उद्देश्य: विद्यार्थियों को धैर्य और शांत मन के महत्त्व से अवगत कराना।
कहानी:
एक बार एक संत अपने एक शिष्य के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में काफ़ी चलने के बाद उन्हें प्यास लगी तो वे एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुक गए।
शिष्य पास की छोटी नदी से पानी लेने चला गया। जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि अभी-अभी कुछ पशु नदी से दौड़कर निकले थे जिससे नदी का पानी गंदा हो गया था। पशुओं की भाग-दौड़ से नदी के पानी में कीचड़ और सड़े हुए पत्ते उभरकर ऊपर की ओर आ गए थे। गंदगी को देखकर शिष्य बिना पानी लिए लौट आया। उसने गुरु से कहा कि यहाँ पर नदी का पानी साफ़ नहीं है। मुझे थोड़ा ऊपर की ओर जाकर पानी लाना होगा। गुरु ने उससे कहा कि ऊपर से पानी लाने में देर लगेगी। एक बार फिर वहीं पर जाओ और पानी ले आओ।
शिष्य थोड़ी देर बाद फिर खाली लौट आया। पानी अब भी गंदा था, लेकिन गुरु ने फिर से उसे वहीं से पानी लाने भेज दिया। तीसरी बार जब शिष्य नदी पर पहुँचा तो चकित रह गया। नदी अब बिल्कुल साफ़ और शांत दिख रही थी। कीचड़ नीचे बैठ गया था और पानी एकदम निर्मल हो गया था। इस बार शिष्य पानी लेकर आ गया।
शिष्य ने गुरु से पूछा कि आपको यह कैसे पता था कि इस बार अवश्य ही साफ़ पानी मिलेगा। गुरु ने उसे बताया कि प्रकृति में कोई भी विषम परिस्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रह सकती है। ऐसा हमारे मन के साथ भी होता है। जब किसी घटना या विचार से हमारा मन विचलित हो जाता है तो काफ़ी देर तक उथल-पुथल का ही माहौल रहता है जैसा उस नदी में था। यदि शांति और धीरज से काम लें तो सभी समस्याओं का समाधान ढूँढा जा सकता है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. जब आपका मन गुस्से या दुःख की वज़ह से विचलित होता है उस समय आपके द्वारा लिया गया निर्णय अधिकतर सही होता है या गलत? क्यों?
2. शांत मन और अशांत मन से लिए गए निर्णयों में क्या अंतर होता है? दोनों स्थितियों के एक-एक उदाहरण देकर बताएँ।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
- विद्यार्थियों को विचलित मन की स्थिति में अपने विचारों और निर्णयों के प्रति सजग रहने के लिए कहा जाए ताकि वे आगे अपने अनुभवों को ईमानदारी से साझा कर सकें।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
1. किसी प्रतिक्रिया में लिए गए निर्णय से आपको क्या-क्या नुकसान हुआ? आप अपने साथ हुई किसी घटना का उदाहरण देकर साझा करें।
2. अपने जीवन से किसी घटना को साझा करते हुए बताइए कि कैसे प्रतिक्रिया वश लिया गया निर्णय बाद में आपको ही स्वीकार नहीं हुआ? शांत मन से सोचने पर उस घटना के लिए अब आपको क्या निर्णय उपयुक्त लगता है?
चर्चा की दिशा: प्रकृति में कोई भी विषम परिस्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रह सकती है। जैसे, हम लंबे समय तक लगातार गुस्से में नहीं रह सकते हैं। हम हमेशा हमारे मन की स्थिति शांत चाहते हैं। शांत स्थिति में ही सही निर्णय ले पाते हैं। किसी प्रतिकूल या विषम परिस्थिति में हमारा मन विचलित हो जाता है और उस स्थिति में प्रतिक्रिया वश लिया गया निर्णय अधिकतर सही नहीं होता है। बाद में हमें ही वह निर्णय स्वीकार नहीं होता है। अत: विचलित मन:स्थिति में निर्णय न लेकर शांत मन से निर्णय लिया जाए तो बाद में हमें पछतावा नहीं होगा।
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