गतिविधि का उद्देश्य: स्वयं व दूसरों की मन:स्थितियों (moods)/भावों (feelings) के प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
आवश्यक सामग्री: कागज़ की पर्चियाँ।
शिक्षक के लिए नोट:
हम हर क्षण किसी वस्तु या व्यक्ति के साथ या किसी परिस्थिति में रहते हैं। यदि इनमें से कोई चीज़ हमें अच्छी नहीं लगती है तो हमें दु:ख होता है और यदि इनमें से कोई चीज़ हमें अच्छी लगती है तो हम ख़ुश होते हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि जब हमारा मन किसी चीज़ को स्वीकार नहीं करता उस समय हम दु:खी होते हैं और जब हमारा मन किसी चीज़ को स्वीकार कर लेता है उस समय हम ख़ुश होते हैं। इसे एक नियम के रूप में देखा जा सकता है कि स्वीकृति के भाव में जीना ही ‘ख़ुशी’ है। इस प्रकार ख़ुशी का संबंध हमारी मन:स्थिति के साथ होता है। अभी हमारी मन:स्थिति बाहर के वातावरण से प्रभावित होने की आदी है। इसके प्रति सजग रहने से यह बाहर के वातावरण से प्रभावित होना धीरे-धीरे कम हो जाती है और हमारी ख़ुशी का रिमोट हमारे पास आ जाता है। समझदारी और सजग रहने के अभ्यास से ख़ुश रहने की योग्यता का विकास किया जा सकता है।
इस गतिविधि में विद्यार्थियों को अपनी मन:स्थिति को पहचानने और उसके प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित किया गया है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
गतिविधि के चरण:
1. कौन-कौनसी मन:स्थितियों में चेहरे से ख़ुशी झलक रही थी?
2. कौन-कौनसी मन:स्थितियों में हम अच्छा महसूस नहीं करते हैं?
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
अब कुछ विद्यार्थियों को स्वेच्छा से check in से पहले और बाद की मन:स्थितियों को कक्षा में साझा (share) करने को कहें। विद्यार्थियों से पूछें- श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से पहले आप कैसा महसूस कर रहे थे या आपकी मन:स्थिति (mood of state of mind) कैसी थी? अब आपकी मन:स्थिति कैसी है? इसके बाद निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों पर चर्चा कराएँ।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. आप अकसर कौनसी मन:स्थितियाँ ज़्यादा महसूस करते हैं? ख़ुशी या परेशानी वाली?
2. आप कौन-कौनसी मन:स्थितियों में देर तक बने रहना चाहते हैं? क्यों?
3. हमारी मन:स्थिति (ख़ुशी वाली स्थिति या परेशानी वाली स्थिति) का हमारे काम पर क्या प्रभाव पड़ता है?
4. ‘करके ख़ुश होना’ ठीक है या ‘ख़ुश होकर करना’ ठीक है? कक्षा में चर्चा करें
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
क्या करें और क्या न करें:
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
आवश्यक सामग्री: कागज़ की पर्चियाँ।
शिक्षक के लिए नोट:
हम हर क्षण किसी वस्तु या व्यक्ति के साथ या किसी परिस्थिति में रहते हैं। यदि इनमें से कोई चीज़ हमें अच्छी नहीं लगती है तो हमें दु:ख होता है और यदि इनमें से कोई चीज़ हमें अच्छी लगती है तो हम ख़ुश होते हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि जब हमारा मन किसी चीज़ को स्वीकार नहीं करता उस समय हम दु:खी होते हैं और जब हमारा मन किसी चीज़ को स्वीकार कर लेता है उस समय हम ख़ुश होते हैं। इसे एक नियम के रूप में देखा जा सकता है कि स्वीकृति के भाव में जीना ही ‘ख़ुशी’ है। इस प्रकार ख़ुशी का संबंध हमारी मन:स्थिति के साथ होता है। अभी हमारी मन:स्थिति बाहर के वातावरण से प्रभावित होने की आदी है। इसके प्रति सजग रहने से यह बाहर के वातावरण से प्रभावित होना धीरे-धीरे कम हो जाती है और हमारी ख़ुशी का रिमोट हमारे पास आ जाता है। समझदारी और सजग रहने के अभ्यास से ख़ुश रहने की योग्यता का विकास किया जा सकता है।
