कहानी का उद्देश्य: किसी बात को पूरी तरह जानकर ही उस पर अपना मत रखने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
किसी गाँव में 6 दोस्त रहते थे। एक दिन वे किसी बात को लेकर झगड़ने लगे। सभी अपनी-अपनी बात सही होने को लेकर अड़े हुए थे। आख़िर में अपनी समस्या के हल के लिए उन्होंने गाँव के एक समझदार व्यक्ति के पास जाने का निर्णय लिया।
उस समझदार व्यक्ति ने उन्हें समझाने का एक अनोखा तरीका अपनाया। उस समय गाँव में एक हाथी आया हुआ था और उन्होंने पहले कभी भी हाथी नहीं देखा था। आज की तरह उस समय टी.वी. भी नहीं था। उस समझदार व्यक्ति ने सभी की आँखों पर पट्टी बाँध दी और उन्हें उस जगह लेकर गया जहाँ लोगों को हाथी दिखाया जा रहा था। सभी दोस्तों को बारी-बारी से हाथी को छूकर यह बताने के लिए कहा गया कि बताओ हाथी कैसा होता है।
सभी ने हाथी को छूना शुरू किया।
“मैं समझ गया, हाथी एक खंभे की तरह होता है।”, पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा।
“अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है!”, दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा।
“मैं बताता हूँ, यह तो पेड़ के तने की तरह है।”, तीसरे व्यक्ति ने सूँड पकड़ते हुए कहा।
”तुम लोग क्या बात कर रहे हो, यह तो हाथ के एक बड़े पंखे की तरह है।”, चौथे व्यक्ति ने उसके कान को छूते हुए कहा।
“नहीं-नहीं, ये तो एक मोटे तिरपाल की तरह है।”, पाँचवें व्यक्ति ने उसके पेट पर हाथ रखते हुए कहा।
”ऐसा नहीं है, हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है।”, छठे व्यक्ति ने उसके दाँत को पकड़ते हुए कहा।
सभी अपनी बात को सही साबित करने के लिए बहस करने लग गए।
अंत में उस समझदार व्यक्ति ने उन्हें अपनी-अपनी पट्टी खोलकर हाथी को देखने को कहा। जब सभी ने वास्तव में हाथी देखा तो वे अपनी बातों को लेकर बहुत शर्मिंदा हुए।
चर्चा की दिशा:
अस्तित्व में वास्तविकताएँ निश्चित हैं। यदि इन्हें जैसी हैं वैसी जान लिया जाए तो ये सभी के लिए एक जैसी ही होंगी। यदि किसी वास्तविकता को जैसी है वैसी न जानकर उसे कम, ज़्यादा या भिन्न मान लिया जाए तो सभी के लिए वह अलग-अलग हो जाती है, जबकि वास्तविकता एक ही है। बहुत समय पहले अलग-अलग लोगों ने अधूरी समझ के चलते चाँद को अलग-अलग रूप में माना। जैसे- चंदा मामा, चाँद पर सूत कातती बुढ़िया, सुंदरता का पर्याय आदि, लेकिन अब हम चाँद को एक उपग्रह के रूप में जानते हैं।
अभी हम विवाद से बचने के लिए अपना-अपना नज़रिया (perspective) कहकर काम चला लेते हैं, जबकि वास्तविकता (नज़ारा) हमारा नज़रिया बदलने से नहीं बदलती है। वास्तविकताएँ कभी भी हमारे दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं बदलेंगी बल्कि हमारे दृष्टिकोण को ही वास्तविकताओं के अनुरूप होना होगा। तभी हम सब एक मत होंगे।
जब आँखों से पट्टी हटती है और संपूर्णता में हम किसी वस्तु को देख पाते हैं तभी सभी एक जैसा देख पाते हैं।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को वास्तविकताएँ जैसी हैं वैसी जानने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है ताकि सभी मतभेद मिटाकर मिलजुल कर रहें।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आप भी कभी किसी बात को पूरा जाने बिना इसी तरह अड़े हैं? जब आपको सच्चाई का पता चला तो कैसा महसूस हुआ?
2. कभी-कभी कुछ लोग अपनी ही बात को सही मनवाने पर क्यों अड़ जाते हैं?
3. आपके अनुसार इस दुनिया में क्या किया जाए कि किसी भी प्रकार के लड़ाई-झगड़े न हों? चर्चा करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
1. मानव जाति की अधूरी समझ को दर्शाने वाले ऐसे कौन-कौनसे कार्य हैं जिनके कारण ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण जैसी समस्याएँ पैदा हो गई हैं?
