समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक की संतुष्ट होने तक
कहानी:
एक गाँव में लोग आपस में हमेशा एक-दूसरे की बुराई करने में लगे रहते थे। ये उनके दुख का बड़ा कारण था। गाँव में एक संत महिला राबिया रहती थी। वह हमेशा लोगों को समझाने के लिए नए-नए तरीके निकालती रहती थी।
एक शाम वह अपने घर के सामने कुछ खोज रही थी। दो-चार लोग वहाँ से गुज़र रहे थे। उन्होंने राबिया को कुछ खोजते देख कर पूछा, “क्या खो गया है?” राबिया ने जवाब दिया, “मेरी सूई गिर गई है।” उन्होंने सोचा बूढ़ी महिला है और आँखें भी कमजोर हैं, इसकी मदद करनी चाहिए। वे लोग भी उसके साथ मिलकर सूई खोजने लगे, लेकिन तभी उनमें से किसी एक के मन में सवाल आया कि सूई तो बहुत छोटी चीज है जब तक ठीक से पता न चले कि कहाँ गिरी है तो इतने बड़े रास्ते पर कहाँ खोजते रहेंगे। उसने राबिया से पूछा, “ माँ जी ! यह तो बता दो कि सूई गिरी कहाँ है? राबिया ने जवाब में कहा, “ये तो पूछो ही मत। सूई तो घर के भीतर गिरी है।”
राबिया का जवाब सुनते ही गाँव के लोग हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। कहने लगे कि हो न हो माई पागल हो गई है। सूई घर के भीतर गिरी थी और यह ख़ुद भी बाहर ही खोज रही थी। यह बात जब उन्होंने राबिया से कही तो राबिया बोलीं, “यह तो मुझे भी पता है, लेकिन भीतर अँधेरा है और बाहर रोशनी है।अंधेरे में खोजूँ तो कैसे खोजूँ? खोज तो केवल रोशनी में हो सकती है।”
यह जवाब सुनकर तो गाँव वाले हँसने लगे। वे राबिया से कहने लगे, “लगता है बुढ़ापे में आपकी समझ गड़बड़ा गई है। घर में अगर रोशनी नहीं भी है तो भी खोजना तो घर में ही पड़ेगा।” अब हँसने की बारी राबिया की थी। राबिया बोली, “बेटा! बात तो आप समझदारी की करते हो। लेकिन मै तो वही तरीक़ा अपना रही थी जो तुम सबको अपनाते देखती हूँ।” गाँव वालों ने हैरत से कहा, “क्या मतलब?” राबिया ने कहना जारी रखा, “मैं रोज़ तुम लोगों को हमेशा दूसरों की बुराई करते देखती हूँ। असल में तुम सब दूसरों में ख़ुशी खोजते हो और जब नहीं मिलती तो उनकी बुराई करते हो, जबकि ख़ुशी तो ख़ुद के अंदर होती है। तुम सब दूसरों के व्यवहार में, दूसरों के तोहफ़ों में, दूसरों से मिलने वाले फ़ायदों में, दूसरों से मिलने वाली तारीफ़ और दूसरों के काम में ख़ुशी खोजते हो, जबकि तुम्हारी ख़ुशी तो तुम्हारे मन के अंदर खोई है। ख़ुशी वहीं खोजो जहाँ खोई है।”
गाँव के लोगों को यह बात समझ में आ गई थी कि राबिया उन्हें समझाने के लिए ही सूई खोजने का नाटक कर रही थी।
पहला दिन चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. गाँवों के लोग अपनी ख़ुशी कहाँ खोजते थे? जैसे:- एक छात्र अपने जीवन से एक-एक उदाहरण और बताएँ जब वे दूसरों से कोई काम कराना या दूसरों से कोई व्यवहार की उम्मीद में ख़ुशी ढूँढ रहा था और उसे ख़ुशी मिली।
2. गाँवों के लोग अपनी ख़ुशी कहाँ खोजते थे? जैसे:- एक छात्र अपने जीवन से एक-एक उदाहरण और बताएँ जब वे दूसरों से कोई काम कराना या दूसरों से कोई व्यवहार की उम्मीद में ख़ुशी ढूँढ रहा था और उसे ख़ुशी नहीं मिली।
3. हर एक छात्र अपनी ज़िंदगी से कोई उदाहरण देकर बताए कि जब उसने किसी से अपने मित्रों या संबंधियों की बुराई की हो। और यह सोचकर बताएँ कि बुराई के पीछे क्या यही कारण था कि वह दूसरे में ख़ुशी खोज रहा था या कोई और कारण था।
4. ऐसा अकसर क्यों होता है कि दूसरों की बुराई करने पर लोग ख़ुश होते देखे जाते हैं।
5. दूसरों की बुराई करने वाले लोग दूसरों में ख़ुशी ढूँढ रहे होते हैं या अपने अंदर ख़ुशी ढूँढ रहे होते हैं?
