कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को ईमानदार रहने से होने वाली ख़ुशी के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
यह घटना 1960 के दशक की है। उस समय विज्ञान एवं तकनीकी का इतना विकास नहीं हुआ था जितना आज है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में टेनिस के मैदान पर मैच चल रहा था। मैच फ़ाइनल था, इसलिए स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। मैच बहुत ही रोचक था। जैसे ही एक खिलाड़ी अंक प्राप्त करता तो आधा स्टेडियम तालियों से गूँज उठता और कुछ देर पश्चात् जैसे ही दूसरा खिलाड़ी बराबरी पर आता तो फिर से आधा स्टेडियम हर्षोल्लास से झूम उठता।
एक बार तो ऐसा लगा कि यह मैच अनिर्णीत रहने वाला है, क्योंकि दोनों ही खिलाड़ियों का स्कोर 14-14 पर आकर रुक गया था। काफ़ी देर से बॉल रैकिट के थपेड़े खा रही थी। अचानक ही पूरा स्टेडियम खड़ा हो गया। तालियों की गड़गड़ाहट और ख़ुशी से चिल्लाने की आवाज़ें शुरु हो गईं, क्योंकि एक खिलाड़ी ने फ़ाइनल शॉट मारकर मैच अपने नाम कर लिया था।
हारने वाले खिलाड़ी ने विजेता को हाथ मिलाकर जीत की बधाई दी। रेफ़री, कोच और सभी समर्थकों ने विजेता को बधाई दी, लेकिन विजेता खिलाड़ी के चेहरे पर ख़ुशी नहीं झलक रही थी। वह किसी गहरी सोच में दिखाई पड़ रहा था।
इसी बीच विजेता खिलाड़ी को मंच पर बुलाया गया। जैसे ही मुख्य अतिथि उसे स्वर्ण पदक पहनाने के लिए आगे बढ़े तो उसने रुकने का इशारा किया और माइक हाथ में लेकर कहा, “मैं सभी खेल प्रेमियों का आभार प्रकट करता हूँ कि आप मुझे इतना सम्मान दे रहे हैं, परंतु मैं यह कभी स्वीकार नहीं कर पाऊँगा कि मैं एक फ़ाउल शॉट मारकर विजेता कहलाऊँ। इस पदक को लेने का हक मेरे साथ खेलने वाले दूसरे खिलाड़ी का है।” यह सुनते ही पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया, लेकिन कुछ ही देर बाद पूरा स्टेडियम एक साथ खड़ा हो गया और तालियों से गूँज उठा। इस बार उस खिलाड़ी के चेहरे से ख़ुशी झलक रही थी, क्योंकि उसने जीत की छोटी ख़ुशी की बजाय ईमानदारी की लंबी ख़ुशी को चुना था।
चर्चा की दिशा:
बहुत से लोग नासमझी या दबाव में बहुत से ऐसे काम करते हैं जो उन्हें ख़ुद को ही स्वीकार नहीं होते हैं। ऐसे काम करते समय और बाद में भी उनको याद करने पर अच्छा महसूस नहीं होता है। यह एहसास इस बात का संकेत है कि वह काम प्रकृति के नियमों के विपरीत है।
कुछ लोग खेल आदि में थोड़ी देर की ख़ुशी की आशा में पक्षपात, झूठ या बेईमानी का सहारा ले लेते हैं, लेकिन इससे वे ईमानदार रहने से होने वाली लंबी ख़ुशी से वंचित रह जाते हैं। ऐसे लोगों को एक बड़ा नुकसान यह भी होता है कि उन पर दूसरे लोग विश्वास नहीं करते हैं। झूठ बोलने वाले की सच्ची बातों पर भी विश्वास नहीं किया जाता है। यह हम समझ सकते हैं कि उस समय हमारी मन:स्थिति कैसी होगी जब हम पर कोई भी विश्वास न करे।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को ईमानदार रहने से होने वाली ख़ुशी के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. उस खिलाड़ी के अलावा फ़ाउल शॉट के बारे में किसी को भी पता नहीं था फिर भी उसने स्वर्ण पदक स्वीकार क्यों नहीं किया?
