7. रूपम की पहिया कुर्सी

कहानी का उद्देश्य: सहयोग करके हम घर,विद्यालय,आस पड़ोस, देश और विश्व में अच्छे वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक

कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

कहानी:
रूपम और कंचन दो सहेलियाँ थीं। उनके घर भी आस पास ही थे ।रोज़ सुबह रूपम अपनी पहिया कुर्सी में बैठकर इधर उधर घूमती हुई कंचन व अन्य विद्यार्थियों को विद्यालय जाते हुए देखती और मन ही मन सोचती, “काश! मैं भी इनके साथ विद्यालय जा पाती!” उधर कंचन बार-बार यही सोचती कि रूपम स्कूल क्यों नहीं जाती। एक बार उसने हिम्मत करके रूपम से इस बारे में बात की, तब रुपम ने बताया कि बचपन में पोलियो के कारण उसकी टांगें खराब हो गई थी ।तभी से उसकी स्कूल जानें की इच्छा मन में ही रह गई।
एक दिन कक्षा में टीचर ने बताया कि सबको घर के आस-पास के हर बच्चे को विद्यालय लाना है। तब कंचन ने टीचर को रूपम के बारे में बताया। और पूछा कि क्या रूपम भी विद्यालय में पढ़ने के लिए आ सकती है। टीचर ने कहा, “क्यों नहीं, हर बच्चे को पढ़ने का समान अधिकार है।”यह सुनकर कंचन खुश हो गई।
वह घर जाते ही बैग रख कर बड़े उत्साह से रूपम के घर गई और उससे बोली,”मैं कल तुम्हें अपने साथ ले कर जाऊंगी।”
अगले दिन रुपम कंचन के साथ विद्यालय गई। उसका दाखिला हो गया। कक्षा के सभी विद्यार्थियों ने उसका स्वागत किया और हर काम में उसकी मदद करने लगे। कक्षा में बैठने के बाद रूपम सोचने लगी कि मैं सिर्फ पहिया कुर्सी को अपनी सहेली मानती थी और सोचती थी कि कोई मेरी मदद नहीं करेगा। परंतु यहाँ तो सभी विद्यार्थी कितने अच्छे हैं। सब एक दूसरे की मदद कर रहे हैं।जैसे ही छुट्टी की घंटी बजी कंचन, अंजली और मोनिका रूपम की कुर्सी लेकर आ गयीं । रूपम को सहारा देकर उसकी पहिया कुर्सी पर बिठाया,उसका सामान उठाया और उसे अपने साथ लेकर स्कूल गेट की तरफ चल पड़े। रूपम सोचने लगी, अब केवल पहिया कुर्सी ही उसके साथ नहीं, बल्कि सभी उसके साथ हैं ।

चर्चा की दिशा:
(दूसरों की मदद करने से हम अपनी उपयोगिता पहचान पाते हैं और हमे खुशी मिलती है। हम अपने कार्यों में इतने व्यस्त न हों कि अपने आस पास के लोगों की आवश्यकताओं का हमें पता भी न चले। बहुत बार आवश्यकता पड़ने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को नहीं बता पाता क्योंकि वह दूसरे व्यक्ति को कष्ट देना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति में अपनी आंखें खुली रखना तथा दूसरे को यह एहसास दिलाना कि ज़रूरत के समय आप उपलब्ध है, यह अति आवश्यक हो जाता है।
”जियो और जीने दो” के स्थान पर “जीने दो और जियो” की भावना को समझ पाएँ क्योंकि जब सभी जीने दो को प्राथमिकता दे पाएँगे तो सभी को जीने के लिए सही वातावरण उपलब्ध हो जाएगा।

चर्चा के लिए प्रश्न:
1 यदि आप कंचन की जगह होते तो रूपम की सहायता और किस प्रकार से करते?
2 क्या आप किसी ऐसे विद्यार्थी को जानते हैं जो विद्यालय आने में असमर्थ है? क्या आपने कभी उसकी किसी भी प्रकार से सहायता करने की सोची? यदि हां तो आपने क्या कदम उठाया।

घर जाकर देखो ,पूछो,समझो(विद्यार्थियों के लिए):
ध्यान दें कि घर में कब-कब सभी सदस्य आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे का सहयोग करते हैं। अपने-अपने काम में व्यस्त होने के बाद भी ऐसी स्थिति में समय निकाल कर सहयोग देते हैं और दूसरे का मनोबल बढ़ाते है।

कक्षा के अंत में 1- 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

दूसरा दिन:

कक्षा की शुरुआत दो-तीन मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।

पिछले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति की जाए। कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा की जाए, आवश्यकता होने पर शिक्षक उसमें सहयोग कर सकते हैं।
घर से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिन के चर्चा के प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी छोटे समूहों में बातचीत करेंगे।
पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग शेष विद्यार्थियों(जिन्होंने पहले दिन उत्तर न दिए हों)के लिए पुनः किया जा सकता है।

चर्चा के लिए कुछ अन्य प्रश्न:
1 क्या आपने कभी अपने किसी साथी को सहयोग दिया? क्यों और कैसे?
2 क्या आपके किसी साथी ने कभी आपको सहयोग दिया है? कब और कैसे?
3 किसी की मदद करके आपको कैसा लगता है?

कक्षा के अंत में 1- 2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।

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  1. माँ का चश्मा
  2. समझा तो जाना
  3. राजू की नीयत
  4. असमंजस
  5. समस्या या समाधान
  6. छोटी-सी पर मोटी-सी बात
  7. रूपम की पहिया कुर्सी
  8. नीता का पेन
  9. शाबाशी की कलम
  10. ख़ुश व्यक्ति ख़ुशी बाँटता है
  11. मैं हूँ ना
  12. मेरे प्यारे पापा
  13. तैयारी
  14. आओ पिकनिक चलें
  15. मन की बात
  16. मैन विद ए स्टिकर
  17. तराना का छाता
  18. फ़र्क तो पड़ता है
  19. गिफ्ट रैप
  20. रोड ब्लॉक

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