कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को स्व-मूल्यांकन के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
कहानी
प्रमोद और समीर दोनों पक्के मित्र थे। दोनों एक-दूसरे से हर बात साझा करते थे। एक दिन प्रमोद बहुत क्रोधित होकर समीर के पास आया। उसके एक सहपाठी ने उसको पत्र में बड़ी ऊल-जलूल बातें लिखी थीं। समीर ने कहा, “ प्रमोद बैठो, गुस्सा मत करो। तुम भी इसका ज़वाब दे दो और दिल खोलकर ज़वाब दो। जो भी तुम्हें लिखना है, लिख दो।"
प्रमोद थोड़ा चौंका। उसने ऐसा सोचा भी नहीं था कि समीर ऐसा कहेगा। उसे तो लगा था कि हमेशा की तरह समीर उसे समझाने की कोशिश करेगा, लेकिन आज तो वह ख़ुद ही ऐसी बातों का समर्थन कर रहा है।
ख़ैर, प्रमोद ने भी दिल खोलकर पत्र लिखा। पूरा पत्र लिखकर उसने राहत की साँस ली और समीर की ओर देखने लगा। समीर ने कहा, “अब यह पत्र मुझे दे दो। अपने मित्र के पत्र को दो दिन बाद मैं स्वयं भेजूँगा।" प्रमोद ने पूछा, "दो दिन बाद क्यों?" "यह मैं तुम्हें बाद में बताऊँगा।", समीर ने मुस्कराते हुए कहा। प्रमोद समीर पर बहुत विश्वास करता था और उसकी समझदारी के कारण उसका सम्मान भी करता था, इसलिए उसने और कुछ नहीं पूछा।
दो दिन बाद समीर ने कहा, "मित्र! मैं आज तुम्हारा पत्र भेज रहा हूँ।" दो दिन में सब आग ठंडी हो गई थी। एक बार मन का गुबार निकल जाने से प्रमोद को अब अपना पत्र व्यर्थ मालूम पड़ रहा था, इसलिए उसने कहा, “अब रहने दो मित्र! मैंने सोचा है कि ऐसा करने पर मुझमें और उसमें क्या फ़र्क रह जाएगा। मुझे यह जानकर भी बहुत बुरा लगा कि आपका मित्र होकर भी मैंने अपने अंदर कितना कूड़ा इकट्ठा किया हुआ है।" यह सुनकर समीर ने प्रमोद को गले लगा लिया और कहा, “आज मुझे अपने मित्र पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है।”
चर्चा की दिशा: आवेश की स्थिति में लिये गए निर्णय अधिकांशत: सही नहीं होते क्योंकि ऐसी स्थिति में व्यक्ति स्वनियन्त्रित नहीं होता और परिस्थिति नकारात्मक हो जाती है,ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आवेश की स्थिति में हम दूसरों का मूल्यांकन करते हैं। किन्तु यदि व्यक्ति स्व नियन्त्रण रखकर कुछ देर बाद अपनी बात रखता है तो परिस्थिति सकारात्मक होती है। ऐसी स्थिति में हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं
हर स्थिति में मूल्यांकन करने से स्वयं का सही मूल्यांकन होता है।गुणों का उचित मूल्यांकन करने पर अपने गुणों और अवगुणों की पहचान होती है। अधिकतर लोग दूसरों का मूल्यांकन करते रहते हैं। स्वयं का मूल्यांकन शायद ही करते हैं। जबकि एक व्यक्ति का मानसिक और भावात्मक विकास स्व-मूल्यांकन से ही होता है।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी उन्नति के लिए स्वयं का मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आपने गुस्से में कुछ किया हो और बाद में आपको लगा हो कि यह ठीक नहीं किया? कक्षा में साझा करें।
2 क्या ऐसी स्थिति में कभी कभी आपको लगता हैं कि आपने जो किया वह आपको नहीं करना चाहिये था। ऐसे में आप क्या करते हैं
घर जाकर देखो, पूछो समझो (विद्यार्थियों के लिए)
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
1.आप किसी व्यक्ति की कौन-कौन सी बातें पसंद नहीं करते हैं? एक सूची बनाओ और जोड़े में एक-दूसरे से साझा करो।
2.क्या आपने कभी स्वयं के व्यवहार के बारे में गहराई से सोचा है कि आपकी कौन कौन सी बातें दूसरों को नापसंद हैं? एक सूची बनाएँ और स्वेच्छा से कक्षा में साझा करें।
3. विपरीत परिस्थितियों में प्रतिक्रिया करने के कुछ देर बाद क्या आपको आत्मग्लानि होती है,यदि हाँ तो किन लोगों के साथ और ऐसा क्यों होता है?यदि नहीं तो क्यों?
