कहानी का उद्देश्य: विद्यार्थियों का ध्यान इस ओर जाए कि संबंधों में अपनापन के साथ जीना, भौतिक सुविधाओं के उपभोग से अधिक सुखदाई है।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की क्रिया से की जाए।
कहानी:
एक दिन छह वर्ष का सोनू अपने पापा के साथ मेला देखने दिल्ली हाट गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। सोनू पापा का हाथ पकड़ कर चल रहा था। उसने गुब्बारे वाले को एक बड़ा-सा गुब्बारा फूलाते हुए देखा।
“वाह! इतना सुंदर गुब्बारा! पापा, मुझे तो यही गुब्बारा चाहिए।”
पापा ने कहा, “पहले ज़रूरी सामान ले लें, वापिस लौटते समय गुब्बारा लेते हैं।”
सोनू पापा के साथ आगे बढ़ गया।
उसने देखा- इतना अच्छा झूला! मुझे भी झूलना है!
पापा ने उसे आगे चलने के लिए कहा।
थोड़ी देर बाद उसके पापा ज़रूरी सामान लेने लगे और सोनू को एक जगह खड़े होने को कहा। उस दुकान से थोड़ी दूरी पर एक सपेरा बीन बजा रहा था। उसकी टोकरी में एक लंबा-सा साँप था। साँप बीन के साथ लहरा रहा था। सोनू ने किसी साँप को नाचते हुए पहली बार देखा था। उसका मन साँप को और पास से देखने का हुआ। वह पापा को बिना बताए वहाँ से चला गया, जब वह वापस आया तो देखा पापा वहाँ नहीं थे।
वह पापा को यहाँ-वहाँ ढूंढने लगा, पर पापा तो कहीं दिख ही नहीं रहे थे। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। वहीं एक पुलिस वाले अंकल ने सोनू को देखा। पुलिस अंकल ने उसे बहलाने की बहुत कोशिश की। वे उसे गुब्बारे वाले के पास लेकर गए। लेकिन अब सोनू को गुब्बारा नहीं चाहिए था।
फिर वे सोनू को झूला झुलाने के लिए लेकर गए। अब सोनू को झूला भी नहीं झूलना था। वह लगातार रोता जा रहा था। अब उसे सपेरे का बीन बजाना भी अच्छा नहीं लगा।
सोनू बार-बार कह रहा था, “मुझे पापा के पास जाना है।”
तभी “सोनू! सोनू!” की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, उसने देखा कि उसके पापा उसकी तरफ़ आ रहे थे।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
● पापा से बिछड़ने पर सोनू ने गुब्बारा क्यों नहीं लिया?
● आप किन खिलौनों के साथ खेलना पसंद करते हैं?
● आप परिवार में किस किसके साथ खेलते हैं?
● आप घर के लोगों के साथ खेलने के अलावा और क्या कार्य करते हैं?
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट शांति से बैठें और अपने निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
चर्चा की दिशा:
वस्तुओं से हमें सुख मिलता है। पर उससे गहरा सुख अपनों के साथ जीने में है। उनके साथ हम सुरक्षित भी महसूस करते हैं। अपनों की अनुपस्थिति में वही वस्तु सुखकारी नहीं दिखती, जो कभी हमारे सुख का आधार बनी थी। चर्चा के माध्यम से बच्चों का ध्यान इस ओर जाए और वे अपने सुख के गहरे आधार को पहचान सकें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज घर लौटकर ध्यान देंगे कि कौन-कौन से कार्य करते समय हमें बहुत अच्छा लगा? क्यों?
अगली हैप्पीनेस क्लास में हम अपनी बातें साझा करेंगे।
-------------------------
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की क्रिया से की जाए।
कहानी:
एक दिन छह वर्ष का सोनू अपने पापा के साथ मेला देखने दिल्ली हाट गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। सोनू पापा का हाथ पकड़ कर चल रहा था। उसने गुब्बारे वाले को एक बड़ा-सा गुब्बारा फूलाते हुए देखा।
“वाह! इतना सुंदर गुब्बारा! पापा, मुझे तो यही गुब्बारा चाहिए।”
पापा ने कहा, “पहले ज़रूरी सामान ले लें, वापिस लौटते समय गुब्बारा लेते हैं।”
सोनू पापा के साथ आगे बढ़ गया।
उसने देखा- इतना अच्छा झूला! मुझे भी झूलना है!
