समय: कम से कम दो पीरियड अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कहानी:
ज्ञान की तलाश में घूमता हुआ एक युवा व्यक्ति किसी आश्रम में रहने के लिए आया। पंद्रह दिन आश्रम में रहने के बाद वह युवा ऊब गया। उसे ऐसा लगा कि अब उस आश्रम में उसके लिए कुछ भी नया सीखने के लिए नहीं बचा था। उसे लगा कि आश्रम के वृद्ध गुरु जी केवल पहले सुनी हुई बातों को ही रोज़ नियमपूर्वक दोहराते हैं, इसलिए वह उन्हें सुन-सुनकर ऊब गया था। उसने निर्णय किया कि अगले दिन सुबह वह आश्रम छोड़कर चला जाएगा।
उसी रात उसने देखा कि एक नया युवा संन्यासी भी घूमते हुए इसी आश्रम में आ पहुँचा था। रात के भोजन के बाद जब आश्रम में रहने वाले सभी शिष्यों की बैठक हुई तो उस नए संन्यासी ने दो घंटे तक बड़ी सूक्ष्म और ज्ञान की बातें की। इस नए संन्यासी की बातें सुनकर वह युवा व्यक्ति सोचने लगा कि यह कितना ज्ञानवान और जानकार है। इसकी बातें सुनकर तो गुरु जी भी चकित रह गए होंगे। तभी नए आए संन्यासी ने गुरु जी की ओर देखा और पूछा, “आपको मेरी बातें कैसी लगीं?” गुरु जी ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी बातें सुनने के लिए बहुत देर से इंतज़ार कर रहा था, लेकिन तुमने तो अभी तक कुछ बोला ही नहीं।” गुरु जी की बात सुनकर वह संन्यासी झुँझलाकर बोला, “ लगता है शायद आपको सुनाई नहीं देता है। दो घंटे से मैं ही तो बोल रहा था।”
इस पर गुरु जी ने कहा, “वे तो तुम्हारे भीतर से शास्त्र बोल रहे थे, तुम्हारी मान्यताएँ बोल रही थीं, पर तुम तो ज़रा भी नहीं बोले। तुम्हारे भीतर से एक यंत्र की भाँति कुछ शब्द दोहराए जा रहे थे। इसमें तुम्हारा जाना हुआ और जीया हुआ कुछ भी नहीं था। पहले उन सूचनाओं और मान्यताओं को अपने जीने में परखो, महसूस करो और अपने अनुभव से जानो। जब वह तुम्हारा जाना हुआ बन जाएगा तब मैं कहूँगा कि तुम बोल रहे हो।”
गुरु जी की इस बात को सुनकर वह युवा व्यक्ति विचार करने लगा कि उसकी भी जो मान्यताएँ हैं, वह किस हद तक उसकी जानी हुई हैं या फिर उसने केवल सुनी सुनाई बातों को ही ज्ञान माना हुआ है।
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या हमारे साथ भी कभी ऐसा होता है कि हम बिना बातों को समझे लोगों के सामने बस उन्हें दोहराते रहते हैं?
2. क्या कभी कक्षा में पढ़ते वक़्त हम विषयों को जाने-परखे बिना ही उन्हें मान लेते हैं? क्यों? 3. कक्षा के विषयों को सिर्फ़ मानने की बजाय जानने के लिए क्या किया जा सकता है?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
- ऐसी स्थिति में अपने विचार व भावों के प्रति सजग रहने के लिए कहा जाए ताकि आगे अपने अनुभवों को ईमानदारी से साझा किया जा सके।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
1. हम कभी-कभी यह देखते या सुनते हैं कि ऐसे भी कुछ लोग होते हैं जो पढ़-लिख नहीं सकते हैं, लेकिन उनमें नए-नए आविष्कार करने की क्षमता होती है।
2. क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हैं? इनमें यह काबिलियत कहाँ से आती होगी? चर्चा करें।
3. किसी बात को जानकर मानने से ही विश्वास होता है। बिना जाने मानने से विश्वास नहीं होता हैं।
4. अपने जीवन से उदाहरण देकर बताएँ कि किन-किन बातों पर आपको विश्वास है और किन-किन बातों को आप मानते तो हैं, लेकिन विश्वास नहीं है?
चर्चा की दिशा: अकसर हम सुनी-सुनाई बातों और विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचनाओं को ही समझ या ज्ञान मानते हैं। हम बहुत-सी बातों को बिना जाने ही सही मान लेते हैं। इन बातों पर पूरा विश्वास नहीं रहता है, क्योंकि ये सही हो भी सकती हैं और नहीं भी।
जब सूचनाओं को अपने जीने में परख लेते हैं और अपने अनुभव से यह महसूस हो जाता है कि वे सही हैं तो उन्हें अपने जीवन में अपना लेते हैं। जब सूचनाएँ हमारे व्यवहार का हिस्सा हो जाती हैं तब ‘समझ’ कहलाती हैं। इस प्रकार जीने में प्रमाण के आधार पर जब वास्तविकताओं को जैसी हैं वैसी पहचान लेते हैं तो उसको ‘जानना’ कहते हैं।
इस कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को सुनी-सुनाई बातों को सिर्फ़ ‘मानने’ की बजाय ‘जानने’ के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
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