उद्देश्य : बच्चों का ध्यान इस ओर जाए कि किसी भी मान्यता को जांच कर देखा जाए न कि बिना जाने माना जाए।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
रूचि रसोई में बैठी अपनी मां को सेवइयाँ बनाते हुए बड़े ध्यान से देख रही थी। रूचि को सेवइयाँ बहुत पसंद थी। मां ने गैस के चूल्हे पर कड़ाही रख दी व उसमें गरम-गरम स्वादिष्ट सेवइयाँ बनाई। मां ने दूसरी कड़ाही में भी फिर से सेवइयाँ बनाई। फिर उसे पहली वाली कड़ाही में डाल दिया।
यह देख रूचि ने मां से पूछा कि उन्होंने सारी सेवइयाँ एक साथ पहली कड़ाही में ही क्यों नहीं बनाई। दो बार मेहनत क्यों की? मां ने बताया,मैंने तुम्हारी दादी को हमेशा दो कड़ाहियों में ही सेवइयाँ बनाते देखा है ।
रूचि दादी के पास गई और पूछा, “दादी, आप दो कड़ाहियों में सेवइयाँ क्यों बनाती थीं?” दादी ने बताया, “तुम्हारी परदादी भी ऐसे ही दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाया करती थीं,कुछ सोचकर ही करती रही होंगी।” रूचि दादी के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुई और कुछ सोचने लगी।
तभी मां ने प्लेट उसे देते हुए कहा, “ये लो तुम्हारी पसंदीदा सेवईयां।” सामने बैठे हुए दादाजी ने देखा रूचि का ध्यान सेवईयों की ओर गया ही नहीं। दादा जी ने पूछा, “क्यों आज सेवइयाँ खाने का मन नहीं है?” रूचि ने अपनी उलझन दादा जी के सामने रखी। दादा जी ने हँसते हुए बताया कि उन दिनों उनके पास छोटी कड़ाही हुआ करती थी और लोग ज्यादा हो जाते थे, इस कारण आपकी परदादी दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाया करती थीं। रूचि को अब पता चला कि उनके घर में सेवइयाँ दो कड़ाहियों में बनाने की परंपरा क्यों थी। रूचि दौड़कर मां के पास पहुंची और उन्हें दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाने का कारण बताया।
मां ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “चलो! दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाने से छुटकारा तो मिला।”
चर्चा की दिशा
विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर ले जाया जाए कि परिवार व समाज में कई वर्षों से कुछ मान्यताएँ चली आ रही हैं। जब वे मान्यताएँ शुरू हुई होंगी तब उनके कुछ कारण रहे होंगे। इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को जागरूक किया जाए कि इन मान्यताओं को बिना समझे मानते रहने के बदले हमें आज की परिस्थितियों में इनका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। बिना कारण जाने, मानी गई बातें आस्था या डर का कारण बनती हैं, जबकि कारण का पता होना विश्वास बढ़ाता है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
1. आप रुचि की जगह होते तो क्या करते? ऐसा आप क्यों करते?
2. जब आप किसी ऐसे काम को होते देखते हैं जिसको करने के पीछे कोई ठोस वजह नहीं है, तब आप क्या करते हैं तथा क्यों? साझा करें।
3. क्या आप अपने आसपास ऐसे काम होते हुए देखते हैं जिसका कारण आपको नहीं पता? साझा करें।
4. आप अपने में ऐसी कौन सी मान्यताएँ देखते हैं जिसका कारण आपको नहीं पता।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
समय: कम से कम दो दिन अथवा शिक्षक के संतुष्ट होने तक
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
रूचि रसोई में बैठी अपनी मां को सेवइयाँ बनाते हुए बड़े ध्यान से देख रही थी। रूचि को सेवइयाँ बहुत पसंद थी। मां ने गैस के चूल्हे पर कड़ाही रख दी व उसमें गरम-गरम स्वादिष्ट सेवइयाँ बनाई। मां ने दूसरी कड़ाही में भी फिर से सेवइयाँ बनाई। फिर उसे पहली वाली कड़ाही में डाल दिया।
यह देख रूचि ने मां से पूछा कि उन्होंने सारी सेवइयाँ एक साथ पहली कड़ाही में ही क्यों नहीं बनाई। दो बार मेहनत क्यों की? मां ने बताया,मैंने तुम्हारी दादी को हमेशा दो कड़ाहियों में ही सेवइयाँ बनाते देखा है ।
रूचि दादी के पास गई और पूछा, “दादी, आप दो कड़ाहियों में सेवइयाँ क्यों बनाती थीं?” दादी ने बताया, “तुम्हारी परदादी भी ऐसे ही दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाया करती थीं,कुछ सोचकर ही करती रही होंगी।” रूचि दादी के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुई और कुछ सोचने लगी।
