कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
किसी विख्यात गुरु के पास लोग अपनी समस्याओं के हल पूछने के लिए दूर-दूर से आते थे। एक बार एक व्यक्ति उनसे जीवन के लक्ष्य के बारे में पूछने आया, लेकिन उस गुरु से कुछ सुनने की बजाय वह ख़ुद ही इस बारे में बताने में मग्न हो गया। उस व्यक्ति ने कई किताबें पढ़कर बहुत सारी जानकारी इकट्ठी कर रखी थी। वह हमेशा दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करता था कि वह भी बहुत बड़ा ज्ञानी है। गुरु ने उसका अहंकार दूर करने के लिए एक तरकीब सोची।
गुरु ने उस व्यक्ति के लिए चाय मँगाई और केतली से कप में चाय डालने लगे। वह व्यक्ति अभी भी अपनी ही बातें करते जा रहा था कि तभी उसने देखा कि कप भर जाने के बाद भी गुरु उसमें चाय डालते जा रहे हैं और चाय ज़मीन पर गिर रही है।
“यह कप भर चुका है। अब इसमें और चाय नहीं आ सकती है।”, उस व्यक्ति ने गुरु को रोकते हुए कहा।
गुरु ने कहा, “इस कप की तरह तुम भी अपने ही ख़यालों से भरे हुए हो। जब तक तुम अपना कप ख़ाली नहीं करते, मेरी बातें उसमें भला कैसे समाएँगी?”
चर्चा की दिशा:
यह सुनने में आता है कि एक अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता बनता है। जो व्यक्ति दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं और सोचते हैं, वे लगातार अपनी समझ बढ़ाते रहते हैं। कुछ लोग बहुत सारी सूचनाओं को इकट्ठा करके स्वयं को दूसरों से ज़्यादा समझदार समझने लगते हैं और दूसरों की बातें सुनने की बजाय अपनी ही बातें करते रहते हैं। ऐसे लोग अपने अहंकार की वजह से अपनी ही उन्नति में बाधक बन जाते हैं।
इस कहानी से विद्यार्थियों को केवल अपनी ही बातें कहने की बजाय दूसरों की बातों को भी ध्यानपूर्वक सुनने के लिए प्रेरित किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि आपकी बातें सुने बिना कोई अपनी ही बातें ज़्यादा कहने की कोशिश करता है? ऐसे अनुभव साझा करें।
2. आपमें से किसे यह लगता है कि आप भी कभी-कभी ऐसा ही करते हैं? क्या आपको इस बात का पता है कि आप ऐसा करते हैं? यदि हाँ तो क्यों?
3. वे लोग अकसर कम बोलते हैं, जिनके काम बोलते हैं। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं तो बताएँ।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
1. कुछ लोग दूसरों की बातें ध्यानपूर्वक सुनने की बजाय अपनी ही बातें ज़्यादा बताने की कोशिश क्यों करते हैं? इससे उनकी ज़िंदगी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
2. हम अपनी ध्यानपूर्वक सुनने की क्षमता को कैसे बढ़ा सकते हैं?
3. एक अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता बनता है। कैसे? कक्षा में चर्चा करें।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
-----------------------------------
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
किसी विख्यात गुरु के पास लोग अपनी समस्याओं के हल पूछने के लिए दूर-दूर से आते थे। एक बार एक व्यक्ति उनसे जीवन के लक्ष्य के बारे में पूछने आया, लेकिन उस गुरु से कुछ सुनने की बजाय वह ख़ुद ही इस बारे में बताने में मग्न हो गया। उस व्यक्ति ने कई किताबें पढ़कर बहुत सारी जानकारी इकट्ठी कर रखी थी। वह हमेशा दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करता था कि वह भी बहुत बड़ा ज्ञानी है। गुरु ने उसका अहंकार दूर करने के लिए एक तरकीब सोची।
गुरु ने उस व्यक्ति के लिए चाय मँगाई और केतली से कप में चाय डालने लगे। वह व्यक्ति अभी भी अपनी ही बातें करते जा रहा था कि तभी उसने देखा कि कप भर जाने के बाद भी गुरु उसमें चाय डालते जा रहे हैं और चाय ज़मीन पर गिर रही है।
“यह कप भर चुका है। अब इसमें और चाय नहीं आ सकती है।”, उस व्यक्ति ने गुरु को रोकते हुए कहा।
गुरु ने कहा, “इस कप की तरह तुम भी अपने ही ख़यालों से भरे हुए हो। जब तक तुम अपना कप ख़ाली नहीं करते, मेरी बातें उसमें भला कैसे समाएँगी?”
चर्चा की दिशा:
यह सुनने में आता है कि एक अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता बनता है। जो व्यक्ति दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनते हैं और सोचते हैं, वे लगातार अपनी समझ बढ़ाते रहते हैं। कुछ लोग बहुत सारी सूचनाओं को इकट्ठा करके स्वयं को दूसरों से ज़्यादा समझदार समझने लगते हैं और दूसरों की बातें सुनने की बजाय अपनी ही बातें करते रहते हैं। ऐसे लोग अपने अहंकार की वजह से अपनी ही उन्नति में बाधक बन जाते हैं।
इस कहानी से विद्यार्थियों को केवल अपनी ही बातें कहने की बजाय दूसरों की बातों को भी ध्यानपूर्वक सुनने के लिए प्रेरित किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि आपकी बातें सुने बिना कोई अपनी ही बातें ज़्यादा कहने की कोशिश करता है? ऐसे अनुभव साझा करें।
2. आपमें से किसे यह लगता है कि आप भी कभी-कभी ऐसा ही करते हैं? क्या आपको इस बात का पता है कि आप ऐसा करते हैं? यदि हाँ तो क्यों?
3. वे लोग अकसर कम बोलते हैं, जिनके काम बोलते हैं। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं तो बताएँ।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें।
- अपने आसपास देखें कि कौन-कौन दूसरों की बातें सुनने की बजाय अपनी ही बातें कहने की ज़्यादा कोशिश करते हैं।
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
1. कुछ लोग दूसरों की बातें ध्यानपूर्वक सुनने की बजाय अपनी ही बातें ज़्यादा बताने की कोशिश क्यों करते हैं? इससे उनकी ज़िंदगी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
2. हम अपनी ध्यानपूर्वक सुनने की क्षमता को कैसे बढ़ा सकते हैं?
3. एक अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता बनता है। कैसे? कक्षा में चर्चा करें।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
-----------------------------------
No comments:
Post a Comment