कहानी का उद्देश्य: किसी से हुई गलती को सहजता से स्वीकार करते हुए बदलाव का अवसर उपलब्ध कराना और वस्तु से ज़्यादा महत्व संबंध को देना।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
आज स्कूल की छुट्टी का दिन था। अर्जुन अपने दोस्त सोनू के साथ उसके घर खेलने के लिए गया हुआ था। खेलते-खेलते पूरा दिन कैसे गुज़र गया, पता ही नहीं चला। शाम को चलते समय अर्जुन ने सोनू से कहा, “क्या मैं तुम्हारी यह पीले रंग की सुंदर-सी नाव अपने घर ले जा सकता हूँ? मैं इस नाव के साथ और खेलना चाहता हूँ।” सोनू ने अर्जुन की बात सुनकर बड़े ही प्यार से अपनी नाव अर्जुन को दी और कहा, “तुम इसे अपने घर अपने साथ ले जा सकते हो और जब तक तुम इससे खेलना चाहो तब तक खेल सकते हो। उसके बाद तुम मुझे वापस लौटा देना।” अर्जुन बहुत खुश हुआ और नाव को लेकर घर चल पड़ा।
अगले दिन सुबह का समय था। अर्जुन खाने की टेबल पर उदास बैठा था। तभी सामने की कुर्सी पर बैठे अर्जुन के दादा जी ने उस से पूछा, “अरे अर्जुन! क्या हुआ? आज तुम बहुत उदास दिख रहे हो।” अर्जुन ने अपने दिल की बात दादा जी को बताई, “कल मैं अपने दोस्त सोनू से एक नाव लाया था, मुझे अब वो कहीं मिल नहीं रही है। अब मैं क्या करूँ? मैं आज सोनू को क्या बताऊँगा कि उसकी नाव कहाँ गई।”
दादा जी और अर्जुन ने दोबारा नाव ढूँढी पर वह नहीं मिली।
दादा जी बोले, “अरे! अब क्या किया जाए?”
तभी अर्जुन को एक आइडिया आया। उसने बोला - “क्यों न मैं अपने दोस्त के लिए एक नई नाव लाकर उसे दे दूँ, जिससे मेरे दोस्त को बुरा न लगे।”
दादाजी ने अर्जुन से कहा, “चलो बाज़ार चलते हैं।”
अर्जुन दौड़ कर गया, अपनी गुल्लक लेकर उनके पास आ गया।
जब वह दुकान पहुँचा तो उसे अपना दोस्त सोनू भी वहाँ मिल गया।
अर्जुन ने बात छिपानी चाही। उसी समय दुकानदार ने पूछ लिया कि वो क्या लेना चाहता है।
अर्जुन ने एक पीले रंग की नाव की ओर इशारा किया।
सोनू ने कहा, “इस रंग की नाव तो मैंने कल ही तुम्हें दी थी। तो तुम यह दूसरी नाव क्यों ले रहे हो?“
अर्जुन ने उसे सारी बात बताई। सोनू ने कहा, “तुम चिंता मत करो अर्जुन। मेरे पास एक और नाव है, हम उससे भी तो खेल सकते हैं। नई नाव लेने की तुम्हें ज़रूरत नहीं है।”
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
● क्या आप भी अपनी चीज़ें अपने दोस्त को खेलने के लिए देते हैं? क्यों या क्यों नहीं?
● जब आपसे किसी का कुछ नुकसान हो जाता है तो आपको कैसा लगता है? तब आप क्या करते हैं?
● क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी से आपकी कोई चीज़ टूट गई हो या गुम हो गई हो? तब आपने क्या किया?
