कहानी का उद्देश्य: परिवार में संबंधों में ख़ुशी की ओर विद्यार्थी का ध्यान जाए। घर के बुजुर्गों के साथ उनके संबंध प्रगाढ़ हों।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
एक दिन जब अमरेश छत पर गया तो देखा कि दादी जी गमलों में पानी दे रही थीं और दादाजी अपनी कुर्सी पर खोए खोए से बैठे थे। अमरेश ने प्यार से पुकारा, “दादाजी!” यह सुन वे ज़रा सा मुस्कुराए। दोनों ने थोड़ी बातचीत की। फिर वे चुप हो गए। अचानक उनके मुँह से निकला, “कितने दिन हो गए...बेटे की चिट्ठी नहीं आई!”
अमरेश ने कहा, “दादीजी! हम तो दादाजी के साथ ही रहते हैं! फिर चिट्ठी की कोई ज़रूरत है क्या?”
दादीजी ने बताया, “ये तो दादाजी की याददाश्त की समस्या है। जब इनकी याददाश्त ठीक थी, तब आपके पापाजी हॉस्टल में रहते थे और चिट्ठी लिखा करते थे। इन्हें शायद लगता है कि वो अब भी दूर हैं, और चिट्ठी भेजेंगे।“
अमरेश नीचे गया और थोड़ी देर बाद शोर मचाते हुए लौटा, “चिट्ठी आई है! दादाजी के नाम की चिट्ठी आई है!” और उसने चिट्ठी दादाजी को थमा दी। दादाजी ने चश्मा लगाकर चिट्ठी पढ़ी। बड़े-बड़े अक्षरों में और टूटी-फूटी भाषा में लिखी वह चिट्ठी दादाजी के मन को छू गई। उनका चेहरा खिल उठा।
अब तो जैसे अमरेश को एक नया खेल मिल गया था। वह दादाजी के नाम अक्सर चिट्ठी लिखने लगा, जिसे वह कभी दादाजी को थमा देता, तो कभी ख़ुद ही पढ़कर सुना देता। दादा-पोता इस प्यारे खेल से बहुत ख़ुश थे।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. क्या आप अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ वक़्त बिताते हैं? कैसे?
2. उन्हें कौन-सी बातों/काम से ख़ुशी मिलती है?
3. उनके साथ बिताए कोई ख़ुशी के पल साझा कीजिए।
4. आपके दादा-दादी या नाना-नानी को किन बातों से परेशानी होती है या दुःख होता है? आप उसे कैसे दूर करते हैं या कर सकते हैं?
चर्चा की दिशा:
बहुत सारे घरों में बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। उनकी ओर बच्चों का ध्यान चला जाए और वे कुछ पल उनके साथ बिताने को प्रेरित हों, ऐसी इस चर्चा से आशा है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज घर जाकर अपने दादा-दादी, नाना-नानी या किसी बुजुर्ग के साथ बैठकर उनके बचपन की बातें करें। यदि वे कहीं और रहते हों, तो फ़ोन पर बात करने का प्रयास करें या चिट्ठी लिखें। कल हम क्लास में अपने घर पर हुई बातों में से जो सुनाने का मन हो वो सबको सुनाएँगे।
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कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
एक दिन जब अमरेश छत पर गया तो देखा कि दादी जी गमलों में पानी दे रही थीं और दादाजी अपनी कुर्सी पर खोए खोए से बैठे थे। अमरेश ने प्यार से पुकारा, “दादाजी!” यह सुन वे ज़रा सा मुस्कुराए। दोनों ने थोड़ी बातचीत की। फिर वे चुप हो गए। अचानक उनके मुँह से निकला, “कितने दिन हो गए...बेटे की चिट्ठी नहीं आई!”
अमरेश ने कहा, “दादीजी! हम तो दादाजी के साथ ही रहते हैं! फिर चिट्ठी की कोई ज़रूरत है क्या?”
दादीजी ने बताया, “ये तो दादाजी की याददाश्त की समस्या है। जब इनकी याददाश्त ठीक थी, तब आपके पापाजी हॉस्टल में रहते थे और चिट्ठी लिखा करते थे। इन्हें शायद लगता है कि वो अब भी दूर हैं, और चिट्ठी भेजेंगे।“
अमरेश नीचे गया और थोड़ी देर बाद शोर मचाते हुए लौटा, “चिट्ठी आई है! दादाजी के नाम की चिट्ठी आई है!” और उसने चिट्ठी दादाजी को थमा दी। दादाजी ने चश्मा लगाकर चिट्ठी पढ़ी। बड़े-बड़े अक्षरों में और टूटी-फूटी भाषा में लिखी वह चिट्ठी दादाजी के मन को छू गई। उनका चेहरा खिल उठा।
अब तो जैसे अमरेश को एक नया खेल मिल गया था। वह दादाजी के नाम अक्सर चिट्ठी लिखने लगा, जिसे वह कभी दादाजी को थमा देता, तो कभी ख़ुद ही पढ़कर सुना देता। दादा-पोता इस प्यारे खेल से बहुत ख़ुश थे।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. क्या आप अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ वक़्त बिताते हैं? कैसे?
2. उन्हें कौन-सी बातों/काम से ख़ुशी मिलती है?
3. उनके साथ बिताए कोई ख़ुशी के पल साझा कीजिए।
4. आपके दादा-दादी या नाना-नानी को किन बातों से परेशानी होती है या दुःख होता है? आप उसे कैसे दूर करते हैं या कर सकते हैं?
चर्चा की दिशा:
बहुत सारे घरों में बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। उनकी ओर बच्चों का ध्यान चला जाए और वे कुछ पल उनके साथ बिताने को प्रेरित हों, ऐसी इस चर्चा से आशा है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज घर जाकर अपने दादा-दादी, नाना-नानी या किसी बुजुर्ग के साथ बैठकर उनके बचपन की बातें करें। यदि वे कहीं और रहते हों, तो फ़ोन पर बात करने का प्रयास करें या चिट्ठी लिखें। कल हम क्लास में अपने घर पर हुई बातों में से जो सुनाने का मन हो वो सबको सुनाएँगे।
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- मिलजुल कर
- लंच ब्रेक
- आलू का पराँठा
- रोहन की जुराबें
- एक नई धुन
- मन का बोझ
- एक जूता
- दो दोस्त
- किसकी पेंसिल अच्छी?
- एक चिट्ठी दादाजी के नाम
- चंदू की सूझ-बूझ
- थोड़ी सी मस्ती
- फूलदान या गमला
- दोस्ती की दौड़
- मैं भी मदद करूँगा
- वो पैसे
- मेरे दोस्त की नाव
- बीच का पन्ना
- मैजिक स्ट्रॉ
- मोबाइल गेम
- हमारा प्यारा चाँद
- रोहित भैया का रॉकेट
- ऐसा क्यों?
- पिकनिक
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