गतिविधि का उद्देश्य: अपनी मान्यताओं (beliefs) के प्रति सजग रहना और गुस्से को अपनी कमजोरी के रूप में पहचानना।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
आवश्यक सामग्री: किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं है।
शिक्षक के लिए नोट:
सभी को ऐसा लगता है कि गुस्सा आना स्वाभाविक प्रक्रिया है और हमारी ताकत है।परन्तु यदि ध्यान दें तो समझ आता है कि गुस्सा स्वाभाविक नहीं है और न ही यह हमारी ताकत है। किसी भी बात पर प्रतिक्रिया रूप में गुस्सा करने से काम /सम्बन्ध बिगड़ने की अधिक संभावना रहती है।यदि किसी बात पर प्रतिक्रिया न करके सोच समझकर निर्णय लेकर सही व्यवहार प्रदर्शित कर पाएँ तो सम्बन्ध मधुर बने रहेंगे और इससे खुशी भी मिलेगी।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
गतिविधि के चरण:
1. कोई भी कार्य आप गुस्से में अच्छे से कर पाते है या शाँत मन से? इस प्रश्न को किसी घटना के साथ जोड़ कर चर्चा में लायें।
2. आपको गुस्सा कब आता है? जब आप कोई कार्य कर पाते है तब आपको गुस्सा आता है या जब नहीं कर पाते तब आपको गुस्सा आता है?
3. जब आपसे कोई गुस्सा दिखाकर काम करवाता है तो आपको कैसा लगता है?
4. आपने जब किसी को गुस्सा दिखाकर अपनी बात मनवायी तो उसे कैसा लगा होगा ?
5. क्या बिना गुस्सा किए काम करवाए जा सकते हैं? कैसे?
इन प्रश्नों के आधार पर हुई चर्चा से यदि किसी विद्यार्थी का मत बदल जाए तो उसे अपना समूह बदलने का अवसर दें और देखें कि क्या किसी मुद्दे पर गहराई से चर्चा करने पर जो मान्यताएँ सही नहीं हैं, वे बदलती हैं।
क्या करें और क्या न करें:
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समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
आवश्यक सामग्री: किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं है।
शिक्षक के लिए नोट:
सभी को ऐसा लगता है कि गुस्सा आना स्वाभाविक प्रक्रिया है और हमारी ताकत है।परन्तु यदि ध्यान दें तो समझ आता है कि गुस्सा स्वाभाविक नहीं है और न ही यह हमारी ताकत है। किसी भी बात पर प्रतिक्रिया रूप में गुस्सा करने से काम /सम्बन्ध बिगड़ने की अधिक संभावना रहती है।यदि किसी बात पर प्रतिक्रिया न करके सोच समझकर निर्णय लेकर सही व्यवहार प्रदर्शित कर पाएँ तो सम्बन्ध मधुर बने रहेंगे और इससे खुशी भी मिलेगी।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
गतिविधि के चरण:
- कक्षा को निम्नलिखित दो समूहों में बाँटा जाए। समूह का चयन विद्यार्थी अपनी मान्यता के अनुसार स्वयं करेंगे।
- समूह 1 ( सहमत): इस समूह में वे विद्यार्थी होंगे जिनका पक्के तौर पर मानना है कि गुस्सा मेरी ताकत है। (यदि विद्यार्थियों को बात स्पष्ट न हो तो उन्हें यह कारण सुझा सकते हैं कि क्या यह ताकत है क्योंकि इसके द्वारा हम अपनी बातें मनवा पाते हैं और काम करवा पाते हैं।)
- समूह 2 (असहमत): इस समूह में वे विद्यार्थी होंगे जिनका पक्के तौर पर मानना है कि गुस्सा मेरी ताक़त नहीं है।
- सभी विद्यार्थी निर्धारित स्थान पर अपने-अपने समूह में अस्थाई तौर पर एकत्र होकर अपने मत के पक्ष में 5 मिनट तक चर्चा करें। चर्चा से निकले तर्कों को कोई एक विद्यार्थी अपनी कॉपी में लिखे। किसी समूह में विद्यार्थियों की संख्या अधिक है तो उस समूह को चर्चा के लिए छोटे समूहों में बाँटा जा सकता है
- निर्धारित समय पूरा होने पर प्रत्येक समूह को बारी-बारी से अपने स्थान पर रहते हुए 1-2 मिनट में अपने मत के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करने को कहा जाए।
- शिक्षक बोर्ड को दो हिस्सों में बाँटकर सभी समूहों के तर्कों के मुख्य बिंदु लिख सकते हैं।
- सभी की प्रस्तुति के बाद तर्कों के आधार पर अपना मत बदलने पर विद्यार्थियों को अपना समूह भी बदलने का अवसर दिया जाए।
1. कोई भी कार्य आप गुस्से में अच्छे से कर पाते है या शाँत मन से? इस प्रश्न को किसी घटना के साथ जोड़ कर चर्चा में लायें।
2. आपको गुस्सा कब आता है? जब आप कोई कार्य कर पाते है तब आपको गुस्सा आता है या जब नहीं कर पाते तब आपको गुस्सा आता है?
3. जब आपसे कोई गुस्सा दिखाकर काम करवाता है तो आपको कैसा लगता है?
4. आपने जब किसी को गुस्सा दिखाकर अपनी बात मनवायी तो उसे कैसा लगा होगा ?
5. क्या बिना गुस्सा किए काम करवाए जा सकते हैं? कैसे?
इन प्रश्नों के आधार पर हुई चर्चा से यदि किसी विद्यार्थी का मत बदल जाए तो उसे अपना समूह बदलने का अवसर दें और देखें कि क्या किसी मुद्दे पर गहराई से चर्चा करने पर जो मान्यताएँ सही नहीं हैं, वे बदलती हैं।
क्या करें और क्या न करें:
- सभी के तर्कों और बातों को सम्मानपूर्वक लिया जाए। ध्यान रखें कि यह कोई सही या ग़लत के आधार पर जीत-हार के लिए प्रतियोगिता नहीं है। अतः अंत में दिख रहे बड़े समूह के लिए यह उत्सव नहीं है बल्कि यह तो विचार के लिए उपलब्ध कराया गया अवसर है।
- यदि सभी एक निष्कर्ष तक नहीं पहुँचते हैं तो भी अपने निष्कर्ष न दें। स्वयं के विचारों और कार्य-व्यवहारों पर आगे से उनका ध्यान बना रहे, यह संदेश दे सकते हैं। अगले दिन या कुछ दिन बाद उनके परिवर्तित विचार पुनः साझा करवाए जा सकते हैं।
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- साँप सीढ़ी
- तीन कोने (Three corners)
- कितना सामान- कितना सम्मान
- आओ उपयोगिता बढ़ाएँ
- सहयोग
- साथी की अच्छी बात
- सामान महत्तवपूर्ण या लक्ष्य
- एक बार मैं, एक बार तुम
- आविष्कारों का उपहार
- ऐसे भी सोचें
- मेरी यात्रा क्या है?
- सम्मान/पहचान का आधार क्या
- मुझे अच्छा लगता है जब
- मेरी आवश्यकताएँ
- सुविधा के लिए नियम
- अच्छा है या नहीं
- गुस्सा- ताकत या कमज़ोरी
- करूँ या न करूँ
- मुझे खुशी हुई जब…
- अच्छा है या नहीं
- बूझो तो जानें
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