उद्देश्य: विद्यार्थियों को परस्परता में जीने की समझ विकसित करना।
कहानी:
कई सदियों पुरानी बात है। एक छोटे देश पर आक्रमण हुआ। इसके कारण वहाँ के स्थायी लोगों को देश छोड़कर कहीं दूर जाना पड़ा। वे बड़ी संख्या में अपनी नावों में दूर नई जगह ढूँढने निकले और एक बड़े देश के तट पर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने पनाह के लिए आग्रह किया। बड़े देश का राजा काफ़ी दयालु था, परंतु उनका यह मानना था कि उनके देश की ज़मीन पहले से ही लोगों से भरी हुई है और वे अधिक लोगों को समायोजित नहीं कर सकेंगे।
राजा ने उन्हें समझाने के लिए एक गिलास दूध भेजा जो पूरी तरह से भरा हुआ था। उन लोगों ने तुरंत संदेश को समझ लिया और राजा से एक चम्मच चीनी माँगी। उन्होंने दूध में चीनी घोल दी और राजा को गिलास वापस भेज दिया। इसके माध्यम से उन्होंने राजा को संदेश दिया कि वे शांतिप्रिय और धार्मिक लोग हैं जो अपने ज्ञान और परिश्रम से भूमि और समुदाय को समृद्ध बनाते हैं।
राजा उनके इशारे से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें उपहार के साथ अपने देश में आने का स्वागत किया। उन्हें अपने नए घर में बसने में मदद भी की। इस तरह वे सभी अपने नए देश में दूध में चीनी की तरह मिल गए और उस देश को बेहतर बनाने में जुट गए।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी के साथ रहने के बाद आपका उनके प्रति नज़रिया बदला हो?
2. क्या हमारे आसपास सब एक ही प्रकार के लोग हैं या अलग-अलग? हम एक-दूसरे से किस तरह समान हैं?
3. क्या हम संबंध समानताएँ देखकर बनाते हैं? हम संबंध किस आधार पर बनाते हैं?
4. क्या हम सबके लिए उपयोगी हो सकते हैं? कैसे?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्तियों के लिए): 1. घर जाकर अपने माता-पिता से चर्चा करके यह समझें कि आपके मोहल्ले में कहाँ-कहाँ से लोग आकर बसे हैं और क्या वे दूध में चीनी की तरह घुल गए हैं? 2. अगर हो सके तो घर वालों से यह भी चर्चा करें कि आपके मोहल्ले में पहले कौन आकर बसे और बाद में कौन लोग आए? क्या आज इस बात से मोहल्ले की ख़ुशहाली पर फ़र्क पड़ता है कि पहले कौन बसा और बाद में कौन आया? शिक्षक पहले पिछले दिन की डिस्कशन का फ़ीड्बैक लें और फिर इस प्रश्न पर थोड़ा और मनन कराया जाए कि क्या इस बात से फ़र्क पड़ता है कि पहले कौन आकर बसा और बाद में कौन आया। शिक्षक थोड़े उदाहरण दें कि कैसे हमारे देश से भी लोग बाहर जाकर बसे हैं - अफ़्रीका, कनाडा, सिंगापुर। वहाँ भारतियों की पूरी बस्तियाँ हैं। दुनिया का कोई कोना नहीं जहाँ हमारे देश के लोग जाकर ना बसे हों। वहाँ के समाज में दूध-चीनी की तरह मिल गए। हमारे देश में भी दुनिया भर के तमाम देशों से लोग आकर बसे और आज हम एक समाज हैं।
दूसरा दिन:
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
क्या करें और क्या न करें:
- सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें।
- शिक्षक यह देखे कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं।
- जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें।
समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
गतिविधि के चरण:
- विद्यार्थियों को स्वेच्छा से 5-5 के समूह में बैठने को कहा जाए।
- अपने विद्यालय के वातावरण को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक समूह को अपने योगदान की एक योजना बनाने के लिए कहा जाए। योजना के मुख्य बिंदु- क्या, कब, कौन, कैसे आदि लिए जा सकते हैं। (5 मिनट)
- शिक्षक भी अपने लिए एक योजना बना सकते हैं और कक्षा के साथ साझा कर सकते हैं।
- प्रत्येक समूह अपनी योजना को कक्षा में प्रस्तुत करे। विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत की गई योजनाओं की सराहना की जाए। (प्रत्येक समूह 3 मिनट)
1. हमें विद्यालय के वातावरण को बेहतर बनाने के लिए योगदान क्यों देना चाहिए?
2. विद्यार्थियों के द्वारा विद्यालय में किस-किस प्रकार का योगदान दिया जा सकता है?
3. यदि सभी विद्यार्थी अपना-अपना योगदान दें तो इससे अपने विद्यालय में क्या-क्या बदलाव देखने को मिल सकते हैं?
क्या करें और क्या न करें (Dos and Don’ts):
- समूह की योजना को चार्ट पेपर पर बनवाकर कक्षा में या अन्य उपयुक्त स्थान पर प्रदर्शित किया जा सकता है।
- विद्यालय में स्वेच्छा से ज़िम्मेदारी लेने वाले विद्यार्थियों की प्रार्थना सभा में सराहना की जाए।
- शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के योगदान की योजना को विद्यालय में लागू करवाने में मदद की जाए।
- यदि यह गतिविधि एक पीरियड में पूरी न हो सके तो अगले दिन भी इसे जारी रख सकते हैं।
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