4. विपुल का निर्णय

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर ले जाना कि अंतर्द्वंद्व (inner conflict) से हम दु:खी होते हैं और स्पष्टता (clarity in thoughts) से हम सुखी होते हैं।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

कहानी:
विपुल सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था। एक दिन विद्यालय जाते समय रास्ते में उसे कुछ पड़ा हुआ दिखाई दिया। नज़दीक जाकर देखा तो पाँच सौ रुपए का नोट था। उसने इधर-उधर देखा तो कोई नज़र नहीं आया। उसने नोट उठाकर तुरंत अपनी जेब में रख लिया। नोट जेब में रखते ही उसके दिमाग में तरह-तरह के विचार उमड़ने लगे। पहले विचार आया कि पैसे उठाते वक़्त उसे किसी ने नहीं देखा, इसलिए उसे यह पैसे रख लेने चाहिए। इससे वह बहुत सारे खिलौने ख़रीद सकता है। कितनी ही खाने की चीज़ें ख़रीद सकता है। वहीं दूसरी ओर उसे विचार आने लगे कि ऐसा करना ग़लत है, ये रुपए किसी ज़रूरतमंद के हो सकते हैं। पता लगाकर उसे तुरंत लौटा देने चाहिए।
इसी उधेड़बुन में खोया हुआ विपुल कब विद्यालय पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला। वह कक्षा में पहुँचकर भी इसी सोच में खोया हुआ था। हाज़िरी के लिए जब उसका नाम पुकारा गया तब भी वह इन्हीं विचारों में खोया हुआ था। वह किसी निर्णय तक पहुँचना चाहता था।
शिक्षक जी ने देखा कि नाम पुकारने पर भी विपुल बोल नहीं रहा है, इसलिए फिर से तेज आवाज़ में उसका नाम पुकारा गया। अचानक विपुल का ध्यान टूटा। शिक्षक जी ने पूछा कि तुम्हारा ध्यान कहाँ है, तुम बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हो। जवाब में विपुल अपनी बेंच से खड़ा होकर उनके पास पहुँचा और अपनी जेब से पाँच सौ रुपए का नोट निकालकर शिक्षक जी को दे दिए। जब शिक्षक जी ने उससे पूछा कि ये किसके पैसे हैं तो विपुल ने बता दिया कि रास्ते में पड़े हुए मिले थे। शिक्षक जी ने अगला सवाल किया कि उस वक़्त वहाँ कौन था जब तुमने ये पैसे उठाए। विपुल बोला कि वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था। शिक्षक जी मानो विपुल का मन और टटोलना चाहते थे, इसलिए बोले, "इसका मतलब कि तुम्हें पैसे उठाते हुए किसी ने भी नहीं देखा, फिर तुम इन्हें वापस क्यों कर रहे हो?" विपुल ने जवाब दिया, "लेकिन सर... मैं खुद तो देख ही रहा था ना।”

चर्चा की दिशा:
यदि हम शांत मन से देखें तो जो चीज़ अपनी नहीं होती है उसे अपने पास रखना हमें ठीक नहीं लगता है। किसी की खोई हुई चीज़ लौटाने या लौटाने का प्रयास करने से हमें ख़ुशी महसूस होती है। इस बात को बाद में भी याद करने पर हमें हर बार अच्छा महसूस होता है। इसके विपरीत किसी की खोई हुई चीज़ अपने पास रख लेने पर हमें अच्छा नहीं लगता है। बाद में भी जब हम इस बात के बारे में सोचते हैं तो हमें अच्छा नहीं लगता है। इससे हम यह समझ सकते हैं कि हम जब भी अपनी सहज स्वीकृति (natural acceptance) के विपरीत कुछ सोचेंगे और करेंगे तो हमें अच्छा महसूस नहीं होगा। अपनी सहज स्वीकृति के विपरीत सोचना ही अंतर्द्वंद्व (inner conflict) होता है।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर दिलाने का प्रयास किया गया है कि अंतर्द्वंद्व (dinner conflict) की स्थिति में हम दु:खी महसूस करते हैं जबकि स्पष्टता (clarity in thoughts) की स्थिति में हम आराम (relaxed) महसूस करते हैं। इससे विद्यार्थी अंतर्द्वंद्व की स्थिति में अपनी सहज (प्राकृतिक) स्वीकृति के आधार पर निर्णय लेने के लिए प्रेरित होंगे।

पहला दिन:

चर्चा के लिए प्रश्न:
1. किसी ऐसी घटना को कक्षा में साझा कीजिए जब आपने भी किसी की खोई हुई चीज़ लौटाई हो? यह भी बताइए कि उस समय आपमें क्या-क्या विचार आ रहे थे?
2. आपने किसी की खोई हुई वस्तु को लौटाने का निर्णय क्यों लिया था?
3. कुछ लोग किसी की खोई हुई चीज़ मिलने पर नहीं लौटते हैं जबकि उन्हें यह पता होता है कि वह चीज़ किसकी है। आपके अनुसार वे ऐसा क्यों करते हैं?
4. किसी की खोई हुई चीज़ को लौटने पर लौटने वाले व्यक्ति को क्या फ़ायदा होता है? चर्चा करें।

(संकेत- आत्मसंतुष्टि, ईमानदारी का सुखद एहसास, विश्वास योग्य व्यक्ति के रूप में पहचान, वस्तु को रखने पर जो आत्मग्लानि होती उससे मुक्त रहना आदि।) घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
  • घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें। 
  • परिवार में पता करें कि क्या किसी ने कभी दूसरों की कोई खोई हुई चीज़ मिलने पर लौटाई है। उस बात को अब भी याद करके उन्हें कैसा महसूस होता है?
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

दूसरा दिन:

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं। 
  • कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ। 
  • पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. किसी की खोई हुई चीज़ मिलने की स्थिति के अलावा क्या आपने किसी और परिस्थिति में भी अंतर्द्वंद्व (inner conflict) महसूस किया है? जैसे- झूठ बोलूँ या सच, किसी को कोई बात बताऊँ या नहीं आदि।
2. ऐसी अंतर्द्वंद की परिस्थितियों में आप किस आधार पर निर्णय लेते हैं?
3. एक जैसी परिस्थिति में हम सभी के निर्णय एक जैसे होते हैं या अलग-अलग? क्यों? चर्चा करें।
4. अकसर यह सुनने को मिलता है कि अपने अंदर की आवाज़ के अनुसार निर्णय लेने से हमें ख़ुशी मिलती है। कोई एक उदाहरण देकर बताइए जब आपने अपने अंदर की आवाज़ के आधार पर कोई निर्णय लिया हो।

Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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