कहानी का उद्देश्य: दूसरों से तुलना किए बिना विद्यार्थियों को अपनी ख़ुशी के प्रति जागरूक करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
एक अमीर किसान का अंगूर का बाग था। जब अंगूर पक गए तो उसने उन्हें तोड़ने के लिए कुछ मज़दूर बुलाए। मज़दूरों का पहला समूह सुबह-सुबह आकर अंगूर तोड़ने लग गया। काम ज़्यादा था तो कुछ मज़दूर दोपहर को बुलाए गए। काम ख़त्म न होते देख शाम को भी कुछ और मज़दूर बुलाए गए। दिन ख़त्म होने के बाद किसान ने सबको मज़दूरी बाँटी। उसने सभी मज़दूरों को निर्धारित मज़दूरी से कुछ अधिक, लेकिन बराबर मज़दूरी बाँटी।
सबको बराबर मज़दूरी मिलते देख जो मज़दूर सुबह से आए हुए थे वे नाराज़ होने लगे। उन्होनें कहा कि सबको बराबर मज़दूरी देना हमारे साथ अन्याय है। जो लोग दोपहर में आए थे उन्हें हमसे आधा मिलना चाहिए और जो अभी-अभी आए हैं उनको तो बहुत कम मिलना चाहिए। वह अमीर किसान हँसने लगा और कहा, "तुमने पूरे दिन काम किया। तुम्हें पूरे दिन काम करने के बदले में जितनी मज़दूरी मिलनी चाहिए थी उतनी मिली या नहीं मिली?" मज़दूरों ने कहा कि हमें पूरे दिन की पूरी मज़दूरी मिली है बल्कि थोड़ा ज़्यादा ही मिली है, लेकिन सवाल यह है कि जो लोग दोपहर और शाम को आए थे उनको भी इतनी ही मज़दूरी क्यों मिली? वह किसान समझदार था। उसने कहा कि यह मेरा धन है, अगर मैं इसे बाँटना चाहूँ तो तुम्हें ऐतराज क्यों है? मैं इसे किसी को दान देना चाहूँ तो तुम्हें ऐतराज क्यों है? तुम्हें तुम्हारी मेहनत से ज़्यादा मिला है। तुम उसे पाकर ख़ुश क्यों नहीं हो? मेरे पास मेरी ज़रूरत से ज़्यादा धन है, इसलिए मैं इसे बाँट रहा हूँ। इसे बाँटकर मैं ख़ुश होता हूँ, इसलिए ऐसा करता हूँ। तुम इस बात से ख़ुश नहीं हो कि तुम्हें अपनी मज़दूरी से ज़्यादा ही मिला है बल्कि इस बात से परेशान हो कि दूसरों को उतना क्यों मिल गया।
मज़दूरों को किसान की बात समझ में आ गई और वे सब ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट गए।
चर्चा की दिशा:
इनसान को छोड़कर प्रकृति में कहीं भी विरोध, क्रोध, प्रतिस्पर्धा और तुलना नहीं हैं। कई लोगों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक साधन-सुविधाएँ हैं, लेकिन वे केवल इसलिए परेशान हैं कि उनके साधन-सुविधाएँ दूसरों से कम हैं। हम अकसर यह सुनते हैं कि एक व्यक्ति अपने दु:ख से कम दु:खी होता है बल्कि दूसरे के सुख से अधिक दु:खी होता है। इसका मतलब है कि इनसान दूसरों से तुलना करके परेशान होता है, इसलिए यह भी कहा जाता है कि- "सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग!" यदि प्रकृति की व्यवस्था को देखें तो यहाँ एक हाथी भी कभी भूख से नहीं मरता है जबकि इनसान की तरह वह अपना भोजन न तो पैदा करने में सक्षम है और न ही संग्रह करने में।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को दूसरों से तुलना किए बिना अपनी उन्नति के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. कभी-कभी अपने किए हुए कार्य की ख़ुशी, दूसरों से तुलना करने पर दु:ख में बदल जाती है। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? उदाहरण देकर बताएँ।
2. आप क्या चाहेंगे- परीक्षा में आपके मार्क्स दूसरों से ज़्यादा आ जाएँ या अपने ही पहले आए मार्क्स से ज़्यादा आ जाएँ? क्यों?