इस गतिविधि में विद्यार्थियों को अपनी मन:स्थिति को पहचानने और उसके प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित किया गया है।
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
गतिविधि के चरण:
- गतिविधि शुरू करने से पहले निम्नलिखित प्रस्तावित मन:स्थितियों को कागज़ पर लिखकर पर्चियाँ बना लें।
- 1. सम्मान
- 2. आश्चर्य
- 3. गुस्सा
- 4. डर
- 5. चिंता 6. स्नेह
- 7. घृणा 8. गर्व
- 9. संकोच
- 10. दया
- कक्षा को 4-5 विद्यार्थियों के छोटे समूहों में बाँटा जाए और गतिविधि कैसे करनी है यह स्पष्ट किया जाए।
- एक-दूसरे समूह को दिखाए बिना प्रत्येक समूह को एक पर्ची दी जाए।
- प्रत्येक समूह 4-5 मिनट चर्चा करके अपनी पर्ची में दी गई मन:स्थिति को व्यक्त करने के लिए दो मिनट की अवधि का एक मूक अभिनय (mime) तैयार करेंगे। इसमें वे बिना कुछ बोले केवल इशारों और चेहरे के हाव-भाव (gestures) से कोई अभिनय करेंगे। जैसे- स्नेह को व्यक्त करने के लिए बिना कुछ बोले किसी का जन्मदिन मनाने का अभिनय करना। आश्चर्य को व्यक्त करने के लिए कई दिनों बाद किसी दोस्त से मिलने का अभिनय, करना, दया को व्यक्त करने के लिए किसी ज़रूरतमंद की मदद करने का अभिनय करना आदि।
- एक समूह का अभिनय पूरा होने पर अन्य समूहों को उस अभिनय में व्यक्त की गई मन:स्थिति के बारे में पूछें।
- यदि विद्यार्थी मन:स्थितियों को नहीं पहचान पा रहें हो तो उनकी मदद के लिए सभी मन:स्थितियों के नाम बोर्ड पर लिख दें और फिर पूछें कि इनमें से कौनसी मन:स्थिति व्यक्त की गई है।
1. कौन-कौनसी मन:स्थितियों में चेहरे से ख़ुशी झलक रही थी?
2. कौन-कौनसी मन:स्थितियों में हम अच्छा महसूस नहीं करते हैं?
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
अब कुछ विद्यार्थियों को स्वेच्छा से check in से पहले और बाद की मन:स्थितियों को कक्षा में साझा (share) करने को कहें। विद्यार्थियों से पूछें- श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से पहले आप कैसा महसूस कर रहे थे या आपकी मन:स्थिति (mood of state of mind) कैसी थी? अब आपकी मन:स्थिति कैसी है? इसके बाद निम्नलिखित प्रस्तावित प्रश्नों पर चर्चा कराएँ।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. आप अकसर कौनसी मन:स्थितियाँ ज़्यादा महसूस करते हैं? ख़ुशी या परेशानी वाली?
2. आप कौन-कौनसी मन:स्थितियों में देर तक बने रहना चाहते हैं? क्यों?
3. हमारी मन:स्थिति (ख़ुशी वाली स्थिति या परेशानी वाली स्थिति) का हमारे काम पर क्या प्रभाव पड़ता है?
4. ‘करके ख़ुश होना’ ठीक है या ‘ख़ुश होकर करना’ ठीक है? कक्षा में चर्चा करें
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
क्या करें और क्या न करें:
- विद्यार्थियों को पहले ही स्पष्ट कर दें कि प्रत्येक समूह को अभिनय के लिए अधिकतम दो मिनट ही मिलेंगे।
- अभिनय में समूह के सभी विद्यार्थियों की कोई न कोई भूमिका अवश्य हो।
-----------------------------
- एक-दूजे को जानें
- यू आर यूनीक
- क्या कर रहे हो
- आओ ख़ुद को जानें
- बग़ीचे की सैर
- मेरे जीवन का लक्ष्य
- ख़ुशी के पल
- पैसा ही चाहिए या पैसा भी चाहिए
- किसका फ़ायदा
- आओ मन:स्थिति पहचानें
- मेरी परेशानी मेरे ही कारण
- अच्छा लगना, अच्छा होना
- मेरा रिमोट मेरे पास
- हम सब एक समान
- अपनी-अपनी पर्ची
- तन और मन
- मैं किसका सम्मान करता हूँ
- मैं कैसे पहचाना जाऊँ
- ख़ुश होना: किससे और कितनी देर
- कौन ख़ुश, कौन नाख़ुश
No comments:
Post a Comment