कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को अपने कार्यों को ख़ुश होकर करने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
राजा अकबर के दरबार में तानसेन जब भी सुर लगाते तो राजा संगीत में डूब जाते थे। वह तानसेन की बहुत तारीफ़ करते थे। एक दिन तानसेन को दरबार से विदा करते वक़्त अकबर ने उनके संगीत की बहुत तारीफ़ की और बोले, “आज आपका संगीत सुनते वक़्त मुझे यह ख़याल आया कि यदि आप इतने अच्छे संगीतकार हैं तो आपने जिससे संगीत सीखा है वे तो और भी अद्भुत संगीतकार होंगे।” राजा ने तानसेन के गुरु जी के बारे में पूछा और उनका संगीत सुनने की इच्छा ज़ाहिर की। तानसेन ने बताया कि उनके गुरु जी का संगीत कोई जब चाहे तब नहीं सुन सकता है। अब वे सिर्फ़ अपने लिए गाते हैं, इसलिए जब वे गाते हैं तभी वहाँ जाकर सुना जा सकता है। राजा तानसेन के गुरु जी का संगीत सुनने को बहुत उत्साहित थे, इसलिए वहाँ जाने के लिए तैयार हो गए।
अगले दिन भोर होने से पहले ही राजा तानसेन के साथ जंगल में पहुँच गए और झाड़ियों के पीछे रुककर गुरु जी के संगीत का इंतज़ार करने लगे। जब गुरु जी ने अपना संगीत शुरू किया तो राजा अकबर चकित रह गए। इतना मधुर संगीत उन्होंने पहले कभी नहीं सुना था। जंगल से वापस आते वक़्त राजा ने तानसेन से कहा “मुझे तो लगता था कि संगीत में आपका कोई मुकाबला नहीं है, किंतु आपके गुरु जी के सामने तो आप भी बहुत पीछे हैं। यह फ़र्क कैसे? आप अभी ऐसा क्यों नहीं गा पाते हैं?”
तानसेन कुछ सोचते हुए बोले, “मुझे लगता है कि जब मैं गाता हूँ तो मेरे लक्ष्य और ध्यान में संगीत के बाद मिलने वाला पुरस्कार रहता है, किंतु मेरे गुरु जी का लक्ष्य कोई पुरस्कार पाना नहीं होता है। उनके लिए तो संगीत का आनंद ही पुरस्कार है। वह आनंद ही उनके संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त होता है।”
चर्चा की दिशा:
अभी हमारा लक्ष्य कोई कार्य करके ख़ुश होना रहता है, लेकिन यदि ख़ुश होकर कोई कार्य किया जाए तो कार्य में ध्यान भी लगा रहेगा और थकान भी जल्दी नहीं होगी। इससे निश्चित रूप से कार्य की गुणवत्ता बढ़ेगी और कार्य की सफलता की संभावना भी बढ़ेगी।
प्रशंसा और पुरस्कार के लिए दूसरों पर निर्भरता से भी हमारी ख़ुशी की निश्चितता नहीं रहती है। ख़ुशी को कार्य के केवल परिणाम से जोड़ने की बजाय कार्य के करने से भी जोड़ दिया जाए तो निश्चित रूप से परिणाम भी सुखद होगा। यदि किसी कार्य को मन लगाकर किया जाए तो उस कार्य की समझ बढ़ने की ख़ुशी और कार्य के प्रति ईमानदार रहने की ख़ुशी उसके परिणाम के दबाव को कम कर देती है।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को ‘करके ख़ुश होने’ की बजाय ‘ख़ुश होकर करने’ के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आपके साथ भी कभी ऐसा होता है कि आपका ध्यान किसी कार्य को करने से ज़्यादा, उससे मिलने वाले पुरस्कार या प्रशंसा पर होता है? कक्षा में साझा करें।
2. जिन चीज़ों को आप करना पसंद करते हैं उन्हें करने के लिए यदि आपको पुरस्कार या प्रशंसा न मिले तो भी आप उन्हें करना चाहेंगे? यदि हाँ तो क्यों?