3. हम अपनी कौन-कौनसी ज़रूरतें दूसरों से तुलना करके तय करते हैं? और क्यों?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
1. क्या आप कभी दूसरों की सफलता से ख़ुश हुए हैं? कब? साझा करें।
2. क्या आप कभी दूसरों की सफलता से परेशान हुए हैं? कब? साझा करें।
3. क्या दूसरों की सफलता एवं असफलता से प्रभावित हुए बिना ज़िंदगी में आगे बढ़ा जा सकता है? कैसे? चर्चा करें।
4. आप स्वयं को कैसे बेहतर बना सकते हैं- स्वयं के साथ प्रतियोगिता करके या दूसरों के साथ प्रतियोगिता करके? चर्चा करें।
(संकेत- स्वयं से प्रतियोगिता का मतलब हैं- स्वयं की उन्नति के प्रति योग करते रहना अर्थात हर व्यक्ति जहाँ भी खड़ा है उससे आगे बढ़ते रहना।)
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
एक अमीर किसान का अंगूर का बाग था। जब अंगूर पक गए तो उसने उन्हें तोड़ने के लिए कुछ मज़दूर बुलाए। मज़दूरों का पहला समूह सुबह-सुबह आकर अंगूर तोड़ने लग गया। काम ज़्यादा था तो कुछ मज़दूर दोपहर को बुलाए गए। काम ख़त्म न होते देख शाम को भी कुछ और मज़दूर बुलाए गए। दिन ख़त्म होने के बाद किसान ने सबको मज़दूरी बाँटी। उसने सभी मज़दूरों को निर्धारित मज़दूरी से कुछ अधिक, लेकिन बराबर मज़दूरी बाँटी।
सबको बराबर मज़दूरी मिलते देख जो मज़दूर सुबह से आए हुए थे वे नाराज़ होने लगे। उन्होनें कहा कि सबको बराबर मज़दूरी देना हमारे साथ अन्याय है। जो लोग दोपहर में आए थे उन्हें हमसे आधा मिलना चाहिए और जो अभी-अभी आए हैं उनको तो बहुत कम मिलना चाहिए। वह अमीर किसान हँसने लगा और कहा, "तुमने पूरे दिन काम किया। तुम्हें पूरे दिन काम करने के बदले में जितनी मज़दूरी मिलनी चाहिए थी उतनी मिली या नहीं मिली?" मज़दूरों ने कहा कि हमें पूरे दिन की पूरी मज़दूरी मिली है बल्कि थोड़ा ज़्यादा ही मिली है, लेकिन सवाल यह है कि जो लोग दोपहर और शाम को आए थे उनको भी इतनी ही मज़दूरी क्यों मिली? वह किसान समझदार था। उसने कहा कि यह मेरा धन है, अगर मैं इसे बाँटना चाहूँ तो तुम्हें ऐतराज क्यों है? मैं इसे किसी को दान देना चाहूँ तो तुम्हें ऐतराज क्यों है? तुम्हें तुम्हारी मेहनत से ज़्यादा मिला है। तुम उसे पाकर ख़ुश क्यों नहीं हो? मेरे पास मेरी ज़रूरत से ज़्यादा धन है, इसलिए मैं इसे बाँट रहा हूँ। इसे बाँटकर मैं ख़ुश होता हूँ, इसलिए ऐसा करता हूँ। तुम इस बात से ख़ुश नहीं हो कि तुम्हें अपनी मज़दूरी से ज़्यादा ही मिला है बल्कि इस बात से परेशान हो कि दूसरों को उतना क्यों मिल गया।
मज़दूरों को किसान की बात समझ में आ गई और वे सब ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट गए।
चर्चा की दिशा:
इनसान को छोड़कर प्रकृति में कहीं भी विरोध, क्रोध, प्रतिस्पर्धा और तुलना नहीं हैं। कई लोगों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक साधन-सुविधाएँ हैं, लेकिन वे केवल इसलिए परेशान हैं कि उनके साधन-सुविधाएँ दूसरों से कम हैं। हम अकसर यह सुनते हैं कि एक व्यक्ति अपने दु:ख से कम दु:खी होता है बल्कि दूसरे के सुख से अधिक दु:खी होता है। इसका मतलब है कि इनसान दूसरों से तुलना करके परेशान होता है, इसलिए यह भी कहा जाता है कि- "सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग!" यदि प्रकृति की व्यवस्था को देखें तो यहाँ एक हाथी भी कभी भूख से नहीं मरता है जबकि इनसान की तरह वह अपना भोजन न तो पैदा करने में सक्षम है और न ही संग्रह करने में।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को दूसरों से तुलना किए बिना अपनी उन्नति के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. कभी-कभी अपने किए हुए कार्य की ख़ुशी, दूसरों से तुलना करने पर दु:ख में बदल जाती है। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? उदाहरण देकर बताएँ।
2. आप क्या चाहेंगे- परीक्षा में आपके मार्क्स दूसरों से ज़्यादा आ जाएँ या अपने ही पहले आए मार्क्स से ज़्यादा आ जाएँ? क्यों?
3. हम अपनी कौन-कौनसी ज़रूरतें दूसरों से तुलना करके तय करते हैं? और क्यों?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें।
- परिवार में इस बात पर चर्चा करें कि हमें कौन-कौनसे काम केवल इसलिए करने पड़ते हैं कि यह नहीं करेंगे तो लोग क्या कहेंगे।
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
1. क्या आप कभी दूसरों की सफलता से ख़ुश हुए हैं? कब? साझा करें।
2. क्या आप कभी दूसरों की सफलता से परेशान हुए हैं? कब? साझा करें।
3. क्या दूसरों की सफलता एवं असफलता से प्रभावित हुए बिना ज़िंदगी में आगे बढ़ा जा सकता है? कैसे? चर्चा करें।
4. आप स्वयं को कैसे बेहतर बना सकते हैं- स्वयं के साथ प्रतियोगिता करके या दूसरों के साथ प्रतियोगिता करके? चर्चा करें।
(संकेत- स्वयं से प्रतियोगिता का मतलब हैं- स्वयं की उन्नति के प्रति योग करते रहना अर्थात हर व्यक्ति जहाँ भी खड़ा है उससे आगे बढ़ते रहना।)
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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