2. क्या आपने भी कभी खेल के दौरान ऐसा किया है? कब और क्यों?
3. खेल के अलावा अपने जीवन की किसी ऐसी घटना को साझा कीजिए जब आपने भी इसी तरह ईमानदारी को चुना हो। जैसे- दुकानदार ने आपको ज़्यादा पैसे वापस दे दिए हों और आपने उन पैसों को लौटा दिया हो।
4. क्या आपने या आपकी टीम ने खेल जीतने के लिए कभी कोई बेईमानी की है? यदि हाँ, तो क्या ऐसा करना आपको अंदर से स्वीकार हो रहा था? उसको अभी भी याद करने पर कैसा महसूस होता है?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
1. यदि कोई काम आपको अंदर से स्वीकार नहीं होता है और आप फिर भी उसे करते हैं तो उसका आप पर क्या प्रभाव पड़ता है? (संकेत- मन में बैचेनी रहना, आत्मग्लानि होना, पछतावा होना, आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान में कमी होना, अस्वीकृति का किसी मानसिक और/या शारीरिक विकार के रूप में व्यक्त होना आदि।)
2. जब हम किसी अन्य व्यक्ति को नियम का पालन न करते हुए या बेईमानी से कार्य करते हुए देखते हैं तो हमारी क्या प्रतिक्रिया रहती है?
3. आपके अनुसार कोई व्यक्ति बेईमानी क्यों करता है? क्या इससे वह उद्देश्य पूरा होता है जिसके लिए वह बेईमानी करता है? (संकेत- नासमझी, लालच, पहचान व सम्मान की तलाश, ख़ुशी की तलाश, आवश्यकताओं की पूर्ति आदि।)
4. “बेईमानी की जीत से ईमानदारी की हार बेहतर है।” कैसे? कक्षा में चर्चा करें।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
यह घटना 1960 के दशक की है। उस समय विज्ञान एवं तकनीकी का इतना विकास नहीं हुआ था जितना आज है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में टेनिस के मैदान पर मैच चल रहा था। मैच फ़ाइनल था, इसलिए स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। मैच बहुत ही रोचक था। जैसे ही एक खिलाड़ी अंक प्राप्त करता तो आधा स्टेडियम तालियों से गूँज उठता और कुछ देर पश्चात् जैसे ही दूसरा खिलाड़ी बराबरी पर आता तो फिर से आधा स्टेडियम हर्षोल्लास से झूम उठता।
एक बार तो ऐसा लगा कि यह मैच अनिर्णीत रहने वाला है, क्योंकि दोनों ही खिलाड़ियों का स्कोर 14-14 पर आकर रुक गया था। काफ़ी देर से बॉल रैकिट के थपेड़े खा रही थी। अचानक ही पूरा स्टेडियम खड़ा हो गया। तालियों की गड़गड़ाहट और ख़ुशी से चिल्लाने की आवाज़ें शुरु हो गईं, क्योंकि एक खिलाड़ी ने फ़ाइनल शॉट मारकर मैच अपने नाम कर लिया था।
हारने वाले खिलाड़ी ने विजेता को हाथ मिलाकर जीत की बधाई दी। रेफ़री, कोच और सभी समर्थकों ने विजेता को बधाई दी, लेकिन विजेता खिलाड़ी के चेहरे पर ख़ुशी नहीं झलक रही थी। वह किसी गहरी सोच में दिखाई पड़ रहा था।
इसी बीच विजेता खिलाड़ी को मंच पर बुलाया गया। जैसे ही मुख्य अतिथि उसे स्वर्ण पदक पहनाने के लिए आगे बढ़े तो उसने रुकने का इशारा किया और माइक हाथ में लेकर कहा, “मैं सभी खेल प्रेमियों का आभार प्रकट करता हूँ कि आप मुझे इतना सम्मान दे रहे हैं, परंतु मैं यह कभी स्वीकार नहीं कर पाऊँगा कि मैं एक फ़ाउल शॉट मारकर विजेता कहलाऊँ। इस पदक को लेने का हक मेरे साथ खेलने वाले दूसरे खिलाड़ी का है।” यह सुनते ही पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया, लेकिन कुछ ही देर बाद पूरा स्टेडियम एक साथ खड़ा हो गया और तालियों से गूँज उठा। इस बार उस खिलाड़ी के चेहरे से ख़ुशी झलक रही थी, क्योंकि उसने जीत की छोटी ख़ुशी की बजाय ईमानदारी की लंबी ख़ुशी को चुना था।
