कहानी: एक राजा के राज्य में एक संत बहुत दिनों से एक पेड़ के नीचे रह रहे थे। उस संत का बड़ा नाम था। लोग उनसे मिलने के लिए दूर-दूर से आते थे। इससे राजा को भी लगा कि वह कोई पहुँचे हुए संत हैं। एक दिन राजा भी संत से मिलने गया। संत की बातों से राजा बहुत प्रभावित हुआ और निवेदन किया कि आप इस पेड़ के नीचे रहने की बजाय मेरे साथ महल में रहने के लिए चलें। संत ने कहा कि आप जहाँ रहने के लिए कहेंगे हम वहीं रह सकते हैं। राजा थोड़ा हैरान हुआ। उसने सोचा था कि संत का जवाब होगा कि हम संतों का महल में क्या काम। राजा की उम्मीद के विपरीत वह संत तुरंत चलने के लिए तैयार हो गये। राजा को इससे थोड़ा धक्का लगा लेकिन उसने ख़ुद ही चलने के लिए निवेदन किया था, इसलिए संत को अपने महल में ले जाना पड़ा। राजा ने संत को सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाईं। कालीन बिछवाए, सोने के लिए मुलायम गद्दे दिए, स्वादिष्ट भोजन दिया। संत आराम से इन सबका उपयोग करने लगे। राजा को लगा कि यह कैसा संत है। एक बार भी यह नहीं कहा कि हम तो संत हैं, हम गद्दे पर नहीं सोते हैं। हम तो ज़मीन पर सोते हैं। एक बार भी यह नहीं कहा कि इतने स्वादिष्ट भोजन की संतों को ज़रूरत नहीं है। संत तो रूखा-सूखा खा लेते हैं। कुछ दिन बीते तो राजा ने पूछा ‘महाराज मेरे मन में एक संदेह है। मैं जानना चाहता हूँ कि आप पेड़ कि नीचे ज़्यादा ख़ुश थे या महल में तमाम सुख-सुविधाओं के बीच ज़्यादा ख़ुश हैं। संत ने कहा ख़ुशी का महल से क्या संबंध। राजा को लगा कि शायद संत को महलों की आदत लग गई है। उसने पूछा कि मैं भी महल में रहता हूँ और अब आप भी महल में ही रहते हैं। मेरे जैसे भोगी ओर आप जैसे संत में अब कोई फर्क नहीं बचा। संत ने कहा कि अगर फ़र्क समझना है तो मेरे साथ महल से बाहर चलो। राजा संत के साथ महल के बाहर गया। जब महल से काफ़ी दूर निकल आए तो राजा ने कहा कि महाराज अब तो बताइए। संत ने कहा थोड़ा और आगे चलें। अब तक धूप तेज हो गई थी, इसलिए गर्मी से बेहाल राजा ने फिर पूछा,- “महाराज अब तो बता दीजिए। हम बहुत दूर आ गए हैं और हमें वापस महल में भी जाना है।” संत ने कहा,- “देखो! महल में रहकर तो आपने देख लिया है। अब हमारे साथ रहो तभी आपके प्रश्न का उत्तर मिलेगा।” राजा ने कहा कि मैं महल को छोड़कर, राज-पाठ छोड़कर, आपके साथ कैसे जा सकता हूँ? इस पर संत ने कहा कि संत और भोगी में यहीं अंतर है। भोगी जब आगे बढ़ता है तो उसके मन में बहुत कुछ ऐसा होता है जो उसे आगे बढ़ने से रोकता है। लेकिन संत के मन में ऐसा कुछ नहीं होता है जो उसे आगे बढ़ने से रोक सके। जब मैं पेड़ के नीचे था तो पेड़ मेरे अंदर नहीं था, इसलिए आपके साथ महल चला गया। जब मैं महल के अंदर रहा तो भी महल मेरे अंदर नहीं था, लेकिन आपके अंदर है, इसलिए आपको रोकता है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. इस कहानी में संत ने राजा से एक जगह कहा- महलों का ख़ुशी से क्या संबंध है, इस पर चर्चा करें। क्या महलों में रहने भर का अवसर मिलने से कोई ख़ुश रह सकता है।
2. चर्चा करें कि – क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति झोपड़ी में रहकर भी ख़ुश रहे और एक व्यक्ति महलों में रहकर भी ख़ुश न हो।
3. चर्चा करें कि क्या मन के अंदर ख़ुशी हुए बिना महलों की सुविधाएँ किसी इनसानको ख़ुश रख सकती है। (उपर्युक्त सभी प्रश्नों में बच्चों का ध्यान इस ओर ले जाने की कोशिश करें कि सुविधाएँ ज़रूरी है और होनी भी चाहिए लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि सुविधाएँ होने मात्र से कोई इंसान ख़ुश हो सकता है। उसके लिए परिवार में आपस में अच्छे संबंध, एक-दूसरे से प्यार, परिवार और समाज में सम्मान आदि भी ज़रूरी है। सिर्फ़ सुविधाओं से ख़ुश नहीं रहा जा सकता है। लेकिन अगर कोई इंसान अंदर से, अपने मन से ख़ुश है तो वह कम सुविधाओं में भी ख़ुश रहता ही है।)
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
● कृपया, विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहें।
दूसरा दिन अथवा आगे:
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
1. चर्चा करें कि हमारे आसपास ऐसी कौन सी सुविधाएँ हैं जो अगर हमें छोड़कर जानी पड़ें तो आगे बढ़ने से रोक सकती है।
चर्चा की दिशा: इस कहानी से बच्चों का ध्यान दिलाया जा सकता है कि सुख-सुविधाएँ हासिल करना, उन्हें इस्तेमाल करना बिलकुल गलत बात नहीं है, लेकिन किसी भी तरह की सुख-सुविधाओं के छिन जाने पर दु:खी होना कमज़ोरी की निशानी है। मज़बूत आदमी वह नहीं है जो सुख-सुविधाओं से भरपूर है, न ही मज़बूत वह है जिसने सुख-सुविधाओं से अपने आपको दूर रखा हुआ है। असल में मज़बूत आदमी वह है जो सुख-सुविधाओं की कमी में भी दु:खी नहीं होता और उनके छिन जाने की स्थिति में भी आगे बढ़ता रहता है। ऐसे ही आदमी की ख़ुशी लंबी होती है।
क्या करें और क्या न करें:
- सभी को अभिव्यक्ति का अवसर दें और उनकी बात धैर्य से सुनें।
- शिक्षक यह देखें कि सभी विद्यार्थी चर्चा में भाग ले रहे हैं या नहीं।
- जो विद्यार्थी चर्चा में भाग लेने से संकोच कर रहे हैं उन्हें इसके लिए प्रेरित करे और उनका सहयोग करें।
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- अलेक्जेंडर और डायोगनीज
- मन के अंदर महल
- राबिया की सूई
- क्या असली तो क्या नकली
- कितनी ज़मीन
- अहंकार का कमरा
- पगड़ी
- मेरी पहचान
- अरुणिमा सिन्हा
- सुकरात के तीन सवाल
- तीन मज़दूर तीन नज़रिए
- निर्मल पानी
- कौन बोल रहा है
- पतंग की डोर
- बड़ा आदमी
- भाई है बोझ नहीं
- मिल-जुलकर
- दूध में चीनी
nice story
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