1. माँ का प्यार

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर दिलाना कि विश्वास और प्रेम हमारी सफलता और ख़ुशी की चाबी हैं।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

कहानी:
एक दिन एक छोटा-सा बच्चा जब विद्यालय से घर आया तो अपनी माँ को एक लिफाफा देते हुए बोला, “माँ मेरे शिक्षक ने मुझे यह कहा है कि इसे केवल अपनी माँ को ही देना।”
माँ ने लिफाफा खोला और पत्र पढ़ना शुरु किया। माँ पत्र पढ़ ही रही थीं कि बच्चा बोला, “माँ, इस पत्र में क्या लिखा है मेरे शिक्षक ने?’’
पत्र पढ़ते हुए उदास माँ की आँखें, बच्चे के इस प्रश्न से नम हो गईं। वह तेज़ आवाज़ में पत्र पढ़ते हुए बोलीं- “इसमें लिखा है कि आपका बेटा बहुत ही प्रतिभाशाली है। यह विद्यालय उसकी प्रतिभा के आगे बहुत छोटा है और इसे बेहतर शिक्षा देने के लिए हमारे पास इतने काबिल शिक्षक नहीं हैं, इसलिए आप इसे ख़ुद पढ़ाएँ या हमारे विद्यालय से भी अच्छे विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजें।”
यह सब सुनने के बाद वह बालक अपने आप पर गर्व करने लगा। माँ ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा। अब वह माँ की देखरेख में घर पर ही अपनी पढ़ाई करने लगा।
कई वर्ष बीत गए। माँ की मृत्यु के कई सालों बाद वह बालक अब थॉमस अल्वा एडिसन नाम से एक महान वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। एक दिन वह अपने कमरे की सफ़ाई कर रहा था, तभी उसे अलमारी में रखा हुआ वह पुराना पत्र मिला। उसने वह पत्र खोला और पढ़ने लगा।
पत्र में लिखा था कि आपका बेटा मानसिक रूप से कमज़ोर है जिससे उसकी आगे की पढ़ाई हमारे विद्यालय में नहीं हो सकती है। उसे अब इस विद्यालय से निकाला जा रहा है। पत्र पढ़ते ही वह एकदम भावुक हो गया। उसने मन ही मन अपनी ममतामयी माँ को याद किया और अपनी डायरी में लिखा, “मुझे स्कूल ने तो एक मानसिक रूप से कमज़ोर बच्चा घोषित कर दिया था, लेकिन मेरी माँ के विश्वास और प्यार ने मुझे एक प्रतिभाशाली व्यक्ति बना दिया।”

चर्चा की दिशा:
हर बच्चे में सोचने-समझने की असीम क्षमता होती है। इसके साथ ही उसमें हर चीज़ को जानने की चाहत भी रहती है। यदि उसे उसकी क्षमताओं से अवगत करा दिया जाए तो उसे अपनी उन्नति के लिए स्वयं पर भरोसा हो जाएगा। अपनी क्षमताओं के प्रति भरोसा होने पर वह दूसरों से प्रशंसा का मोहताज़ भी नहीं रहेगा।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को उनकी असीम क्षमताओं की ओर ध्यान दिलाकर उनमें ख़ुद के प्रति भरोसा जगाने की अपेक्षा की गई है।

पहला दिन: 

चर्चा के लिए प्रश्न:
1. कोई एक उदाहरण देकर बताएँ जब किसी ने कोई काम करने को लेकर आप पर भरोसा किया हो। उस भरोसे का आप पर क्या प्रभाव पड़ा था?
2. जब आप पर कोई भरोसा नहीं करता है या आपको कहा जाता है कि आप यह काम नहीं कर सकते हैं तो आपको कैसा लगता है और क्यों?
3. क्या कभी आपकी सराहना करने से आपके किसी कार्य में कोई फ़र्क पड़ा है? कैसे?
4. क्या आपने कभी किसी की सराहना करके किसी के कार्य में कोई फ़र्क डाला है? कैसे?


घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
  • घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें। 
  • परिवार में इस बात पर भी चर्चा करें कि प्रशंसा और आलोचना से किसी के कार्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

दूसरा दिन: 

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं। 
  • कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
  • पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. क्या आपने कभी स्वयं की प्रशंसा की है? कब और क्यों? कक्षा में साझा करें।
 2. आप अपने छोटे भाई-बहनों और अन्य बच्चों में ख़ुद पर भरोसा जगाने में कैसे मदद कर सकते हैं? (संकेत- उनमें निहित सीखने-समझने की असीम क्षमताओं की ओर ध्यान दिलाकर, सीखने-समझने में उनकी मदद करके आदि।)
 3. “जो स्वयं के बारे में जानते हैं वे दूसरों के द्वारा प्रशंसा या आलोचना करने पर अधिक प्रभावित नहीं होते हैं।” कैसे? कक्षा में चर्चा करें।

Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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1 comment:

  1. एक सकारात्मक सोच किस तरह से एक सामान्य बच्चे को असाधारण बना देती हैं, यह कहानी हमे ये बता रही है।

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