कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों में माता-पिता के प्रति आदर भाव विकसित करना और यह भावना भी विकसित करना कि किसी के प्रति कोई धारणा बनाने से पहले सोचें।
कहानी:
एक परिवार में माता-पिता बड़ी मेहनत से अपने बच्चे को पढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन बच्चा हमेशा अपनी क्लास के धनी मित्रों के महँगे मोबाइल, घड़ी आदि देखकर अपने मम्मी–पापा पर झुंझलाता रहता था। उसे एक बार मोटरसाइकिल लेने की धुन सवार हो गई। माता-पिता के पास पैसे नहीं थे। पापा के मना करने पर एक दिन वह बहुत गुस्सा हो गया और गुस्से में घर से चला गया। वह इतने ग़ुस्से में था कि ग़लती से पापा के ही जूते पहनकर निकल गया। मन में सोच रहा था कि बस आज घर छोड़ दूँगा। तभी लौटूँगा जब बड़ा आदमी बन जाऊँगा। अगर मुझे मोटरसाइकिल नहीं दिलवा सकते हैं तो मुझे इंजीनियर बनाने के सपने क्यों देखते हैं।
बच्चे ने पापा का पर्स उठा लिया, जिसे पापा किसी को हाथ तक नहीं लगाने देते थे। उसने सोचा पर्स में पैसे होंगे और पैसों के हिसाब-किताब की डायरी भी होगी। पता चल जाएगा कि पापा ने कितना पैसा कहाँ-कहाँ बचा कर रखा है।
बच्चा जैसे ही गली से आगे सड़क तक आया उसे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है। उसने जूता निकाल कर देखा कि जूते की कील निकली हुई थी। उसे दर्द तो हुआ, लेकिन ग़ुस्से में वह आगे बढ़ता चला गया। जैसे ही कुछ दूर चला पाँव में गीला-गीला लगा। सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था। पाँव उठाकर देखा तो जूते का तला टूटा हुआ था। कील अलग से चुभ रही थी। जैसे-तैसे लंगड़ाकर बस स्टाप तक पहुँचा। जब काफ़ी देर तक कोई बस नहीं आई तो उसने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ले ली जाए। उसने पर्स खोला, उसमें एक पर्ची दिखाई दी जिसमें लिखा था- “मोबाइल के लिए 10 हजार उधार”। उसे याद आया कि पापा ने पिछले महीने जो मोबाइल लाकर दिया था, वह किसी से उधार लेकर आए थे।
उसने पर्स में मुड़ा हुआ दूसरा पन्ना देखा। उसमें उनके ऑफिस के किसी प्रोग्राम की हॉबी-डे की पर्ची थी। उसके पापा ने अपनी हॉबी लिखी थी- अच्छे जूते पहनना। उसने अपने पैरों में पहने पापा के जूतों को देखा तो उसे बहुत दु:ख हुआ। उसे याद आया कि माँ पिछले चार महीने से हर बार सैलरी आने पर पापा से कहती थी कि नए जूते ले लो। पापा हँसकर कहते थे कि अभी तो छह महीने और चलेंगे। अब मैं समझा कि जूते कितने और चलेंगे।
तीसरी पर्ची खोली। उसमें एक विज्ञापन था कि पुराना स्कूटर देकर बदले में नई मोटरसाइकिल लीजिए। यह पढ़ते ही उसका दिमाग घूम गया। इसका मतलब पापा अपने स्कूटर के बदले मेरी मोटर साइकिल -----------। वह घर की ओर दौड़ा। घर पहुँचा तो वहाँ न पापा थे न स्कूटर। वह सब समझ गया और तुरंत दौड़कर नज़दीकी मोटरसाइकिल एजेंसी पर पहुँचा। पापा वहीं थे। उसने पापा को गले लगा लिया। आँसुओं से उनका कंधा भिगो दिया। बोला, “मुझे नहीं चाहिए मोटरसाइकिल। बस आप नए जूते ले लो। मुझे बड़ा आदमी तो बनना है, मगर आप जैसा।’’
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या कभी आपने अपने माता पिता से बैठकर यह चर्चा की है कि वह घर के ख़र्चे चलाने के लिए या आपकी पढ़ाई या शौक का खर्च पूरा करने के लिए पैसे की व्यवस्था कैसे करते हैं? उनकी अपनी आमदनी क्या है? उनके ऊपर ख़र्चों की क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं?
2. क्या आपने कभी अपने माता-पिता के साथ बैठकर इस पर चर्चा की है कि वह अपनी कमाई में से अपनी ज़रूरतों पर कितना पैसा खर्च करते हैं?
3. माता-पिता इतनी मुश्किलों के बावज़ूद संतान को क्यों पढ़ाना-लिखाना चाहते हैं?
4. क्या आपने किसी से प्रभावित होकर अपने माता-पिता से कोई मांग की है? उदाहरण सहित बताइए।
5. क्या जीवन में सफलता पाने के लिए महँगे मोबाइल, घड़ी, साइकिल जैसी वस्तुएँ अनिवार्य हैं? क्यों? घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए): विद्यार्थियों को यह कहा जाए कि वह घर जा कर अपने परिवार में आज की इस कहानी की चर्चा करें और अपने परिवार के सदस्यों के विचार भी जाने। साथ ही परिवार के सदस्यों के साथ ऊपर लिखे प्रश्नों पर भी चर्चा करें।
दूसरा दिन:
- पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं।
- पिछले दिन के चर्चा के कुछ प्रश्नों का प्रयोग पुनर्विचार के लिए किया जाए।
- घर से मिले फीडबैक के आधार पर विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करें। उनके कुछ विचार पूरी कक्षा के सामने प्रस्तुत करवाए जा सकते हैं।
1. क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपने कभी किसी के बारे में बिना पूरी बात जाने कोई धारणा बनाई हो, और बाद में वह ग़लत साबित हुई हो? तब आपने क्या किया? उदाहरण सहित बताइए I
2. आपको क्या लगता है कि जीवन में सफल होने के लिए क्या होना अनिवार्य है? क्यों?
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- अलेक्जेंडर और डायोगनीज
- मन के अंदर महल
- राबिया की सूई
- क्या असली तो क्या नकली
- कितनी ज़मीन
- अहंकार का कमरा
- पगड़ी
- मेरी पहचान
- अरुणिमा सिन्हा
- सुकरात के तीन सवाल
- तीन मज़दूर तीन नज़रिए
- निर्मल पानी
- कौन बोल रहा है
- पतंग की डोर
- बड़ा आदमी
- भाई है बोझ नहीं
- मिल-जुलकर
- दूध में चीनी
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