पापा ने उसे आगे चलने के लिए कहा।
थोड़ी देर बाद उसके पापा ज़रूरी सामान लेने लगे और सोनू को एक जगह खड़े होने को कहा। उस दुकान से थोड़ी दूरी पर एक सपेरा बीन बजा रहा था। उसकी टोकरी में एक लंबा-सा साँप था। साँप बीन के साथ लहरा रहा था। सोनू ने किसी साँप को नाचते हुए पहली बार देखा था। उसका मन साँप को और पास से देखने का हुआ। वह पापा को बिना बताए वहाँ से चला गया, जब वह वापस आया तो देखा पापा वहाँ नहीं थे।
वह पापा को यहाँ-वहाँ ढूंढने लगा, पर पापा तो कहीं दिख ही नहीं रहे थे। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। वहीं एक पुलिस वाले अंकल ने सोनू को देखा। पुलिस अंकल ने उसे बहलाने की बहुत कोशिश की। वे उसे गुब्बारे वाले के पास लेकर गए। लेकिन अब सोनू को गुब्बारा नहीं चाहिए था।
फिर वे सोनू को झूला झुलाने के लिए लेकर गए। अब सोनू को झूला भी नहीं झूलना था। वह लगातार रोता जा रहा था। अब उसे सपेरे का बीन बजाना भी अच्छा नहीं लगा।
सोनू बार-बार कह रहा था, “मुझे पापा के पास जाना है।”
तभी “सोनू! सोनू!” की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, उसने देखा कि उसके पापा उसकी तरफ़ आ रहे थे।
चर्चा के लिए प्रस्तावित प्रश्न:
● पापा से बिछड़ने पर सोनू ने गुब्बारा क्यों नहीं लिया?
● आप किन खिलौनों के साथ खेलना पसंद करते हैं?
● आप परिवार में किस किसके साथ खेलते हैं?
● आप घर के लोगों के साथ खेलने के अलावा और क्या कार्य करते हैं?
कक्षा के अंत में 1-2 मिनट शांति से बैठें और अपने निष्कर्ष के बारे में विचार करें।
चर्चा की दिशा:
वस्तुओं से हमें सुख मिलता है। पर उससे गहरा सुख अपनों के साथ जीने में है। उनके साथ हम सुरक्षित भी महसूस करते हैं। अपनों की अनुपस्थिति में वही वस्तु सुखकारी नहीं दिखती, जो कभी हमारे सुख का आधार बनी थी। चर्चा के माध्यम से बच्चों का ध्यान इस ओर जाए और वे अपने सुख के गहरे आधार को पहचान सकें।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज घर लौटकर ध्यान देंगे कि कौन-कौन से कार्य करते समय हमें बहुत अच्छा लगा? क्यों?
अगली हैप्पीनेस क्लास में हम अपनी बातें साझा करेंगे।
-------------------------
- मीठा सेब
- राजू का टिफिन बॉक्स
- ख़ुशबूदार रबड़
- नया दोस्त
- गुठली किसकी?
- नोनी की चोट
- चलो बनाएँ पकौड़े
- रानी की गुड़िया
- भैया का रूमाल
- रिया गई स्कूल
- बड़ी बिल्डिंग
- मेरी गुल्लक
- रंग-बिरंगा दरवाज़ा
- संजू का तौलिया
- बिस्कुट किसका?
- हम लोग
- मैं कर सकता हूँ
- डर भगाओ
- वाणी और लाल गुब्बारा
- मुझे अच्छा लगता है
- टूटी पेंसिल
- जॉय की खुशी
- नन्ही बहन
- मेला
- पेन सेट
No comments:
Post a Comment