कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थी समस्याओं को समस्याएँ ना समझ कर एक अवसर की तरह देख पाएँगे और उनसे घबराने की बजाय उनके समाधान के बारे में सोचेंगे।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी
अकरम बहुत जल्दी घबरा जाता था। जब भी उसके सामने कोई समस्या आती, तो वह रोने लगता। यह देखकर उसके पापा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वह चाहते थे कि अकरम समस्याओं को देखकर घबराए नहीं बल्कि उन्हें दूर करने के बारे में सोचे। एक दिन फिर उन्होंने अकरम को रोते हुए देखा। वह उसके पास गए और उसके सिर पर हाथ रखकर प्यार से पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” उसने कहा,“मैं पिछले हफ़्ते बीमारी के कारण विद्यालय नहीं जा पाया ,तब होमवर्क पूरा करने के लिए अपने मित्र सुरजीत से कॉपी ली थी। ग़लती से उसकी कॉपी पर दूध गिर गया और वह कॉपी खराब हो गई है।”
पापा ने उसे समझाते हुए कहा कि रोने से तो कॉपी ठीक हो नहीं जाएगी। यदि ध्यान से सोचोगे तो समस्या का कोई ना कोई समाधान तुम अवश्य निकाल लोगे। समस्याओं के हल हमारे पास ही होते हैं। अकरम ने कहा, "क्या सचमुच मेरे पास समस्या का हल है?"
हां !हर समस्या का हल तो होता ही है। हमें समस्या को हर पहलू से देखना होगा। ऐसा करने पर समाधान के कई विकल्प हमारे सामने होंगे। चलो तुम ही बताओ! इस समस्या के क्या-क्या समाधान हो सकते हैं?"
पापा की बात सुनकर अकरम ने कुछ देर विचार किया, फिर बोला, “ मैं दो-तीन दिन तक स्कूल ही नहीं जाता। तब तक सुरजीत भूल ही जायेगा कि मैंने उसकी कॉपी ली है।” पापा के चेहरे के भाव बदलते देख झट से बोला, “मैं सुरजीत को यह कहूँ कि उसकी कॉपी खो गयी”।
फिर बोला, “नहीं पापा, सबसे बढ़िया होगा कि मैं उसका सारा काम एक नई कॉपी में कर दूँ और सारी बात उसे बताते हुए उसे यह नई कॉपी दे दूं”।
ऐसा कहते ही अकरम ने दराज़ से नई कॉपी निकाली और काम करना शुरू कर दिया। पिताजी मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गए।
अभी आधा ही काम हुआ था कि सुरजीत भी वहां आ पहुँचा। जब सुरजीत को अकरम ने सारी बात बताई तब सुरजीत ने कहा,” कोई बात नही भाई, ग़लती से जो हुआ सो हुआ। तुमने मेरा आधा काम तो कर दिया बाकी का काम मैं स्वयं कर लूँगा।
चर्चा की दिशा:
हम अक्सर समस्याएँ आने पर घबरा जाते हैं lसमस्याएँ पहाड़ की तरह हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। हम खुद को या औरों को उस समस्या के लिए जिम्मेदार मान कर कोसते रहते हैं जबकि ऐसे में यदि हमारा ध्यान समस्या से निपटने के लिए विभिन्न विकल्पों पर रहे तो हम काफी बेहतर स्थिति में हो सकते हैं l ऐसे निरंतर प्रयास से ही हमें समस्याएँ एक चुनौती की तरह लगेंगी और हम उन्हें बेहतर तरीके से सुलझाने में सक्षम होंगे और समाधान मिलने पर खुश हो पाएँगे।
चर्चा के लिए प्रश्न:
1अपनी कोई ऐसी घटना बताओ जब -जब आप दुखी हुए हो।
2 जब आपके सामने कोई समस्या आती है तो आप क्या करते हैं? उदाहरण देकर बताएं।
3 ऐसा कब हुआ कि आप अपने जीवन में किसी समस्या को लेकर परेशान थे और ऐसे में आपने समस्या के विभिन्न विकल्पों के बारे में सोचा, विस्तार से बताएं।
4 कक्षा में साझा की गई समस्याओं के क्या- क्या समाधान हो सकते हैं?
घर जाकर देखो ,पूछो, समझो(विद्यार्थियों के लिए):
रोजमर्रा के जीवन में ऐसी छोटी मोटी घटनाएँ होती रहती हैं जिनके समाधान पर ध्यान न जाने से हमें वह समस्याएँ लगती हैं। घर जा कर यह ध्यान दें कि घर के सदस्यों के सामने ऐसी कौन सी स्थितियां आती हैं जो उन्हें समस्याएँ लगती हैं। यह भी समझने की कोशिश करें कि वह समस्याओं से केवल परेशान होते हैं या उनके समाधान के विकल्पों के बारे में भी सोचते हैं।
कक्षा के अंत में 1- 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
पिछले दिन की कहानी की एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति की जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए, आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं।
घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूहां में बातचीत करेंगे।
पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों (जिन्होंने पहले दिन उत्तर न दिए हों) के लिए पुनः किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1 आपके आसपास ऐसे कौन से व्यक्ति हैं जो समस्याएँ आने पर घबराते नहीं है बल्कि शांत मन से उनके समाधान के बारे में सोचते हैं? उदाहरण देकर बताओ।
2 जब आप को कोई कठिनाई आती है तो कौन आपकी मदद करता है? उदाहरण देकर बताओ।
3 क्या समस्याओं के समाधान मिलने पर आप खुश हो जाते हैं। उदाहरण दे कर बताओ।
कक्षा के अंत में 1- 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी
अकरम बहुत जल्दी घबरा जाता था। जब भी उसके सामने कोई समस्या आती, तो वह रोने लगता। यह देखकर उसके पापा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वह चाहते थे कि अकरम समस्याओं को देखकर घबराए नहीं बल्कि उन्हें दूर करने के बारे में सोचे। एक दिन फिर उन्होंने अकरम को रोते हुए देखा। वह उसके पास गए और उसके सिर पर हाथ रखकर प्यार से पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” उसने कहा,“मैं पिछले हफ़्ते बीमारी के कारण विद्यालय नहीं जा पाया ,तब होमवर्क पूरा करने के लिए अपने मित्र सुरजीत से कॉपी ली थी। ग़लती से उसकी कॉपी पर दूध गिर गया और वह कॉपी खराब हो गई है।”
पापा ने उसे समझाते हुए कहा कि रोने से तो कॉपी ठीक हो नहीं जाएगी। यदि ध्यान से सोचोगे तो समस्या का कोई ना कोई समाधान तुम अवश्य निकाल लोगे। समस्याओं के हल हमारे पास ही होते हैं। अकरम ने कहा, "क्या सचमुच मेरे पास समस्या का हल है?"
