कहानी का उददेश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस बात पर ले जाना कि पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों के दौरान भी सीखना होता है।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
रूही रोज़ अपनी नीली बॉल लेकर ठीक 6 बजे बाहर खेलने भाग जाती।
जब वो वापस आती, तो उसका बड़ा भाई बोलता, “पढ़ाई करले रूही, रोज़ खेलने भाग जाती है, कोई फ़ायदा नहीं है खेलने कूदने का!”
उनकी बात सुनकर वह बोलती, “अरे भैया, एक दिन मेरे साथ चलो, बहुत मज़ा आता है!”
पर भैया के दबाव में उसे शाम के समय भी कई बार पढ़ने बैठना पड़ता।
कुछ दिन सब ऐसे ही चलता रहा।
एक दिन, रोहित अपने साइंस प्रोजेक्ट के लिए एक रॉकेट बना रहा था।
बार-बार उसका रॉकेट गिर जा रहा था। रूही यह सब देख रही थी।
वह रोहित भैया के पास गयी और उनके साथ मिलकर उनका रॉकेट बना दिया।
रोहित भैया हैरान रह गए और रूही से पूछा, “तुमने रॉकेट सीधा खड़ा करने का तरीका कहां से सीखा?” तो रूही ने कहा, “पिट्ठू से! पार्क में पिठ्ठू खेलते हुए, मैं और मेरे दोस्त हमेशा बड़े पत्थरों को नीचे, और उनसे छोटे पत्थरों को ऊपर रखते हैं। साथ ही एक के ऊपर एक बीचों बीच रखते हैं। इससे सारे पत्थर टिके रहते हैं।”
अगली शाम को रूही किताबें खोलकर बैठ ही रही थी, कि रोहित उसकी नीली बॉल खुद लेकर आया और मुस्कुराकर बोला, “रूही, क्या आज मैं भी तुम्हारे साथ पार्क में खेल सकता हूँ?”
रूही ख़ुशी से उछल पड़ी।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. आपको क्या क्या आता है?
2. स्कूल में आप क्या क्या सीखते हैं?
3. आपको कुछ सीखना कैसा लगता है?
4. क्या आपने किताबों के अलावा कहीं और से भी कुछ सीखा? ऐसी कोई एक सीखी हुई बात बताइए?
चर्चा की दिशा :
यदि हम सजग रहते है तो जीवन मे निरंतर ही कुछ न कुछ सीखते रहते है, सही शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान नही है। विद्यार्थियों से चर्चा की जा सकती है कि किस प्रकार वे विभिन्न गतिविधियो के दौरान सजग रहकर कुछ न कुछ सीख ही रहे है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज हम अपने घर या पड़ोस में बड़े-बुजुर्गों से बात करके उनकी कोई एक बात जानने का प्रयास करेंगे जो उन्होंने किताबों के अलावा कहीं और से सीखा है।
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कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
रूही रोज़ अपनी नीली बॉल लेकर ठीक 6 बजे बाहर खेलने भाग जाती।
जब वो वापस आती, तो उसका बड़ा भाई बोलता, “पढ़ाई करले रूही, रोज़ खेलने भाग जाती है, कोई फ़ायदा नहीं है खेलने कूदने का!”
उनकी बात सुनकर वह बोलती, “अरे भैया, एक दिन मेरे साथ चलो, बहुत मज़ा आता है!”
पर भैया के दबाव में उसे शाम के समय भी कई बार पढ़ने बैठना पड़ता।
कुछ दिन सब ऐसे ही चलता रहा।
एक दिन, रोहित अपने साइंस प्रोजेक्ट के लिए एक रॉकेट बना रहा था।
बार-बार उसका रॉकेट गिर जा रहा था। रूही यह सब देख रही थी।
वह रोहित भैया के पास गयी और उनके साथ मिलकर उनका रॉकेट बना दिया।
रोहित भैया हैरान रह गए और रूही से पूछा, “तुमने रॉकेट सीधा खड़ा करने का तरीका कहां से सीखा?” तो रूही ने कहा, “पिट्ठू से! पार्क में पिठ्ठू खेलते हुए, मैं और मेरे दोस्त हमेशा बड़े पत्थरों को नीचे, और उनसे छोटे पत्थरों को ऊपर रखते हैं। साथ ही एक के ऊपर एक बीचों बीच रखते हैं। इससे सारे पत्थर टिके रहते हैं।”
अगली शाम को रूही किताबें खोलकर बैठ ही रही थी, कि रोहित उसकी नीली बॉल खुद लेकर आया और मुस्कुराकर बोला, “रूही, क्या आज मैं भी तुम्हारे साथ पार्क में खेल सकता हूँ?”
रूही ख़ुशी से उछल पड़ी।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. आपको क्या क्या आता है?
2. स्कूल में आप क्या क्या सीखते हैं?
3. आपको कुछ सीखना कैसा लगता है?
4. क्या आपने किताबों के अलावा कहीं और से भी कुछ सीखा? ऐसी कोई एक सीखी हुई बात बताइए?
चर्चा की दिशा :
यदि हम सजग रहते है तो जीवन मे निरंतर ही कुछ न कुछ सीखते रहते है, सही शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान नही है। विद्यार्थियों से चर्चा की जा सकती है कि किस प्रकार वे विभिन्न गतिविधियो के दौरान सजग रहकर कुछ न कुछ सीख ही रहे है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज हम अपने घर या पड़ोस में बड़े-बुजुर्गों से बात करके उनकी कोई एक बात जानने का प्रयास करेंगे जो उन्होंने किताबों के अलावा कहीं और से सीखा है।
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