कहानी का उद्देश्य: अपनी चीज़ों को व्यवस्थित रखने की ओर ध्यान ले जाना।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
रोहन जैसे ही स्कूल से लौटा, जूते-जुराब खोल एक तरफ़ फेंका; कपड़े बदले; फटाफट खाना खाया और पड़ोस में रहने वाले गुरप्रीत के यहाँ खेलने चला गया।
खेल-कूदकर शाम को लौटा; अपना होमवर्क किया, मम्मी-पापा से थोड़ी गपशप की, और खाना खा कर सो गया।
अगले दिन सुबह स्कूल जाने का वक़्त! उसकी जुराबें मिल नहीं रही थीं। वह पूरी तरह से तैयार ही था, पर बिना जुराब के जूते पहने कैसे! स्कूल के लिए देर हो रही थी। अब वह क्या करे?
(रोहन को ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए?)
क्या करता? बिना जुराब के ही जूते पहनकर वह स्कूल गया। उसे चलते हुए थोड़ा अटपटा तो लग रहा था। पर कोई और रास्ता भी तो न था!
दोपहर को उसके पापा उसे लेने स्कूल पहुँचे। उन्हें अपनी दुकान पर कुछ काम जल्दी निपटाना था, तो वे आज रोहन को लेकर पहले अपनी दुकान पर ही गए।
रोहन ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा। पापा कपड़ा काटने के लिए कैंची का इस्तेमाल करते और कैंची को दराज़ में रख देते, फिर कपड़े को सिलने के लिए सुई लेते और कपड़े को सिलकर सुई को अपने बगल में टंगे कपड़े में लगा देते। जब बार-बार यही होता देखा, तो रोहन ने अपने पापा से उसका कारण पूछा।
पापा ने कहा, “मैं चीज़ों को उनके स्थान पर रखता हूँ ताकि जब मुझे कोई चीज़ चाहिए तो वह आसानी से मिल सके।”
रोहन का ध्यान गया कि यदि उसने अपनी जुराबें कल ठीक से रखी होतीं, तो आज दिक्क़त नहीं हुई होती।
जब वह घर पहुँचा, उसने जूते उतारे और पलंग के नीचे रखे। मम्मी ने उसकी जुराबें ढूँढ रखी थीं। रोहन ने फ़ौरन उन्हें जूतों में रख दिया।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. अगर रोहन के पापा सुई और कैंची को सही जगह पर नहीं रखते तो क्या होता?
2. क्या आप भी अपना सामान सही/निर्धारित जगह पर रखते हैं? क्यों?
3. अगर हम अपने सामान को सही जगह पर नहीं रखेंगे तो क्या होगा?
चर्चा की दिशा:
व्यवस्थित रखी वस्तुएँ समय की बर्बादी और परेशानी से बचाती हैं। यह आदत न केवल वस्तुओं के बेहतर उपयोग सुनिश्चित करती है, बल्कि व्यक्तियों के बीच तालमेल से काम करने में भी मददगार होती है। विद्यार्थियों का ध्यान स्वयं के व्यवस्थित जीने की ओर चला जाए, इस आशय से यह चर्चा है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज हम अपने घर में ध्यान देंगे कि कब-कब हमने अपना सामान संभालकर उचित जगह पर रखा और कब-कब जहाँ-तहाँ रख दिया। कल हम अपनी बातें साझा करेंगे।
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कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
रोहन जैसे ही स्कूल से लौटा, जूते-जुराब खोल एक तरफ़ फेंका; कपड़े बदले; फटाफट खाना खाया और पड़ोस में रहने वाले गुरप्रीत के यहाँ खेलने चला गया।
खेल-कूदकर शाम को लौटा; अपना होमवर्क किया, मम्मी-पापा से थोड़ी गपशप की, और खाना खा कर सो गया।
अगले दिन सुबह स्कूल जाने का वक़्त! उसकी जुराबें मिल नहीं रही थीं। वह पूरी तरह से तैयार ही था, पर बिना जुराब के जूते पहने कैसे! स्कूल के लिए देर हो रही थी। अब वह क्या करे?
(रोहन को ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए?)
क्या करता? बिना जुराब के ही जूते पहनकर वह स्कूल गया। उसे चलते हुए थोड़ा अटपटा तो लग रहा था। पर कोई और रास्ता भी तो न था!
दोपहर को उसके पापा उसे लेने स्कूल पहुँचे। उन्हें अपनी दुकान पर कुछ काम जल्दी निपटाना था, तो वे आज रोहन को लेकर पहले अपनी दुकान पर ही गए।
रोहन ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा। पापा कपड़ा काटने के लिए कैंची का इस्तेमाल करते और कैंची को दराज़ में रख देते, फिर कपड़े को सिलने के लिए सुई लेते और कपड़े को सिलकर सुई को अपने बगल में टंगे कपड़े में लगा देते। जब बार-बार यही होता देखा, तो रोहन ने अपने पापा से उसका कारण पूछा।
पापा ने कहा, “मैं चीज़ों को उनके स्थान पर रखता हूँ ताकि जब मुझे कोई चीज़ चाहिए तो वह आसानी से मिल सके।”
रोहन का ध्यान गया कि यदि उसने अपनी जुराबें कल ठीक से रखी होतीं, तो आज दिक्क़त नहीं हुई होती।
जब वह घर पहुँचा, उसने जूते उतारे और पलंग के नीचे रखे। मम्मी ने उसकी जुराबें ढूँढ रखी थीं। रोहन ने फ़ौरन उन्हें जूतों में रख दिया।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
1. अगर रोहन के पापा सुई और कैंची को सही जगह पर नहीं रखते तो क्या होता?
2. क्या आप भी अपना सामान सही/निर्धारित जगह पर रखते हैं? क्यों?
3. अगर हम अपने सामान को सही जगह पर नहीं रखेंगे तो क्या होगा?
चर्चा की दिशा:
व्यवस्थित रखी वस्तुएँ समय की बर्बादी और परेशानी से बचाती हैं। यह आदत न केवल वस्तुओं के बेहतर उपयोग सुनिश्चित करती है, बल्कि व्यक्तियों के बीच तालमेल से काम करने में भी मददगार होती है। विद्यार्थियों का ध्यान स्वयं के व्यवस्थित जीने की ओर चला जाए, इस आशय से यह चर्चा है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज हम अपने घर में ध्यान देंगे कि कब-कब हमने अपना सामान संभालकर उचित जगह पर रखा और कब-कब जहाँ-तहाँ रख दिया। कल हम अपनी बातें साझा करेंगे।
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- मिलजुल कर
- लंच ब्रेक
- आलू का पराँठा
- रोहन की जुराबें
- एक नई धुन
- मन का बोझ
- एक जूता
- दो दोस्त
- किसकी पेंसिल अच्छी?
- एक चिट्ठी दादाजी के नाम
- चंदू की सूझ-बूझ
- थोड़ी सी मस्ती
- फूलदान या गमला
- दोस्ती की दौड़
- मैं भी मदद करूँगा
- वो पैसे
- मेरे दोस्त की नाव
- बीच का पन्ना
- मैजिक स्ट्रॉ
- मोबाइल गेम
- हमारा प्यारा चाँद
- रोहित भैया का रॉकेट
- ऐसा क्यों?
- पिकनिक
- दादी का जन्मदिन
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