हां !हर समस्या का हल तो होता ही है। हमें समस्या को हर पहलू से देखना होगा। ऐसा करने पर समाधान के कई विकल्प हमारे सामने होंगे। चलो तुम ही बताओ! इस समस्या के क्या-क्या समाधान हो सकते हैं?"
पापा की बात सुनकर अकरम ने कुछ देर विचार किया, फिर बोला, “ मैं दो-तीन दिन तक स्कूल ही नहीं जाता। तब तक सुरजीत भूल ही जायेगा कि मैंने उसकी कॉपी ली है।” पापा के चेहरे के भाव बदलते देख झट से बोला, “मैं सुरजीत को यह कहूँ कि उसकी कॉपी खो गयी”।
फिर बोला, “नहीं पापा, सबसे बढ़िया होगा कि मैं उसका सारा काम एक नई कॉपी में कर दूँ और सारी बात उसे बताते हुए उसे यह नई कॉपी दे दूं”।
ऐसा कहते ही अकरम ने दराज़ से नई कॉपी निकाली और काम करना शुरू कर दिया। पिताजी मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गए।
अभी आधा ही काम हुआ था कि सुरजीत भी वहां आ पहुँचा। जब सुरजीत को अकरम ने सारी बात बताई तब सुरजीत ने कहा,” कोई बात नही भाई, ग़लती से जो हुआ सो हुआ। तुमने मेरा आधा काम तो कर दिया बाकी का काम मैं स्वयं कर लूँगा।
चर्चा की दिशा:
हम अक्सर समस्याएँ आने पर घबरा जाते हैं lसमस्याएँ पहाड़ की तरह हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। हम खुद को या औरों को उस समस्या के लिए जिम्मेदार मान कर कोसते रहते हैं जबकि ऐसे में यदि हमारा ध्यान समस्या से निपटने के लिए विभिन्न विकल्पों पर रहे तो हम काफी बेहतर स्थिति में हो सकते हैं l ऐसे निरंतर प्रयास से ही हमें समस्याएँ एक चुनौती की तरह लगेंगी और हम उन्हें बेहतर तरीके से सुलझाने में सक्षम होंगे और समाधान मिलने पर खुश हो पाएँगे।
चर्चा के लिए प्रश्न:
1अपनी कोई ऐसी घटना बताओ जब -जब आप दुखी हुए हो।
2 जब आपके सामने कोई समस्या आती है तो आप क्या करते हैं? उदाहरण देकर बताएं।
3 ऐसा कब हुआ कि आप अपने जीवन में किसी समस्या को लेकर परेशान थे और ऐसे में आपने समस्या के विभिन्न विकल्पों के बारे में सोचा, विस्तार से बताएं।
4 कक्षा में साझा की गई समस्याओं के क्या- क्या समाधान हो सकते हैं?
घर जाकर देखो ,पूछो, समझो(विद्यार्थियों के लिए):
रोजमर्रा के जीवन में ऐसी छोटी मोटी घटनाएँ होती रहती हैं जिनके समाधान पर ध्यान न जाने से हमें वह समस्याएँ लगती हैं। घर जा कर यह ध्यान दें कि घर के सदस्यों के सामने ऐसी कौन सी स्थितियां आती हैं जो उन्हें समस्याएँ लगती हैं। यह भी समझने की कोशिश करें कि वह समस्याओं से केवल परेशान होते हैं या उनके समाधान के विकल्पों के बारे में भी सोचते हैं।
कक्षा के अंत में 1- 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
पिछले दिन की कहानी की एक बार पूरी तरह से कक्षा में पुनरावृत्ति की जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए, आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं।
घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूहां में बातचीत करेंगे।
पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों (जिन्होंने पहले दिन उत्तर न दिए हों) के लिए पुनः किया जा सकता है।
चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1 आपके आसपास ऐसे कौन से व्यक्ति हैं जो समस्याएँ आने पर घबराते नहीं है बल्कि शांत मन से उनके समाधान के बारे में सोचते हैं? उदाहरण देकर बताओ।
2 जब आप को कोई कठिनाई आती है तो कौन आपकी मदद करता है? उदाहरण देकर बताओ।
3 क्या समस्याओं के समाधान मिलने पर आप खुश हो जाते हैं। उदाहरण दे कर बताओ।
कक्षा के अंत में 1- 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
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A very nice story narrated in a simple manner and gives a strong message to not get scared but face the problems and find solutions. It will surely help the students to understand the need to find solutions to the problems and never run away from it.
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