18. कितना बड़ा घेरा

कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को बड़ा सोचने और अपनेपन के विस्तार के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

कहानी:

एक बार एक राजा ने अपने जन्मदिन के अवसर पर उन लोगों को भोजन पर आमंत्रित किया जिनके पास स्थायी रूप से रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। भोजन के बाद राजा ने घोषणा की कि राजधानी के बाहर झील के किनारे जो ज़मीन है उस पर जो व्यक्ति जितनी ज़्यादा ज़मीन घेरेगा उतनी ज़मीन उसकी हो जाएगी। इसके साथ ही यह भी घोषणा की कि जो व्यक्ति सबसे ज़्यादा ज़मीन घेर पाएगा उसको दरबार में किसी उच्च पद पर भी नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए एक सप्ताह का वक्त दिया गया। सभी लोगों ने दिन-रात मेहनत करके बाड़ (fence) बनाकर ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन घेरने का प्रयास किया। अधिक से अधिक ज़मीन घेरने के बाद भी सभी लोग एक-दूसरे से कम ज़मीन देखकर दु:खी दिखाई पड़ रहे थे।
एक सप्ताह बाद राजा ने सभी के द्वारा घेरी गई ज़मीन को नापने के आदेश दिए। सभी की ज़मीन नापने के दौरान राजा ने देखा कि एक व्यक्ति ने घेरा बनाए बिना ही एक झोंपड़ी बनाकर उसमें अपना कुछ सामान रखा हुआ है। उसके चेहरे से प्रसन्नता की झलक भी दिखाई पड़ रही थी। राजा ने उससे पूछा कि तुमने घेरा क्यों नहीं बनाया। उस व्यक्ति ने कहा, “महाराज! जितनी भी ज़मीन घेर लो, वह कम ही लगती है, इसलिए मैंने अपनी आवश्यकता के अनुसार जगह में अपना सामान रख लिया है। मैंने धरती के एक छोटे हिस्से को अपना मानने के बजाय पूरी धरती को ही अपना मान लिया है, इसलिए घेरा बनाने की आवश्यकता मुझे महसूस नहीं हुई।
यह बात सुनकर राजा बहुत ख़ुश हुआ और उसी वक्त उसे अपने दरबार में एक उच्च पद पर नियुक्त कर दिया।

चर्चा की दिशा:
प्रत्येक व्यक्ति में प्राकृतिक रूप से सोचने-समझने की ताकत असीमित है। हम अपने में यह देख सकते हैं कि जब भी इस बड़ी ताकत से छोटा सोचते हैं तो हम संतुष्ट नहीं हो पाते हैं। छोटी सोच से हम भी परेशान होते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं।
इस कहानी के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी सोच को सिर्फ़ अपने व अपने परिवार तक सीमित न रखकर पूरी धरती और मानवता के लिए काम में लेने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।

पहला दिन:

चर्चा के लिए प्रश्न:
1. पूरी धरती एक है, अखंड है, लेकिन हमने धरती को राज्य, देश आदि के रूप में अलग-अलग खंडों में बाँट रखा है। इससे मानव जाति को क्या नुकसान हो रहे हैं?
2. पूरी धरती ही एक परिवार है। हम ऐसा चाहते भी हैं और बोलते भी है, लेकिन हमारे जीने में यह दिखाई नहीं पड़ता है। इसके क्या कारण हैं?
3. यदि धरती के सभी लोग एक बड़े परिवार के रूप में हो जाएँ तो इससे सभी को क्या फ़ायदे होंगे? छोटे समूहों में चर्चा कर कक्षा में प्रस्तुत करें।

घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
  • विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
  • विद्यार्थियों को अपने परिवार के अलावा कुछ अन्य परिचित लोगों से यह पूछने के लिए कहा जाए कि क्या वे चाहते हैं कि पूरी धरती एक परिवार हो जाए। साथ में यह भी पूछें कि सदियों से ऐसा चाहने के बावज़ूद भी यह क्यों नहीं हुआ है।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

दूसरा दिन:

Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
  • कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
  • घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
  • पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1. अपने जीवन से एक उदाहरण देकर बताएँ कि जब भी आप बड़ा सोचते हैं तो कैसा महसूस करते हैं?
2. सोचने की बड़ी ताकत होने के बावज़ूद भी हम किन-किन बातों में छोटा सोचते हैं?
3. ‘बड़ा सोचने वाला व्यक्ति ही बड़ा करता है और बड़ा बनता है।’ कैसे? चर्चा करें।

Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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