चर्चा की दिशा:
बहुत से लोग नासमझी या दबाव में बहुत से ऐसे काम करते हैं जो उन्हें ख़ुद को ही स्वीकार नहीं होते हैं। ऐसे काम करते समय और बाद में भी उनको याद करने पर अच्छा महसूस नहीं होता है। यह एहसास इस बात का संकेत है कि वह काम प्रकृति के नियमों के विपरीत है।
कुछ लोग खेल आदि में थोड़ी देर की ख़ुशी की आशा में पक्षपात, झूठ या बेईमानी का सहारा ले लेते हैं, लेकिन इससे वे ईमानदार रहने से होने वाली लंबी ख़ुशी से वंचित रह जाते हैं। ऐसे लोगों को एक बड़ा नुकसान यह भी होता है कि उन पर दूसरे लोग विश्वास नहीं करते हैं। झूठ बोलने वाले की सच्ची बातों पर भी विश्वास नहीं किया जाता है। यह हम समझ सकते हैं कि उस समय हमारी मन:स्थिति कैसी होगी जब हम पर कोई भी विश्वास न करे।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को ईमानदार रहने से होने वाली ख़ुशी के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. उस खिलाड़ी के अलावा फ़ाउल शॉट के बारे में किसी को भी पता नहीं था फिर भी उसने स्वर्ण पदक स्वीकार क्यों नहीं किया?
2. क्या आपने भी कभी खेल के दौरान ऐसा किया है? कब और क्यों?
3. खेल के अलावा अपने जीवन की किसी ऐसी घटना को साझा कीजिए जब आपने भी इसी तरह ईमानदारी को चुना हो। जैसे- दुकानदार ने आपको ज़्यादा पैसे वापस दे दिए हों और आपने उन पैसों को लौटा दिया हो।
4. क्या आपने या आपकी टीम ने खेल जीतने के लिए कभी कोई बेईमानी की है? यदि हाँ, तो क्या ऐसा करना आपको अंदर से स्वीकार हो रहा था? उसको अभी भी याद करने पर कैसा महसूस होता है?
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें।
- परिवार के सदस्यों से यह भी पता करें कि खेल के दौरान या अन्य किसी परिस्थिति में उन्होंने भी कभी ऐसा किया है।
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
1. यदि कोई काम आपको अंदर से स्वीकार नहीं होता है और आप फिर भी उसे करते हैं तो उसका आप पर क्या प्रभाव पड़ता है? (संकेत- मन में बैचेनी रहना, आत्मग्लानि होना, पछतावा होना, आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान में कमी होना, अस्वीकृति का किसी मानसिक और/या शारीरिक विकार के रूप में व्यक्त होना आदि।)
2. जब हम किसी अन्य व्यक्ति को नियम का पालन न करते हुए या बेईमानी से कार्य करते हुए देखते हैं तो हमारी क्या प्रतिक्रिया रहती है?
3. आपके अनुसार कोई व्यक्ति बेईमानी क्यों करता है? क्या इससे वह उद्देश्य पूरा होता है जिसके लिए वह बेईमानी करता है? (संकेत- नासमझी, लालच, पहचान व सम्मान की तलाश, ख़ुशी की तलाश, आवश्यकताओं की पूर्ति आदि।)
4. “बेईमानी की जीत से ईमानदारी की हार बेहतर है।” कैसे? कक्षा में चर्चा करें।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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