6. क्या दूसरों की बुराई करने वाले लोगों में कभी यह योग्यता आ सकती है कि वे अपने अंदर की ख़ुशी ढूँढ सकें?
(शिक्षक से अनुरोध: उपर्युक्त सभी प्रश्नों का मकसद है कि विद्यार्थी गहराई से अपने ख़ुद के मन के अंदर गहराई से झाँक सकें और खुलकर अपनी बात शेयर कर सकें। अगर विद्यार्थी ने अपने मन के अंदर गहरा उतरकर अपनी इस बीमारी को पकड़ लिया ओर उसकी यह समझ बन गई कि ख़ुशी तो मन के अंदर ही मिलेगी तो उसका आत्मविश्वास बेहद बढ़ जाएगा और वह दूसरे की प्रगति से जलने की जगह अपनी ही प्रगति की ओर आगे ध्यान देगा। इसलिए इन प्रश्नों पर चर्चा करते वक्त कोशिश करें की हर एक विद्यार्थी अपने मन में उतर सके और अपनी बात रख सकें। यह भी ध्यान रखें कि अपने जीवन से उदाहरण लेंगे एक साहस का काम है और किसी बच्चे का अपनी बात कहते हुए कोई उपहास बनाएँगे तो बच्चे की हिम्मत टूट जाएगी। हमेशा ऐसे वक्त में पूरी क्लास बच्चे को ध्यान से सुने और ज़रूरत पड़ने पर उसे प्रोत्साहित करे न की उसका मज़ाक बनाएँ। ज़रूरत पड़े तो बच्चे की झिझक मिटाने के लिए शिक्षक स्वयं अपने जीवन से कोई उदाहरण बताएँ। उपर्युक्त प्रश्नों पर चर्चा शुरू करें ताकि बच्चों का यह विश्वास बन सके कि इस बातचीत में कोई भी बात खुलकर बताई जा सकती है।)
1. आपके अनुसार, ख़ुशियों और दुखों के कौन-कौन से कारण होते है?
2. हम अपने अंदर ख़ुशी कैसे ढूँढ सकते हैं या पहचान सकते हैं?
3. इस कहानी को समझकर आपकी ज़िंदगी में क्या परिवर्तन आ सकता है?
दूसरा दिन अथवा आगे:
● पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों से करवाएँ।
● पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए।
● घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. “ख़ुश होना” और “ख़ुश दिखना” में क्या अंतर है? चर्चा करें। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हमारा ध्यान इनमें से किस तरफ़ ज़्यादा रहता है? ज़्यादा महत्वपूर्ण क्या लगता है?
2. यदि आप कोई अच्छा काम करें मगर उसे देखने वाला कोई नहीं है, तो आपको कैसा लगता है? क्या आपकी योग्यता इससे प्रभावित होती है? चर्चा करें।
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- अलेक्जेंडर और डायोगनीज
- मन के अंदर महल
- राबिया की सूई
- क्या असली तो क्या नकली
- कितनी ज़मीन
- अहंकार का कमरा
- पगड़ी
- मेरी पहचान
- अरुणिमा सिन्हा
- सुकरात के तीन सवाल
- तीन मज़दूर तीन नज़रिए
- निर्मल पानी
- कौन बोल रहा है
- पतंग की डोर
- बड़ा आदमी
- भाई है बोझ नहीं
- मिल-जुलकर
- दूध में चीनी
Very nice
ReplyDeleteThis initiative will lead children from darkness to light and make them a better human being.
ReplyDeleteI really appreciate Delhi government initiative. Maharashtra need AAP government.
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteI highly appreciate the way delhi govt is trying its best to do all things possible!
ReplyDeleteGood learn
ReplyDeleteVery nice sir it's a wonderful massage
ReplyDeleteHEART'TOUCHING STORY SIR JII
ReplyDeleteशानदार विश्लेषण जीवन की सत्यता को स्पष्ट करता है।
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