19. फ़कीर का मटका

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को चीज़ों को समझने के लिए अपना मन लगाने की योग्यता को बढ़ाने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

कहानी:
एक फ़कीर के पास एक युवक आया और कहा कि मैं सत्य को खोजना चाहता हूँ। क्या आप मुझे कोई मार्ग बता सकते हैं? फ़कीर ने कहा कि पहले मुझे पास के कुएँ से पानी लाना है फिर कुछ बताऊँगा। तुम भी मेरे साथ चलो। वह युवक भी फ़कीर के साथ कुएँ पर गया।
फ़कीर ने कुएँ से बालटी खींचकर अपने साथ लाए मटके में पानी डाला। मटके के नीचे कोई पेंदा नहीं था, इसलिए सारा पानी ज़मीन पर बह गया। उसने दूसरी बालटी खींची और फिर पानी मटके में डाला। वह युवक तीन बाल्टियाँ पानी बहने तक कुछ नहीं बोला, लेकिन चौथी बालटी के पानी को बहते देख फ़कीर से कहा, “महानुभाव! आप भी आश्चर्यजनक मालूम पड़ते हैं। जिस मटके में आप पानी भर रहे हैं उसमें नीचे कोई पेंदा नहीं है और पानी बहा जा रहा है। इस तरह आप ज़िंदगी भर करते रहेंगे तो भी मटका नहीं भरेगा।”
फ़कीर ने कहा, “मुझे मटके के पेंदे से क्या मतलब? मुझे तो पानी भरना है, इसलिए मैं सिर्फ़ मटके की गरदन पर आँखें गड़ाए हुए हूँ। जब गरदन तक पानी आ जाएगा तो मैं समझ लूँगा कि पानी भर गया है।”
यह सुनकर वह युवक बहुत हैरान हुआ और मुस्कराते हुए वहाँ से चला गया। रात को इस बात ने उसे विचलित कर दिया कि जो बात एक बच्चा भी समझ सकता है, उसे वह फ़कीर क्यों नहीं समझ पा रहा था। उसने सोचा कि इसमें ज़रूर कोई गहरी बात छिपी है, इसलिए अगले दिन वह फ़कीर से मिलने फ़िर गया। उसने फ़कीर से क्षमा माँगते हुए कहा, “कृपा करके मुझे समझाए कि उस बिना पेंदे के मटके में पानी भरने का क्या आशय था?”
फ़कीर ने कहा कि यह अच्छी बात है कि तुम लौट आए। अकसर जो लोग यहाँ सत्य खोजने का मार्ग पूछने आते हैं, मैं उनके सामने पहला काम यही करता हूँ। वे मुझे पागल समझकर वापस लौट जाते हैं और फिर कभी नहीं आते हैं। तुम लौट आए हो, इसलिए मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करूँगा।
फ़कीर ने गंभीर होते हुए कहा, “जैसा कि कल तुमने देखा था कि बिना पेंदे का मटका पानी को समाने में असमर्थ था। इसके लिए चाहे कितना भी प्रयास कर लें। इसी तरह सत्य को महसूस करने के लिए पहले अपने मन रूपी पात्र को समर्थ बनाना पड़ेगा। इस ‘मन रूपी पात्र’ का ‘ध्यान रूपी पेंदा’ मज़बूत करना होगा। इसके बाद ही यह आकाश रूपी विराट सत्य उसमें समाया हुआ महसूस होगा। इसके लिए तुम्हें उसे खोजने की ज़रूरत नहीं हैं, क्योंकि सत्य खोया हुआ नहीं है। उसे खोजने वाला ही खोया हुआ है।”

चर्चा की दिशा:
अकसर बातचीत में यह सुनने को मिलता है कि ज्ञान असीम है, अथाह है, इसलिए एक व्यक्ति सब कुछ नहीं समझ सकता है। इसके विपरीत यदि हम अपने में देखें तो यह स्पष्ट तौर पर नज़र आता कि प्राकृतिक रूप से हम सबमें सोचने-समझने की ताकत असीम है और असीम (सब कुछ) को समझने की चाहत भी है। असीम को समझने की यह असीम ताकत और चाहत सभी व्यक्तियों को उपलब्ध है। इस आधार पर हम अनुमान लगा सकते हैं कि प्रकृति में सभी के द्वारा असीम (सब कुछ) को समझने का प्रावधान भी है। समझने के लिए विशाल सागर की 'एक बूँद' से ही सागर के सारे पानी की प्रकृति का पता चल जाता है। इसके लिए पूरे सागर को मापने की आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार किसी एक हाथी को जानने से दुनिया के सभी हाथियों की पहचान हो जाती है। इसके बाद दुनिया के सभी हाथियों को देखने की आवश्यकता नहीं रहती है।
जैसे-जैसे हम चीज़ों की ओर ध्यान देते हैं कि वे क्यों हैं? कैसे हैं? उनका आपस में क्या संबंध है? तो हमारी स्पष्टता बढ़ती जाती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि ज्ञान हमेशा उपलब्ध है ही, बस उसके लिए ध्यान देने की योग्यता को विकसित करने की ज़रूरत है। समझने के लिए अपने मन को लगाना ही ध्यान देना है।
इस कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को चीज़ों को समझने के लिए अपना मन लगाने की योग्यता को बढ़ाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।

पहला दिन:

चर्चा के लिए प्रश्न:
1. उदाहरण देकर बताइए कि जब कोई चीज़ पहले आपको समझने में बहुत मुश्किल लगी हो, लेकिन अचानक ध्यान में आते ही लगा कि वह तो बहुत आसान है?
2. किसी एक सामान्य दिन में आप अपनी सोचने-समझने की ताकत को कितने घंटे चीज़ों को सीखने-समझने के लिए काम में लेते हैं और कितने घंटे सोने व समय काटने (टाइम पास) के लिए काम में लेते हैं? ईमानदारी से बताएँ कि आप जितना इस ताकत को सही काम में लगा रहे हैं उसके हिसाब से उपलब्धि हो रही है या नहीं। 24 घंटे के आधार पर हिसाब लगाकर कक्षा में साझा करें।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
  • विद्यार्थियों को कहा जाए कि वे कोई भी काम करते समय इस बात पर ध्यान दें कि वह काम ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए है या टाइम पास के लिए है।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

दूसरा दिन:

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. सभी विद्यार्थियों के पास कभी ख़त्म न होने वाली सोचने-समझने की ताकत है। इस ताकत को जितना काम में लेते हैं यह उतनी ही और निखरती है। इतनी बड़ी पूँजी होने के बावज़ूद कुछ विद्यार्थी पढ़ाई को लेकर चिंता और तनाव में क्यों रहते हैं? चर्चा करें।
2. ध्यान देने से ही ज्ञान होता है। आप अपनी ध्यान देने की योग्यता को बढ़ाने के लिए क्या-क्या प्रयास कर सकते हैं? चर्चा करें।
(संकेत- माइंडफुलनेस का अभ्यास, समझकर पढ़ना, ऐसे खेल खेलना जिनमें एकाग्रता की अधिक आवश्यकता है आदि।)
3. क्या आप यह मानते हैं कि कोई भी विद्यार्थी चाहे तो वह होशियार हो सकता है? कैसे? (संकेत- सभी के पास सोचने-समझने की असीम ताकत है, बस ख़ुद पर भरोसा करने की आवश्यकता है। किसी की मदद और अभ्यास से यह और भी सुनिश्चित हो सकता है।)

Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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