4. स्व-मूल्यांकन से स्व-उन्नति होती है।कैसे? कक्षा में चर्चा करें।
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
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समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
कहानी
प्रमोद और समीर दोनों पक्के मित्र थे। दोनों एक-दूसरे से हर बात साझा करते थे। एक दिन प्रमोद बहुत क्रोधित होकर समीर के पास आया। उसके एक सहपाठी ने उसको पत्र में बड़ी ऊल-जलूल बातें लिखी थीं। समीर ने कहा, “ प्रमोद बैठो, गुस्सा मत करो। तुम भी इसका ज़वाब दे दो और दिल खोलकर ज़वाब दो। जो भी तुम्हें लिखना है, लिख दो।"
प्रमोद थोड़ा चौंका। उसने ऐसा सोचा भी नहीं था कि समीर ऐसा कहेगा। उसे तो लगा था कि हमेशा की तरह समीर उसे समझाने की कोशिश करेगा, लेकिन आज तो वह ख़ुद ही ऐसी बातों का समर्थन कर रहा है।
ख़ैर, प्रमोद ने भी दिल खोलकर पत्र लिखा। पूरा पत्र लिखकर उसने राहत की साँस ली और समीर की ओर देखने लगा। समीर ने कहा, “अब यह पत्र मुझे दे दो। अपने मित्र के पत्र को दो दिन बाद मैं स्वयं भेजूँगा।" प्रमोद ने पूछा, "दो दिन बाद क्यों?" "यह मैं तुम्हें बाद में बताऊँगा।", समीर ने मुस्कराते हुए कहा। प्रमोद समीर पर बहुत विश्वास करता था और उसकी समझदारी के कारण उसका सम्मान भी करता था, इसलिए उसने और कुछ नहीं पूछा।
दो दिन बाद समीर ने कहा, "मित्र! मैं आज तुम्हारा पत्र भेज रहा हूँ।" दो दिन में सब आग ठंडी हो गई थी। एक बार मन का गुबार निकल जाने से प्रमोद को अब अपना पत्र व्यर्थ मालूम पड़ रहा था, इसलिए उसने कहा, “अब रहने दो मित्र! मैंने सोचा है कि ऐसा करने पर मुझमें और उसमें क्या फ़र्क रह जाएगा। मुझे यह जानकर भी बहुत बुरा लगा कि आपका मित्र होकर भी मैंने अपने अंदर कितना कूड़ा इकट्ठा किया हुआ है।" यह सुनकर समीर ने प्रमोद को गले लगा लिया और कहा, “आज मुझे अपने मित्र पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है।”
चर्चा की दिशा: आवेश की स्थिति में लिये गए निर्णय अधिकांशत: सही नहीं होते क्योंकि ऐसी स्थिति में व्यक्ति स्वनियन्त्रित नहीं होता और परिस्थिति नकारात्मक हो जाती है,ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आवेश की स्थिति में हम दूसरों का मूल्यांकन करते हैं। किन्तु यदि व्यक्ति स्व नियन्त्रण रखकर कुछ देर बाद अपनी बात रखता है तो परिस्थिति सकारात्मक होती है। ऐसी स्थिति में हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं
हर स्थिति में मूल्यांकन करने से स्वयं का सही मूल्यांकन होता है।गुणों का उचित मूल्यांकन करने पर अपने गुणों और अवगुणों की पहचान होती है। अधिकतर लोग दूसरों का मूल्यांकन करते रहते हैं। स्वयं का मूल्यांकन शायद ही करते हैं। जबकि एक व्यक्ति का मानसिक और भावात्मक विकास स्व-मूल्यांकन से ही होता है।
इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी उन्नति के लिए स्वयं का मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न:
1. क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आपने गुस्से में कुछ किया हो और बाद में आपको लगा हो कि यह ठीक नहीं किया? कक्षा में साझा करें।
2 क्या ऐसी स्थिति में कभी कभी आपको लगता हैं कि आपने जो किया वह आपको नहीं करना चाहिये था। ऐसे में आप क्या करते हैं
घर जाकर देखो, पूछो समझो (विद्यार्थियों के लिए)
- विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
- ऐसी स्थिति में अपने विचार व भावों के प्रति सजग रहने के लिए कहा जाए ताकि आगे अपने अनुभवों को ईमानदारी से साझा किया जा सके।
- प्रतिक्रिया करने की स्थिति तथा प्रतिक्रिया न कर सहज रुप से व्यवहार करने में आपके भीतर क्या घटता है?ऐसा क्यों होता है? साझा करें।
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुनः किया जा सकता है।
1.आप किसी व्यक्ति की कौन-कौन सी बातें पसंद नहीं करते हैं? एक सूची बनाओ और जोड़े में एक-दूसरे से साझा करो।
2.क्या आपने कभी स्वयं के व्यवहार के बारे में गहराई से सोचा है कि आपकी कौन कौन सी बातें दूसरों को नापसंद हैं? एक सूची बनाएँ और स्वेच्छा से कक्षा में साझा करें।
3. विपरीत परिस्थितियों में प्रतिक्रिया करने के कुछ देर बाद क्या आपको आत्मग्लानि होती है,यदि हाँ तो किन लोगों के साथ और ऐसा क्यों होता है?यदि नहीं तो क्यों?
4. स्व-मूल्यांकन से स्व-उन्नति होती है।कैसे? कक्षा में चर्चा करें।
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
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