उद्देश्य: कहानी के माध्यम से विद्यार्थी समझ पाएँगे कि संबंध बंधन नहीं है बल्कि संबंधों मे रहना ही सुख की अनुभूति है।
कहानी:
एक दिन मंजीत अपने पिता के साथ छत पर पतंग उड़ाना सीख रहा था। मंजीत के पिता ने पतंग को थोड़ा ऊँचाई देकर उसकी डोर मंजीत के हाथ में दे दी। जल्द ही उसकी पतंग आकाश में ऊँची उड़ गई। थोड़ी देर के बाद मंजीत ने पूछा, "क्या ऐसा नहीं लगता कि यह पतंग आज़ाद होकर आकाश में और ऊँचा उड़ना चाहती है, लेकिन हमारे हाथ में जो इसकी डोर है, वह इसे और ऊँचा उड़ने से रोक रही है। अगर हम इस दौर को छोड़ दें तो यह पतंग आकाश में और ऊँचा उड़ सकती है।” ऐसा कहकर मंजीत ने अपने पिता से पूछा कि क्या हम इस डोर को तोड़ दें?
पिता जी ने कुछ कहे बिना धागा काट दिया। पतंग ने थोड़ा ऊँचा जाना शुरू कर दिया। इससे मंजीत बहुत ख़ुश हुआ। थोड़ी ही देर में पतंग धीरे-धीरे नीचे आना शुरू हो गई और जल्द ही वह एक घर की छत पर गिर गई। मंजीत को यह देखकर आश्चर्य हुआ। पिता ने मंजीत के कंधे पर प्यार से हाथ रखा और मुस्कराकर बोले “मैं पहले से जानता था कि अगर हम डोर काट देंगे तो पतंग गिर जाएगी। डोर से बंधे रहने के कारण पतंग को सही दिशा मिलती है और वह ऊँचा उड़ पाती है।” मंजीत ने थोड़े आश्चर्य से पूछा कि आप अगर जानते थे तो फिर आपने मेरे कहने पर पतंग की डोर क्यों काट दी थी। पिता ने कहा कि मैं चाहता था कि इस पतंग से तुम भी कुछ अपने बारे में सीख ले लो। मंजीत ने पूछा कि क्या सीख लेनी चाहिए। पिता ने कहा कि हमारा परिवार और हमारे संबंध इस डोर की तरह ही हमें बांधे रहते हैं। हम जब आगे बढ़ते हैं, ऊँचा उठते हैं तो यही संबंध ज़रूरत पड़ने पर हमें ढील देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर हमारी डोर को खींच लेते हैं ताकि हम अपना रास्ता न भटकें। परिवार की डोर से बंधकर ही हमें इस खुले आसमान जैसे संसार में सफलतापूर्वक जीने के लिए सही दिशा मिलती है।
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. कई बार परिवार के बड़े लोग बच्चों को टोकते या समझते रहते हैं। क्यों समझाते हैं? आपको क्या लगता है ऐसा करने से उन्हें क्या मिलता होगा?
2. एक ऐसी घटना का उदाहरण दें जब किसी परिवार के सदस्य ने आपको कुछ समझाया हो और उस समय उनकी वह बात आपको अच्छी नहीं लगी पर उनकी बात मानने के बाद आपने यह महसूस किया कि आपको फायदा हुआ।
3. क्या कभी आपने अपने परिवार में अपने माता पिता की आप बड़े भाई बहन से यह जानने की कोशिश की है कि जब वह बच्चे थे तब उनको भी अपने माता पिता का पतंग की डोर की तरह हर वक्त नियंत्रित करने का व्यवहार उन्हें कैसा लगता था?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- घर जाकर बच्चे अपने माता-पिता या बड़े भाई बहन से यह जानने की कोशिश करें कि जब वह बच्चे थे तो क्या उन्हें भी उस वक्त अपने माता-पिता का व्यवहार पतंग की डोर की तरह बंधन जैसा लगता था?
- क्या वह भी उस समय ऐसा सोचते थे कि अगर हमारी यह डोरियाँ खुल जाएँ तो हम बहुत ऊँचा उड़ सकते हैं.
- उनसे यह भी जानने की कोशिश करें कि आज वह उसके बारे में क्या सोचते हैं?
- बच्चे यह भी ध्यान दे कि कब-कब और किस-किस ने आपको कुछ समझाने का प्रयास कियाl ऐसे में उस व्यक्ति के साथ आप का क्या संबंध है? इस बारे में सोचेंl उस संबंध में होने के कारण आपको कितनी ख़ुशियाँ मिली हैं इस पर भी ध्यान दें
पिछले दिन की कहानी पर एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति की जाए। घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूह में बातचीत करेंगे। पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. ऐसी घटना बताओ जब आपके प्रियजनों ने आपको सही राह दिखा दी और आप गलत रास्ते पर जाने से बच गए।
2. क्या ऐसे संबंध सभी के लिए ज़रूरी हैं जिनमें समय-समय पर हमें गलत काम करने से रोकने वाले लोग या निराशा वाली स्थिति में हमें प्रोत्साहन देने वाले लोग हमारे साथ हमेशा बने रहे, इस पर चर्चा करें।
चर्चा की दिशा: हम सब किसी न किसी संबंध में जुडे हैं। यह संबंध कभी कभी बंधन की तरह लगने लगते हैं। एक अनदेखी डोर जो हमें एक-दूसरे से बांधे रखती है वही हमें सही दिशा दिखाती है। एक पतंग डोर से बँधकर ही सही दिशा में ऊँचा उड़ पाती है। डोर से कट जाने के बाद उसका उड़ना बंद हो जाता है, किंतु ध्यान रखने योग्य बात है कि यदि उस पतंग की डोर किसी जानकार व्यक्ति के हाथ में आ जाए तो फिर से खुला आसमान है उसके उड़ने के लिए और वह नई ऊँचाइयों को छूती है।
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