3. आप कौन-कौनसे कार्यों को ख़ुश होकर करते हैं और कौन-कौनसे कार्यों को ख़ुश होने के लिए करते हैं। दोनों तरह के कार्यों की अलग-अलग सूची बनाओ और कक्षा में साझा करो।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
1. आपको कब ज़्यादा ख़ुशी का एहसास होता है: जब आप स्वयं के लिए कोई कार्य करते हैं या जब सिर्फ़ किसी पुरस्कार के लिए करते हैं? अपनी ज़िंदगी से उदाहरण देकर बताइए।
2. ‘ख़ुश होकर करने’ और ‘करके ख़ुश होने’ में क्या अंतर है? किस स्थिति में कार्य की सफलता की ज़्यादा संभावना है। चर्चा करें।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
राजा अकबर के दरबार में तानसेन जब भी सुर लगाते तो राजा संगीत में डूब जाते थे। वह तानसेन की बहुत तारीफ़ करते थे। एक दिन तानसेन को दरबार से विदा करते वक़्त अकबर ने उनके संगीत की बहुत तारीफ़ की और बोले, “आज आपका संगीत सुनते वक़्त मुझे यह ख़याल आया कि यदि आप इतने अच्छे संगीतकार हैं तो आपने जिससे संगीत सीखा है वे तो और भी अद्भुत संगीतकार होंगे।” राजा ने तानसेन के गुरु जी के बारे में पूछा और उनका संगीत सुनने की इच्छा ज़ाहिर की। तानसेन ने बताया कि उनके गुरु जी का संगीत कोई जब चाहे तब नहीं सुन सकता है। अब वे सिर्फ़ अपने लिए गाते हैं, इसलिए जब वे गाते हैं तभी वहाँ जाकर सुना जा सकता है। राजा तानसेन के गुरु जी का संगीत सुनने को बहुत उत्साहित थे, इसलिए वहाँ जाने के लिए तैयार हो गए।
अगले दिन भोर होने से पहले ही राजा तानसेन के साथ जंगल में पहुँच गए और झाड़ियों के पीछे रुककर गुरु जी के संगीत का इंतज़ार करने लगे। जब गुरु जी ने अपना संगीत शुरू किया तो राजा अकबर चकित रह गए। इतना मधुर संगीत उन्होंने पहले कभी नहीं सुना था। जंगल से वापस आते वक़्त राजा ने तानसेन से कहा “मुझे तो लगता था कि संगीत में आपका कोई मुकाबला नहीं है, किंतु आपके गुरु जी के सामने तो आप भी बहुत पीछे हैं। यह फ़र्क कैसे? आप अभी ऐसा क्यों नहीं गा पाते हैं?”
तानसेन कुछ सोचते हुए बोले, “मुझे लगता है कि जब मैं गाता हूँ तो मेरे लक्ष्य और ध्यान में संगीत के बाद मिलने वाला पुरस्कार रहता है, किंतु मेरे गुरु जी का लक्ष्य कोई पुरस्कार पाना नहीं होता है। उनके लिए तो संगीत का आनंद ही पुरस्कार है। वह आनंद ही उनके संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त होता है।”
चर्चा की दिशा:
अभी हमारा लक्ष्य कोई कार्य करके ख़ुश होना रहता है, लेकिन यदि ख़ुश होकर कोई कार्य किया जाए तो कार्य में ध्यान भी लगा रहेगा और थकान भी जल्दी नहीं होगी। इससे निश्चित रूप से कार्य की गुणवत्ता बढ़ेगी और कार्य की सफलता की संभावना भी बढ़ेगी।
प्रशंसा और पुरस्कार के लिए दूसरों पर निर्भरता से भी हमारी ख़ुशी की निश्चितता नहीं रहती है। ख़ुशी को कार्य के केवल परिणाम से जोड़ने की बजाय कार्य के करने से भी जोड़ दिया जाए तो निश्चित रूप से परिणाम भी सुखद होगा। यदि किसी कार्य को मन लगाकर किया जाए तो उस कार्य की समझ बढ़ने की ख़ुशी और कार्य के प्रति ईमानदार रहने की ख़ुशी उसके परिणाम के दबाव को कम कर देती है।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को ‘करके ख़ुश होने’ की बजाय ‘ख़ुश होकर करने’ के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आपके साथ भी कभी ऐसा होता है कि आपका ध्यान किसी कार्य को करने से ज़्यादा, उससे मिलने वाले पुरस्कार या प्रशंसा पर होता है? कक्षा में साझा करें।
2. जिन चीज़ों को आप करना पसंद करते हैं उन्हें करने के लिए यदि आपको पुरस्कार या प्रशंसा न मिले तो भी आप उन्हें करना चाहेंगे? यदि हाँ तो क्यों?
3. आप कौन-कौनसे कार्यों को ख़ुश होकर करते हैं और कौन-कौनसे कार्यों को ख़ुश होने के लिए करते हैं। दोनों तरह के कार्यों की अलग-अलग सूची बनाओ और कक्षा में साझा करो।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें।
- परिवार में इस बात पर चर्चा करें कि परिवार में कौन-कौन किन कार्यों को ख़ुश होकर करते हैं।
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
1. आपको कब ज़्यादा ख़ुशी का एहसास होता है: जब आप स्वयं के लिए कोई कार्य करते हैं या जब सिर्फ़ किसी पुरस्कार के लिए करते हैं? अपनी ज़िंदगी से उदाहरण देकर बताइए।
2. ‘ख़ुश होकर करने’ और ‘करके ख़ुश होने’ में क्या अंतर है? किस स्थिति में कार्य की सफलता की ज़्यादा संभावना है। चर्चा करें।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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