2. “हम सब सही में एक और गलती में अनेक होते हैं।” कैसे? कक्षा में चर्चा करें। (जैसे- बहुत समय पहले चाँद के बारे में क्या-क्या मानते थे और आज चाँद पर जाने के बाद सभी एक जैसा मानते हैं।)
3. ऐसी कौन-कौनसी बातें हैं जिनको लेकर मानव जाति अभी भी अनेक है अर्थात अलग-अलग मानती है? जैसे- इनसान की उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग लोग अलग-अलग बातें मानते हैं।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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समय: कम से कम दो दिन बाकी शिक्षक के संतुष्ट होने तक
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
किसी गाँव में 6 दोस्त रहते थे। एक दिन वे किसी बात को लेकर झगड़ने लगे। सभी अपनी-अपनी बात सही होने को लेकर अड़े हुए थे। आख़िर में अपनी समस्या के हल के लिए उन्होंने गाँव के एक समझदार व्यक्ति के पास जाने का निर्णय लिया।
उस समझदार व्यक्ति ने उन्हें समझाने का एक अनोखा तरीका अपनाया। उस समय गाँव में एक हाथी आया हुआ था और उन्होंने पहले कभी भी हाथी नहीं देखा था। आज की तरह उस समय टी.वी. भी नहीं था। उस समझदार व्यक्ति ने सभी की आँखों पर पट्टी बाँध दी और उन्हें उस जगह लेकर गया जहाँ लोगों को हाथी दिखाया जा रहा था। सभी दोस्तों को बारी-बारी से हाथी को छूकर यह बताने के लिए कहा गया कि बताओ हाथी कैसा होता है।
सभी ने हाथी को छूना शुरू किया।
“मैं समझ गया, हाथी एक खंभे की तरह होता है।”, पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा।
“अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है!”, दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा।
“मैं बताता हूँ, यह तो पेड़ के तने की तरह है।”, तीसरे व्यक्ति ने सूँड पकड़ते हुए कहा।
”तुम लोग क्या बात कर रहे हो, यह तो हाथ के एक बड़े पंखे की तरह है।”, चौथे व्यक्ति ने उसके कान को छूते हुए कहा।
“नहीं-नहीं, ये तो एक मोटे तिरपाल की तरह है।”, पाँचवें व्यक्ति ने उसके पेट पर हाथ रखते हुए कहा।
”ऐसा नहीं है, हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है।”, छठे व्यक्ति ने उसके दाँत को पकड़ते हुए कहा।
सभी अपनी बात को सही साबित करने के लिए बहस करने लग गए।
अंत में उस समझदार व्यक्ति ने उन्हें अपनी-अपनी पट्टी खोलकर हाथी को देखने को कहा। जब सभी ने वास्तव में हाथी देखा तो वे अपनी बातों को लेकर बहुत शर्मिंदा हुए।
चर्चा की दिशा:
अस्तित्व में वास्तविकताएँ निश्चित हैं। यदि इन्हें जैसी हैं वैसी जान लिया जाए तो ये सभी के लिए एक जैसी ही होंगी। यदि किसी वास्तविकता को जैसी है वैसी न जानकर उसे कम, ज़्यादा या भिन्न मान लिया जाए तो सभी के लिए वह अलग-अलग हो जाती है, जबकि वास्तविकता एक ही है। बहुत समय पहले अलग-अलग लोगों ने अधूरी समझ के चलते चाँद को अलग-अलग रूप में माना। जैसे- चंदा मामा, चाँद पर सूत कातती बुढ़िया, सुंदरता का पर्याय आदि, लेकिन अब हम चाँद को एक उपग्रह के रूप में जानते हैं।
अभी हम विवाद से बचने के लिए अपना-अपना नज़रिया (perspective) कहकर काम चला लेते हैं, जबकि वास्तविकता (नज़ारा) हमारा नज़रिया बदलने से नहीं बदलती है। वास्तविकताएँ कभी भी हमारे दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं बदलेंगी बल्कि हमारे दृष्टिकोण को ही वास्तविकताओं के अनुरूप होना होगा। तभी हम सब एक मत होंगे।
जब आँखों से पट्टी हटती है और संपूर्णता में हम किसी वस्तु को देख पाते हैं तभी सभी एक जैसा देख पाते हैं।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को वास्तविकताएँ जैसी हैं वैसी जानने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है ताकि सभी मतभेद मिटाकर मिलजुल कर रहें।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आप भी कभी किसी बात को पूरा जाने बिना इसी तरह अड़े हैं? जब आपको सच्चाई का पता चला तो कैसा महसूस हुआ?
2. कभी-कभी कुछ लोग अपनी ही बात को सही मनवाने पर क्यों अड़ जाते हैं?
3. आपके अनुसार इस दुनिया में क्या किया जाए कि किसी भी प्रकार के लड़ाई-झगड़े न हों? चर्चा करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए):
- घर जाकर इस कहानी को अपने परिवार में सुनाएँ और इस पर परिवार के सदस्यों के विचार व अनुभव जानें।
- परिवार में पता करें कि कभी किसी बात को लेकर यह पता चला कि लंबे समय से वे जिस बात को सही माने हुए थे वह बात सही नहीं थी।
दूसरा दिन:
Check In: कक्षा की शुरूआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, कहानी का रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- कहानी पर घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के लिए प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुन: किया जा सकता है जो रह गए थे या अनुपस्थित थे।
1. मानव जाति की अधूरी समझ को दर्शाने वाले ऐसे कौन-कौनसे कार्य हैं जिनके कारण ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण जैसी समस्याएँ पैदा हो गई हैं?
2. “हम सब सही में एक और गलती में अनेक होते हैं।” कैसे? कक्षा में चर्चा करें। (जैसे- बहुत समय पहले चाँद के बारे में क्या-क्या मानते थे और आज चाँद पर जाने के बाद सभी एक जैसा मानते हैं।)
3. ऐसी कौन-कौनसी बातें हैं जिनको लेकर मानव जाति अभी भी अनेक है अर्थात अलग-अलग मानती है? जैसे- इनसान की उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग लोग अलग-अलग बातें मानते हैं।
Check out: कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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