तभी मां ने प्लेट उसे देते हुए कहा, “ये लो तुम्हारी पसंदीदा सेवईयां।” सामने बैठे हुए दादाजी ने देखा रूचि का ध्यान सेवईयों की ओर गया ही नहीं। दादा जी ने पूछा, “क्यों आज सेवइयाँ खाने का मन नहीं है?” रूचि ने अपनी उलझन दादा जी के सामने रखी। दादा जी ने हँसते हुए बताया कि उन दिनों उनके पास छोटी कड़ाही हुआ करती थी और लोग ज्यादा हो जाते थे, इस कारण आपकी परदादी दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाया करती थीं। रूचि को अब पता चला कि उनके घर में सेवइयाँ दो कड़ाहियों में बनाने की परंपरा क्यों थी। रूचि दौड़कर मां के पास पहुंची और उन्हें दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाने का कारण बताया।
मां ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “चलो! दो कड़ाहियों में सेवइयाँ बनाने से छुटकारा तो मिला।”
चर्चा की दिशा
विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर ले जाया जाए कि परिवार व समाज में कई वर्षों से कुछ मान्यताएँ चली आ रही हैं। जब वे मान्यताएँ शुरू हुई होंगी तब उनके कुछ कारण रहे होंगे। इस कहानी और प्रश्नों के माध्यम से विद्यार्थियों को जागरूक किया जाए कि इन मान्यताओं को बिना समझे मानते रहने के बदले हमें आज की परिस्थितियों में इनका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। बिना कारण जाने, मानी गई बातें आस्था या डर का कारण बनती हैं, जबकि कारण का पता होना विश्वास बढ़ाता है।
पहला दिन:
चर्चा के लिए प्रश्न
- क्या आप भी इसी तरह का कोई काम करते हैं जिसे करने का कारण आप नहीं जानते?
- क्या आप भी कुछ बातों को इसलिए मानते हैं क्योंकि वे वर्षों से ऐसे ही मानी जा रही हैं? यदि हां तो क्यों? यदि नहीं तो क्यों? साझा करें।
- अपनी जिज्ञासाओं को आप अपने साथ जुड़े किन किन लोगों से पूछ पाते हैं? साझा करें।
- विद्यार्थियों से घर जाकर इस कहानी पर चर्चा करने और परिवार के अन्य सदस्यों के विचार व अनुभव जानने के लिए कहा जाए।
- हम सब अपने घर तथा आस पास देखें कि कितने लोग बिना जाने किसी पुरानी परंपरा को अब भी मानते हैं?
दूसरा दिन:
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
- कक्षा में पिछ्ले दिन की कहानी की पुनरावृत्ति विद्यार्थियों द्वारा करवाई जाए। पुनरावृत्ति के लिए एक या कई विद्यार्थियों से कहानी सुनना, रोल प्ले करना, जोड़े में एक-दूसरे को कहानी सुनाना आदि विविध तरीके अपनाए जा सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षक कहानी की पुनरावृत्ति में विद्यार्थियों का सहयोग कर सकते हैं ।
- घर से मिले फीडबैक को विद्यार्थी छोटे समूहों में साझा कर सकते हैं। कुछ विद्यार्थियों को घर के अनुभव कक्षा में साझा करने के अवसर दिए जाएँ।
- पहले दिन के चर्चा के प्रश्नों का प्रयोग उन विद्यार्थियों के लिए पुनः किया जा सकता है जो पिछले दिन अनुपस्थित रहे हों या समय की कमी के कारण प्रश्नों के उत्तर न दे पाएँँ हों।
1. आप रुचि की जगह होते तो क्या करते? ऐसा आप क्यों करते?
2. जब आप किसी ऐसे काम को होते देखते हैं जिसको करने के पीछे कोई ठोस वजह नहीं है, तब आप क्या करते हैं तथा क्यों? साझा करें।
3. क्या आप अपने आसपास ऐसे काम होते हुए देखते हैं जिसका कारण आपको नहीं पता? साझा करें।
4. आप अपने में ऐसी कौन सी मान्यताएँ देखते हैं जिसका कारण आपको नहीं पता।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
----------------------
- फाइनल मैच
- उपयोगिता ही सौंदर्य
- रूचि की सेवइयाँ
- श्रम का महत्व
- वीडियो गेम
- बुजुर्गो का साथ
- घड़ी की टिक टिक
- एक बाल्टी पानी
- प्राची में बदलाव
- पिता को पत्र
- दादी बनी टीचर दादी
- एक कदम बदलाव की ओर
- सच्ची ख़ुशी जोड़ने में है तोड़ने में नहीं
- भैया! कुछ भी कठिन नहीं
- बिल्लू और गुल्लू
- बदलाव कौन करेगा
- जली हुई रोटी
- गीता मैम से ऊँचा टावर
- एक जूता
- शिक्षा क्यों
- तितली क्यों नहीं उड़ी
No comments:
Post a Comment