कहानी का उद्देश्य: एक-दूसरे की मदद करना अच्छा लगता है - इस बात पर विश्वास दृढ़ हो।
कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की क्रिया से की जाए।
कहानी:
राजू का स्कूल में आज पहला दिन था। उसकी माँ की तबियत ख़राब थी। फिर भी उन्होंने राजू को जैसे-तैसे तैयार किया। पर उसके लिए वे लंच बनाकर टिफ़िन पैक नहीं कर पाईं। पड़ोस की मोनिका दीदी के साथ उन्होंने उसे स्कूल भेज दिया। जब लंच ब्रेक हुआ, सभी बच्चे एक साथ लंच करने बैठे। पर राजू अपनी बेंच पर चुप-चाप बैठा रहा। अन्य बच्चों की नज़र जब उस पर पड़ी, तो उन्होंने पूछा, “राजू!, तुम लंच नहीं लाए?”
राजू ने माँ की बीमारी की बात उन्हें बताई।
राजू के दोस्तों ने कहा, “आज हमारा लंच ही राजू का लंच है।” और अपने साथ बिठाया, किसी ने इडली दी, किसी ने पराँठा, किसी ने राजमा तो किसी ने भिंडी की सब्ज़ी। सबने मिल-जुलकर बड़े मज़े से खाना खाया I
आपको अपना खाना शेयर करने में कैसा लगता है?
राजू जब स्कूल से घर पहुंचा तो माँ की तबियत कुछ ठीक थी। माँ ने कहा, “राजू तुम्हें तो बहुत भूख लगी होगी! मैं खाने के लिए कुछ बनाती हूँ।”
राजू बोला, “अरे माँ! आज तो मैंने अपने दोस्तों के साथ ख़ूब खाया है। आपने कुछ खाया या नहीं? थोड़ी देर बाद राजू फिर बोला,“और हां माँ! थोड़ा सा हलवा तो मैं आपके लिए भी बचा कर लाया हूँ, आप भी खा लो।”
चर्चा के प्रश्न:
चर्चा की दिशा :
जब हम मिल-जुलकर रहते हैं और मिल-जुलकर खाते हैं तो हमें अच्छा लगता है। मानव का अकेले में कोई कार्यक्रम नहीं होता। सहयोगी रूप में साथ-साथ जीना ही सुख का आधार है। जब हम साथ मिलकर कुछ काम करते हैं या मिल-जुलकर खाते हैं तो हमें तो अच्छा लगता है,साथ ही दूसरे व्यक्ति को भी अच्छा लगता है।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज हम इस बात पर ध्यान देंगे कि हमें किस-किस से सहयोग मिला या किसी ने हमारा कैसे साथ दिया। हम अपनी बातें कल साझा करेंगे।
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कक्षा की शुरुआत 2-3 मिनट श्वास पर ध्यान देने की क्रिया से की जाए।
कहानी:
राजू का स्कूल में आज पहला दिन था। उसकी माँ की तबियत ख़राब थी। फिर भी उन्होंने राजू को जैसे-तैसे तैयार किया। पर उसके लिए वे लंच बनाकर टिफ़िन पैक नहीं कर पाईं। पड़ोस की मोनिका दीदी के साथ उन्होंने उसे स्कूल भेज दिया। जब लंच ब्रेक हुआ, सभी बच्चे एक साथ लंच करने बैठे। पर राजू अपनी बेंच पर चुप-चाप बैठा रहा। अन्य बच्चों की नज़र जब उस पर पड़ी, तो उन्होंने पूछा, “राजू!, तुम लंच नहीं लाए?”
राजू ने माँ की बीमारी की बात उन्हें बताई।
राजू के दोस्तों ने कहा, “आज हमारा लंच ही राजू का लंच है।” और अपने साथ बिठाया, किसी ने इडली दी, किसी ने पराँठा, किसी ने राजमा तो किसी ने भिंडी की सब्ज़ी। सबने मिल-जुलकर बड़े मज़े से खाना खाया I
आपको अपना खाना शेयर करने में कैसा लगता है?
राजू जब स्कूल से घर पहुंचा तो माँ की तबियत कुछ ठीक थी। माँ ने कहा, “राजू तुम्हें तो बहुत भूख लगी होगी! मैं खाने के लिए कुछ बनाती हूँ।”
राजू बोला, “अरे माँ! आज तो मैंने अपने दोस्तों के साथ ख़ूब खाया है। आपने कुछ खाया या नहीं? थोड़ी देर बाद राजू फिर बोला,“और हां माँ! थोड़ा सा हलवा तो मैं आपके लिए भी बचा कर लाया हूँ, आप भी खा लो।”
चर्चा के प्रश्न:
- क्या किसी अनजान व्यक्ति ने कभी आपकी मदद की है? कब और कैसे?
- आपके मन में किसी की मदद करने का विचार कब और क्यों आया?
- परिवार के सदस्य हमारे लिए क्या-क्या करते हैं?
- आप अपने परिवार के लिए क्या करते है?
- क्या आपने कभी अपने दोस्त के साथ अपना सामान साझा किया है? हाँ तो कब?
चर्चा की दिशा :
जब हम मिल-जुलकर रहते हैं और मिल-जुलकर खाते हैं तो हमें अच्छा लगता है। मानव का अकेले में कोई कार्यक्रम नहीं होता। सहयोगी रूप में साथ-साथ जीना ही सुख का आधार है। जब हम साथ मिलकर कुछ काम करते हैं या मिल-जुलकर खाते हैं तो हमें तो अच्छा लगता है,साथ ही दूसरे व्यक्ति को भी अच्छा लगता है।
घर जाकर देखो, पूछो, समझो (विद्यार्थियों के लिए)
आज हम इस बात पर ध्यान देंगे कि हमें किस-किस से सहयोग मिला या किसी ने हमारा कैसे साथ दिया। हम अपनी बातें कल साझा करेंगे।
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- मीठा सेब
- राजू का टिफिन बॉक्स
- ख़ुशबूदार रबड़
- नया दोस्त
- गुठली किसकी?
- नोनी की चोट
- चलो बनाएँ पकौड़े
- रानी की गुड़िया
- भैया का रूमाल
- रिया गई स्कूल
- बड़ी बिल्डिंग
- मेरी गुल्लक
- रंग-बिरंगा दरवाज़ा
- संजू का तौलिया
- बिस्कुट किसका?
- हम लोग
- मैं कर सकता हूँ
- डर भगाओ
- वाणी और लाल गुब्बारा
- मुझे अच्छा लगता है
- टूटी पेंसिल
- जॉय की खुशी
- नन्ही बहन
- मेला
- पेन सेट
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