चर्चा की दिशा: मानव मूलतः गलती करना नहीं चाहता। और जो गलती होती भी है, वह उसकी समझ या योग्यता में कमी के कारण होती है। संबंधों में इस विश्वास के साथ जीने से किसी से हुई गलतियों के प्रति हम आक्रोश भरी प्रतिक्रिया नहीं देते। साथ ही स्नेह के साथ उसकी समझ और योग्यता विकसित करने के लिए अवसर उपलब्ध कराते हैं। इससे हम अनावश्यक कलह से बचते हैं और सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए) आज हम घर पर ध्यान देंगे कि यदि किसी से कोई नुकसान हो जाता है, तो हम उससे क्या बातें कहते हैं या हम क्या करते हैं? कल हम अपनी-अपनी बातें साझा करेंगे।
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कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की प्रक्रिया से की जाए।
कहानी:
आज स्कूल की छुट्टी का दिन था। अर्जुन अपने दोस्त सोनू के साथ उसके घर खेलने के लिए गया हुआ था। खेलते-खेलते पूरा दिन कैसे गुज़र गया, पता ही नहीं चला। शाम को चलते समय अर्जुन ने सोनू से कहा, “क्या मैं तुम्हारी यह पीले रंग की सुंदर-सी नाव अपने घर ले जा सकता हूँ? मैं इस नाव के साथ और खेलना चाहता हूँ।” सोनू ने अर्जुन की बात सुनकर बड़े ही प्यार से अपनी नाव अर्जुन को दी और कहा, “तुम इसे अपने घर अपने साथ ले जा सकते हो और जब तक तुम इससे खेलना चाहो तब तक खेल सकते हो। उसके बाद तुम मुझे वापस लौटा देना।” अर्जुन बहुत खुश हुआ और नाव को लेकर घर चल पड़ा।
अगले दिन सुबह का समय था। अर्जुन खाने की टेबल पर उदास बैठा था। तभी सामने की कुर्सी पर बैठे अर्जुन के दादा जी ने उस से पूछा, “अरे अर्जुन! क्या हुआ? आज तुम बहुत उदास दिख रहे हो।” अर्जुन ने अपने दिल की बात दादा जी को बताई, “कल मैं अपने दोस्त सोनू से एक नाव लाया था, मुझे अब वो कहीं मिल नहीं रही है। अब मैं क्या करूँ? मैं आज सोनू को क्या बताऊँगा कि उसकी नाव कहाँ गई।”
दादा जी और अर्जुन ने दोबारा नाव ढूँढी पर वह नहीं मिली।
दादा जी बोले, “अरे! अब क्या किया जाए?”
तभी अर्जुन को एक आइडिया आया। उसने बोला - “क्यों न मैं अपने दोस्त के लिए एक नई नाव लाकर उसे दे दूँ, जिससे मेरे दोस्त को बुरा न लगे।”
दादाजी ने अर्जुन से कहा, “चलो बाज़ार चलते हैं।”
अर्जुन दौड़ कर गया, अपनी गुल्लक लेकर उनके पास आ गया।
जब वह दुकान पहुँचा तो उसे अपना दोस्त सोनू भी वहाँ मिल गया।
अर्जुन ने बात छिपानी चाही। उसी समय दुकानदार ने पूछ लिया कि वो क्या लेना चाहता है।
अर्जुन ने एक पीले रंग की नाव की ओर इशारा किया।
सोनू ने कहा, “इस रंग की नाव तो मैंने कल ही तुम्हें दी थी। तो तुम यह दूसरी नाव क्यों ले रहे हो?“
अर्जुन ने उसे सारी बात बताई। सोनू ने कहा, “तुम चिंता मत करो अर्जुन। मेरे पास एक और नाव है, हम उससे भी तो खेल सकते हैं। नई नाव लेने की तुम्हें ज़रूरत नहीं है।”
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
● क्या आप भी अपनी चीज़ें अपने दोस्त को खेलने के लिए देते हैं? क्यों या क्यों नहीं?
● जब आपसे किसी का कुछ नुकसान हो जाता है तो आपको कैसा लगता है? तब आप क्या करते हैं?
● क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी से आपकी कोई चीज़ टूट गई हो या गुम हो गई हो? तब आपने क्या किया?
चर्चा की दिशा: मानव मूलतः गलती करना नहीं चाहता। और जो गलती होती भी है, वह उसकी समझ या योग्यता में कमी के कारण होती है। संबंधों में इस विश्वास के साथ जीने से किसी से हुई गलतियों के प्रति हम आक्रोश भरी प्रतिक्रिया नहीं देते। साथ ही स्नेह के साथ उसकी समझ और योग्यता विकसित करने के लिए अवसर उपलब्ध कराते हैं। इससे हम अनावश्यक कलह से बचते हैं और सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहता है।
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट, शांति से बैठकर आज की चर्चा के निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए) आज हम घर पर ध्यान देंगे कि यदि किसी से कोई नुकसान हो जाता है, तो हम उससे क्या बातें कहते हैं या हम क्या करते हैं? कल हम अपनी-अपनी बातें साझा करेंगे।
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- मिलजुल कर
- लंच ब्रेक
- आलू का पराँठा
- रोहन की जुराबें
- एक नई धुन
- मन का बोझ
- एक जूता
- दो दोस्त
- किसकी पेंसिल अच्छी?
- एक चिट्ठी दादाजी के नाम
- चंदू की सूझ-बूझ
- थोड़ी सी मस्ती
- फूलदान या गमला
- दोस्ती की दौड़
- मैं भी मदद करूँगा
- वो पैसे
- मेरे दोस्त की नाव
- बीच का पन्ना
- मैजिक स्ट्रॉ
- मोबाइल गेम
- हमारा प्यारा चाँद
- रोहित भैया का रॉकेट
- ऐसा क्यों?
- पिकनिक
- दादी का जन्मदिन
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