से आशय है उस काम की उपयोगिता की समझ होना। हम कोई भी काम क्यों कर रहे हैं, उसकी व्यवस्था में क्या भूमिका है, इस स्पष्टता से हम ख़ुश होते हैं)।
4. जिन कामों से आपको लगता है कि कर के ख़ुशी मिलेगी, क्या उन्हें ख़ुश हो कर भी किया जा सकता है, उदाहरण देकर समझाओ। (यदि बच्चों को कोई उदाहरण ढूँढने में मुश्किल हो रही हो तो टीचर इस उदाहरण से चर्चा शुरू कर सकते हैं: हम अपने मित्रों के साथ बाहर जाकर आइस-क्रीम खाने का प्रोग्राम बनाते हैं, तो ऐसा लगता है कि आइस-क्रीम खा कर हम ख़ुश होंगे। लेकिन ऐसा भी हो सकता है की हम मित्रों के साथ ख़ुश ही हैं। आइस-क्रीम नहीं खाई तो भी ख़ुश, और खा ली तो भी ख़ुश। दूसरा उदाहरण: आपके मित्र ने नए जूते लिए और वह नए जूते मिलने के कारण ख़ुश दिख रहा है। आपने नए जूते नहीं लिए और लेने की ज़रूरत भी नहीं लग रही तब भी आप ख़ुश ही हैं।)

क्या करें और क्या न करें: 
  • सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें। 
  • शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं। 
  • जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें। 
चर्चा की दिशा: हमारा और बच्चों का ध्यान इस तरफ़ जाए की किसी काम को करके हम सुखी या दु:खी नहीं होते हैं बल्कि उस काम को करते समय हमारा भाव क्या है उससे हम सुखी या दु:खी होते हैं।दूसरे शब्दों में कार्य की उपयोगिता और उसको करते समय व्यवस्था में उस काम की भूमिका को समझकर करने पर हमें ख़ुशी मिलती है।

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  1. अलेक्जेंडर और डायोगनीज
  2. मन के अंदर महल
  3. राबिया की सूई
  4. क्या असली तो क्या नकली
  5. कितनी ज़मीन
  6. अहंकार का कमरा
  7. पगड़ी
  8. मेरी पहचान
  9. अरुणिमा सिन्हा
  10. सुकरात के तीन सवाल
  11. तीन मज़दूर तीन नज़रिए
  12. निर्मल पानी
  13. कौन बोल रहा है
  14. पतंग की डोर 
  15. बड़ा आदमी
  16. भाई है बोझ नहीं 
  17. मिल-जुलकर 
  18. दूध में चीनी

2 comments:

  1. बहुत ही अच्छी सोच,खुश होकर काम करो

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