कहानी का उद्देश्य: यह स्पष्ट करना कि स्वयं निर्णय करने की क्षमता नहीं होने से आत्मविश्वास की कमी रहती है जिससे हम दुखी रहते हैं ।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
कहानी
एक आदमी और उसका बारह वर्ष का बेटा अपने गधे के साथ शहर की तरफ जा रहे थे। उनको इस तरह चलते देखकर राह चलते लोग हंसने लगे। एक व्यक्ति ने उनसे कहा," गधे के होते हुए भी तुम लोग पैदल जा रहे हो।" यह सुनकर पिता ने बेटे को गधे पर बिठा दिया।
कुछ आगे जाने पर उनको कुछ दूसरे लोगों ने ताना मारते हुए कहा,"कितनी शर्म की बात है बेटा गधे पर बैठा है ,पिता पैदल चल रहा है।” उन दोनों को लगा कि लोग सही कह रहे हैं इसलिए अब पिता गधे पर बैठ गया और बेटा पैदल चलने लगा।
कुछ आगे बढ़े तो किसी राहगीर ने कहा," यह आदमी कैसे मजे से गधे पर बैठा है और बच्चे को पैदल दौड़ा रहा है। बेचारा बच्चा कैसा हांफ रहा है।”
इस तरह लोगों के ताने और व्यंग सुनकर, दुखी होते हुए और बार-बार अपना स्थान बदलते हुए वे शहर की ओर चले गए।
चर्चा की दिशा
हमें अपने जीवन में बहुत बार कोई न कोई निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती है। कभी कभी ऐसे में अपने आप को सक्षम नहीं पाते क्योंकि हम में आत्मविश्वास की कमी रहती है या हमें अपने आस पास दूसरे लोगों के द्वारा गलत ठहराए जाने का डर बना रहता है।हम अक्सर सही निर्णय नहीं ले पाते क्योंकि ,"लोग क्या कहेंगे" के प्रति चिंतित रहते हैं।परंतु यदि हमें सही की समझ हो तो हमारा विश्वास बना रहेगा और हमारे निर्णय किसी ठोस बात पर आधारित होंगे।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न
1. रोजमर्रा की जिन्दगी से उदाहरण या घटनाएँ साझा करिए जब आपको निर्णय लेने में मुश्किल हुई है?
2. निर्णय न ले पाने की स्थिति में आप कैसे महसूस करते हैं?
3. आप कब अपने कार्यों में दूसरों के द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करते हैं?(शिक्षक के लिये हिंट:जब आप निर्णय लेने में अक्षम होते हैं तब आप अलग अलग लोगों के जानकारी/सुझाव सुनते हैं)
4. हममें सही निर्णय लेने का आत्मविश्वास कैसे आता है? (शिक्षक के लिये hint: समझ और स्पष्टता से। यही हमेशा रहने वाली खुशी का आधार है)
घर जाकर देखो, पूछो समझो (विद्यार्थियों के लिए)
अपने आस पास देखने का प्रयास करें कि कौन कौन निर्णय ले पाता है और स्वयं की जांच भी करें कि कब कब आपने कोई निर्णय लिया और उसके फल की भी जिम्मेदारी आपने ली।
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
दूसरा दिन
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
पिछले दिन की कहानी पर एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति कराई जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए,आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं।
घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूह में बात चीत करेंगे। पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुनः किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न
1. जब कोई निर्णय लेने के लिए आपसे मदद लेता है तब आप कैसा महसूस करते हैं?
2. (स्वयं निर्णय लेने से आप अपने द्वारा किए गए कार्य की पूरी ज़िम्मेदारी ले पाते हैं।) ऐसे ही किसी उदाहरण को साझा करें जब आपको यह लगा हो कि किए गए कार्य का परिणाम आपकी अपनी ज़िम्मेदारी है।
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
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समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
कहानी
एक आदमी और उसका बारह वर्ष का बेटा अपने गधे के साथ शहर की तरफ जा रहे थे। उनको इस तरह चलते देखकर राह चलते लोग हंसने लगे। एक व्यक्ति ने उनसे कहा," गधे के होते हुए भी तुम लोग पैदल जा रहे हो।" यह सुनकर पिता ने बेटे को गधे पर बिठा दिया।
कुछ आगे जाने पर उनको कुछ दूसरे लोगों ने ताना मारते हुए कहा,"कितनी शर्म की बात है बेटा गधे पर बैठा है ,पिता पैदल चल रहा है।” उन दोनों को लगा कि लोग सही कह रहे हैं इसलिए अब पिता गधे पर बैठ गया और बेटा पैदल चलने लगा।
कुछ आगे बढ़े तो किसी राहगीर ने कहा," यह आदमी कैसे मजे से गधे पर बैठा है और बच्चे को पैदल दौड़ा रहा है। बेचारा बच्चा कैसा हांफ रहा है।”
इस तरह लोगों के ताने और व्यंग सुनकर, दुखी होते हुए और बार-बार अपना स्थान बदलते हुए वे शहर की ओर चले गए।
चर्चा की दिशा
हमें अपने जीवन में बहुत बार कोई न कोई निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती है। कभी कभी ऐसे में अपने आप को सक्षम नहीं पाते क्योंकि हम में आत्मविश्वास की कमी रहती है या हमें अपने आस पास दूसरे लोगों के द्वारा गलत ठहराए जाने का डर बना रहता है।हम अक्सर सही निर्णय नहीं ले पाते क्योंकि ,"लोग क्या कहेंगे" के प्रति चिंतित रहते हैं।परंतु यदि हमें सही की समझ हो तो हमारा विश्वास बना रहेगा और हमारे निर्णय किसी ठोस बात पर आधारित होंगे।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न
1. रोजमर्रा की जिन्दगी से उदाहरण या घटनाएँ साझा करिए जब आपको निर्णय लेने में मुश्किल हुई है?
2. निर्णय न ले पाने की स्थिति में आप कैसे महसूस करते हैं?
3. आप कब अपने कार्यों में दूसरों के द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करते हैं?(शिक्षक के लिये हिंट:जब आप निर्णय लेने में अक्षम होते हैं तब आप अलग अलग लोगों के जानकारी/सुझाव सुनते हैं)
4. हममें सही निर्णय लेने का आत्मविश्वास कैसे आता है? (शिक्षक के लिये hint: समझ और स्पष्टता से। यही हमेशा रहने वाली खुशी का आधार है)
घर जाकर देखो, पूछो समझो (विद्यार्थियों के लिए)
अपने आस पास देखने का प्रयास करें कि कौन कौन निर्णय ले पाता है और स्वयं की जांच भी करें कि कब कब आपने कोई निर्णय लिया और उसके फल की भी जिम्मेदारी आपने ली।
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
दूसरा दिन
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए
पिछले दिन की कहानी पर एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति कराई जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए,आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं।
घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूह में बात चीत करेंगे। पहले दिन के चिंतन के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों के लिए पुनः किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न
1. जब कोई निर्णय लेने के लिए आपसे मदद लेता है तब आप कैसा महसूस करते हैं?
2. (स्वयं निर्णय लेने से आप अपने द्वारा किए गए कार्य की पूरी ज़िम्मेदारी ले पाते हैं।) ऐसे ही किसी उदाहरण को साझा करें जब आपको यह लगा हो कि किए गए कार्य का परिणाम आपकी अपनी ज़िम्मेदारी है।
कक्षा के अंत में एक 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें
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