कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों को गलती होने पर भी ईमानदार रहने के लिए प्रेरित करना।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
कहानी
एक बालक अपनी बहन अलिसा के साथ खेल रहा था। वहाँ से एक लड़की गुज़र रही थी जिसके सिर पर अमरूदों से भरा टोकरा रखा था। वह उन्हें बाजार में बेचने जा रही थी। गलती से अलिसा उससे टकरा गई जिससे सारे अमरूद कीचड़ में गिरकर गंदे हो गए। “अब मेरे माता-पिता को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ेगा।” यह कहकर वह लड़की रोने लगी। अलिसा ने अपने भाई को वहाँ से भाग चलने की सलाह दी और कहा, “अभी तो यहाँ कोई देख भी नहीं रहा है।” उसके भाई ने कहा, “बहन, अगर हम यह मान लेते हैं कि यहाँ कोई नहीं देख रहा है, इसलिए सजा नहीं मिलेगी तो यह गलत है।”
उस बालक ने अपनी जेब में रखे तीन आने उस लड़की को दिए और उससे कहा, “बहन, तुम हमारे साथ चलो। मैं तुम्हारे फलों की कीमत घर चलकर पूरा चुका दूँगा।” वे तीनों घर पहुँचे। बालक ने सारी बात अपनी माँ को बताई। माँ को बहुत गुस्सा आया और वह बोली, “तुम लोग किसी भी बात का ध्यान नहीं रखते हो। घर खर्च के लिए तो पैसे नहीं, अब इसे कहाँ से दूँ?”
उस बालक ने कहा, “माँ, मेरे जेब खर्च के पैसे इस लड़की को दे दो। मेरा विद्यालय का नाश्ता भी बंद रहेगा। मुझे इसमें रत्ती भर भी आपत्ति नहीं। गलती का सुधार भी तो मुझे ही करना है।” माँ ने उसके डेढ़ महीने के जेब खर्च के पैसे उस लड़की को दे दिए। लड़की प्रसन्न होकर घर चली गई। डेढ़ महीने तक विद्यालय में उस लड़के को कुछ भी नाश्ता नहीं मिला। वह ज़रा भी दुखी नहीं हुआ। यही बालक आगे चलकर नेपोलियन बोनापार्ट के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
चर्चा की दिशा:
कुछ लोग गलती होने पर ईमानदारी से उसे नहीं स्वीकारते हैं। गलती को छुपाने पर ख़ुद को अच्छा महसूस नहीं होता है। इसके साथ ही ऐसे लोगों के प्रति विश्वास भी घटता है। इसके विपरीत जो लोग गलती होने पर ईमानदारी से उसे स्वीकारते हैं उनके प्रति सम्मान और विश्वास बढ़ता है। गलती को स्वीकारने पर ख़ुद को भी अच्छा महसूस होता है।
इन प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को गलती होने पर ईमानदारी से उसे स्वीकार कर एक विश्वसनीय व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के प्रश्न:
1. क्या आपने भी कभी ईमानदारी से अपनी गलती को स्वीकार किया है? गलती स्वीकारने से आपको कैसा महसूस हुआ?
2. क्या आपने कभी अपनी गलती को छुपाया है? अपनी गलती को छुपाने के बाद भी ख़ुद को कैसा महसूस हुआ?
घर जाकर देखो, पूछो समझो (विद्यार्थियों के लिए)
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
1. आप किस तरह के समाज में रहना पसंद करेंगे जिसमें लोग अपनी गलतियाँ ईमानदारी से स्वीकारते हैं या जिसमें लोग अपनी गलतियाँ छुपाते हैं? क्यों?
2. अपनी गलती को स्वीकारने से हमारे प्रति दूसरों का विश्वास बढ़ता है या घटता है? क्यों?
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
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समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
कहानी
एक बालक अपनी बहन अलिसा के साथ खेल रहा था। वहाँ से एक लड़की गुज़र रही थी जिसके सिर पर अमरूदों से भरा टोकरा रखा था। वह उन्हें बाजार में बेचने जा रही थी। गलती से अलिसा उससे टकरा गई जिससे सारे अमरूद कीचड़ में गिरकर गंदे हो गए। “अब मेरे माता-पिता को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ेगा।” यह कहकर वह लड़की रोने लगी। अलिसा ने अपने भाई को वहाँ से भाग चलने की सलाह दी और कहा, “अभी तो यहाँ कोई देख भी नहीं रहा है।” उसके भाई ने कहा, “बहन, अगर हम यह मान लेते हैं कि यहाँ कोई नहीं देख रहा है, इसलिए सजा नहीं मिलेगी तो यह गलत है।”
उस बालक ने अपनी जेब में रखे तीन आने उस लड़की को दिए और उससे कहा, “बहन, तुम हमारे साथ चलो। मैं तुम्हारे फलों की कीमत घर चलकर पूरा चुका दूँगा।” वे तीनों घर पहुँचे। बालक ने सारी बात अपनी माँ को बताई। माँ को बहुत गुस्सा आया और वह बोली, “तुम लोग किसी भी बात का ध्यान नहीं रखते हो। घर खर्च के लिए तो पैसे नहीं, अब इसे कहाँ से दूँ?”
उस बालक ने कहा, “माँ, मेरे जेब खर्च के पैसे इस लड़की को दे दो। मेरा विद्यालय का नाश्ता भी बंद रहेगा। मुझे इसमें रत्ती भर भी आपत्ति नहीं। गलती का सुधार भी तो मुझे ही करना है।” माँ ने उसके डेढ़ महीने के जेब खर्च के पैसे उस लड़की को दे दिए। लड़की प्रसन्न होकर घर चली गई। डेढ़ महीने तक विद्यालय में उस लड़के को कुछ भी नाश्ता नहीं मिला। वह ज़रा भी दुखी नहीं हुआ। यही बालक आगे चलकर नेपोलियन बोनापार्ट के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
चर्चा की दिशा:
कुछ लोग गलती होने पर ईमानदारी से उसे नहीं स्वीकारते हैं। गलती को छुपाने पर ख़ुद को अच्छा महसूस नहीं होता है। इसके साथ ही ऐसे लोगों के प्रति विश्वास भी घटता है। इसके विपरीत जो लोग गलती होने पर ईमानदारी से उसे स्वीकारते हैं उनके प्रति सम्मान और विश्वास बढ़ता है। गलती को स्वीकारने पर ख़ुद को भी अच्छा महसूस होता है।
इन प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को गलती होने पर ईमानदारी से उसे स्वीकार कर एक विश्वसनीय व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया है।
पहला दिन:
चर्चा के प्रश्न:
1. क्या आपने भी कभी ईमानदारी से अपनी गलती को स्वीकार किया है? गलती स्वीकारने से आपको कैसा महसूस हुआ?
2. क्या आपने कभी अपनी गलती को छुपाया है? अपनी गलती को छुपाने के बाद भी ख़ुद को कैसा महसूस हुआ?
घर जाकर देखो, पूछो समझो (विद्यार्थियों के लिए)
- विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
- विद्यार्थियों को अपने मित्रों से उनकी उन आदतों के बारे में चर्चा करने के लिए कहा जाए जो वे छोड़ना चाहते हैं। यह भी पता लगाया जाए कि उनके मित्रों के व्यवहार में ये आदतें कैसे आईं?
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
- कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुनः किया जा सकता है।
1. आप किस तरह के समाज में रहना पसंद करेंगे जिसमें लोग अपनी गलतियाँ ईमानदारी से स्वीकारते हैं या जिसमें लोग अपनी गलतियाँ छुपाते हैं? क्यों?
2. अपनी गलती को स्वीकारने से हमारे प्रति दूसरों का विश्वास बढ़ता है या घटता है? क्यों?
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
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